आज एक उदास दिन था.....
कि मन की उदासियों को ज़रा आराम मिला....जब शाम को मार्च की अहा ! ज़िन्दगी हाथ में आयी!
इस बार की अहा! ज़िन्दगी की थीम थी जीवन में सुख की सीढियाँ !
और एक सूत्र "संवेदना" की बागडोर पत्रिका ने हमारे हाथ में सौपीं.
आप भी पढ़िए अहा! ज़िन्दगी में प्रकाशित मेरा आलेख !!
~संवेदनाएं खोलतीं सुख के द्वार~
महान कवि "एडगर एलन पो " के मुताबिक सौन्दर्य जब अपने चरमोत्कर्ष पर होता है तब हर संवेदनशील आत्मा,निरपवाद रूप से उत्तेजित और भावुक होकर रो पड़ती है | और इसका सीधा कारण है सुख की पराकाष्ठा का अनुभव !
इसी तरह समाज के प्रति संवेदना हमें सभ्य बनाती है | किसी सामाजिक कार्य को करके,वृद्धाश्रमों और अनाथालयों में अपनी सेवाएँ देकर मनुष्य अपार सुख पाता है और इस सुख की लालसा उसे बेहतर इंसान बनाती है | इस बात को मदर टेरेसा या बाबा आमटे के जीवन से समझा जा सकता है |
संगीत एक ऐसी विधा है जो सबको अपनी ओर खींचती है, मगर जो संगीत के प्रति संवेदनशील हैं वही महान संगीतज्ञ बने और इसकी साधना कर सुखी हुए | जैसे बाँस की पोली नली को फूंक कर आग तो कोई भी प्रज्वलित कर सकता है मगर इसी पोले बाँस को बांसुरी के रूप में विकसित कर अद्भुत तान छेड़ कर अपनी आत्मा को सुख के सागर में डुबोने की संवेदना और क्षमता सबमें नहीं होती | हर कलाकार का संवेदनशील होना बहुत ज़रूरी है | कला निश्चित तौर पर रूहानी और जज़्बाती सुख देती है |
कि मन की उदासियों को ज़रा आराम मिला....जब शाम को मार्च की अहा ! ज़िन्दगी हाथ में आयी!
इस बार की अहा! ज़िन्दगी की थीम थी जीवन में सुख की सीढियाँ !
और एक सूत्र "संवेदना" की बागडोर पत्रिका ने हमारे हाथ में सौपीं.
आप भी पढ़िए अहा! ज़िन्दगी में प्रकाशित मेरा आलेख !!
~संवेदनाएं खोलतीं सुख के द्वार~
महान कवि "एडगर एलन पो " के मुताबिक सौन्दर्य जब अपने चरमोत्कर्ष पर होता है तब हर संवेदनशील आत्मा,निरपवाद रूप से उत्तेजित और भावुक होकर रो पड़ती है | और इसका सीधा कारण है सुख की पराकाष्ठा का अनुभव !
अर्थात संवेदना हमारे जीवन में सुख का सहज कारण बनती है और हमें रूहानी
तृप्ति प्रदान करती है | जैसे रंग और खुशबू के प्रति संवेदनशील तितली फूल
से मधु पीकर तृप्त होती है |
संवेदनाएं मनुष्य को सुन्दर और सरल बनाती हैं,प्रेम करने का अवसर देती है जो स्वतः सुख का कारण है |
मिसाल के तौर पर यदि हम प्रकृति की ओर संवेदनशील हैं तो अपने आस पास
वृक्ष लगायेंगे,वाटिका में फूल रोपेंगे,और पर्यावरण की रक्षा करेंगे,और
प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ये हमें ही सुखी करेगा | मन की ये संवेदना हमें
आसमान की ओर तकने का,तारे गिनने का, चाँद और हरसिंगार पर कविता रचने का
सुख देती है |
इसी तरह समाज के प्रति संवेदना हमें सभ्य बनाती है | किसी सामाजिक कार्य को करके,वृद्धाश्रमों और अनाथालयों में अपनी सेवाएँ देकर मनुष्य अपार सुख पाता है और इस सुख की लालसा उसे बेहतर इंसान बनाती है | इस बात को मदर टेरेसा या बाबा आमटे के जीवन से समझा जा सकता है |
मानव में संवेदना का गुण ही उसे परिवार की ओर अग्रसर है, वो
संतानोत्पत्ती करता है और जीवन भर बच्चों के पालन-पोषण,उनके भविष्य को
सुरक्षित करके सुख पाता है | यहाँ उसका कोई स्वार्थ नहीं होता | वैसे ही
पशुओं में भी यही प्रवृत्ति देखी जा सकती है |नेह के पुष्प संवेदना की डोर
से ही जुड़ कर रिश्तों की माला बनाते हैं |
संगीत एक ऐसी विधा है जो सबको अपनी ओर खींचती है, मगर जो संगीत के प्रति संवेदनशील हैं वही महान संगीतज्ञ बने और इसकी साधना कर सुखी हुए | जैसे बाँस की पोली नली को फूंक कर आग तो कोई भी प्रज्वलित कर सकता है मगर इसी पोले बाँस को बांसुरी के रूप में विकसित कर अद्भुत तान छेड़ कर अपनी आत्मा को सुख के सागर में डुबोने की संवेदना और क्षमता सबमें नहीं होती | हर कलाकार का संवेदनशील होना बहुत ज़रूरी है | कला निश्चित तौर पर रूहानी और जज़्बाती सुख देती है |
महान संगीतकार "जैसन मरज़ " के कहा है- दुःख की लड़ाई में संगीत सबसे
बड़ा हथियार है,और संवेदनाएं ही मनुष्य को कला की ओर झुकाती हैं और
अंततोगत्वा सुखी करती हैं |
कुछ लोग स्वयं के
प्रति भी संवेदनशील होते है और दूसरे उनके बारे में क्या सोचते हैं,क्या
कहते हैं इसकी उन्हें फ़िक्र रहती हैं इसलिए वे अपने बाहरी रंग-रूप,सेहत और
बोल-चाल भाषा का बहुत ख़याल रखते हैं | ऐसे लोग आत्म-मुग्ध या नार्सिसिस्ट
कहे जा सकते हैं मगर ये अपने आप में सुखी और संतुष्ट होते हैं |
इसी तरह मनुष्य अपनी संस्कृति के प्रति संवेदनशील रहता है विशेष रूप
से हम भारतीय,जो अपनी संस्कृति को पूर्वजों की धरोहर के रूप में सहेजे रखना
चाहते हैं | हम आज भी हमारे शास्त्रों के मुताबिक कार्य करते हैं ,जैसे
बीमार व्यक्ति के लिए क्या पथ्य है क्या अपथ्य, कौन से कार्य कब किये जाएँ,
ये घर में नानी- दादी तय करतीं हैं और जो फायदेमंद भी है और सुखकर भी |
वैसे ही हमारी ईश्वर के प्रति आस्था, हमारा तीज- त्योहारों को मनाना आदि भी
हमारी संवेदनशीलता का प्रतीक है और ये हमारे नीरस जीवन को विभिन्न रंगों
से भरता है | दूसरे धर्मों के प्रति संवेदनशीलता हमें एक दूसरे के करीब
लाती है और एक बेहतर इंसान होने का गर्व हम स्वयं पर कर सकते हैं |
इस मिथ्याबोध को हटाना होगा कि संवेदनशीलता मानसिक
दुर्बलता है | दरअसल ये प्रेम,दया,आदर और खुशी जैसे भावों को लेने और देने
का एक दोतरफ़ा मार्ग है |
चार्ल्स डिकेंस कहते हैं "मैं सहृदय और
संवेदनशील लोगों के बारे में इतना सोचता हूँ कि उन्हें कभी आहत नहीं कर
सकता |" और सचमुच ये बहुत सुखद अनुभूति है |
अनुलता राज नायर
बहुत बधाई अनु...
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक आलेख!!
सस्नेह...
बहुत खूब ।
ReplyDeleteवैसे सँवेदनाओं की वेदना
भी तो होती है कहीं कभी :)
सही और अच्छी बात लिखी है आपने।
ReplyDeleteसंवेदना हो तो अहा! जिंदगी
संवेदना न हो, खाक जिंदगी।
जब संवेदना के स्वर मिलने लगे
संभावना के फूल भी खिलने लगे।
सुन्दर सार्थक आलेख...
ReplyDeleteसंवेदना ही इंसान को पत्थर या जानवर होने से रोक सकती है !
ReplyDeleteसार्थक आलेख !
वाकई 'समवेदनायें ही खोलती है सुख का द्वारा' यदि यह न हो तो मनुष्य इंसान कहलाने लायक ही ना रहे। बहुत अच्छा लिखा है आपने बहुत बहुत बधाई सहित शुभकामनायें।
ReplyDeleteसादर~
संवेदना ही इंसान को इंसान बनाये रखती हैं उम्दा आलेख
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति को आज कि गूगल इंडोर मैप्स और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeletesundar aalekh badhai ..anu jee...
ReplyDeleteप्रेरक लेख...
ReplyDeleteसार्थक आलेख
ReplyDeleteसभी संवेदनाएं समेटे हुए सार्थक आलेख है अनु .
ReplyDeleteसंवेदना ही इंसान के वजूद को बचाए रहती है। बहुत ही सुदर अभिव्यक्ति। मेरे नए पोस्ट Dreams also have life पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteवाह ! बधाई :)
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई अनु जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लेख .... संवेदनाओं से भरा इन्सान कमज़ोर नहीं होता .... अहा ज़िन्दगी में लेख प्रकाशित होने पर हार्दिक बधाई .
ReplyDeleteबहुत सुंदर आलेख.
ReplyDeleteशुभकामनाएँ !
नई पोस्ट : पंचतंत्र बनाम ईसप की कथाएँ
इस मिथ्याबोध को हटाना होगा कि संवेदनशीलता मानसिक दुर्बलता है | दरअसल ये प्रेम,दया,आदर और खुशी जैसे भावों को लेने और देने का एक दोतरफ़ा मार्ग है |....
ReplyDeletekeep it up.. my best wishes......
चार्ल्स डिकेंस कहते हैं "मैं सहृदय और संवेदनशील लोगों के बारे में इतना सोचता हूँ कि उन्हें कभी आहत नहीं कर सकता |" और सचमुच ये बहुत सुखद अनुभूति है |
ReplyDeleteमेरा दिल इस बात की गवाही देता है ..........शुभकामनायें !
संवेदनहीनता मनुष्य को कठोर और रुक्ष बनादेती है ,ये सब हम अपने चारो और देख ही रहे हैं .....लगता है पूरा
ReplyDeleteमनुष्य समाज इस और चल पडा है .....इसके दूरगामी परिणाम भी हमें ही भुगतने होंगे ....एक संवेदनाहीन समाज को क्या कीमत चुकानी पड़ेगी ये तो समय ही बतायेगा ...इस सार्थक लेख के लिए बधाई
और आभार.....
बहुत सुन्दर आलेख...बधाई!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर आलेख सृजन के लिए ...! बधाई
ReplyDeleteRECENT POST - पुरानी होली.
बधाई ....इस सुंदर आलेख के लिए अनु जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। । होली की हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आलेख। मेरे नए पोस्ट "DREAMS ALSO HAVE LIFE" पर आपका इंतजार रहेगा।
ReplyDeletebahut hi vadiya lekh............badhai
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई इस विस्तृत और गहन लेख की ...
ReplyDeleteसच है की संवेदनाएं ही इंसान को जीवित रखती हैं ... ये दुर्बलता नहीं बल्कि जीवन की ऊर्जा है ...
बधाई ! बधाई ! ! बधाई ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! !
ReplyDeleteबहुत - बहुत बधाई :)
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