ओक में भर लिया था
तुम्हारा प्रेम
मैंने,
रिसता रहा बूँद-बूँद
उँगलियों की दरारों के बीच से |
बह ही जाना था उसे
प्रेम जो था !
रह गयी है नमी सी
हथेलियों पर
और एक भीनी
जानी पहचानी महक
प्रेम की |
ढांपती हूँ जब कभी
हथेलियों से
अपना उदास चेहरा,
मुस्कुरा उठती हैं तुम्हारी स्मृतियाँ
और मैं भी !
कि लगता है
वक्त के साथ
रिस जाती हैं धीरे धीरे
मन की दरारों से
पनीली उदासियाँ भी |
~अनुलता ~
तुम्हारा प्रेम
मैंने,
रिसता रहा बूँद-बूँद
उँगलियों की दरारों के बीच से |
बह ही जाना था उसे
प्रेम जो था !
रह गयी है नमी सी
हथेलियों पर
और एक भीनी
जानी पहचानी महक
प्रेम की |
ढांपती हूँ जब कभी
हथेलियों से
अपना उदास चेहरा,
मुस्कुरा उठती हैं तुम्हारी स्मृतियाँ
और मैं भी !
कि लगता है
वक्त के साथ
रिस जाती हैं धीरे धीरे
मन की दरारों से
पनीली उदासियाँ भी |
~अनुलता ~
आप अच्छा व दिल से लिखती हैं ...
ReplyDeleteतो रिस जाने दो इन पनीली उदासियों को मन की दरारों से कि खिल उठे महकती यादों के साथ तुम्हारी प्यारी सी मुस्कान ...... बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteसुन्दर ... गीत है आ. अनुलता जी ...
ReplyDeleteपनीली उदासियों के बह जाने पर
ReplyDeleteरह जाती है नमी सी
फ़िर से कहीं
किसी दरार में छुपकर
और फ़िर प्रेम
बहने लगता है
ओक में भरा हुआ
वही महक लेकर
तुम्हारी स्म्रॄतियों की
और ...
मुस्कुरा उठती हूँ मैं
उदासी मे भी.....
वाह दी...सच, दिल से कमेंट किया है ...दिल से शुक्रिया !!
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (26-02-2014) को लेकिन गिद्ध समाज, बाज को गलत बताये; चर्चा मंच 1535 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका बहुत आभार शास्त्री जी.
Deleteप्रेम रस से ओतप्रोत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteन्यू पोस्ट उम्मीदवार का चयन
New post शब्द और ईश्वर !!!
प्रेम रिसता नहीं
ReplyDeleteशायद कभी ?
जजबातों के सर्द होते
उँगलियों के पोड़ में
जम जाती है ........सुन्दर
काश तुमने ओक में नहीं
ReplyDeleteहृदय में भरा होता वो प्रेम
रिसता नहीं तब उंगलियों से
भरा रहता आत्मा तक
न होती उदास
न ढाँपती चेहरे को
प्रेम का आनन्द
फैल जाता एक प्रकाश की तरह..
/
बहुत ही सुन्दरता से लिखा है आपने. कविता कोमलता से भरी है और प्रेम के भाव सम्प्रेषित हो रहे हैं स्पष्ट!!
बहुत मासूम सा लिखा है ,दिल धड़कना भूल गया ....... सस्नेह :)
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत सुंदर रचना...!
ReplyDeleteRECENT POST - फागुन की शाम.
प्रेम फिसल गया जैसे वैसे ही रिस गयी उदासियाँ।
ReplyDeleteहृदय की जो कोर भीगी थी , वह न सूखी होगी जो अंगुलियां ढांपते कभी स्मृतियों सी महसूस होती है।
खूबसूरत भाव !
वाह अनु ..एक बार फिर दिल को छुआ
ReplyDeleteजी हाँ वाकई वक्त बहुत बड़ा मरहम होता है
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर !
ReplyDeleteप्रेम ही नहीं
बहुत कुछ
और भी है
जिसके रिसने
का पता नहीं
चल पाता है
सूखी पत्तियाँ
पतझड़ के
समय रेत के
साथ उसी तरह
उड़्ती हैं जैसे
पनीला प्रेम
रिस्ता है
नमी महसूस
तो होती है
कम से कम
हवा में उड़ा
हुआ कहाँ
कहीं दिखता है !
बहुत सुन्दर बात कही सुशील जी..
Deleteआभार!
man chu liya di aapny.............etny sundar bhav k liye shukriya...............
ReplyDeleteमेरी 'उदासियों' की 'हाफ लाइफ' तुम्हारी 'स्मृतियों का अंतराल' भर ही तो है |
ReplyDeleteस्मृतियों में प्रेम यानि उदासी भी, मुस्कराहट भी ...... पर सब आत्मा से रिसने लगता है.. कोई लाख इसे रोकना चाहे...
ReplyDeleteवाह ........... अनुपम भाव संयोजन
ReplyDeleteभावमय करती अभिव्यक्ति
दिल को छूते बहुत कोमल अहसास...
ReplyDeleteरिस जाना,बह जाना पर जो भी हो सब कह जाना
ReplyDeleteप्रेम की यही भाषा तो अनूठी है!
आपका शब्द चातुर्य बेमिसाल है...शानदार रचना।।
ReplyDeleteसीधा अनु के दिल से .........कनेक्शन !
ReplyDeleteकि लगता है
ReplyDeleteवक्त के साथ
रिस जाती हैं धीरे धीरे
मन की दरारों से
पनीली उदासियाँ भी
bahut sunder likha hai aur shatad sahi bhi
rachana
ReplyDeleteढांपती हूँ जब कभी
हथेलियों से
अपना उदास चेहरा,
मुस्कुरा उठती हैं तुम्हारी स्मृतियाँ
और मैं भी !
बहुत ही अच्छी कविता |
जीवन में प्रेम के उदात्त स्वरूप का निरूपण करती सुन्दर कविता !
ReplyDeletelike always... beautifully expressed
ReplyDeleteबेहद कोमल रचना
ReplyDeleteजीवन के गहरे पल प्रेम के बिना तो हो ही नहीं सकते ...
ReplyDeleteवाह ...........
ReplyDeletebehad sundar!
ReplyDeleteढांपती हूँ जब कभी
ReplyDeleteहथेलियों से
अपना उदास चेहरा,
मुस्कुरा उठती हैं तुम्हारी स्मृतियाँ
और मैं भी !
बहुत सुन्दर ...बहुत कोंमल रचना ....
बहुत ही प्रशसनीय प्रस्तुति। मेरा मनोबल बढाने के लिए आभार।
ReplyDeleteबहुत कुछ रिस जाता है वक्त की साथ!
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