इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Tuesday, February 25, 2014

ओक में भर लिया था
तुम्हारा प्रेम
मैंने,
रिसता रहा बूँद-बूँद
उँगलियों की दरारों के बीच से |
बह ही जाना था उसे
प्रेम जो था !

रह गयी है नमी सी
हथेलियों पर
और एक भीनी
जानी पहचानी महक
प्रेम की |

ढांपती हूँ जब  कभी
हथेलियों से
अपना उदास चेहरा,
मुस्कुरा उठती हैं तुम्हारी स्मृतियाँ
और मैं भी !

कि लगता है
वक्त के साथ
रिस जाती हैं धीरे धीरे  
मन की दरारों से
पनीली उदासियाँ भी |
~अनुलता ~

36 comments:

  1. आप अच्छा व दिल से लिखती हैं ...

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  2. तो रिस जाने दो इन पनीली उदासियों को मन की दरारों से कि खिल उठे महकती यादों के साथ तुम्हारी प्यारी सी मुस्कान ...... बहुत खूबसूरत रचना

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  3. सुन्दर ... गीत है आ. अनुलता जी ...


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  4. पनीली उदासियों के बह जाने पर
    रह जाती है नमी सी
    फ़िर से कहीं
    किसी दरार में छुपकर
    और फ़िर प्रेम
    बहने लगता है
    ओक में भरा हुआ
    वही महक लेकर
    तुम्हारी स्म्रॄतियों की
    और ...
    मुस्कुरा उठती हूँ मैं
    उदासी मे भी.....

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    1. वाह दी...सच, दिल से कमेंट किया है ...दिल से शुक्रिया !!

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (26-02-2014) को लेकिन गिद्ध समाज, बाज को गलत बताये; चर्चा मंच 1535 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. आपका बहुत आभार शास्त्री जी.

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  6. प्रेम रस से ओतप्रोत सुन्दर रचना !
    न्यू पोस्ट उम्मीदवार का चयन
    New post शब्द और ईश्वर !!!

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  7. प्रेम रिसता नहीं
    शायद कभी ?
    जजबातों के सर्द होते
    उँगलियों के पोड़ में
    जम जाती है ........सुन्दर

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  8. काश तुमने ओक में नहीं
    हृदय में भरा होता वो प्रेम
    रिसता नहीं तब उंगलियों से
    भरा रहता आत्मा तक
    न होती उदास
    न ढाँपती चेहरे को

    प्रेम का आनन्द
    फैल जाता एक प्रकाश की तरह..
    /
    बहुत ही सुन्दरता से लिखा है आपने. कविता कोमलता से भरी है और प्रेम के भाव सम्प्रेषित हो रहे हैं स्पष्ट!!

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  9. बहुत मासूम सा लिखा है ,दिल धड़कना भूल गया ....... सस्नेह :)

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  10. प्रेम फिसल गया जैसे वैसे ही रिस गयी उदासियाँ।
    हृदय की जो कोर भीगी थी , वह न सूखी होगी जो अंगुलियां ढांपते कभी स्मृतियों सी महसूस होती है।
    खूबसूरत भाव !

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  11. वाह अनु ..एक बार फिर दिल को छुआ

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  12. जी हाँ वाकई वक्त बहुत बड़ा मरहम होता है

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  13. वाह बहुत सुंदर !

    प्रेम ही नहीं
    बहुत कुछ
    और भी है
    जिसके रिसने
    का पता नहीं
    चल पाता है
    सूखी पत्तियाँ
    पतझड़ के
    समय रेत के
    साथ उसी तरह
    उड़्ती हैं जैसे
    पनीला प्रेम
    रिस्ता है
    नमी महसूस
    तो होती है
    कम से कम
    हवा में उड़ा
    हुआ कहाँ
    कहीं दिखता है !

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    Replies
    1. बहुत सुन्दर बात कही सुशील जी..
      आभार!

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  14. man chu liya di aapny.............etny sundar bhav k liye shukriya...............

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  15. मेरी 'उदासियों' की 'हाफ लाइफ' तुम्हारी 'स्मृतियों का अंतराल' भर ही तो है |

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  16. स्मृतियों में प्रेम यानि उदासी भी, मुस्कराहट भी ...... पर सब आत्मा से रिसने लगता है.. कोई लाख इसे रोकना चाहे...

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  17. वाह ........... अनुपम भाव संयोजन
    भावमय करती अभिव्‍यक्ति

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  18. दिल को छूते बहुत कोमल अहसास...

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  19. रिस जाना,बह जाना पर जो भी हो सब कह जाना
    प्रेम की यही भाषा तो अनूठी है!

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  20. आपका शब्द चातुर्य बेमिसाल है...शानदार रचना।।

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  21. सीधा अनु के दिल से .........कनेक्शन !

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  22. कि लगता है
    वक्त के साथ
    रिस जाती हैं धीरे धीरे
    मन की दरारों से
    पनीली उदासियाँ भी
    bahut sunder likha hai aur shatad sahi bhi
    rachana

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  23. ढांपती हूँ जब कभी
    हथेलियों से
    अपना उदास चेहरा,
    मुस्कुरा उठती हैं तुम्हारी स्मृतियाँ
    और मैं भी !

    बहुत ही अच्छी कविता |

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  24. जीवन में प्रेम के उदात्त स्वरूप का निरूपण करती सुन्दर कविता !

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  25. like always... beautifully expressed

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  26. बेहद कोमल रचना

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  27. जीवन के गहरे पल प्रेम के बिना तो हो ही नहीं सकते ...

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  28. ढांपती हूँ जब कभी
    हथेलियों से
    अपना उदास चेहरा,
    मुस्कुरा उठती हैं तुम्हारी स्मृतियाँ
    और मैं भी !

    बहुत सुन्दर ...बहुत कोंमल रचना ....

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  29. बहुत ही प्रशसनीय प्रस्तुति। मेरा मनोबल बढाने के लिए आभार।

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  30. बहुत कुछ रिस जाता है वक्त की साथ!

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