तेरी सूरत चस्पा है
मेरी आँखों की पुतलियों में
मेरी तस्वीर तेरी
पुरानी किसी दराज में नहीं.....
जानती हूँ , मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
तेरा ज़िक्र मैं करती रही
हर बात में हर सांस में
पढ़ कर मेरी नज़्म कोई
तू कभी चौंका ही नहीं .....
जानती हूँ , मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
तेरे इश्क में मैं
मुमताज़ हुई
बस एक ताजमहल सा तूने
कुछ कभी गढ़ा ही नहीं...
जानती हूँ, मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
मैं सुलगती रही
गीली लकड़ी की तरह
(उठता रहा धुंआ धीरे धीरे...)
तेरी आँखों में मगर
आँसू सा कुछ उतरा ही नहीं.....
जानती हूँ, मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
अनु
मेरी आँखों की पुतलियों में
मेरी तस्वीर तेरी
पुरानी किसी दराज में नहीं.....
जानती हूँ , मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
तेरा ज़िक्र मैं करती रही
हर बात में हर सांस में
पढ़ कर मेरी नज़्म कोई
तू कभी चौंका ही नहीं .....
जानती हूँ , मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
तेरे इश्क में मैं
मुमताज़ हुई
बस एक ताजमहल सा तूने
कुछ कभी गढ़ा ही नहीं...
जानती हूँ, मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
मैं सुलगती रही
गीली लकड़ी की तरह
(उठता रहा धुंआ धीरे धीरे...)
तेरी आँखों में मगर
आँसू सा कुछ उतरा ही नहीं.....
जानती हूँ, मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
अनु
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ..आभार
ReplyDeleteमैं सुलगती रही
ReplyDeleteगीली लकड़ी की तरह
(उठता रहा धुंआ धीरे धीरे...)
तेरी आँखों में मगर
आँसू सा कुछ उतरा ही नहीं.....
बहुत खूब .....!!
मन की वेदना की प्रभावी अभिव्यक्ति......हृदयस्पर्शी
ReplyDeleteheart touching lines di....par aisa hota kyu hai ?
ReplyDeleteBAHUT HI SUNDAR ..JANTI HUN MAIN TERI KUCH NAHI LAGTI ...BAHUT SAHI SUNDAR
ReplyDeleteपर तू क्या मेरा खुद भी जानता है
ReplyDeleteतू ही मेरे साथ होता है
तू मेरा सबकुछ लगता है !
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 02/02/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteमैं सुलगती रही
ReplyDeleteगीली लकड़ी की तरह
(उठता रहा धुंआ धीरे धीरे...)
तेरी आँखों में मगर
आँसू सा कुछ उतरा ही नहीं.....
जानती हूँ, मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
आंसू बस स्त्री के ही जिम्मे आये है :)
बढ़िया उलाहना |
ReplyDeleteशुभकामनायें ||
बढ़िया प्रेम दर्द बयां हुआ है।
ReplyDeletesundar abhivyakti...anu ji....
ReplyDeletesundar abhiykati...anu ji....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव प्रवण कविता . आभार .
ReplyDeleteमैं सुलगती रही
ReplyDeleteगीली लकड़ी की तरह
(उठता रहा धुंआ धीरे धीरे...)
तेरी आँखों में मगर
आँसू सा कुछ उतरा ही नहीं..... वाह..बहु्त अनुपम भाव..
हम आपके हैं कौन :):).
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एहसास.
बहुत-बहुत खूबसूरत अनु !
ReplyDelete<3
जो कुछ नहीं लगता ... फिर भी वो सब कुछ हो जाता है
ReplyDeleteलाजवाब लिख्खा है आपने ...
सादर
sundar pastuti,"koe mumtaj hua,to koe mohtaj,gr taj mahal n ban saka to kya hua,apna dil hi tajmahal hua...." तेरे इश्क में मैं
ReplyDeleteमुमताज़ हुई
बस एक ताजमहल सा तूने
कुछ कभी गढ़ा ही नहीं...
जानती हूँ, मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
मैं सुलगती रही
गीली लकड़ी की तरह
(उठता रहा धुंआ धीरे धीरे...)
तेरी आँखों में मगर
आँसू सा कुछ उतरा ही नहीं.....
जानती हूँ, मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
बहुत ही अच्छी लगी कविता ..
ReplyDeleteमैं सुलगती रही
ReplyDeleteगीली लकड़ी की तरह
(उठता रहा धुंआ धीरे धीरे...)
तेरी आँखों में मगर
आँसू सा कुछ उतरा ही नहीं.....
जानती हूँ, मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
बहुत लाजबाब भावनात्मक अभिव्यक्ति,,,,
अंतिम पंक्तियाँ बहुत ही प्रभावी हैं, वैसे तो पूरी कविता बहुत अच्छी है.
ReplyDeleteमन को गहरे छू गई ये पंक्तियाँ...
ReplyDeleteतेरा ज़िक्र मैं करती रही
हर बात में हर सांस में
पढ़ कर मेरी नज़्म कोई
तू कभी चौंका ही नहीं .....
जानती हूँ , मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
भावपूर्ण रचना के लिए बधाई.
नाज़ुक ज़ज्बात ....महसूस करने के लिए !
ReplyDeleteबेहतरीन !!
ReplyDeleteबेहतरीन !!
ReplyDeleteमैं सुलगती रही
ReplyDeleteगीली लकड़ी की तरह
(उठता रहा धुंआ धीरे धीरे...)
तेरी आँखों में मगर
आँसू सा कुछ उतरा ही नहीं.....
जानती हूँ, मैं तेरी कुछ नहीं लगती !,ati sundr bhaav
beautiful ...
ReplyDeleteक्या बात है अनु...आपकी गज़ल तो दिल में उतर गई ..
ReplyDeletebeautiful lines
ReplyDeleteAnulata ji lagta hai ab aapse milna hi padega :)
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से शब्द दिए है गहराई लिए प्यार को. बहुत अच्छी लगी कविता.
ReplyDeleteमैं सुलगती रही
ReplyDeleteगीली लकड़ी की तरह
(उठता रहा धुंआ धीरे धीरे...)
...absolutely beautiful, Anu!
सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteइतना अच्छा कैसे लिख लेती हैं आप !
तेरी आँखों में मगर
ReplyDeleteआँसू सा कुछ उतरा ही नहीं.....
जानती हूँ, मैं तेरी कुछ नहीं लगती !...
मेरी तकलीफ से भी तुम्हे दर्द नहीं होता........कितना दुखदायी क्षण है .........
''दुनिया को ये कमाल भी कर के दिखाईए ...
ReplyDeleteमेरी जबीं पे अपना मिक़द्दर सजाइये....
शायद लिखा हो इसमें कहीं नाम आपका ....
दुनियाँ से छुप के मेरी ग़ज़ल गुनगुनाइए ...''
इस खूबसूरत रचना को पढ़ कर यही शेर याद आया ...
बहुत सुंदर लिखा है अनु ....
लाजवाब! बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteBahut sundar Abhivyakti...Badhai
ReplyDeleteमैं सुलगती रही गीली लकडियों सी "बहुत सुन्दर पंक्ति "उम्दा रचना |
ReplyDeleteआशा
बाज़ार फ़िल्म का गीत 'देख लो आज हमको जी भर के' याद आया...
ReplyDeleteतेरे इश्क में मैं
ReplyDeleteमुमताज़ हुई
बस एक ताजमहल सा तूने
कुछ कभी गढ़ा ही नहीं...
जानती हूँ, मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
bahut hi sunder..
thnx for sharing...
क्या कहूँ इक तरफ़ा मुहब्बत कहूँ या बेवफाई जो भी है बस दाद देती हूँ इस प्रस्तुति पर
ReplyDeleteजीवन के सही रूप को दर्शाती
ReplyDeleteबहुत कहीं गहरे तक उतरती कविता ------बधाई
बहुत खूबसूरत शब्द प्यार गहराई लिए बहुत अच्छी कविता......
ReplyDeleteRECENT POST शहीदों की याद में,
very impressive post .... very well written & fabulous as always
ReplyDeleteplz . visit -http://swapniljewels.blogspot.in/2013/01/a-kettle-of-glitters.html
pain..love...rejection....sab kuch hai aapki is kavita mei anu di..fir bhi aapki ye pankti ki "jaanti hu mai teri kuch nahi lagti" jaise abhi bhi ummeed ka diya jalaye baithi hai ... behtareen rachna
ReplyDeleteयू अनजानों से गिला शिकवा क्यों ...
ReplyDeleteप्रेम की गहरी छाप लिए ...
बहुत प्यारी रचना...अक्सर एक असफल प्रेम में रिश्ते ऐसे ही होते हैं...
ReplyDeleteमैं सुलगती रही
ReplyDeleteगीली लकड़ी की तरह
(उठता रहा धुंआ धीरे धीरे...)
तेरी आँखों में मगर
आँसू सा कुछ उतरा ही नहीं.....
जानती हूँ, मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
बहुत खूब,,,,
प्रेम की गहरे भाव लिए सुन्दर रचना
सादर !
बस एक ताजमहल सा तूने
ReplyDeleteकुछ कभी गढ़ा ही नहीं...
जानती हूँ, मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
......वाह बेहतरीन !!!!
जानती हूँ , मैं तेरी कुछ भी नहीं ...
ReplyDeleteufff !!! phir se itne comment aa gaye, mere aane se pahle... :-/
ReplyDeleteKuch bhi kehna is ehsaas ki tauheen hogi... phir bhi... bahut khoob... :)
ReplyDeleteapki is kavita ko pustak me prakashit karna h..
ReplyDeletebhanu, agra
आप कुछ विस्तार से बताएँगे क्या????
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