आसान था तुझे भूल जाना....
जैसे आसान था कभी,
रह रह कर तेरा याद आना...
भुला दिया तुझे मेरे दिल ने
बड़ी जल्दी,बड़ी आसानी से....
थे जो तेरी मोहब्बत के दस्तावेज,
वो कॉफी के कुछ बिल जलाए
और खत खुशबुओं वाले,
फाड़े और हवा में उडाये..
मुस्कुरा कर कुछ गम चोरी चोरी
अश्कों में बहाए......
बंधे थे मन्नत के धागे जो
हर मंदिर और दरगाह में
बस उन्हें भी जाकर खोल आये.....
सब किया धरा चाँद का था,सो
उसको भी अमावस कर आये....
अब ज़रा होशियारी बरतती हूँ.....
तेरे नाम के किसी और शख्स से भी
अंजान बनी रहती हूँ.....
अपनी चाहतें और शौक बदल डाले है मैंने...
अब न सुनती हूँ गज़ल,न शोख रंग पहनती हूँ...
ऐ मेरी हंसीं के दीवाने! अब न मैं ,उन दिनों की तरह ,खिलखिला के कभी हँसती हूँ.....
-अनु
जैसे आसान था कभी,
रह रह कर तेरा याद आना...
भुला दिया तुझे मेरे दिल ने
बड़ी जल्दी,बड़ी आसानी से....
थे जो तेरी मोहब्बत के दस्तावेज,
वो कॉफी के कुछ बिल जलाए
और खत खुशबुओं वाले,
फाड़े और हवा में उडाये..
मुस्कुरा कर कुछ गम चोरी चोरी
अश्कों में बहाए......
बंधे थे मन्नत के धागे जो
हर मंदिर और दरगाह में
बस उन्हें भी जाकर खोल आये.....
सब किया धरा चाँद का था,सो
उसको भी अमावस कर आये....
अब ज़रा होशियारी बरतती हूँ.....
तेरे नाम के किसी और शख्स से भी
अंजान बनी रहती हूँ.....
अपनी चाहतें और शौक बदल डाले है मैंने...
अब न सुनती हूँ गज़ल,न शोख रंग पहनती हूँ...
ऐ मेरी हंसीं के दीवाने! अब न मैं ,उन दिनों की तरह ,खिलखिला के कभी हँसती हूँ.....
-अनु
बहुत ही अच्छी कविता |
ReplyDeleteइतना आसान नहीं है मुझे भूल जाना........यशोदा
ReplyDeleteअब ज़रा होशियारी बरतती हूँ.....
तेरे नाम के किसी और शख्स से भी
सुन्दर सोच..
बेहतरीन कविता
सादर
जब सारे गुज़ारे हुए पलों की डिटेल्स इतनी बारीकी से याद हैं तो बड़ा मुश्किल सा लगता है उन्हें भुलाना.. इंसान सोचता है ऐसा, पर शायद हो नहीं पाता..
ReplyDeleteकरोगे याद तो हर बात याद आएगी,
गुजारते वक्त की हर मौज ठहर जायेगी!!
/
कविता बहुत अच्छी है, सचमुच!!
जीवन में मिले अनुभव बहुत कुछ बदल देते हैं.... गहरी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteतेरे नाम के किसी और शख्स से भी
ReplyDeleteअंजान बनी रहती हूँ...
ए मेरी हंसी के दीवाने
अब कहाँ उस तरह हँस पाती हूँ ...
शब्दों ने जो लिखा उससे ज्यादा कहा ...बहुत अपना -सा लगा !
इस याद रखने और भूल जाने के बीच भी कुछ उलझा उलझा सा है.... न ही कोई किरण है किसी दीये की और न ही ओस की कोई बूँद... बस ये तो हवाएं हैं जो यादों के साथ बहती रहती हैं....
ReplyDeleteबंधे थे मन्नत के धागे जो
ReplyDeleteहर मंदिर और दरगाह में
बस उन्हें भी जाकर खोल आये.....
सब किया धरा चाँद का था,सो
उसको भी अमावस कर आये....
अब ज़रा होशियारी बरतती हूँ.....
तेरे नाम के किसी और शख्स से भी
अंजान बनी रहती हूँ.....
अपनी चाहतें और शौक बदल डाले है मैंने...
अब न सुनती हूँ गज़ल,न शोख रंग पहनती हूँ...
ऐ मेरी हंसीं के दीवाने! अब न मैं ,उन दिनों की तरह ,खिलखिला के कभी हँसती हूँ.....
wow....behad khoobsoorat,,,,ye jo instances aapne diye hain....kamaal hain...:)
अच्छा लिखा है !
ReplyDeleteसब किया धरा चाँद का था,सो
ReplyDeleteउसको भी अमावस कर आये....
अब ज़रा होशियारी बरतती हूँ.....
तेरे नाम के किसी और शख्स से भी
अंजान बनी रहती हूँ.....
अपनी चाहतें और शौक बदल डाले है मैंने...
अब न सुनती हूँ गज़ल,न शोख रंग पहनती हूँ...
ऐ मेरी हंसीं के दीवाने! अब न मैं ,उन दिनों की तरह ,खिलखिला के कभी हँसती हूँ.....
आखिरी बात से हम आपकी इत्तेफाक नहीं रखेंगे ,क्योंकि रूप साम्य और नाम रूप ,समान नाम का होता है अपना एक आकर्षण और फितरतें बदला नहीं करतीं -हुजूमे गम ,मेरी फितरत बदल नहीं सकते ,मैं क्या करूँ ,मुझे आदत है मुस्कुराने की .....बढ़िया प्रस्तुति है आपकी दिल की लगी ,दिल को लगी ,न करो दिल्लगी .....
कोहरा जब छंटता है
ReplyDeleteचीजें साफ़-साफ़
दिखाई देने लगती है
तजुर्बे बोलते हैं
इतिहास की भाषा
..और अतीत की कहानियां
जिन्दा होने लगती है.........
अनुजी
मै शायद सही कह रहा हूँ न ? ......
हां...शायद!!!
Delete:-)
यह न आसान था कि तुझे भूल जाना
ReplyDeleteवह हंसकर लजाना औ नज़रें छुपाना ...
क्यों कविताएं वियोग से ही निकलती हैं,जिसमें प्रेमिका,प्रेमी अतीत की यादों को कविता,गानों में ढाल कर बेगाने हुए उस शख्स को सदा याद करती हैं;जो एक समय का द्विप था,जिस में बहुत निर्जनता थी,न प्रेमी को और न ही प्रेमिका को एक दूसरे के अलावा उस द्विप पर कोई नज़र नहीं आता था। दोनों का संसार एक दूसरे में सिमट गया था। लेकिन समय और समाज की मार कितनी बेदर्द होती है कि जो कभी एक दूसरे से जुदा न होने के स्वप्न बुनते थे, वही अब एक दूसरे को भुला देना बहुत आसान समझते हैं...कॉफी हाउस में बिताए क्षण,बिल, उसके खुशबू में सने प्रेमपत्र सब नष्ट हो जाते हैं और अतीत गेसूओं में बहने को मजबूर होता है। जिस सपने के सच होने के लिए जिस मंदिर मस्जिद में दुआ मांगी थी...उसकी निशानियां भी मिटा डाली...और चांद जिसमें कभी हमने उसका अक्श देखा किया था,उसको भी अमावस्या की रात में डूबो देना चाहते हैं। ताकि कोई उसकी निशानी बाकी न रह जाए। और पहले जब अपने प्रेमी के नाम के किसी दूसरे शख्स को देखती थी...तो उसकी तस्वीर उभर आती थी...लेकिन अब उनसे अंजान बना रहना ही सही लगता है। हर चाहत और शौक बदल गए हैं न गाने अच्छे लगते हैं,न ग़ज़ल और शौख रंगों से भी तौबा कर ली है। और वह हंसी तो सदा के लिए खो गई है....क्यों हर बार किसी कविता कहानी का अंत एक सा होता है। क्यों दो प्यार करने वालों के सपने हकीकत बनते....???
ReplyDeleteवाह.....
Deleteआपका आभार मनोज जी...
ऐ मेरी हंसीं के दीवाने! अब न मैं ,उन दिनों की तरह ,खिलखिला के कभी हँसती हूँ.....
ReplyDeleteआप कैसे कर लीं ? कठिनाईयों को कैसे झेलीं ?
बहुत ही सुन्दर कविता..
ReplyDeleteकई -कई पंक्तिया तो इतनी
हृदयस्पर्शी है की क्या कहू..
बहुत सुन्दर....
:-)
जीवन सफर मे मिले अनुभव बहुत कुछ सीखा, समझा जाते है... अपनी सी बात लगी..बहुत सुन्दर अनु..
ReplyDeletena likhna asan hai na bhulna....sab yaad hai tabhi tho likha hai.....bahut accha laga padh kar di......
ReplyDeleteअच्छा लिखा है ! गहरी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअच्छी कविता
ReplyDeleteबहुत सुंदर
वाह ... बेहतरीन ...आभार
ReplyDeleteअब ज़रा होशियारी बरतती हूँ.....
ReplyDeleteतेरे नाम के किसी और शख्स से भी
अंजान बनी रहती हूँ.....
अपनी चाहतें और शौक बदल डाले है मैंने...
अब न सुनती हूँ गज़ल,न शोख रंग पहनती हूँ...बहुत बढ़िया
मुझे सुलाने के खातिर रोज रात आती है,
ReplyDeleteहम सो नही पाते,रात खुद सो जाती है,
पूछने पर दिल से ये आवाज आती है,
कि आज उन्हें याद कर ले,रात तो रोज आती है,,,,,
RECENT POST ...: जिला अनुपपुर अपना,,,
न भुलाते हुवे भी भूल जाने का एहसास ... बाखूबी शब्दों का जामा पहनाया है ... लाजवाब ...
ReplyDeleteअब ज़रा होशियारी बरतती हूँ.....
ReplyDeleteतेरे नाम के किसी और शख्स से भी
अंजान बनी रहती हूँ.....
......Waha...kya baat hai. Congratulations!!
कितना आसां है कहना भूल जाना कितना मुश्किल है पर भूल जाना....
ReplyDeleteलाजवाब कविता.....गागर में सागर जैसा |
ReplyDelete"जितने तारे,उतने फोटो"
बहुत सुंदर अच्छी कविता
ReplyDeleteतुम्हे भूल जाना है...कह-कह कर सिर्फ तुम्हे ही याद करती हूँ:)
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना है !!
सस्नेह
कल्पना में ऐसे भाव लाना सचमुच एक कला है .
ReplyDeleteअति सुन्दर .
ऐ मेरी हंसीं के दीवाने! अब न मैं ,उन दिनों की तरह ,खिलखिला के कभी हँसती हूँ.....sab sach kahti ye panktiya..... khubsurat...
ReplyDeleteआभार रविकर जी.
ReplyDelete...कितना कुछ कह दिया ,कुछ नहीं करने का हवाला देकर |
ReplyDeleteकविता बहुत अच्छी है
ReplyDeleteखूब लिखते रहना
पर हंसते भी रहना
उसे क्यों बंद करना !
उन्हें भूल जाना भी,
ReplyDeleteयाद करने का इक बहाना है ....
शुभकामनायें !
खुश रहें!
बहुत सुंदर अनुजी !
ReplyDeleteअच्छा लिखा है …
भाव सुंदर हों तो कविता सुंदर होती है …
मंगलकामनाएं …
अब ज़रा होशियारी बरतती हूँ.....
ReplyDeleteतेरे नाम के किसी और शख्स से भी
अंजान बनी रहती हूँ.....
अपनी चाहतें और शौक बदल डाले है मैंने...
अब न सुनती हूँ गज़ल,न शोख रंग पहनती हूँ...
ऐ मेरी हंसीं के दीवाने! अब न मैं ,उन दिनों की तरह ,खिलखिला के कभी हँसती हूँ.....
वाह...वाह....बहुत खूबसूरत....!!
uff,,,it took my heart...awsome..salute for the last 3 lines..woww
ReplyDeleteआखिरी पंक्ति जबरन भुलाने की कोशिश का दर्द बयां कर गयी...बहुत खूब...भुलाने की जिद ठीक नहीं...याद रखना चाहिए हर तजुर्बे को...
ReplyDeleteबंधे थे मन्नत के धागे जो
ReplyDeleteहर मंदिर और दरगाह में
बस उन्हें भी जाकर खोल आये.....
सब किया धरा चाँद का था,सो
उसको भी अमावस कर आये....
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ ...भूलने की नाकाम सी कोशिश ...
bhulaane kee koshish mein yaad to dil mein bas jaatee hai ,ek tees de jatee hai
ReplyDelete" तेरे नाम के किसी और शख्स से भी अंजान बनी रहती हूँ....."
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव ..बड़ी सच बात है यह |
अनु जी, बहुत करुण---
ReplyDeleteBahoot sundar bhav Anu Ma'am.
ReplyDeleteLekin bhulna jitna aasan hota hai
yaad aana v utna hi aasan hota hai
'laughter therapy' ke immediate baad 'ऐ मेरी हंसीं के दीवाने! अब न मैं ,उन दिनों की तरह ,खिलखिला के कभी हँसती हूँ.....'?:):)
ReplyDelete..on a serious note an absolutely profound poem, Anu!
भुलाने को तो मै सबको भुलाकर के ही आया था ,
ReplyDeleteमगर जाने क्यूँ लगता है किसी की याद है बाकि.
बहुत अच्छी प्रस्तुती.
सिंपली सुपर्ब !
ReplyDeleteसादर
very nice ....... thanks for sharing
ReplyDeleteसंयोग वियोग में उपालंभ , कविता की आत्मा होती है . आपने बखूबी इसे उकेरा है .सुदर
ReplyDeleteदिल को छू गए कविता के भाव ---बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteअब ज़रा होशियारी बरतती हूँ.....
ReplyDeleteतेरे नाम के किसी और शख्स से भी
अंजान बनी रहती हूँ.....
अपनी चाहतें और शौक बदल डाले है मैंने...
अब न सुनती हूँ गज़ल,न शोख रंग पहनती हूँ...
ऐ मेरी हंसीं के दीवाने! अब न मैं ,
उन दिनों की तरह ,खिलखिला के कभी हँसती हूँ...
अनु जी, बहुत खूबसूरती के साथ बुना गया शब्दजाल है...
बधाई स्वीकार करें
Painfully beautiful, last two lines are painful and profound. Love has a lasting impact on us.
ReplyDeleteman ko bhigo gayi aapki kavita ! shabd nahi hai iske liye . facebook par share kar rha hoon . shukriya
ReplyDeleteबूंद-बूंद इतिहास पर मेरी नई पोस्ट नई कविता की प्रवृत्तियां पर आप सादर आमंत्रित हैं।
ReplyDelete-मनोज भारती
अनु जी.
ReplyDeleteसुंदर रचना
आंच पर आपकी कहानी की समीक्षा पढ़ी
बधाई आपको, वहाँ मेरी टिप्पणी दिखाई नहीं दी
इसलिए यहाँ दे रही हूँ सुंदर कहानी ...
thumbs up for such a wonderful & interesting post
ReplyDeletevisit : www.SwapnilsWorldOfWords.blogspot.com
बहुत सुंदर !:) एक गीत की पंक्तियाँ याद आ गयीं...
ReplyDelete"कभी मिलेंगे जो रास्ते में..तो मुँह फिरा के पलट पड़ेंगे..,
कभी सुनेंगे..जो नाम तेरा...
तो चुप रहेंगे...नज़र झुकाए...." :-)
सब किया धरा चाँद का था,सो
ReplyDeleteउसको भी अमावस कर आये....
bahut lajawab kavita hai anu ji!
wow!
ReplyDeletesundar...bahut sundar...:):)
ReplyDeleteवाह अनुजी झकझोर के रख दिया आपकी रचना ने ...मुझे ख़ुशी है मैं वह बदनसीब नहीं हूँ .....!
ReplyDeleteभुलाने की नाकाम कोशिश करती हुई ...यादों मे लिपटी ..बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति..
ReplyDeleteअनुलता जी नमस्कार...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग 'my derams n expressions' कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 24 अगस्त को 'असान था तुझे भूल जाना...' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
काश, किसी को भूलना इतना सहज होता जितना सहज होता है याद करना... बेहद भावपूर्ण, शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट। मरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। आभार।
ReplyDeletebahut sundar post...
ReplyDeleteयादों का सफर यूँ ही खूबसूरती से चलता रहे ....
ReplyDeleteआपकी किसी पुरानी बेहतरीन प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार २८/८/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी मंगल वार को चर्चा मंच पर जरूर आइयेगा |धन्यवाद
ReplyDeletebahut sare naye shabdon ka pryog bahut hi sunder tareeke se kiya hai.
ReplyDeletejaise -
वो कॉफी के कुछ बिल जलाए
और खत खुशबुओं वाले,
फाड़े और हवा में उडाये..
मुस्कुरा कर कुछ गम चोरी चोरी
अश्कों में बहाए......
बंधे थे मन्नत के धागे जो
हर मंदिर और दरगाह में
बस उन्हें भी जाकर खोल आये.....
सब किया धरा चाँद का था,सो
उसको भी अमावस कर आये....
kahna kitna aasan hai lekin is asaan ko sach me aasaan naam dena hi kitna mushkil hai.
ek gane k bol apki rachna padh kar yaad aa gaye...
kitna aasaan hai kahna bhool jao...
kitna mushkil hai magar bhool jaana.
क्या बात है, हर पंक्ति दिल को छू लेने वाली । पर ये सब इतना आसाँ कहाँ होता है ।
ReplyDeletejab bhi aap likhti hai, mujhe aisa lagta hai aapne mere man ki baat keh di. bhot jald main apna pehle post likhungi.
ReplyDeleteItna aasan nahin hai kisi ko bhul jana
Udta panchhi.
Jab bhi aap likhte hai, aisa lagta hai aapne mere maan ki baat kavita me piro di. Maine abhi likhana shuru nahin kiya, par bhot jalad likhne wali hu.
ReplyDeleteUddta Panchhi.
It's not easy to forget someone...
ReplyDeleteयादें, चाहे याद रहें या भूल जाएं, जिंदगी का एक अहम हिस्सा होती हैं।
ReplyDeleteसुंदर कविता।
सुन्दर कविता
ReplyDeleteकाश कि इतना ही आसान होता भुला पाना..!! न दर्द कम होता है.. न सुकून आता है..
ReplyDeleteबहरहाल, कविता बहुत अच्छी है अनु दी.
सादर
मधुरेश
बहुत ही भाव-प्रवण कविता। मेरे ब्लॉग " प्रेम सरोवर" के नवीनतम पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ReplyDeletewaah anu ji bahut sundar ............aapki abhivyakti me aaj ek lag hi anubhuti hui .........badhai aapko ऐ मेरी हंसीं के दीवाने! अब न मैं ,उन दिनों की तरह ,खिलखिला के कभी हँसती हूँ.....yah panktiyaan dil ko chu gayi yah ato mujhe apni si lagi jis hansi ko ab mai dhoondh rahi hoon
Deleteसबसे पहले मेरे ब्लॉग उद्गम पर निरंतर नज़र रखने के लिए एवं अनमोल, प्रेरित करती सराहना के लिए आभार एवं धन्यवाद |
ReplyDeleteहमेशा की तरह आपकी कविता बौछार की तरह निर्मल और सौम्य लगी, निम्न पंक्तियों ने दिल छू लिया..बस युही लिखते रहिये...|
थे जो तेरी मोहब्बत के दस्तावेज,
वो कॉफी के कुछ बिल जलाए
..
..
सब किया धरा चाँद का था,सो
उसको भी अमावस कर आये...
..
..
ऐ मेरी हंसीं के दीवाने! अब न मैं ,उन दिनों की तरह ,खिलखिला के कभी हँसती हूँ.
post published.
ReplyDeleteUdaari Dosti di
Flight of Friendship.
बहुत सुंदर, बेहतरीन.............बहुत दिनों बाद इतनी सुंदर रचना पढ़ी, आभार...
ReplyDeleteकाफी भावपूर्ण कविता...मन की टीस को व्यक्त करती..
ReplyDeleteयादें कभी ज़हन का दामन नहीं छोड़ती.....
yah kya likh daala anu dear tumne .behtreen ..sach hai ..par khilkhila ke hansne par samjhouta ???
ReplyDeletebahut sundar abhivyakti....dard jab had se gujar jaata hai..to panno pe ubhar aata hai...
ReplyDeletebahut sundar abhivyakti...dard jab had se gujar jaata hai to panno mei syahi ban ke ubhar aata hai!!
ReplyDeleteअब ज़रा होशियारी बरतती हूँ.....
ReplyDeleteतेरे नाम के किसी और शख्स से भी
.
बढ़िया पंक्तियाँ |
सादर