प्रेम में
रख दिये थे उसने
दो तारे मेरी हथेली पर
और कस ली थी मैंने
अपनी मुट्ठियाँ....
भींच रखे थे तारे
तब भी ,जब न वो पास था न प्रेम....
जुदाई के बरसों बरस
उसकी निशानी मान कर.
तब कहाँ जानती थी
कि मुरादों के पूरा होने की दुआ
हथेलियाँ खोल कर
टूटते तारों से मांगनी होगी...
मगर
उस आखरी निशानी की कुर्बानी
मुझे मंज़ूर नहीं थी,
किसी कीमत पर नहीं.....
मेरी लहुलुहान हथेलियों ने
अब भी समेट रखे हैं
वो दो नुकीले तारे...
अनु
रख दिये थे उसने
दो तारे मेरी हथेली पर
और कस ली थी मैंने
अपनी मुट्ठियाँ....
भींच रखे थे तारे
तब भी ,जब न वो पास था न प्रेम....
जुदाई के बरसों बरस
उसकी निशानी मान कर.
तब कहाँ जानती थी
कि मुरादों के पूरा होने की दुआ
हथेलियाँ खोल कर
टूटते तारों से मांगनी होगी...
मगर
उस आखरी निशानी की कुर्बानी
मुझे मंज़ूर नहीं थी,
किसी कीमत पर नहीं.....
मेरी लहुलुहान हथेलियों ने
अब भी समेट रखे हैं
वो दो नुकीले तारे...
अनु
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
मेरी लहुलुहान हथेलियों ने
ReplyDeleteअब भी समेट रखे हैं
वो दो ....
------------------------
बेहद ही सुन्दर
तब कहाँ जानती थी
ReplyDeleteकि मुरादों के पूरा होने की दुआ
हथेलियाँ खोल कर
टूटते तारों से मांगनी होगी...बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,
recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
असमंजस की स्थिति!
ReplyDeleteढ़
--
थर्टीन रेज़ोल्युशंस
achha shbd sanyojan
ReplyDeleteपुराने प्रेम की निशानी कहाँ छूट पाती है। फिर चाहे हाथ दुखे या दिल लहू लुहान हो। यादों को झंझोड़ती सुन्दर रचना।
ReplyDeleteहाथों में बंद अगर उसकी निशानी साथ है... तो हर दुआ क़ुबूल हुई...
ReplyDelete<3
आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 16/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteमुरादों के पूरा होने की दुआ
ReplyDeleteहथेलियाँ खोल कर
टूटते तारों से मांगनी होगी...
बहुत सुन्दर , शुरुआत से अंत तक |
सादर
मन के मन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबेहद उम्दा
ReplyDeleteतब कहाँ जानती थी
ReplyDeleteकि मुरादों के पूरा होने की दुआ
हथेलियों को खोल कर
टूटते तारों से माँगनी होगी ....
नाजुक सी , खूबसूरत दर्द भरी रचना है आपकी , जो हौले से मन को छू गई .....आभार .
...बंद मुठ्ठी में आपका भरोसा है उसे मत खोलना !
ReplyDeleteदुआओं से क्या मिलता?
ReplyDeleteतारे भी छूट जाते
तारे हैं
मुट्ठी लहुलुहान हैं तो क्या!
सितारे हैं
और उम्मीद भी
कि दुआ मांगी जा सकती है।
दर्द भी सहेजा जाता है .......गहरी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण दिल को छू लेनेवाली रचना....
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक, सुन्दर भावपूर्ण रचना ....
लोहड़ी व मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ !
सादर !
मेरी लहुलुहान हथेलियों ने
ReplyDeleteअब भी समेट रखे हैं
वो दो नुकीले तारे...
कभी कभी पीड़ा से भी लगाव हो जाता है।
कुछ दर्द भी बहुत अनमोल होते हैं ...लोहिड़ी व मकर संक्रांति पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भाव प्रबल है .
ReplyDeletebahut sundar...full of feel:-)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteमकर संक्रान्ति के अवसर पर
उत्तरायणी की बहुत-बहुत बधाई!
Very beautifully expressed.Have a great Pongal & Sankranti Anu Ji. Hope your dad is well & fine. Give him my regards.
ReplyDeleteमुरादों के पूरा होने की दुआ
ReplyDeleteहथेलियाँ खोल कर
टूटते तारों से मांगनी होगी....
बहुत खूबसूरत। मकर सक्रांति की शुभकामनायें
तारे
ReplyDeleteजो बंद हैं
मुट्ठी में
एक आस है कि
कभी मांगी दुआ
तो ज़रूर पूरी होगी ।
बहुत सुंदर
वाह बहुत सुन्दर भाव हैं इस रचना के ...सुन्दर पंक्तियाँ बुनी है अनु :)
ReplyDeleteदुआओं का एक रंग ... ये भी आपकी कलम से नि:शब्द कर गया
ReplyDeleteसादर
बहुत बढ़िया दीदी
ReplyDeleteसादर
ग़ालिब साहब ने कहा है...
ReplyDeleteकोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे नीमकश को,
वो खलिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता!
/
यादों को समेटने का यह तरीका भी बेहतर है, जो चुभन याद दिलाए वो टूटन कहाँ... !!
वाह ! लाजवाब ..
ReplyDeleteतारा टूटने और तारों को जकड़ने के बीच सुंदर तार जोड़े हैं.
ReplyDeleteदिल को छूती बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDelete
ReplyDeleteमन की गहन पीड़ा की बड़ी सशक्त अभिव्यक्ति हुई है इस रचना में विछोह का दर्द उभरा है यादों के समुन्दर की ओट लेके .
'तब कहाँ जानती थी...!'
ReplyDeleteबड़ी ही सूक्ष्म, गहन अनुभूति।
बेहद सुन्दर रचना अनु दी।
सादर
मधुरेश
बहुत सुंदर रचना॥
ReplyDeleteमेरी लहुलुहान हथेलियों ने
ReplyDeleteअब भी समेट रखे हैं
वो दो नुकीले तारे...
सुन्दर रचना !
तब कहाँ जानती थी
ReplyDeleteकि मुरादों के पूरा होने की दुआ
हथेलियाँ खोल कर
टूटते तारों से मांगनी होगी
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ . सुंदर प्रस्तुति
वाह .बहुत सुन्दर
बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति..अनु...
ReplyDeleteतब कहाँ जानती थी
ReplyDeleteकि मुरादों के पूरा होने की दुआ
हथेलियों को खोल कर
टूटते तारों से माँगनी होगी ....
बहुत सुन्दर!
आपकी कलम दिल को छूती है। यह कला सबमें नहीं होती। आपको ईश्वर ने दी है।
सच है प्रेम को भूलना आसान नहीं ... फिर निशानी ही तो याद होती है जाने के बाद ... उसे छोड़ के दुआ भी क्या मांगे पाएंगे ...
ReplyDeleteprem ki gahrayi ka yatharthpurn chitran...
ReplyDeleteऔर कस ली थी मैंने
अपनी मुट्ठियाँ....
भींच रखे थे तारे
तब भी ,जब न वो पास था न प्रेम....
प्रारम्भ से ही कविता मन को मोह लेती है |रम्य कविता |
ReplyDeleteहथेलियाँ खोल कर
ReplyDeleteटूटते तारों से मांगनी होगी....
बहुत खूबसूरत। मकर सक्रांति की शुभकामनायें !!!
जो था,जो होगा
ReplyDeleteप्रेम में ही
थी मैं,था वह
प्रेम से ही!
:) :)
ReplyDeleteवैसे ये तो फेसबुक पर पढ़ चुके थे, यहाँ फिर से पढ़ लिए :)