इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Friday, August 10, 2012

मेरी डायरी का एक पन्ना....30/9/2011


लिखा था किसी रोज..मगर ज़िक्र था कान्हा का, सो पढवाती हूँ आज....

कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाओं सहित...


आज बेटे के स्कूल में
बैठी थी उसके इन्तज़ार में,
एक बड़े से ,फूलों से लदे
कदम्ब के पेड़ तले..
फैली शाखाएं..
मानो खुला आमन्त्रण  ..
ढेरों बच्चे दौड रहे थे
यहाँ वहाँ,
मगर एक ना था कदम्ब के नीचे..
शायद उन्हें पता भी न होगा
कि यहाँ कोई पेड़ है ऐसा,
जिसके नाम से ही
मन में  घुमड़ पड़ती है कविता !

मुझे मेरा बचपन याद आ गया
और वो "कदम्ब का पेड़" कविता..
कैसी छोटी छोटी आशाएं
और अभिलाषायें हुआ करती थी....
जब हम बच्चे थे....
जी भर खेलना ही मानो सब कुछ था.
अब है कि, किसी चीज़ से जी ही नहीं भरता...
तब  सब  कुछ मिल -बाँट  खाते....
कान्हा  सुदामा बन जाते..

तब कन्हैया बन
माँ को सताने में सुख था..
(सताना  अब भी नहीं छोड़ा है बच्चों ने )

तब दो पैसे की बांसुरी की  आस थी.....
कान्हा और राधा  सी  चाह थी...
अब जीवन में संगीत ही कहाँ??
न वैसा सात्विक प्रेम रहा..

कदम्ब के पीले फूल देख
मन में लड्डू फूटते कि
काश ये लड्डू होते...
अब  मॉल  में कहीं दिखते हैं लड्डू??

सच! कैसा सस्ता सुन्दर सा बचपन था...
काश ये टिकाऊ भी होता..
हम सदा बच्चे ही रह जाते...

एक पेड़ की ठंडी छांव
कैसी यादों की मिठास भर गयी....


"यह कदम्ब का पेड़ अगर होता मेरे अंगना.."
काश.............

कान्हा  कहाँ हो तुम???? कभी तो सुनो मेरी!!!!
-अनु 


53 comments:

  1. मिठाश भरी खुबशुरत प्रस्तुति,,,,बधाई अनु जी,,,,

    श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
    RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....

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  2. बहुत सुन्दर .
    कदम्ब का पेड़ - कविता की मिठास याद आ गई .
    जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें .

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  3. मां की आस
    कान्हा का विश्वास
    हर घर में हो कदम्ब
    **
    जय श्रीकृष्ण!

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  4. तब दो पैसे की बांसुरी की आस थी.....
    कान्हा और राधा सी चाह थी...
    अब जीवन में संगीत ही कहाँ??
    न वैसा सात्विक प्रेम रहा..
    अनु जी उस समय की बात ही निराली होती है ...काश कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन
    आभार
    भ्रमर 5

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  5. बचपन में पढ़ी ये कविता- "माँ ये कदम्ब का पेड़ अगर होता यमुना तीरे,बैठ कन्हैया बनता मैं धीरे धीरे" याद दिला दी ..बचपन की मीठी खुशबू लिए प्यारी सी रचना.. बहुत सुन्दर अनु..

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  6. कदम्ब एक बिम्ब और बात बहुत गहरी..... मनमोहक रचना

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  7. its ironic...as a child we want to grow up...but when we grow up...we miss those childhood fantasies...good creation :)

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  8. कान्हा ने सुन ली.. तभी तो आपके आंगन में कान्हा मुस्कुरा रहे हैं.. जन्माष्टमी की बधाई

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  9. "शायद उन्हें पता भी न होगा
    कि यहाँ कोई पेड़ है ऐसा,
    जिसके नाम से ही
    मन में घुमड़ पड़ती है कविता !"
    कटाक्ष के साथ अतिसुन्दर प्रस्तुति |
    बस याद ना जाए उन बीते दिनों की...

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  10. सचमुच कदम्ब का पेड़ - कविता बचपन से कितनी जुडी है, याद आते ही खींच ले जाती है उन सुनहरे पलों में... बहुत सुन्दर कविता
    जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें .

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  11. अब जीवन में संगीत ही कहाँ??
    न वैसा सात्विक प्रेम रहा..

    bahut sundar likha hai.... <3

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  12. अब जीवन में संगीत ही कहाँ??
    न वैसा सात्विक प्रेम रहा..

    सच्ची बात ,बहुत सरल - सहज - सलीके से समझा गई .... !!

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  13. बचपन की स्मृतियों के सहारे कान्हा का आह्वान

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  14. आपाधापी में जीवन का संगीत न जाने कहाँ खो गया है !
    बढ़िया रचना ....

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  15. 'जी' भर जाए तो बचपन कैसा !! और अब तो हर बात से जैसे जी भर जाता है या जी भर आता है |

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  16. अनुजी बस एक ही तो चीज़ है जो हमारा साथ नहीं छोडती ...हमारी यादें ..और उससे जुड़े पल ......यही तो असली धरोहर है जो खुमारी बनकर छाई रहती है......और जो गाहे बगाहे एक मुस्कराहट का सबब बन जाती है ...!

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  17. कदम्ब और कान्हा का पुराना रिश्ता है...कान्हा की याद आना स्वाभाविक है...

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  18. मुझे तो आपकी कविता पढ़कर और कदम्ब का वृक्ष देखकर रसखान की पंक्तियाँ याद आई.

    "जो खग हो तो बसेरो करो मीलि कालिंदी कूल कदम्ब की डारन"

    कविता बचपन की गलियों में ले गई

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  19. आपके परिचय से उद्धृत भाव-

    चौवालिस देखे बसन्त, दो बच्चों की मातु |
    खुश रहिये जीवन-पर्यन्त, बना रहे अहिवातु |
    बना रहे अहिवातु, केमेस्ट्री बढ़िया हरदम |
    नियमित लिखिए ब्लॉग, दिखाते रहिये दमखम |
    संस्कार शुभ प्यार, मिले बच्चों को खालिस |
    धुरी धार परिवार, चलो फिर से चौवालिस ||

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    1. वाह....
      बहुत सुन्दर रविकर जी...
      आपकी दुआओं के लिए आभारी हूँ...
      अब तो ८८ साल तक ब्लॉग्गिंग पक्की...
      :-)
      सादर.

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  20. सुंदर रचना .....यादों की मिठास लिए .....

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  21. अब तो याद नहीं कि किस कक्षा में पढ़ी थी लेकिन हमारे पाठ्यक्रम में शामिल थी ये रचना- कदम्ब का पेड़. बरबस बचपन याद दिला गई आपकी ये रचना. सुन्दर भाव, बधाई.

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  22. आपके शब्द गज़ब के image क्रियेट करते हैं कि हुबहू हमें भी चल चित्र सा दिखता है ...!!

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  23. बहुत सुन्दर प्यारी रचना..
    कान्हा जी आपकी सभी मनोकामना पूरी करे..
    जन्माष्टमी की शुभकामनाये..
    :-)

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  24. यह कविता तो मैने भी पढी है ।

    यह कदम्ब का पेड अगर माँ होता यमुना तीरे
    मैं भी इस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे ।
    ुसी समय में ले गई आपकी भी कविता ।

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  25. यह कदम्ब का पेड अगर माँ होता यमुना तीरे
    मैं भी इस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे
    महादेवी वर्मा की याद दिला गई रचना ... द्रुत टिपण्णी के लिए आपका शुक्रिया .अगला आलेख Fibromyalgia-The Chiropractic Approach.

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  26. स्मृतियां न होतीं तो इनसान कितना अकेला होता।

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  27. खूबसूरती भावनाओं में होती है । जब हम बच्चे थे और पूरी दुनिया हमारे लिये खूबसूरत थी तब हमारी दादी कहा करती थी हे भगवान अब कैसा बुरा जमाना आगया
    हमारे समय में तो....। आपकी कविता बिल्कुल अपनी सी है ।

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  28. बचपन में हमने भी पढ़ी थी यह कविता और बचपन की पढ़ी कविताओं की तरह यह भी मानसपटल पर अंकित है.. आज आपकी कविता और जन्माष्टमी के बहाने पुनः उस कविता को जीने का अवसर प्राप्त हुआ!!

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  29. मेरे अब्बा मरहूम बचपन में जब भी मुझे अपने घुटनों पर लिटा कर झूला झूलाते थे तो अकसर गुनगुनाते थे "झूला झूल..कदम्ब का फूल" आपकी पोस्ट कानों में वही गुनगुनाहट घोल गयी...साधूवाद आपको॥

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  30. यादों के बहाने प्यारी रचना बन पड़ी है ..

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  31. बहुत सुंदर स्मृतियों को इस रूप में ढाला है , कान्हा को फिर से आने का वक़्त आ गया है.

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  32. sach hai ..aaj ke bachche kaha kadamb ya nadiya ke kinare jante hain..
    sundar rachna janmashtami ki bahut bahut shubhkamnaye.

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  33. You capture every thing so beautifully :)

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  34. स्मृतियों को पुनर्जीवित करने का ये अंदाज और मनुहार का ये प्यारा स्वर बहुत अच्छा लगा
    सच में बेहतरीन nostalgic रचना

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  35. यादें ... सिर्फ यादें

    हम सदा ही बच्चे रहते...

    अच्छी रचना...सच्ची रचना

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  36. यह कदम्ब का पेड अगर माँ होता यमुना तीरे
    मैं भी इस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे....
    सुभद्रा कुमारी चौहान की यह रचना शायद सभी ने बचपन में पढ़ी होगी ....अब यह कोर्स में है या नहीं यह नहीं पता ..... बहुत सुंदर प्रस्तुति ...

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  37. बहुत सुंदर प्रस्तुति ...

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  38. bahut hi acchi prastuti yadon ke sang.....

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  39. काश हम बच्चे ही रह पाते !
    कई बार गुजरते हैं हम ऐसी ही अनुभूतियों से .
    लिखा भी था मैंने हम बड़े क्यों हो जाते हैं :)

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  40. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  41. वाह ... अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने इस अभिव्‍यक्ति में ...आभार उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तु‍ति के लिए

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  42. so nice.
    सच! कैसा सस्ता सुन्दर सा बचपन था...
    काश ये टिकाऊ भी होता..
    हम सदा बच्चे ही रह जाते...

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  43. Nostalgic kavitaayen mujhe hamesha pasand aati hain :)
    bahut bahut achhi lagi ye kavita mujhe!!!!

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  44. सच! कैसा सस्ता सुन्दर सा बचपन था...
    काश ये टिकाऊ भी होता..
    हम सदा बच्चे ही रह जाते...


    सस्ता! अजी नही बिलकुल 'फ्री' था बचपन.
    आपके लेखन का भी जबाब नही अनु जी.

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  45. कंदब के बहुत से पेड़ हैं पर बचपन ही कहीं खो गया।:(

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  46. आपकी इस रचना से मुझे कौन बनेगा करोड़पति का हालिया एपिसोड याद आ गया , जिसमे एक मेडम अमिताभ बच्चन जी की दाढ़ी को कदम्ब के फूल की उपमा देती हैं |
    सचमुच नयी सोच थी वो |
    सुन्दर कविता |

    सादर

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