बहुत तकलीफ देह था
ख़्वाबों का टूटना
उम्मीदों का मुरझाना
आकांक्षाओं का छिन्न-भिन्न होना
हर ख्वाब पूरे नहीं होते...
हर आशा और उम्मीद फूल नहीं बनती
सोच समझ कर देखे जाने चाहिए ख्वाब और पाली जानी चाहिये उम्मीदें....
सो अब तय कर दी है उसने
अपनी आकांक्षाओं की सीमा
और बाँध दी हैं हदें
ख़्वाबों की पतंग भी कच्ची और छोटी डोर से बांधी..
ऐसा कर देना आसान था बहुत
सीमाओं पर कंटीली बाड़ बिछाने में समाज के हर आदमी ने मदद की...
ख़्वाबों की पतंग थामने भी बहुत आये
औरत को अपना आकाश सिकोड़ने की बहुत शाबाशी मिली.....
३०/७/२०१३
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
दोस्तों अगर आपको मेरी कविताएँ और मेरा ब्लॉग पसंद है तो मुझे इस प्रतियोगिता में जितायें...आपको बस इतना करना है कि link पर जाएँ और "recommend" पर click कर दें...आपके सन्देश भी वहां दर्ज किये जा सकते हैं...
आभार....
~अनु~
http://www.indiblogger.in/iba/entry.php?edition=1&entry=55522
ख़्वाबों का टूटना
उम्मीदों का मुरझाना
आकांक्षाओं का छिन्न-भिन्न होना
हर ख्वाब पूरे नहीं होते...
हर आशा और उम्मीद फूल नहीं बनती
सोच समझ कर देखे जाने चाहिए ख्वाब और पाली जानी चाहिये उम्मीदें....
सो अब तय कर दी है उसने
अपनी आकांक्षाओं की सीमा
और बाँध दी हैं हदें
ख़्वाबों की पतंग भी कच्ची और छोटी डोर से बांधी..
ऐसा कर देना आसान था बहुत
सीमाओं पर कंटीली बाड़ बिछाने में समाज के हर आदमी ने मदद की...
ख़्वाबों की पतंग थामने भी बहुत आये
औरत को अपना आकाश सिकोड़ने की बहुत शाबाशी मिली.....
३०/७/२०१३
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
दोस्तों अगर आपको मेरी कविताएँ और मेरा ब्लॉग पसंद है तो मुझे इस प्रतियोगिता में जितायें...आपको बस इतना करना है कि link पर जाएँ और "recommend" पर click कर दें...आपके सन्देश भी वहां दर्ज किये जा सकते हैं...
आभार....
~अनु~
http://www.indiblogger.in/iba/entry.php?edition=1&entry=55522
औरत को अपना आकाश सिकोड़ने की बहुत शाबाशी मिली.....:( behtreen ..sacche shbad
ReplyDeleteसुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteअपनी आकांक्षाओं की सीमाएं
ReplyDeleteऔर बाँध दी हैं हदें
ख़्वाबों की पतंग भी कच्ची और छोटी डोर से बांधी..बहुत सुन्दर शब्दों में बाँधा है अपने मन के भावो को..बहुत खूब ,अनु..
सुन्दर रचना अनु |
ReplyDeleteसीमाओं पर कंटीली बाड़ बिछाने में समाज के हर आदमी ने मदद की...
ReplyDeleteख़्वाबों की पतंग थामने भी बहुत आये -
बहत सुन्दर अभिव्यक्ति
latest post हमारे नेताजी
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
.....जैसे आकाश छीन लिए जाने तक का सम्पूर्ण घटनाक्रम लिख गयी लेखनी!
ReplyDeleteबहुत ही प्रभावशाली रचना.
ReplyDeleteरामराम.
क्या हुआ ??
ReplyDeleteसभी औरत की एक ही कहानी
इसलिए लगती जानी पहचानी
हार्दिक शुभकामनायें !!
बढ़िया-
ReplyDeleteबहुत गहरी बात
ReplyDelete"हर ख्वाब पूरे नहीं होते...
ReplyDeleteहर आशा और उम्मीद फूल नहीं बनती"
बिलकुल सही बात कही आपने।
सादर
बहुत तकलीफदेह था
ReplyDeleteख़्वाबों का टूटना
उम्मीदों का मुरझाना
आकांक्षाओं का छिन्न-भिन्न होना
हर ख्वाब पूरे नहीं होते...
हर आशा और उम्मीद फूल नहीं बनती
सही कहा.....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....
सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteऔरत मन के ताने बाने ...बहुत सुन्दर अनु !!
ReplyDeletevery nice...
ReplyDeleteऔरत को अपना आकाश सिकोड़ने की बहुत शाबाशी मिली.....
ReplyDelete..मार्मिक सत्य को अभिव्यक्त करती कविता।
सशक्त रचना...
ReplyDeleteबेहतरीन...
:-)
बहुत मार्मिक ........ बहुत खूबसूरत
ReplyDeleteऔरत को अपना आकाश सिकोड़ने की बहुत शाबाशी मिली
..... इतनी कि मन भीगा रहा उम्र-भर
हुआ तो यही है....बहुत खूब
ReplyDeleteसमाज, परिवार और नारी मन ...
ReplyDeleteसबके कल्याण हेतु एक स्त्री बहुत कुछ त्याग करती है
और कभी कभी विवशता में भी
बहुत सुन्दर, मार्मिक !
bahut sundar rachna ...........shubhkamnaayen anu ji
ReplyDeleteबहुत सुंदर सशक्त रचना,,,
ReplyDeleteRECENT POST: तेरी याद आ गई ...
बहुत ही उत्तम कविता
ReplyDeleteअति उत्तम कविता
ReplyDeleteऐसा कर देना आसान था बहुत
ReplyDeleteसीमाओं पर कंटीली बाड़ बिछाने में समाज के हर आदमी ने मदद की...
ख़्वाबों की पतंग थामने भी बहुत आये...यह तो होना ही था आखिर कैसे भूल गयी वो कि यह अधिकार तो समाज के ठेकेदारों ने औरत को दिया ही नहीं कभी...प्रभाविशाली प्रस्तुति...
ख्वाबो के टूटने से बहुत दर्द होता है , बिलकुल सही कहा
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_29.html
hridaya ko jhakjhorti hui aur behad hi sunder dhang se bhvnaon ki marmikta ko adhaar detihui ek sarthak rachna...abhar diii...
ReplyDeleteऔरत को सिकुड़ें जाने पर मिलती रही प्रशंसा !
ReplyDeleteसच कहा !
औरत को अपना आकाश सिकोड़ने की बहुत शाबाशी मिली.....
ReplyDeleteऐसा ही होता है
अति सुंदर...........
ReplyDeleteऔरत को अपना आकाश सिकोड़ने की बहुत शाबाशी मिली.....
ReplyDeleteकितनी बड़ी सच्चाई है इस एक पंक्ति में ...
ख़्वाबों की पतंग भी कच्ची और छोटी डोर से बांधी..
ReplyDeleteयथार्थ से परिचित कराती हुई रचना।
bahut sundar rachna.............shubhkamnaye anuji.
ReplyDeleteपुरुष समाज और दे भी क्या सकता है छदम शाबासी के ... अपनी सत्ता का विस्तार दूसरे की सत्ता सिकोड़ के ही कर सकता है वो ...
ReplyDeleteसटीक रचना
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति। आभार।।
ReplyDeleteनये लेख : ब्लॉग से कमाई का एक बढ़िया साधन : AdsOpedia
प्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक : डॉ . सलीम अली
अनु जी : जैसे कुशल योद्धा हर बार पैंतरा बदल कर प्रहार करता है वैसे इस बार आप ने अलग रीती से रचना रची है. इडियम सीधे लगते है पर बल खाते हुए आँख मिलाते है. वेदना सनातन है और शब्द पुरातन है फिर भी आप पीड़ा की आँच कन्वे कर पाए हो .....सीमा ओं पर कंटीली बाड़ बिछाने में समाज के हर आदमी ने मदद की...
ReplyDeleteख़्वाबों की पतंग थामने भी बहुत आये: यह दोषभावना कब्र तक का बोजा है.
औरत को अपना आकाश सिकोड़ने की बहुत शाबाशी मिली.....
ReplyDeletebahut khoob ...!
अपनी आकांक्षाओं की सीमा
ReplyDeleteऔर बाँध दी हैं हदें
ख़्वाबों की पतंग भी कच्ची और छोटी डोर से बांधी।
एक औरत के सिवा और कौन कर सकेगा ऐसा…
औरत को सीमाओं में बाँध कर आदमी ने सारी दुनिया अपने अधिकार में कर ली!
ReplyDeleteऔरत को अपना आकाश सिकोड़ने की बहुत शाबाशी मिली....
ReplyDeleteनि:शब्द कर दिया आपने तो ... इस पंक्ति में गज़ब !!
औरत को अपना आकाश सिकोड़ने की बहुत शाबाशी मिली.....
ReplyDeleteअनु, इस एक पंक्ति में रचना का सारांश आ गया है
बहुत सटीक बात कही है !
बहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteबहुत सटीक और प्रभावी अभिव्यक्ति...
ReplyDeletekhababon ke patang thamne :)
ReplyDeletesundhar shabd chitra
shubhkamnayen........Indiblogger award ke liye :)
The caged bird sings with a fearful trill
ReplyDeleteof things unknown but longed for still
and his tune is heard on the distant hill
for the caged bird sings of freedom.
The free bird thinks of another breeze
and the trade winds soft through the sighing trees
and the fat worms waiting on a dawn-bright lawn and he names the sky his own.
But a caged bird stands on the grave of dreams
his shadow shouts on a nightmare scream
his wings are clipped and his feet are tied so he opens his throat to sing.
beautiful and soulful words jyoti...
Deletethanks a lot!!
बेहद सशक्त पंक्तियां ... आभार इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति के लिए
ReplyDeleteThis touches you, for you know it's the harsh reality.
ReplyDeleteसशक्त भावों से अंतर्पुरित अच्छी रचना ..
ReplyDeleteअंतिम लाईने ....कटु सत्य हैं |
ReplyDeleteनई पोस्ट:-
“सफल होना कोई बडो का खेल नही बाबू मोशाय ! यह बच्चों का खेल हैं”!{सचित्र}
“जिंदगी {आपसे कुछ कह रही हैं ....}
shreshth rchnaon men shreshth rrchna.
ReplyDeletekaash kuchh seemaye ant heen hoti.
to ye bhrm n tootataa.
लाजबाव प्रस्तुति।।।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता, अपनी हदें जब नारी ने तय कर ली तो उसे और भी समेटने के लिए पुरुष आगे आ गया। आपने इतने सुंदर और भावपूर्ण तरीके से इसे गूंथा है कि नारी की पूरी तस्वीर कुल पंक्तियों की कविता में समा गई है।
ReplyDeleteनारी मन की खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसदियों से औरतों की यही नियति रही है ....खूब उकेरा इस दर्द को...अनु
ReplyDeleteऔरत का संसार जितना सीमित कर देगा ,आदमी उतनी ही छूट पाता जाएगा !
ReplyDeleteसीमाओं पर कंटीली बाड़ बिछाने में समाज के हर आदमी ने मदद की...
ReplyDeleteख़्वाबों की पतंग थामने भी बहुत आये
औरत को अपना आकाश सिकोड़ने की बहुत शाबाशी मिली.....स्त्री की पीड़ा को अभिव्यक्त करती एक प्रभावशाली रचना!