मेरी पहली कहानी महामुक्ति पर सकारात्मक टिप्पणी करने के पहले आप लोगों ने सोचा नहीं.....सो अब पेशे खिदमत है मेरी दूसरी कहानी...
इसके रंग और महक कुछ अलग हैं....ज्यादा वक्त नहीं लगेगा सो पूरी पढ़ें ज़रूर....जब भी वक्त मिले...
केतकी
dainik bhaskar "मधुरिमा" में प्रकाशित 28/8/2013
http://epaper.bhaskar.com/magazine/madhurima/213/28082013/mpcg/1/
इसके रंग और महक कुछ अलग हैं....ज्यादा वक्त नहीं लगेगा सो पूरी पढ़ें ज़रूर....जब भी वक्त मिले...
केतकी
dainik bhaskar "मधुरिमा" में प्रकाशित 28/8/2013
http://epaper.bhaskar.com/magazine/madhurima/213/28082013/mpcg/1/
केतकी को आँच पर चढ़ाया मनोज जी ने,समीक्षक सलिल जी"बिहारी बाबू"
http://manojiofs.blogspot.in/2012/08/17.html?showComment=1345686607932#c7815674356444140107
उसे ठहराव पसंद नहीं था,ज़रा भी नहीं! गज़ब की चंचलता थी उसके मन में,उसके मस्तिष्क में,तन में,पूरे व्यक्तित्व में ही...ठहरना उसकी फितरत में न था.अपार ऊर्जा से भरी थी वो,इतनी ऊर्जा कि किसी इंसान के जिस्म से सम्हाली न जाए. वो अतिरिक्त ऊर्जा,वो तेज उसके चारों और संचारित होता रहता जैसे चाँद के आस-पास का सा वलय उसके चारों और भी हो. बेहद आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी थी केतकी.जो देखता,सिर्फ देखता ही नहीं रह जाता बल्कि उसका ही हो जाता,खिंचा चला आता उसकी ओर. उसके प्रति ये एकतरफा आकर्षण सिर्फ पुरुषों में ही नहीं था बल्कि लड़कियाँ, औरतें,बच्चे बूढ़े,कोई ऐसा न था जो उसके प्रति खिंचाव महसूस न करता. मानों एक चुम्बकीय शक्ति हो उसके भीतर.
केतकी गेहुएं रंग की सुगढ़ कद काठी वाली लड़की थी.नैन नक्श एकदम तीखे,तराशे हुए.चेहरा नापा तुला.आँखें बेहद आकर्षक और चंचल,ढेरों सवाल लिए हुए.सवाल तो सदा उसके होंठों पर भी रहते थे.जिसके साथ रहती उसी के आगे सवालों के ढेर लगा देती.उसका ज्ञान भी असीमित था इसलिए उसके सवाल बहुत बौद्धिक और रोचक होते.वैसे बेवकूफी भरे सवालों की भी कमी न थी उसके पास,मसलन वो अकसर अपने पुरुष साथियों से पूछ बैठती, कि जब वे जानते हैं कि केतकी उनकी हो नहीं सकती तो वो क्यूँ उस पर अपना वक्त और पैसा बर्बाद करते हैं? अब ऐसे सवाल के बाद किसी काफी शॉप में बैठा वो आशिक न जाने कैसे बिल अदा कर पाता होगा उसकी कॉफी का और हां साथ में चॉकलेट आइसक्रीम का भी तो.मनमौजी सी लड़की थी वो.
मैं केतकी को स्कूल के समय से जानता था.वो स्कूल में भी सबकी “हीरो” थी,और मेरे बहुत करीब...वैसे सहपाठी से लेकर टीचर्स,लैब असिस्टेंट,बस ड्राईवर,चौकीदार सभी उसका नाम जपते.वो भी कभी बस ड्राईवर के साथ ड्राइविंग के गुर सीखती कभी लेब में दो केमिकल मिला कर धमाका करती और लेब असिस्टेंट के साथ मिलकर खूब हँसती. एक बार मैंने देखा उसने एक बैग भर अपने नए पुराने कपडे उस लैब असिस्टेंट को दे डाले,उसकी बहन के लिए..मेरे पूछने पर बोली अरे सब पुराने फैशन के थे.साथ ही बडबडाती भी जाती थी-करमजला रोतली सूरत बनाये फिरता है,नफरत है मुझे उससे..मैं हैरान सा उसको ताकता रह जाता.उसका मन पढ़ना असंभव था.कुछ टिकता ही नहीं था बीस सेकेण्ड से ज्यादा ,तो कोई कैसे पढ़े??
केतकी का जीवन एक खुली किताब था.बिन माँ बाप की लड़की थी.मौसा मौसी ने पाला था.संपन्न परिवार से थी.उसके बारे में सबको सब कुछ पता होता था,बोलती इतना जो थी.मगर मुझे वो सदा रहस्यमयी सी लगती थी.ऐसा लगता मानो उसकी इस खुली किताब के पन्नों पर कुछ लिखा हुआ है एक अदृश्य स्याही से,जो कोई देख नहीं सकता...
मैं कहता भी उससे कि तुम्हारी तलछटी में जाकर फिर और गहरा खोद कर देखना है मुझे,वो मुस्कुरा कर कहती-मैं नदी हूँ अंश,सिवा पानी के कुछ नहीं...बहता पानी...साफ़ और पारदर्शी...जो चाहे देख लो...अपना अक्स भी...जितना गहरा खोदोगे उतना ज्यादा पानी पाओगे.और मत भूलना कि मोती सागर में मिलते हैं, नदियों में नहीं....वो बोलती चली जाती...बिना रुके...मैं सुनता रहता बिना कुछ समझे...... देखना एक दिन मैं भी सागर में मिल जाउंगी और पा जाउंगी एक मोती...जड़ लूंगी उसको अपनी अंगूठी में....
कितना शौक था उसे अंगूठियों का..हर उँगली में एक अंगूठी....पतली,मोटी,असली,नकली...
एक रोज वो बड़ी सी एक सिन्दूरी बिंदी लगा कर आई.......उसके मासूम से चेहरे के हिसाब से बहुत बड़ी.....फिर खुद ही हँस के बोली,ओल्ड फैशन लगती है न??? मैंने सोचा क्षितिज से उगता सूरज कभी ओल्ड फैशन हो सकता है भला.....मुस्कुरा दिया मैं.
उस दिन मेरे हाथ की रेखाएं देखने लगी......कहती है उसको सब आता है...उसके हिसाब से मेरा प्यार कोई और होगा और ब्याह मैं किसी और से करूँगा.....वाकई उसको सब पता है.....मैंने कहा लाओ तुम्हारा हाथ देखूं.....तो उसने मुट्ठी कस ली....नहीं अंश,मेरे हाथ में कोई लकीर नहीं....सब बह गयी पानी में.
कभी कभी मुझे लगता केतकी एक माया मृग सी है.....जिसको देखो उसका दीवाना हुआ जाता है...भटकता है उसको पाने को...जबकि वास्तव में वो है ही नहीं....वो सिर्फ एक भ्रम है.....तभी उसकी हँसी मुझे ख्यालों से वापस ले आती......और मैं देखता उसको अपने एकदम करीब.
उसको जब कॉलेज में दाखिला लेना था तब मेरे पीछे चक्कर काटती फिरी कि अंश हम और तुम एक ही साथ पढेंगे.मैं भी छेड़ता उसको-क्यों भाई,क्या सारी उम्र मेरे पीछे लगी रहोगी,तुम साथ रहती हो तो कोई लड़की मेरे पास नहीं आती कि तुम हो मेरी और तुम मेरी होती नहीं....
उस रोज उसने बड़ी संजीदगी से कहा था-अंश मैं तुम्हारी ही हूँ,बस खुद को समझ सकूँ तुम्हारे काबिल, तो तुम्हें सुपुर्द कर दूँ स्वयं को.उसकी अटपटी बातें मुझे समझ नहीं आतीं मगर वक्त के साथ इतना ज़रूर समझ गया था कि उसके साथ मेरा लगाव मुझे तकलीफ ज़रूर देगा मगर मुझे मंज़ूर था.
हम कॉलेज साथ जाते,वहाँ ढेरों लड़के उसके आगे पीछे मंडराते और वो किसी से नोट्स बनवाती किसी को बाइक में पेट्रोल भरवाने भेजती...और सबसे कहती तुम्हारी नेकी मुझ पर उधार.....जाने कितने इसी उधारी के पटने के इंतज़ार में फिर रहे थे.मैं उसको समझाता भी कि ये क्या तरीका है,क्यूँ खिलवाड़ करती है सबके दिल के साथ और शायद अपने भी दिल के साथ? वो मेरा हाथ अपने सीने पर रख कर कहती देख,कहीं धडकन है क्या??पागल मेरे सीने में दिल ही नहीं है....फिर क्या है??कभी मैं भी बिफर जाता......वो बड़ी मासूमियत से कहती किडनी है- एक एक्स्ट्रा.....भगवान न करे कभी तुम्हे ज़रूरत पड़े तो दे दूँगी...एकदम मुफ्त....तुमने जो मुझे कल बर्गर खिलाया था न, वो चुकता समझ लेना....मैं सर पीट कर रह जाता.
कभी मुझे लगता केतकी मानसिक रूप से कुछ बीमार है.वो नोर्मल तो नहीं थी.हालांकि पढ़ने में वो बहुत अच्छी थी और बेहतरीन कलाकार भी थी.पेंटिंग में उसको महारत हासिल थी और गाती भी बड़ा सुराला थी.उसके कमरे में हमेशा संगीत बजता रहता...सारा दिन और सारी रात भी.मुझे उसकी पसंद कभी समझ नहीं आई.कभी वो गज़ल सुनती और कहती मैं गुलाम अली साहब पर मर मिटी हूँ अंश,सच्ची!!! कभी जिमी हेंड्रिक्स या जिम मोरिसन को सुन कर कहती,यार क्या नशा है इनमे,कभी कोई नशा करके मैं भी देखूँगी.मैं डर जाता उसकी बातें सुन कर.कभी वो सूफी संगीत पर झूमती कभी पंडित रविशंकर को सुनते हुए पेंट करती....अनबूझ पहेली थी केतकी....
हां उसकी पेंटिंग्स हमेशा एक सी होतीं,वो सिर्फ नदियाँ पेंट करती थी.अलग अलग किस्म की नदियाँ...अलग अलग वक्त के दृश्य.कहती ये सब मेरे सेल्फ़ पोट्रेट हैं अंश! मैं खुद इतनी सुन्दर हूँ तो कुछ और क्यूँ बनाऊं भला.ठीक है न??? मैं मुँह ताकता रह जाता उसका...वो उकसाती मुझे...कहो न...कुछ तो कहो...मैंने कह दिया- “नार्सीसिस्ट कहीं की”.... ठठा कर हँस पडी वो ....मुझे लगा सचमुच वो बहुत सुन्दर है ,बहुत सुन्दर नदी.निर्मल,शीतल सी....एक बहुत गहरी और शांत नदी.
एक रोज हम शहर के बाहर दूर एक मंदिर गए,उसे भगवान पर कोई विशेष आस्था नहीं थी,बस मंदिर एक नदी के किनारे था सो उसने प्लान बना डाला.वहाँ सीढ़ियों पर बैठे हम सूर्यास्त देखते रहे.नदी में उसका अक्स बड़ा प्यारा लग रहा था.वो अचानक बोली,अंश तुम अगर सूरज होते तो देखो हर शाम मुझ में ढल जाते...समां जाते मुझ में,है न?? कहो न???
उसके इस तरह के अकस्मात सवालों की मुझे आदत थी मगर फिर भी मैं विचलित हो जाता.उस रोज सोचने लगा था कि कहीं इसे भी तो मोहब्बत नहीं हो गयी मुझसे !!! तभी वो बोली कि मुझे लगता है मुझे किसी सागर नाम के लड़के से इश्क होगा,क्योंकि नदी सागर में ही तो जा मिलती है न ! वहीँ तो उसे पनाह मिलती है,मुक्ति मिलती है. मैं बोल पड़ा ,तुझे कभी इश्क नहीं हो सकता केतकी,किसी से भी नहीं...जब मुझसे नहीं हुआ तो किसी और से क्या होगा? अच्छा !! वो पास खिसक कर बोली...ऐसा क्या खास है तुममे??? मैं भी उसके पास खिसका और कहा –क्यूँ लंबा-चौड़ा हूँ,गोरा रंग है,आँखें नीली नहीं तो पनीली तो हैं,बाल घने, बिखरे ,मुस्कराहट के साथ तेरे पसंदीदा डिम्पल...और क्या चाहिए??? वो मुस्कुराई और बोली- “ नार्सीसिस्ट कहीं के”- और हम दोनों हँसते रहे देर तक......
जब वो इस तरह हँसती तो मुझे उसकी आँखों में अपने लिए कुछ प्यार सा दिखता....मुझे लगता भी कि उसे प्रेम है मुझसे,थोड़ा नहीं बल्कि बेइंतहा.....जितना कि कोई बिंदास नदी कर सकती है समंदर से......नदी जो बावली होकर बहती है उस समंदर की ओर....उसमें समां जाने को....उसमें समां कर अस्तित्वविहीन हो जाने को.....अपनी मिठास खो कर स्वेच्छा से खारी हो जाने को...अपनी स्वतंत्रता भूल कर ठहर जाने को.....
ऐसे ही ख्यालों ने मुझे उस दिन हिम्मत दी,जब हम फिल्म देख कर लौट रहे थे.उसने बाइक में मुझे कस कर पकड़ रखा था,उसका स्पर्श मुझे विचलित कर रहा था.ऐसा नहीं कि उसने कभी छुआ न हो मुझे...हम सालों से साथ थे और बहुत करीब भी,सो जाने अनजाने सहज भाव से किया स्पर्श कोई नयी बात न थी.मगर आज शायद मेरा मन ही मेरे वश में न था....मैंने बाइक उसके घर के सामने रोकी,उसने मेरा हाथ पकड़ा और बोली अंश शुक्रिया, मेरा दिन खूबसूरत गुज़रा तुम्हारी वजह से.वो जाने को मुडी तो मैंने उसकी ठंडी उंगलियां अपनी उँगलियों के बीच कस लीं. अरे अब क्या??? जाओ रात हो गयी है सब फ़िक्र करते होंगे घर में.मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और बिना सोचे कह गया- तुम्हारे दिन,तुम्हारी रातें,तुम्हारी पूरी ज़िन्दगी मैं खूबसूरत बना देना चाहता हूँ ,जीना चाहता हूँ तुम्हारे साथ...तुम्हारा होकर...केतकी, मैं प्यार करता हूँ तुमसे बेइन्तहा!!!
अब बारी केतकी की थी.उसने दो पल मेरी आँखों में देखा,वही जाने पहचाने अटपटे भाव,जिन्हें मैं कभी न पढ़ सका था......फिर उसने दूसरे हाथ से अपनी उंगलियाँ छुडाईं और बोली- एक दिन खूबसूरत गुजरा है जनाब,ये खूबसूरती और ताजगी सदा रहने वाली नहीं. चलो जाओ अब, आहिस्ता चलाना बाइक और घर पहुँच कर मैसेज कर देना.उसने पलट कर भी नहीं देखा और चली गयी.मैंने बदहवास सी बाइक दौड़ा दी.....वो रात शायद कुछ ज्यादा ही अँधेरी थी,या मेरी आँखें ओस से धुंधला गयीं थी.....जाने कैसे मेरी बाइक फुटपाथ पर चढ़ गयी.होश आया तो अस्पताल में था. सर पर ७ टाँके थे.बस कोई अंदरूनी चोट नहीं थी सो अगली सुबह घर भी आ गया.
दो रोज हुए केतकी का कोई पता नहीं था.न मिलने आई न कोई खबर ली.फोन भी बंद था उसका.तीसरे दिन आई तो मैंने सहज शिकायती लहजे में कहा कि बड़ी जल्दी फुर्सत मिली??? उसने अपनी जानी पहचानी अदा से जवाब दिया अरे तुम्हारा सर जिस फुटपाथ पर टकराया था उसकी मरम्मत में ज़रा व्यस्त हो गयी थी. मैं उसका चेहरा और लाल सूजी हुई आँखें देखता रहा,सोचता रहा और उसे समझने की नाकाम कोशिशें करता रहा....
जब तक मेरे टाँके नहीं खुले वो रोज मिलने आती रही. खूब बोलती,बतियाती. उस रात का ज़िक्र हमने फिर कभी न किया मगर मुझे कुछ दरका सा महसूस होता रहा हमारे बीच.शायद मैंने अपने प्यार का इज़हार करके गलती कर दी थी.
खैर वक्त के साथ सब सामान्य हो जाएगा इस उम्मीद के साथ हम दिन काटने लगे. नौकरी मिलने के साथ ही घर में सभी और केतकी भी मेरी शादी के लिए जोर देने लगे.परिवार के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए मैं भी आखिरकार इस रस्मअदायगी के लिए तैयार हो गया....मुझे लगा केतकी का भ्रम अब तोडना ही होगा............उसके मायाजाल से बाहर आना ही होगा.
उस रात अचानक फोन की घंटी बजी और उधर से केतकी का स्वर सुनाई पड़ा.....सुनो आखिरकार मुझे इश्क हो ही गया सागर से...तुम सुन रहे हो न???
हां,सुन रहा हूँ और जानता हूँ..गोवा के समुद्रतट है ही सुन्दर.किसे इश्क न होगा !
हां,सुन रहा हूँ और जानता हूँ..गोवा के समुद्रतट है ही सुन्दर.किसे इश्क न होगा !
धत् तेरे की !!! तुम मुझे ज्यादा ही समझने लगे हो अंश,और मुझे ये बात ज़रा पसंद नहीं...अच्छा किया तुमने शादी कर ली,मेरा पीछा छोड़ दिया...अब उसको समझो और जानो जो पल्ले बंधी है तुम्हारे...और फोन रख दिया उसने.
मेरी शादी के बाद ये पहली रात थी और मैं उस पागल केतकी से बात कर रहा था...मगर शायद आखरी बार.मैंने तय कर लिया था कि अब कभी उससे कोई संवाद न रखूंगा....कभी नहीं.
मगर हर बार की तरह ये फैसला भी उसने ही लिया था.
अगले दिन तड़के गोवा के होटल से फोन आया कि केतकी अपने कमरे में एक नोट छोड़ गयी है कि- जा रही हूँ ...मुझे खोजना मत.....किसी मछुआरे को या गोताखोर को तंग न करना....मुझे पूरी तरह डूब जाने दो सागर के प्रेम में....उसकी तलछटी छूने निकली हूँ मैं.
और एक चिट्ठी मेरे नाम भी थी-
अंश तुम्हारा नाम सागर होता या सूरज...मैं कभी तुमसे प्यार न करती.जानते हो जिस रोज मैं पैदा हुई उसी रोज मेरे माँ बाप दोनों की मौत हुई.माँ डिलिवरी टेबल पर और पापा रोड एक्सीडेंट में.मौसी मौसा ने आसरा दिया तो बेचारे बेऔलाद रह गए.ये संयोग नहीं है अंश...ये इशारा था भगवान का. मैं बहुत अभागी हूँ अंश,हम अगर एक हुए होते तो तुम कभी खुश न होते....याद है तुम्हारे एक्सीडेंट वाली रात.....तुमने सिर्फ अपने प्यार का इज़हार किया था...और देखा था नतीजा ??
अंश मैं “केतकी” हूँ......मैं शापित हूँ शिवजी के द्वारा.जानते हो,केतकी के फूलों को पूजा में चढाना वर्जित है....
सुनो,तुम अगले जन्म में भी अंश ही बनना......और मैं बनूंगी तुम्हारी,सिर्फ तुम्हारी....झरूंगी तुम पर हरसिंगार बन कर...
हर जन्म में केतकी बनूँ ,इतनी भी अभागी नहीं हूँ !!!
उत्कृष्ट कहानी..
ReplyDeleteओह ! काश केतकी को कोई मिलता जो उसे बता सकता कि वह मनहूस नहीं है !
ReplyDeleteएक आत्ममुग्ध नायिका के इर्द गिर्द बुनी गई कहानी , उसके चरित्र को बखूबी उकेरा है आपने. कहानी प्रवाहमय और ह्रदय स्पर्शी है . अब आप सिद्ध हस्त कहानीकार बन्ने के पथ पर हो .
ReplyDeleteशुक्रिया आशीष जी....
Deleteमगर अब अगर तीसरी कहानी लिख डाली तो दोष आपका :-)
केतकी के दिल का दर्द मन में गहरे उतरता है ..
ReplyDeleteसुन्दर
अंधविश्वास के गिरफ्त में अधूरी रह गई ,एक सच्ची प्रेम की सच्ची कहानी .... !!
ReplyDeleteतीसरी कहानी का इन्तजार हमेशा रहेगा .... !!
कहानी आपकी बढ़िया है अनुजी.....
ReplyDeleteहाँ, केतकी का चित्रण थोड़ा उलझा हुआ है.....
खासकर अंत में जाकर......
बाकी सब कुछ ठीक.....
हां जी उलझा हुआ तो है ही....तभी तो बिना किसी ठोस वजह से वो खुद को शापित समझती है...मगर क्या मैंने उसके चरित्र चित्रण में कोई कन्फियूसन पैदा किया है??? आप एक पाठक के तौर पर बता सकते हैं जिससे भविष्य में सुधार करूँ.
Deleteशुक्रिया.
बहुत ही बढिया ... आभार
ReplyDeleteकहानी दिल को छू गयी अनु जी ! और ये अंधविश्वास ... खल गया ! काश! केतकी ऐसे न सोचती...
ReplyDeleteकहानी यदि अंत तक उलझाये रखे पाठक को तो वो सबसे अच्छी कहानी होती है और अनु जी आपकी कहानी की यही खासियत है |................बहुत सुन्दर ............
ReplyDeleteबेहद खूबसूरती से बुनी गयी कहानी...
ReplyDeleteशायद केतकी जैसे चरित्र के लिए ही कहा गया है..
." जो लब हमेशा मुस्कुराते हैं
वे आंसुओं के मकान हुआ करते हैं"
मुश्किल है...इस मकान का पता किसी और को नहीं चलता.
ऐसे चरित्र हमारे आस-पास ही होते हैं...पर अपने मन के अंदर किसी को झांकने नहीं देते.
केतकी और अंश का चरित्र उभर कर आया है...और बिलकुल सच के करीब है..
मन को छू गई
ReplyDeleteबहुत सुंदर कहानी
बेहतरीन प्रस्तुति ....आभार
ReplyDeleteबेहतरीन कहानी
ReplyDeleteसादर
very beautifully written....
ReplyDeleteketki ki wo gahraayi dil le gayi...
umdaaa rachna..
वो मुस्कुरा कर कहती-मैं नदी हूँ अंश,सिवा पानी के कुछ नहीं...बहता पानी...साफ़ और पारदर्शी...जो चाहे देख लो...अपना अक्स भी...जितना गहरा खोदोगे उतना ज्यादा पानी पाओगे.और मत भूलना कि मोती सागर में मिलते हैं, नदियों में नहीं....वो बोलती चली जाती...बिना रुके...मैं सुनता रहता बिना कुछ समझे...... देखना एक दिन मैं भी सागर में मिल जाउंगी और पा जाउंगी एक मोती...जड़ लूंगी उसको अपनी अंगूठी में....
bahut khoob varnan kiya hai.. really awesome
बहुत खूबसूरत कहानी अनु जी...दिल के करीब महसूस हुई....लेकिन एक request है प्लीज 3rd कहानी एक खूबसूरत happy ending wali लव स्टोरी दीजिए....on my special request plzzzzzzz :) :)
ReplyDeleteतीसरी कहानी लिखी तो मेरे रीडर्स मुझे मार डालेंगे माही ...अच्छा चलो अगर लिखूंगी तो सुखान्त कहानी ही लिखूंगी...वैसे बड़ा मुश्किल काम दिया है तुमने..
Delete:-)
Hah Hahaaa....haan mushqil toh thoda hai...kyunki love stories ka happy end shayad hi hota hai... :) :)...
DeleteBut i m so damn sure u vl write a beautiful one :) :)
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (18-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (18-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
आपका ह्रदय से आभार शास्त्री जी.
Deleteमन को गहराई तक छूती प्रेम कहानी... काश केतकी अपने आप को मनहूस ना समझती... बहुत अच्छी कहानी लिखी है आपने अनुजी
ReplyDelete"केतकी "एक नायिका प्रधान कहानी है जिसमे मानसी तत्व ज्यादा हैं .पुरुष स्त्री के मन का अस्पष्ट धुंधलका और चाहत ज्यादा है यथार्थ कम .कहानी पढ़ते हुए लगता है केतकी एक अति -महत्वकांक्षी
ReplyDeleteशख्शियत है जिसके लक्ष्य निर्धारित हैं लेकिन आखिर में वह एक असामान्य चरित्र बनके रह जाती है ,आत्म ह्त्या की प्रवृत्ति से लैस .कहानी में मानसिक कुन्हासे का ज्यादा वजन है जो एक असंतुलन पैदा करता है , देर तक छाई रहती है ये मानसिक धुंध .फिर शादी की आकस्मिकता है जैसे शादी अचानक एक दुर्घटना सी घट गई हो .अंश एक जीता जागता सामान्य इंसान है जिसे बौखलाने के लिए केतकी का सिर्फ एक घंटा कॉफ़ी है .कहानी रोचकता लिए है .बहाव भी .कुछ शब्द प्रयोग अखरते हैं मसलन -"अनबुझ ","आकस्मात ",नार्सिस्ट,इनके शुद्ध रूप हैं :अनबूझ ,आकस्मिक /अकस्मात /आकस्मिकता ,Narcissus/Narcissism/Narcissist/Narcissistic नार्सीसिस्ट .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
शुक्रवार, 17 अगस्त 2012
गर्भावस्था में काइरोप्रेक्टिक चेक अप क्यों ?
वीरू भाई मुझे इन्तेज़ार था ऐसी किसी टिप्पणी का...शब्दों के अशुद्ध रूप मैं ठीक कर लेती हूँ,रोमन से देवनागरी में टाइप करते समय हो जाती हैं त्रुटियाँ.कई बार पढ़ा मगर फिर भी छूट ही गयीं..ध्यान दिलाने का शुक्रिया.और जहाँ तक केतकी के व्यक्तित्व का सवाल है, वो तो है ही मानसिक कुहासे भरा.....नायक कहता भी है कि उसको केतकी कभी कभी मानसिक रूप से बीमार लगती है.....हां अंश की शादी को आपने दुर्घटना कहा.....ठीक ही है कोई पूरे ह्रदय से तो उसने की नहीं थी शादी...हां वो शादी का फैसला..इत्यादि वाला भाग थोड़ा स्पष्ट कर सकती मैं ,मगर विषय से भटकना सा लग रहा था...और कहानी की लम्बाई भी बढ़ रही थी....
Deleteअब धीरे धीरे बेहतर लेखन का आश्वासन दे सकती हूँ आपको...बस इसी तरह मार्गदर्शन मिलता रहे.
बहुत बहुत शुक्रिया
केतकी की अधुरी प्रेम कहानी दिल को छू गयी ..बहुत सुन्दर..अनु
ReplyDeleteआप बार बार "तीसरी कहानी लिखी" कह रही हैं तो लगता है ये दूसरी कहानी है.. लेकिन 'शायद' मैंने ये पहली ही कहानी पढ़ी आपकी.. कविता न देखकर लगा पहले कि गलत जगह तो नहीं आ गया.. लेकिन फिर बाबा की बिटिया' वाली फोटो से तसल्ली हुई..
ReplyDeleteकहानी का ट्रीटमेंट बहुत शानदार है.. कहानी प्रोग्रेस भी बहुत अच्छे ढंग से करती है.. पता नहीं वो चुप रहना पसंद करती थी इसलिए या कोई और कारण था, मुझे संवादों की कमी महसूस हुई.. मगर जो भी हो कुल मिलाकर कहानी का इम्पैक्ट प्रभावित करता है!!
सलिल जी आप की अनुपस्थिती में कहानी लिखना भी शुरू किया ...पहली कहानी भी पढियेगा...आपकी टिप्पणी कीमती है...अब आपने संवाद की कमी कही तो उस नज़रिए से देखती हूँ...वरना मेरे मान से तो नायिका केतकी बहुत बोलती थी....शायद बात पाठकों तक पहुँची नहीं :-(
Deleteआभारी हूँ अनमोल टिप्पणी के लिए.
वाकई कहानी अच्छी हैं ..बिलकुल जिन्दगी की तरह दुखांत /
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति..! बधाई
अब आपसे कौन टकराए....
Deleteआपकी कहानी अच्छी लगी । मेरी कामना है कि आप अहर्निश सृजनरत रहें । बहुत ही बढ़िया । राही मासूम रजा की एक सुंदर कविता पढ़ने के लिए आपका मेरे पोस्ट पर आमंत्रण है ।
ReplyDeleteह्रदय स्पर्शी कहानी... इक बार जो पढ़ना शुरू की तो अंत पढ़े बिना छोड़ी ही नहीं गई.... प्रारम्भ से अंत तक बाँधे रखा आपकी केतकी ने!
ReplyDeleteआपकी कहानियों और कविताओं में एक कॉमन चीज है - भावुकता... अच्छी कहानी
ReplyDeletespeechless i am...evoking so much emotions..fabulous write mini di...u inspire
ReplyDeletewhat a write minidi...evoking emotions, fabulous....u inspire with the flow of ur writing
ReplyDeleteमुझे तो कहानी बहुत पसंद आई |
ReplyDeleteरोचक कहानी। केतकी के चरित्र में कुछ तो अलग है।
ReplyDeleteपढ़ते पढ़ते जब केतकी का मायाजाल मेरे चरों तरफ बून रहा था, तो लगता था की इस weirdo से कोई भी इश्क कर बैठेगा. अंत में ऐसा लगा की आपने केतकी को आसमान से जमीं पे गिरा दिया...अच्छी कहानी है...सुन्दर ! केतकी को पंख लगाइयेगा ....अगली बार ...engaging one.
ReplyDeleteकहानी कहने की गज़ब शैली|
ReplyDeleteकहानी की शैली बेहतरीन है...सब्जेक्ट भी अच्छी है...शुरू किया तो अन्त तक पढ़कर ही छोड़ा...लेकिन खुद को खत्म कर लेना थोड़ा सा खटका|
ReplyDeleteसस्नेह
Bhavo - ko badi sarlta se sangathit kiya hai - UTAM
ReplyDeleteआह केतकी आह है, गजब समर्पण भाव |
ReplyDeleteदृष्टान्तों का दोष से, किया स्वयं अलगाव |
किया स्वयं अलगाव, जरा सोचा तो होता |
यही अंश का वंश, तुम्हारा वक्ष भिगोता |
अवसर देती एक, नेक यह होती घटना |
देता मैं भी साथ, खले चुपचाप निपटना ||
यदि आपकी सहमति हो, तो इसे हम “आंच” पर लें।
ReplyDeleteहां समीक्षा में थोड़ी बहुत आलोचना भी हो सकती है।
मनोज जी आपने मेरी कहानी को इस लायक समझा बहुत बड़ी बात है....आलोचनाओं से ही तो सीखूंगी...पाठकों की हर प्रतिक्रिया सर-माथे.
Deleteआपका आभार...
कहानी पढ़ते समय चलचित्र की भाँती आभास हुआ !
ReplyDeleteआभार !
सचमुच कहानी रोचक है...शुरु से लेकर अंत तक बांधे रखने में सक्षम.केतकी की कहानी एक संस्कार से पैदा हुई है...और वह संस्कार उसे इतना द्विमुखी बना देता है कि उसके मन में छुपी उसकी वास्तविक पीड़ा,दर्द कभी समाज के या अंश के सामने नहीं आती। बहुत से लोग अपने गमों को यूं ही हंस कर या चुलबुले बन कर दूसरों से छिपाते रहते हैं। फिर भी,केतकी दिल की अच्छी है और अपने प्रेमी को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाना चाहती। हमारे मनों में चलने वाले प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष विचार ही हमारे व्यवहार को निश्चित करते हैं। कहानी कहीं भी असहज नहीं हुई है...कहानी का अंत शायद इससे बेहतर नहीं हो सकता था। इस कहानी का निष्कर्ष है कि अच्छे लोग आत्मघाती हो सकते हैं,लेकिन दूसरों को कष्ट नहीं देते।
ReplyDeleteहां, कहानी में संवाद होने पर वह सजीव हो उठती है...वर्णन अधिक होने पर कहानी तत्व को क्षति पहुंचती है।
इस उत्कृष्ट लेखन के लिए बधाई...
सभी कमियों के साथ आपने स्वीकारा..और सराहा भी ..आभारी हूँ मनोज जी.
Deleteकेतकी से बात करना
ReplyDeleteअच्छा लगा
अब ये मत पूछना
कहां बात की आपने?
di kahani bahut acchi hai...last tak bilkul pakad kay rakha ...
ReplyDeleteमेरे पास वक्त नहीं था कुछ ज़रुरी काम था इसलिए इस कहानी को पूरा करना मुमकिन न था लेकिन लेखन और कथ्य में इस क़दर कसावट थी कि पूरी पढ़कर ही दम ली...सुंदर लेखन है..अंत थोड़ा अतार्किक और अवैज्ञानिक लगा पर कला में हमेशा तर्क ढूंढना भी समझदारी नहीं..रोचकता अवश्यंभावी है और कथा रोचक थी।
ReplyDeleteप्रेम इसी को कहते हैं -बेहतरीन कहानी
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दिल छू लेने वाली कहानी है प्रवाह है कहीं भी बोझिल नहीं लगती पूरी पढ़ कर ही रुकी हार्दिक बधाई
ReplyDeleteप्रारम्भ में केतकी का परिचय बहुत जानदार लगा .... मानसिक द्वंद्व को अक्सर कई लोग अपने चुलबुलेपन में छिपाने की कोशिश करते हैं ...इस दृष्टि से केतकी का चरित्र काफी दृढ़ लगा ..... कहानी का अंत जहां एक ओर निराश करने वाला था वहीं इस अंत से केतकी के प्रेम की पराकाष्ठा को भी दर्शाया गया जो सहज ही स्वीकार करने का मन करता है .... कुल मिला कर कहानी रोचक और प्रवाहमयी है ..... कॉफी और चॉकलेट शब्द भी दुरुस्त हो जाएँ तो अच्छा रहेगा ।
ReplyDeleteकविता से ज्यादा कहानी की मांग है .... इस विधा में निरंतर सृजन करें ...शुभकामनायें
संगीता दी आपका बहुत शुक्रिया.....आप सभी की सराहना से बड़ी प्रेरणा मिलती है...लिखती रहूंगी...
ReplyDeleteस्नेहाशीष बनाए रखें.
और वो कोफी और चोकोलेट तो मुझसे सही टाइप होता ही नहीं दी...सारे ओप्शन देखे...अब आपकी टिप्पणी से कॉपी पेस्ट करके दुरुस्त कर देती हूँ :-)अरे कॉ तो हो भी गया :-)
आभार...
अरे वाह कहानी ...फिर तो आराम से पढनी पड़ेगी सहेज रही हूँ.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी कहानी......
ReplyDeleteदी ||| आपने तो कमाल कर दिया...
ReplyDeleteबहुत -बहुत अच्छी और दिल को छु लेनेवाली
कहानी है...परिचय... दोनों के बीच का संवाद..
बहुत ही प्यारा...
शानदार...
अगली कहानी कब लिखोगी....
अब इंतजार नहीं होता....
:-) :-) :-) :-):-)
बेहतरीन कहानी । पाठक को अंत तक बांधे रखती है ....।
ReplyDeleteअनु जी, यह कहानी अच्छी है. विशेषत: अगर यह आप की दूसरी ही कहानी है तो बहुत अच्छी है. यह कहानी बहुत बहेतर हो सकती थी/है. कुछ मुद्दे पर गौर कीजियेगा : १] क्या केतकी का अति आकर्षक होना कहानी को लाभकारक है...? २] क्या अंश का हार मान लेना स्वाभाविक है या उसकी केतकी को पाने की ,उसे अपना बनाने की जद्दोजहद होनी चाहिए थी...? ३]अंतिम पत्र में जिस खुलेपन से केतकी का अंश के प्रति का प्रेमभाव स्पष्ट होता है वह भाव केतकी बहुत सफाई से अंश के साथ होती है तब छिपाए/दबाये रखती है....-अगर दो -तीन मौके पर यह बाँध टूट जाता फिर चाहे केतकी तुरंत उस बाँध को त्वरित गति से रिपेर कर लेती...पर गर ऐसा होता तो शायद केतकी का पत्र में जल्कता भाव अधिक रिलेटेबल लगता और केतकी का रहस्यमयी होना भी अधोरेखित होता. ४]केतकी का जो स्वयं के अभागी होने की ग्रंथि है उस की भूमिका अंतिम पत्र में ही स्पष्ट होती है.अगर बैक के एक्सिडंट की तरह और एसी दो-तीन घटना कहानी में बुन ली होती तो पाठक के सामने यह बात आगंतुक की तरह आने के बावजूद इस ग्रंथि के मूल नज़र आते.
ReplyDeleteअनु जी, फिर से धन्यवाद. यह मेरी निजी राय है-आलोचना नहीं.बहुत शुभकामनाएँ :)
सबसे पहले तो आपकी राय का शुक्रिया राजू जी...यदि ये आलोचना है तब भी स्वागत है..
ReplyDelete१-केतकी का आकर्षक होना सिर्फ कहानी को आकर्षक बनाता है...ये २५ बरस से नीचे के पाठकों के लिए है :-)
२-अंश की जद्दोजहत दिखाने में शायद कमी हुई है..क्यूंकि उसको शायद खुद ही कहाँ यकीन था कि केतकी उसको चाहती है!!
३-केतकी का प्रेम बाँध एक दो जगह टूटा भी..जैसे जब वो कॉलेजे अंश के जाने कि जिद्द करती है...और जब वे नदी किनारे होते हैं..और केतकी का चरित्र बाहर से बहुत मजबूत दिखाया है सो शायद संयमित भी रह पायी वो..
४-और केतकी का दुर्भाग्य या उसका ये सोचना कि वो अभागी है ये तो मेरा सरप्राइस क्लाइमेक्स था..उसे पहले कैसे बताती???
बाकी कमियां कई हैं..मैं जितनी बार पढ़ती हूँ खुद महसूस करती हूँ..भविष्य में बेहतर का पक्का वादा कर सकती हूँ और क्या :)
फिर से आभारी हूँ आपकी अनमोल टिप्पणी के लिए.
ReplyDeleteअनु जी, टिप्पणी पर ध्यान देने के लिए आभार. दो बातें कहूँगा. ---२५ बरस के नीचे के पाठक...!! यह वर्गीकरण समझ में नहीं आया.या ऐसा वर्गीकरण हो सकता है/होना चाहिए की नहीं यह अपने आप में एक डिबेट का मुद्दा है.में स्वयं व्यावसायिक लेखन क्षेत्र से जुडा हुआ हूँ -जहां इस तरह के वर्गीकरण के बिना काम आगे नहीं बढ़ता और मामला बाज़ारीकरण का होने के कारण यह शायद आपतिजनक भी नहीं लगता .किंतु आप का सृजन किसी बाज़ारीकरण की परवा क्यों करें...? आप की निस्बत होनी चाहिए केवल शुध्ध साहित्यिकता से. कलाकृति ,विशेत: कहानी के लिए एक अलिखित नियम है : कहानी की रचना करना डूबता जहाज को किनारे तक पहुंचाने जैसा काम है, कोई भी अनावश्यक वस्तु के लिए उस में अवकाश नहीं.केतकी का अत्यंत आकर्षक होना अगर कहानी की आवश्यकता होती [जो की मुझे लग नहीं रही ] तो और बात होती.परन्तु पाठक को मद्देनज़र....!! अनु जी -प्लीज़ रिथिंक. अब दूसरी बात---- -और केतकी का दुर्भाग्य या उसका ये सोचना कि वो अभागी है ये तो मेरा सरप्राइस क्लाइमेक्स था..उसे पहले कैसे बताती???---- इस बात पर मुझे यह कहना है की लेखिनी की यही तो चुनौती है की जब इस मुद्दे को बुन लिया जाय तब वो इतना स्वाभाविक लगे की पाठक को अंदेशा न हो की यह आनेवाले किसी कथाप्रवाह का इशारा है.तब ही तो पाठक भी संतुष्ट होगा की " अरे हाँ, यह भी तो हुआ था सो केतकी का सोचना भले उचित न लगता हो पर उसे ऐसा सोचना पड़े ऐसा हुआ भी तो था...." मेरे तर्क को स्पष्ट करने के लिए मैं मनोज नाईट श्यामलन की पहली फिल्म 'द सिक्स्थ सेन्स'का उदाहरण दूँगा [ऐसा उदाहरण कहानीयों में से भी दिया जा सकता है किन्तु मैं निश्चिंत नहीं की हम दोनों ने पढ़ी हो एसी इस मुद्दे के लिए उचित कहानी कौन सी होगी].इस फिल्म में डॉ माल्कम [ब्रुस विलिस] एक मृत किरदार है यह बात फिल्म के क्लाइमेक्स में बहुत बड़े आश्चर्य के रूप में आती है.आप अगर गौर करे तो मनोज ने पूरी फिल्म में करीब तीन द्रश्य एसे रखे है जहां डॉ. माल्कम अपनी पत्नी और मुख्य किरदार बच्चे की माँ के साथ है.इन द्रश्यो की खूबी यह है की डॉ.माल्कम एक नोर्मल किरदार है ऐसा इन्हें देखते वक्त प्रतीत होता है,और अगर क्लाइमेक्स के झटके के बाद हम इन दृश्यों की पुन:मुलाक़ात ले तो पाते है की इन दृश्यों में भी डॉ.माल्कम मृत ही थे ---हम समझ नहीं पाए थे....अनु जी , मनोज डॉ.माल्कम के कोई द्रश्य ही न रखने का आसान रास्ता ले ही सकते थे !! पर उन्होंने एसी सूक्ष्मता से इन दृश्यों पर काम किया की फिल्म का प्रवाह सहज रहा और क्लाइमेक्स 'गिव अवे ' भी नहीं हुआ.और फिल्म का नेरेशन समृध्ध हुआ.अनुजी, मैं भी यही चाहता हूँ की आप की कथा समृध्ध हो. :) शुभकामनाएँ
राजू जी मैंने कोई वर्गीकरण नहीं किया ,वो तो आपकी संजीदा टिप्पणी का मजाकिया उत्तर था बस....
ReplyDeleteऔर आपने मेरे साथ मनोज श्यामलन का ज़िक्र भी किया ये मेरे लिए गर्व की बात है....
आभार.
क्यों चुक हो गई , अफसोस शानदार कहानी को देर से पढ़ने का और माफ़ी देर से कुछ इस पर कहने के लिए . कहानी सशक्त ही नहीं मन को झकझोर देने के लिए काफी है . रही बात कहानी की समीक्षा की तो हम ठहरे गंगा राम हमारे मन भा गई .१०० में १०१ नंबर दे दिया . जांचा परखा सही पाया सनद रहे वक़्त पर काम आवे लिख दिया रसीद अंगूठा लगाकर .बेहतरीन कहानी .
ReplyDeletexcellent di only one thing was missing..... instead of computer,i wish book read ki hoti then it would have been a perfect end to a tiring day.love u n write the third one quickely
ReplyDeletedi enjoyed it very much. perfect for a good nights reading .very touching n full of life.waiting 4 the third one
ReplyDeleteबड़ी गम्भीर कहाँनी लिखी अनु जी .
ReplyDeleteदुखद अंत मन उदास कर गया ..!!
अनु ...क्या कहें आपकी इस कहानी को लेकर ...शब्द रहित कर दिया ...आह ..खूबसूरत ,गंभीर प्यार मादकता सब भाव लिए हुए ...बेहद खूबसूरत शब्द ,सोच और सही से किया गया इस कहानी का अंत ...:)))
ReplyDeleteमैने आँच पर यह कमेंट अभी लिखा है। क्षमा के साथ उसी को यहाँ कट पेस्ट कर दे रहा हूँ....
ReplyDeleteइस पर तभी ध्यान गया जब अपनी कविता पढ़ी आँच पर। आज फुर्सत मिला तो पहले कहानी पढ़ी फिर समीक्षा। कहानी का अंत पढ़कर लगा कि कोई बात किसी के मन मस्तिष्क पर कितना गहरा जख्म दे जाती है खुद को मनहूस ही समझ लिया केतकी ने!!
आपकी समीक्षा पढ़ी आपने अंगूठी से जोड़कर उसे अंधविश्वासी सिद्ध कर दिया। आपकी समीक्षा में आई कुछ बातों को छोड़कर (जैसे अंश के बारे में....) सभी से सहमत हूँ। पूरी कहानी पढ़ते वक्त केतकी इतनी छाई रही कि अंश के बारे में जानने की इच्छा ही नहीं हुई।
मुझे कहानी उत्कृष्ट लगी। वह शायद इसलिए भी कि इतना डूब कर बहुत दिनो बात मैं कोई कहानी पढ़ सका। मुझे अंधविश्वासी नहीं मानसिक आघात से अभिषप्त एक लड़की की कहानी लगी। अंश की एक बात के लिए आलोचना करना चाहूँगा कि वह सच्चा प्रेमी नहीं था। उसे पता लगाना चाहिए था केतकी के बारे में। डूबना चाहिए था नदी में और साफ करनी चाहिए थी उसकी शंकाएं। अंश ने प्रेमी के रूप में निराश किया।
शुक्रिया देवेन्द्र जी..
Deleteमेरे ख़याल से केतकी अति संवेदनशील और भावनात्मक रूप से कमज़ोर लड़की है....और वो अपने भावनाएँ उजागर भी नहीं करती...बल्कि उसने झूठे दिखावे किये अंश को स्वयं से दूर करने के लिए..
और वो अंगूठियों का पहनना अंधविश्वास नहीं बल्कि उसका पागलपन कह लें...दीवानी सी लड़की की कल्पना की थी मैंने केतकी का चरित्र गढ़ते समय....हां अंश के लिए आपकी आलोचना सही है...उसका चरित्र कुछ अस्पष्ट और दबा सा रहा.....
अभी सीख ही रही हूँ अतः मेरी कमियों को माफ किया जाय :-)
सादर
अनु
. देखना एक दिन मैं भी सागर में मिल जाउंगी और पा जाउंगी एक मोती...जड़ लूंगी उसको अपनी अंगूठी में....
ReplyDeleteहर जन्म में केतकी बनूँ ,इतनी भी अभागी नहीं हूँ !!
मे कुछ नहीं कहूँगा सिर्फ ये की -आपकी पहली कहानी म अंत मे आसूं सुख गए थे और इसमें आसूं लरज गए |क्र कृपया आप दुखांत ना लिखे |
अनु जी पहली कहानी में इक बेबस मजबूर सेहन शील स्त्री का चरित्र और यहाँ इक उन्मुक्त चंचल स्वभाव वाली केतकी दोनों ही चरित्रों को बहुत ही ख़ूबसूरती और इक प्रवाह में आपने उकेरा है...केतकी का इस तरह सोचना अंधविश्वास तो है किन्तु हमारी सामजिक परिस्थितियाँ ऐसा सोचने पर मजबूर कर देती हैं खासतौर पर स्त्रीयों को तो उसका अटपटा स्वभाव पल में भाव बदलने वाला स्वभाव मुझे बहुत न्याय करता हुआ लगा कहानी के साथ...वैसे तो पूरी कहानी ही रोचक है किन्तु वो इक पल जब दोनों मंदिर की सीढियों पर हैं और केतकी कहती है की अंश तुम सूरज होते तो रोज शाम को इसी तरह मुझ में समां जाते..बेहद खूबसूरत ख्याल जज्बात कोई कैसे न सोचे की केतकी को मोहब्बत नहीं थी बहुत मोहब्बत थी तभी तो अंश की जिंदगी के लिए खुद की जिंदगी गवा दी...
ReplyDeleteवाह...क्या कहानी थी!!!.केतकी के रूप का तो ऐसा वर्णन जैसे कोई कविता लिखी हो...आदि से अन्त तक रोचक...एक साँस में कहानी पढी है!!..सच तो यह है जब तक केतकी की बात चली...साँस अटकी ही रही......बहुत सुँदर कहानी...वाह...
ReplyDeleteआँख भर आयी …………बेहद मर्मस्पर्शी
ReplyDeleteWowww... Really touching.
ReplyDeleteपहली बार तुम्हारी कहानी पढी अनु .......बढ़िया ..बहुत बढ़िया प्रवाह ...हाथ आजमाओ ...रुकना मत :)
ReplyDeleteपता नहीं क्यों ..हमे केतकी को पढ़कर ....को जानकर ...लगा ..खैर छोड़ो...बहुत सुन्दर पात्र है ...मोह लेने वाला ...एक ऐसा व्यक्ति जो जाने के बाद भी लगता है जैसे आसपास ही है ...बिलकुल तुम्हारी तरह
ReplyDeleteकहानी वास्तव में उन अभागे जीवन को जीवंत दृश्यों को दर्शाती है !
ReplyDeletebahut sundar kahani likhi hai aapne mantramugdha kar dene wali, aaj hi padhi ab tak pata nahi kahan thi mai, khair..........kahani apne naam ke anuroop ek charitra vishesh "ketki" par focused rahi, jisse iska naam sarthak hua, dusre ketki ka atishay sundar, hoshiyar hote hue bhi sankipan liye hona, uske charitra ko ughedta hai, jisse romanch aur rahasya paida hota hai..... Ansh se pyar karne k usne bahut se ishare kiye {jaisa ki aksar ladkiyan karti hain}, magar khul kar sweekar n karpana aur dwiarthi Baaton me Ansh ko uljhana darshata hai ki vo kitne maansik dabaav me thi.....Apne ateet ki parchhayi se darti hui Ketki Ansh k bina bhi apne jeevan ki kalpana nahi kar sakti aur Ansh ke saath bhi jo anttah use aatmsamarpan (aatmhatya) k liye mazboor karta hai.Kuchh to mazbooriyan rahi hongi, yun hi koi bewafa nahi hota.............lovely story!
ReplyDeletehaay kya lekh likh hai aapne.. mere aankho mein aansu aa gaye padhkar... aapka sukriya.. plz aur bhi likhti rahna ..aise hi
ReplyDeleteकहानी दिल को छू गयी
ReplyDeletebohot sunder hai aapki ye kahani.....
ReplyDeleteआपकि कहानी दिल को छू गयी
ReplyDeleteबेहतरीन कहानी । बहुत सुन्दर दिल छू लेने वाली कहानी है प्रवाह है कहीं भी बोझिल नहीं लगती पूरी पढ़ कर ही रुकी हार्दिक बधाई
ReplyDeleteअनु..केतकी से प्यार हो गया ...इतनी प्यारी शक्सियत ...नहीं वह मनहूस हो ही नहीं सकती ......मनहूस था उसका वहम जो उसने पाल रखा था ..जो उसे अपनी खुशियों से कोसों दूर ले जाता .....हर बार ....अनु काश की केतकी अपनी importance समझ पाती...अपनी क़ीमत जान पाती ....
ReplyDeleteI am speechless Anulata..what a beautifully woven story !! hats off
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमगर हर बार की तरह ये फैसला भी उसने ही लिया था.
ReplyDelete‘‘सर्वोत्तम वाक्य है‘‘
बहुत ही बढ़िया लिखा है जी ऐसा लगा जैसे कोई फिल्म चल रही है आँखों के सामने :)
ReplyDeleteबढिया.... सीधे दिल को छूने वाली....
ReplyDeleteExcellent!
ReplyDeleteVinnie
Excellent!
ReplyDeleteमेरा नाम शीतल बैरवा है मैं मधुरिमा पर कविता कहानियां भेजना चाहती हूं मैं कैसे भेजू
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