भास्कर भूमि में प्रकाशित http://bhaskarbhumi.com/epaper/index.php?d=2012-08-08&id=8&city=Rajnandgaon#
ख्वाहिशों के कभी कोई नाम नहीं होते ...
ये हैं दिल में फडफडाते हुए,कुछ परकटे तोते.....
ये हैं दिल में फडफडाते हुए,कुछ परकटे तोते.....
कभी ऐसी ही जाने कितनी ख्वाहिशें दिल में पला करती थीं...
इतनी कि गिनी न जा सकें.......
ख्वाहिशों का कोई बोझ नहीं होता..
जितनी भी हों,दिल हल्का ही रहता..
मानों उड़ा जा सकता,पंखों के बिना ही..
जितनी भी हों,दिल हल्का ही रहता..
मानों उड़ा जा सकता,पंखों के बिना ही..
और अब जाने क्या हुआ.....मर गयीं सब ख्वाहिशें.....
शायद नाउम्मीदी ने घोंट दिया गला ...
अब कोई ख्वाहिश नहीं......फिर भी जाने क्यूँ दिल भारी है....
उड़ना तो दूर,
बैठा बैठा जाता है दिल.
बैठा बैठा जाता है दिल.
तुम्हारी मोहब्बत जो न रही....
जाने क्या रिश्ता था तेरी मोहब्बत और मेरी ख्वाहिशों का???
एक मरी तो दूजी भी मर गयी....गहरा रिश्ता रहा होगा.
जैसे कभी तेरा मेरा था....अटूट....
फिर भी टूट ही गया...
फिर भी टूट ही गया...
अब कुछ भी पहले सा नहीं
तुमने हाथ जो छुडाया....
मेरे हाथों की लकीरें भी शायद साथ ले गए...
वो ख़्वाबों,ख्वाहिशों वाली लकीरें!!!
वो ख़्वाबों,ख्वाहिशों वाली लकीरें!!!
तुम कहते हो तुम्हें मोहब्बत नहीं...
यही इलज़ाम मैंने भी दिया तुमको....
(हमारी सोच भी मिलती है देखो...)
माना तुम्हें मोहब्बत नहीं
ये सच है....
मगर मुझे नफरत है सच्चाई से...माना तुम्हें मोहब्बत नहीं
ये सच है....
सुनो...
मेरा मानना है कि
तुममें और मुझमें
अब भी मोहब्बत है ...
जानते नही ?
या फिर सुना तो होगा ??
कि मोहब्बत मरा नहीं करती !!!
तुममें और मुझमें
अब भी मोहब्बत है ...
जानते नही ?
या फिर सुना तो होगा ??
कि मोहब्बत मरा नहीं करती !!!
ये बस माचिस की सीली तीली की तरह है......
बारूद तो है मगर सीलन है के आग लगने नहीं देती....
बीत जाने दो इस सीले मौसम को.....
क्या पता सर्दियों की कच्ची धूप कुछ जादू कर दे...
परकटा तोता भी उड़ जाए????
ख़्वाबों के पंख लगा कर......
मोहब्बत की तरह ख्वाहिशें भी कब मरा करती हैं ???
ख़्वाबों के पंख लगा कर......
मोहब्बत की तरह ख्वाहिशें भी कब मरा करती हैं ???
-अनु
ख्वाहिशें हमेशा जिंदा रहनी चाहिए !
ReplyDeleteये बस माचिस की सीली तीली की तरह है......
ReplyDeleteबारूद तो है मगर सीलन है कि आग लगने नहीं देती....
मेरे हाथों की लकीरों को अब भी तेरे
स्पर्श की दरकार है..... है न ?
बढ़िया अनुजी......
मोहब्बत की तरह ख्वाहिशें भी कब मरा करती हैं ???
ReplyDeleteख्वाहिशें मर जाएँ तो जीने का अर्थ ही बदल जाएगा...
उन्हें जीवित रखना ही ठीक है|
ख्वाहिशें और उम्मीदें ही तो सारे दुखों की जड़ हैं.. और मोहब्बत के मामले में तो सारा दर्द ही इसी के कारण होता है!! बहुत ही खूबसूरती से बयान किया है आपने मन की भावों को!!
ReplyDeleteAchha aap isi rachna ki baat kar rahi thi..ki aapne bhi teeliyon ka jikr kia hai! bahot achhi rachna.. bada hi achhi similarity dikhayi hai parkate tote se...kabil-e-tareef!
ReplyDelete:-)हाँ जी ..
Deleteशुक्रिया.
हजारों हो ख्वाइशे, हर ख्वाइश पूरी हो... !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर,
ReplyDeleteकभी ऐसी ही जाने कितनी ख्वाहिशें दिल में पला करती थीं...
इतनी कि गिनी न जा सकें.......
ख्वाहिशों का कोई बोझ नहीं होता..
जितनी भी हों,दिल हल्का ही रहता..
मानों उड़ा जा सकता,पंखों के बिना ही..
क्या कहने,
ख़्वाबों की बहुत सार्थक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...ख्वाब ही तो जीवन का सम्बल हैं...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteख्वाहिश मर गई अगर,फिर जीना बेकार
ReplyDeleteमोहब्बतें मरती नही,ख्वाहिश हो बरकरार....
लाजबाब प्रस्तुति ,,,,अनु जी,,,,
RECENT POST...: जिन्दगी,,,,
बढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteबधाई अनु जी ||
beautiful and touchy :)
ReplyDeleteमोहब्बत की तरह ख्वाहिशें भी कब मरा करती हैं ???
ReplyDeletewaah bahut hi sundar rachna anuji khwahishe kabhi mara nahi karti
Deleteख्वाहिशें न मरती हैं न मरने देना चाहिए... सुन्दर रचना, बधाई.
ReplyDeleteये बस माचिस की सीली तीली की तरह है......
ReplyDeleteबारूद तो है मगर सीलन है के आग लगने नहीं देती....
बीत जाने दो इस सीले मौसम को.....
क्या पता सर्दियों की कच्ची धूप कुछ जादू कर दे...
बहुत खूबसूरत उम्मीद ....
मोहब्बत की तरह ख्वाहिशें भी कब मरा करती हैं........
ReplyDeleteइंसान जब तक जिन्दा है बस इसी उम्मीद में जी जाता है...!
सही कहा आपने!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
बहुत ही उम्दा कविता |बधाई और शुभकामनाएँ |
ReplyDeletebeautiful
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
very nice poem
ReplyDelete--- शायद आपको पसंद आये ---
1. ब्लॉगर में LinkWithin का Advance Installation
2. मुहब्बत में तेरे ग़म की क़सम ऐसा भी होता है
3. तख़लीक़-ए-नज़र
बीत जाने दो इस सीले मौसम को.....
ReplyDeleteक्या पता सर्दियों की कच्ची धूप कुछ जादू कर दे...
वाह .. बेहतरीन
आभार
मोहब्बत की तरह ख्वाहिशें भी कब मरा करती हैं ? सच कहा अनु ..मन को छूती हुई बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति..
ReplyDelete..behad sundar! behtareen!!
ReplyDelete(aapka 'pyar aur moorkhtaa' wali kavita mein kiye huye promise ka secret khul gaya hai:):))
अनु जी, कविता बहुत ही निजी अभिव्यक्ति होती है -फिर भी राय दे रहा हूँ: इस रचना में थोडा संकलन हो सकता है.
ReplyDeleteतुम कहते हो तुम्हें मोहब्बत नहीं...
ReplyDeleteयही इलज़ाम मैंने भी दिया तुमको....
(हमारी सोच भी मिलती है देखो...)
माना तुम्हें मोहब्बत नहीं
ये सच है....
मगर मुझे नफरत है सच्चाई से... एक उदास पर शोख बच्ची के गालों पर सूखे से ख्याल
मरता भी नहीं है और रहता भी नहीं है, पता नहीं होता ही क्यूँ है....
ReplyDeleteLoved It..
मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं...बढिया रचना..
ReplyDeleteहाथ का छुडाना लकीरों का साथ ले जाना ... लाजवाब सोच का इक पहलू ...
ReplyDeletenice poem----well expressed thoughts.
ReplyDeleteहर भाव में आपकी प्रस्तुति बेहतरीन होती है .
ReplyDeleteये बस माचिस की सीली तीली की तरह है......
ReplyDeleteबारूद तो है मगर सीलन है के आग लगने नहीं देती....
बीत जाने दो इस सीले मौसम को.....
क्या पता सर्दियों की कच्ची धूप कुछ जादू कर दे...
...ज़रूर करेगी ...यकीनन !!!!!!!!!!!!!!
काश...! हर किसी की ख्वाहिशें पूरी हो पातीं...
ReplyDeleteया फिर सुना तो होगा ??
ReplyDeleteकि मोहब्बत मरा नहीं करती !!!
ये बस माचिस की सीली तीली की तरह है......
बारूद तो है मगर सीलन है के आग लगने नहीं देती....
मन को छू लेने वाली भावपूर्ण रचना....
ख़्वाब है कि जी रहे हैं हम
ReplyDeleteहम हैं कि पल रहे हैं ख्वाब
भावनात्मक रचना अनु जी।
ReplyDeleteप्रतीक संचेती
बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित .....
ReplyDeleteये बस माचिस की सीली तीली की तरह है......
ReplyDeleteबारूद तो है मगर सीलन है के आग लगने नहीं देती....
बड़ी गहरी बात कह दी..
सुन्दर कविता
"आपकी पंक्तियों से ही प्रेरित" :
ReplyDeleteबारूद तो दिया बहुत,
जमाने ने मेरे दिल को ,
वो तो तुम्हारी आँखें ही थी ,
सीलन ने जिसकी,
हमें दहकने न दिया |
वाह...बहुत सुन्दर अमित जी.
DeleteBahut sundar kavita. Parkate tote is a beautiful word Anu.
ReplyDeleteन मोहब्बत मरे, न ख्वाहिशें, यही ख्वाहिश है हमारी!
ReplyDeleteख्वाहिश गर मर जाये तो इन्सान कब जिन्दा रहेगा . सुन्दर
ReplyDeleteअनुलता जी नमस्कार...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग 'my dreams n exprissions' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 8 अगस्त को 'ख्वाहिशें...कभी मरती नहीं' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
शुक्रिया नीति जी.
Delete:) kabhi aa hi nahi aapi yaha tak ...aaj aa gai aur dukh hai mujhe kyu nahi aai.bahut sundar sach hai shayad parkata tota bhi ud jae
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव लिए रचना है..
ReplyDeleteख्वाइशे सदा जीवित रहे और पूरी भी हो..
यही कामना है..:-)
अनु जी सत्य वचन मोहब्बत तो सच्ची ही होती है अमर होती है नहीं तो मोहब्बत क्या है वो तो दिखावा है
ReplyDeleteजो कील चुभी वो नहीं विलग ....जय श्री राधे
भ्रमर ५
हृदयस्पर्शी..... ख्वाहिशों का सजीव चित्रण
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी नज़्म कही है अनु जी.....शाश्वत विषय है. जिसका न कोई आदि न कोई अंत..मुझे ग़ालिब की ग़ज़ल "हजारों ख्वाहिशें ऐसी....." याद आ गयी. इस विषय पर मैंने भी कई शेर कहे हैं मसलन.."ख्वाहिशों का इक छलकता जाम था...इक परी थी और इक गुलफाम था."
ReplyDeleteएक और अच्छी नज़्म के लिए बधाई
ख़्वाहिशें जीने का आसरा देती हैं, इसीलिए इन्हें जिला के रखना होता है।
ReplyDeletenaye prayog jaise andaaz men behatareen kriti...badhai
ReplyDeleteवाह लाजवाब अनु जी क्या बात है
ReplyDeleteकभी ऐसी ही जाने कितनी ख्वाहिशें दिल में पला करती थीं...
ReplyDeleteइतनी कि गिनी न जा सकें.......
ख्वाहिशों का कोई बोझ नहीं होता..
जितनी भी हों,दिल हल्का ही रहता..
मानों उड़ा जा सकता,पंखों के बिना ही..
बहुत बढ़िया ..
बहुत अच्छी प्रस्तुति! मेरे नए पोस्ट "छाते का सफरनामा" पर आपका हार्दिक अभिनंदन है। धन्यवाद।
ReplyDeleteजी हां ख्वाहिशें हमेशा जिंदा रहती हैं
ReplyDeleteलाजबाब ख्वाहिशें..
ReplyDeleteमोहब्बत की तरह ख्वाहिशें भी कब मरा करती हैं ???
ReplyDeletetrue :)
परकटा तोता भी उड़ जाए????
ReplyDeleteख़्वाबों के पंख लगा कर......
आपके शब्द और भाव लाजबाब हैं,अनु जी.
सचमुच ख्वाहिशें कभी नहीं मरती |
ReplyDeleteumda lekhan hai anu ji... badhayi
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