लिखा था किसी रोज..मगर ज़िक्र था कान्हा का, सो पढवाती हूँ आज....
कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाओं सहित...
आज बेटे के स्कूल में
बैठी थी उसके इन्तज़ार में,
एक बड़े से ,फूलों से लदे
कदम्ब के पेड़ तले..
फैली शाखाएं..
मानो खुला आमन्त्रण ..
ढेरों बच्चे दौड रहे थे
यहाँ वहाँ,
मगर एक ना था कदम्ब के नीचे..
शायद उन्हें पता भी न होगा
कि यहाँ कोई पेड़ है ऐसा,
जिसके नाम से ही
मन में घुमड़ पड़ती है कविता !
मुझे मेरा बचपन याद आ गया
और वो "कदम्ब का पेड़" कविता..
कैसी छोटी छोटी आशाएं
और अभिलाषायें हुआ करती थी....
जब हम बच्चे थे....
जी भर खेलना ही मानो सब कुछ था.
अब है कि, किसी चीज़ से जी ही नहीं भरता...
तब सब कुछ मिल -बाँट खाते....
कान्हा सुदामा बन जाते..
तब कन्हैया बन
माँ को सताने में सुख था..
(सताना अब भी नहीं छोड़ा है बच्चों ने )
तब दो पैसे की बांसुरी की आस थी.....
कान्हा और राधा सी चाह थी...
अब जीवन में संगीत ही कहाँ??
न वैसा सात्विक प्रेम रहा..
कदम्ब के पीले फूल देख
मन में लड्डू फूटते कि
काश ये लड्डू होते...
अब मॉल में कहीं दिखते हैं लड्डू??
सच! कैसा सस्ता सुन्दर सा बचपन था...
काश ये टिकाऊ भी होता..
हम सदा बच्चे ही रह जाते...
एक पेड़ की ठंडी छांव
कैसी यादों की मिठास भर गयी....
"यह कदम्ब का पेड़ अगर होता मेरे अंगना.."
काश.............
कान्हा कहाँ हो तुम???? कभी तो सुनो मेरी!!!!
-अनु
मिठाश भरी खुबशुरत प्रस्तुति,,,,बधाई अनु जी,,,,
ReplyDeleteश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....
बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteकदम्ब का पेड़ - कविता की मिठास याद आ गई .
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें .
मां की आस
ReplyDeleteकान्हा का विश्वास
हर घर में हो कदम्ब
**
जय श्रीकृष्ण!
तब दो पैसे की बांसुरी की आस थी.....
ReplyDeleteकान्हा और राधा सी चाह थी...
अब जीवन में संगीत ही कहाँ??
न वैसा सात्विक प्रेम रहा..
अनु जी उस समय की बात ही निराली होती है ...काश कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन
आभार
भ्रमर 5
बचपन में पढ़ी ये कविता- "माँ ये कदम्ब का पेड़ अगर होता यमुना तीरे,बैठ कन्हैया बनता मैं धीरे धीरे" याद दिला दी ..बचपन की मीठी खुशबू लिए प्यारी सी रचना.. बहुत सुन्दर अनु..
ReplyDeleteकदम्ब एक बिम्ब और बात बहुत गहरी..... मनमोहक रचना
ReplyDeleteits ironic...as a child we want to grow up...but when we grow up...we miss those childhood fantasies...good creation :)
ReplyDeleteकान्हा ने सुन ली.. तभी तो आपके आंगन में कान्हा मुस्कुरा रहे हैं.. जन्माष्टमी की बधाई
ReplyDelete"शायद उन्हें पता भी न होगा
ReplyDeleteकि यहाँ कोई पेड़ है ऐसा,
जिसके नाम से ही
मन में घुमड़ पड़ती है कविता !"
कटाक्ष के साथ अतिसुन्दर प्रस्तुति |
बस याद ना जाए उन बीते दिनों की...
सचमुच कदम्ब का पेड़ - कविता बचपन से कितनी जुडी है, याद आते ही खींच ले जाती है उन सुनहरे पलों में... बहुत सुन्दर कविता
ReplyDeleteजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें .
very beautiful Anu ji...
ReplyDeleteअब जीवन में संगीत ही कहाँ??
ReplyDeleteन वैसा सात्विक प्रेम रहा..
bahut sundar likha hai.... <3
अब जीवन में संगीत ही कहाँ??
ReplyDeleteन वैसा सात्विक प्रेम रहा..
सच्ची बात ,बहुत सरल - सहज - सलीके से समझा गई .... !!
बचपन की स्मृतियों के सहारे कान्हा का आह्वान
ReplyDeleteआपाधापी में जीवन का संगीत न जाने कहाँ खो गया है !
ReplyDeleteबढ़िया रचना ....
Beautiful poem !
ReplyDelete'जी' भर जाए तो बचपन कैसा !! और अब तो हर बात से जैसे जी भर जाता है या जी भर आता है |
ReplyDeleteअनुजी बस एक ही तो चीज़ है जो हमारा साथ नहीं छोडती ...हमारी यादें ..और उससे जुड़े पल ......यही तो असली धरोहर है जो खुमारी बनकर छाई रहती है......और जो गाहे बगाहे एक मुस्कराहट का सबब बन जाती है ...!
ReplyDeleteकदम्ब और कान्हा का पुराना रिश्ता है...कान्हा की याद आना स्वाभाविक है...
ReplyDeletenice one
ReplyDeleteमुझे तो आपकी कविता पढ़कर और कदम्ब का वृक्ष देखकर रसखान की पंक्तियाँ याद आई.
ReplyDelete"जो खग हो तो बसेरो करो मीलि कालिंदी कूल कदम्ब की डारन"
कविता बचपन की गलियों में ले गई
आपके परिचय से उद्धृत भाव-
ReplyDeleteचौवालिस देखे बसन्त, दो बच्चों की मातु |
खुश रहिये जीवन-पर्यन्त, बना रहे अहिवातु |
बना रहे अहिवातु, केमेस्ट्री बढ़िया हरदम |
नियमित लिखिए ब्लॉग, दिखाते रहिये दमखम |
संस्कार शुभ प्यार, मिले बच्चों को खालिस |
धुरी धार परिवार, चलो फिर से चौवालिस ||
वाह....
Deleteबहुत सुन्दर रविकर जी...
आपकी दुआओं के लिए आभारी हूँ...
अब तो ८८ साल तक ब्लॉग्गिंग पक्की...
:-)
सादर.
सुंदर रचना .....यादों की मिठास लिए .....
ReplyDeleteअब तो याद नहीं कि किस कक्षा में पढ़ी थी लेकिन हमारे पाठ्यक्रम में शामिल थी ये रचना- कदम्ब का पेड़. बरबस बचपन याद दिला गई आपकी ये रचना. सुन्दर भाव, बधाई.
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
आपके शब्द गज़ब के image क्रियेट करते हैं कि हुबहू हमें भी चल चित्र सा दिखता है ...!!
ReplyDeleteजय हो ...
ReplyDeleteपूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम और आप सब की ओर से अमर शहीद खुदीराम बोस जी को शत शत नमन करते हुये आज की ब्लॉग बुलेटिन लगाई है जिस मे शामिल है आपकी यह पोस्ट भी ... और धोती पहनने लगे नौजवान - ब्लॉग बुलेटिन , पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
बहुत सुन्दर प्यारी रचना..
ReplyDeleteकान्हा जी आपकी सभी मनोकामना पूरी करे..
जन्माष्टमी की शुभकामनाये..
:-)
यह कविता तो मैने भी पढी है ।
ReplyDeleteयह कदम्ब का पेड अगर माँ होता यमुना तीरे
मैं भी इस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे ।
ुसी समय में ले गई आपकी भी कविता ।
यह कदम्ब का पेड अगर माँ होता यमुना तीरे
ReplyDeleteमैं भी इस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे
महादेवी वर्मा की याद दिला गई रचना ... द्रुत टिपण्णी के लिए आपका शुक्रिया .अगला आलेख Fibromyalgia-The Chiropractic Approach.
स्मृतियां न होतीं तो इनसान कितना अकेला होता।
ReplyDeleteखूबसूरती भावनाओं में होती है । जब हम बच्चे थे और पूरी दुनिया हमारे लिये खूबसूरत थी तब हमारी दादी कहा करती थी हे भगवान अब कैसा बुरा जमाना आगया
ReplyDeleteहमारे समय में तो....। आपकी कविता बिल्कुल अपनी सी है ।
बचपन में हमने भी पढ़ी थी यह कविता और बचपन की पढ़ी कविताओं की तरह यह भी मानसपटल पर अंकित है.. आज आपकी कविता और जन्माष्टमी के बहाने पुनः उस कविता को जीने का अवसर प्राप्त हुआ!!
ReplyDeleteमेरे अब्बा मरहूम बचपन में जब भी मुझे अपने घुटनों पर लिटा कर झूला झूलाते थे तो अकसर गुनगुनाते थे "झूला झूल..कदम्ब का फूल" आपकी पोस्ट कानों में वही गुनगुनाहट घोल गयी...साधूवाद आपको॥
ReplyDeleteयादों के बहाने प्यारी रचना बन पड़ी है ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर स्मृतियों को इस रूप में ढाला है , कान्हा को फिर से आने का वक़्त आ गया है.
ReplyDeletesach hai ..aaj ke bachche kaha kadamb ya nadiya ke kinare jante hain..
ReplyDeletesundar rachna janmashtami ki bahut bahut shubhkamnaye.
You capture every thing so beautifully :)
ReplyDeleteस्मृतियों को पुनर्जीवित करने का ये अंदाज और मनुहार का ये प्यारा स्वर बहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteसच में बेहतरीन nostalgic रचना
यादें ... सिर्फ यादें
ReplyDeleteहम सदा ही बच्चे रहते...
अच्छी रचना...सच्ची रचना
यह कदम्ब का पेड अगर माँ होता यमुना तीरे
ReplyDeleteमैं भी इस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे....
सुभद्रा कुमारी चौहान की यह रचना शायद सभी ने बचपन में पढ़ी होगी ....अब यह कोर्स में है या नहीं यह नहीं पता ..... बहुत सुंदर प्रस्तुति ...
AAPKO BHI SHRI KRISHN JANMASHTMI KI HARDIK SHUBHKAMNAYEN JOIN THIS-WORLD WOMEN BLOGGERS ASSOCIATION [REAL EMPOWERMENT OF WOMAN
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति ...
ReplyDeletebahut hi acchi prastuti yadon ke sang.....
ReplyDeleteकाश हम बच्चे ही रह पाते !
ReplyDeleteकई बार गुजरते हैं हम ऐसी ही अनुभूतियों से .
लिखा भी था मैंने हम बड़े क्यों हो जाते हैं :)
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह ... अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने इस अभिव्यक्ति में ...आभार उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए
ReplyDeleteso nice.
ReplyDeleteसच! कैसा सस्ता सुन्दर सा बचपन था...
काश ये टिकाऊ भी होता..
हम सदा बच्चे ही रह जाते...
Nostalgic kavitaayen mujhe hamesha pasand aati hain :)
ReplyDeletebahut bahut achhi lagi ye kavita mujhe!!!!
सच! कैसा सस्ता सुन्दर सा बचपन था...
ReplyDeleteकाश ये टिकाऊ भी होता..
हम सदा बच्चे ही रह जाते...
सस्ता! अजी नही बिलकुल 'फ्री' था बचपन.
आपके लेखन का भी जबाब नही अनु जी.
कंदब के बहुत से पेड़ हैं पर बचपन ही कहीं खो गया।:(
ReplyDeleteआपकी इस रचना से मुझे कौन बनेगा करोड़पति का हालिया एपिसोड याद आ गया , जिसमे एक मेडम अमिताभ बच्चन जी की दाढ़ी को कदम्ब के फूल की उपमा देती हैं |
ReplyDeleteसचमुच नयी सोच थी वो |
सुन्दर कविता |
सादर