चेहरे पर पड़ती बूँदें बारिश की
मानों एक बोसा
संग हवा के सरसराता
छू कर निकला हो गालों को....
और उस रेशमी स्पर्श ने
बेवक्त ही
खोल दिया पिटारा खुरदुरी यादों का
जिन्हें समेटते सहेजते छिले जाते हैं
पोर मेरी उँगलियों के..
बूँदे चाहे बादलों से टपकी हों
या मन के घावों से रिसी हों,
अपने पास रखती हैं चोर चाभी
यादों की संदूकची की.....
(जाने हम क्यूँ सहेजे रखते हैं इन पिटारोंको/संदूकों को...और हर पल डरते हैं उनके खोले जाने से...मेरे ख़याल से कुछ एहसास ऐसे होते हैं जिनसे दिल कभी पूरी तरह आज़ाद नहीं हो सकता या शायद होना ही नहीं चाहता.....)
~अनु ~
मानों एक बोसा
संग हवा के सरसराता
छू कर निकला हो गालों को....
और उस रेशमी स्पर्श ने
बेवक्त ही
खोल दिया पिटारा खुरदुरी यादों का
जिन्हें समेटते सहेजते छिले जाते हैं
पोर मेरी उँगलियों के..
बूँदे चाहे बादलों से टपकी हों
या मन के घावों से रिसी हों,
अपने पास रखती हैं चोर चाभी
यादों की संदूकची की.....
(जाने हम क्यूँ सहेजे रखते हैं इन पिटारोंको/संदूकों को...और हर पल डरते हैं उनके खोले जाने से...मेरे ख़याल से कुछ एहसास ऐसे होते हैं जिनसे दिल कभी पूरी तरह आज़ाद नहीं हो सकता या शायद होना ही नहीं चाहता.....)
~अनु ~
बहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया भाव-
ReplyDeleteसुन्दर प्रवाह-
सादर-
चेहरे पर पड़ती बूँदें बारिश की
ReplyDeleteमानों एक बोसा
संग हवा के सरसराता
छू कर निकला हो गालों को....
और उस रेशमी स्पर्श ने
बेवक्त ही
खोल दिया पिटारा खुरदुरी यादों का
जिन्हें समेटते सहेजते छिले जाते हैं
पोर मेरी उँगलियों के..
लाजवाब
लाजवाब
ReplyDeleteबूँदे चाहे बादलों से टपकी हों
ReplyDeleteया मन के घावों से रिसी हों,
अपने पास रखती हैं चोर चाभी
यादों की संदूकची की.....
शायद यही होता है कि हम कुछ यादों को जाने अनजाने सीने में जिंदा रखते हैं. या ये भी हो सकता है कि वो यादें हमारा पीछा नही छोडती हों. बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति.
रामराम.
ReplyDeleteबुँदे बन जाती है बोसा..........बहुत खूब !!
lazwab
ReplyDeleteलाजवाब रचना है अनुजी
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (06-07-2013) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/ चर्चा मंच <a href=" पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मखमली अहसास !
ReplyDeleteफिर कुछ उदासी सी।
जिंदगी का मिला जुला रूप।
बहुत नाज़ुक ..........
ReplyDeleteवाह ..... मर्म को छूती बात
ReplyDeleteबहुत सुंदर..आपकी हर कविता याद कर लेने को जी चाहता है...
ReplyDeleteये तो मनुष्य की प्रवृति है अपने कुछ अहसासों को अपने ही अंदर संजोए रखना चहता है..कोमल भाव .शुभकामनाएं.
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरती से मन के भावों को शब्दों का जामा पहनाया है...अनु जी.
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरती से मन के भावों को शब्दों का जामा पहनाया है...अनु जी.
ReplyDeleteकुछ एहसास दिल से निकाले भी नही निकलते , शुभकामनाये , यहाँ भी पधारे
ReplyDeletehttp://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_5.html
अनु जी : बहुत खूबसूरत. आप की भावुकता लम्हों को चुम्बक की तरह पकड़ लेती है और आप की सृजनता उन लम्हों को रचना में स्थानातारिंत करती है.
ReplyDeleteअनु जी : बहुत खूबसूरत. आप की भावुकता लम्हों को चुम्बक की तरह पकड़ लेती है और आप की सृजनता उन लम्हों को रचना में स्थानातारिंत करती है.
ReplyDeleteशुभ प्रभात दीदी
ReplyDeleteबोसा
स्पर्श किसी का भी हो.... या तो खुरदरी यादें या मखमली यादें.... याद तो करा ही जाती है... अच्छी रचना !!
ReplyDeleteबूँदे चाहे बादलों से टपकी हों
ReplyDeleteया मन के घावों से रिसी हों,
अपने पास रखती हैं चोर चाभी
यादों की संदूकची की.....
बहुत सुंदर..
ReplyDeleteबूँदे चाहे बादलों से टपकी हों
या मन के घावों से रिसी हों,
अपने पास रखती हैं चोर चाभी
यादों की संदूकची की.....
वाकई इस को खोलते सभी डरते हैं
बूँदे चाहे बादलों से टपकी हों
ReplyDeleteया मन के घावों से रिसी हों,
अपने पास रखती हैं चोर चाभी
यादों की संदूकची की.....
बहुत सुन्दर!!
सच ही कहा है आपने...कुछ एहसास ऐसे ही होते हैं, जिनसे दिल कभी पूरी तरह आज़ाद शायद नहीं हो सकता!!
बहुत खूबसूरत अंदाज़ में पेश की गई है पोस्ट...... शुभकामनायें।
ReplyDeleteकुछ निजी एहसास जिसे दिल सार्वजनिक नहीं करना चाहता है -बढ़िया अभिव्यक्ति !
ReplyDeletelatest post मेरी माँ ने कहा !
latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )
बहुत खूबसूरती से बयां करती है आप अपने मन के भाव को दीदी .... ये पंक्तियाँ विशेष रूप से अच्छी लगी बूँदे चाहे बादलों से टपकी हों
ReplyDeleteया मन के घावों से रिसी हों,
अपने पास रखती हैं चोर चाभी
यादों की संदूकची की.....
सादर
--पारुल'पंखुरी'
बूँदे चाहे बादलों से या मन के घावों से.....
ReplyDeleteनाज़ुक मर्म....
हम यादों को कब याद रखते हैं....
ReplyDeleteयादें भी कब हमें भूलती हैं...
बहुत सुंदर अनु!
<3
हमेशा की तरह निरुत्तर करती हुई ....
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरती से बांधा है भावों को..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,अभार।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,अभार।
ReplyDeleteअच्छा लिखा है...बधाई...
ReplyDeleteआदरणीया अनु जी नमस्कार ,
ReplyDeleteये सच ही है कि कुछ एहसास ऐसे होते है जिनसे दिल आजाद नही होना चाहता लेकिन ये भी कुछ हद तक सच लगता है कि कुछ एहसासों से चाहकर भी हम आजाद नही हो पाते , शायद वो हमारी हार्ड डिस्क में इस प्रकार सेव हो गये हैं कि बिना हार्ड डिस्क बदले वो डिलिट नही हो सकते !
आपकी अच्छी प्रस्तुति की बधाई !
कोमल भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteमन को छू लेनेवाली..
:-)
यादें कभी पीछा नही छोडती ....वफा क्या होती है ..कोई इनसे सीखे !
ReplyDeleteखुश रहें!
सहेजे रखते हैं- और एक बार पलट कर वक़्त में पीछे झाँक-कर मुस्कुरा लेते हैं ..
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ अनु दी।
सादर
मधुरेश
बूँदें रखती है चोर चाबी ...
ReplyDeleteऔर खुलते जाते हैं यादों के पिटारे ...
बहुत खूब !
लाजबाब ...बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteबूँदे चाहे बादलों से टपकी हों
ReplyDeleteया मन के घावों से रिसी हों,
अपने पास रखती हैं चोर चाभी
यादों की संदूकची की.....
बहुत खूब ।
वाह, क्या कल्पना है !
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या कहने
(आप बहुत दिनों बाद दिखाई दे रही हैं)
सुन्दर रचना ह्रदय को स्पर्श करती हुई .
ReplyDeleteसुन्दर रचना ह्रदय को स्पर्श करती हुई .
ReplyDeleteamazing
ReplyDelete'बूँदे चाहे बादलों से टपकी हों
ReplyDeleteया मन के घावों से रिसी हों,
अपने पास रखती हैं चोर चाभी
यादों की संदूकची की.....'
Deeply felt words!
प्रेम के बहुत से एहसास बस अकेले में मन को गुदगुदाने के लिए होते हैं ....
ReplyDeleteबूंदों में निलक आते हैं ये और बात है ...
यादें और अहसास कभी ख़त्म नहीं होती बस सो जाती हैं कुछ देर के लिए
ReplyDeleteऔर कोई न कोई आकर उसे जग जाता है कभी कभी
सुन्दर
यादों का खूबसूरत पिटारा ...कोई अच्छी और कुछ बुरी भी
ReplyDeleteशायद यही जीवन है ..
ReplyDeleteबहुत नाजुक और कोमल अहसास लिए आपकी ये शानदार कविता ..अनु जी इतना पास प्रकृति को महसूस वो ही कर सकता है जिसके विचार प्रकृति से ही मखमली और खुबसूरत हो ..बधाईया
ReplyDeleteबूँदे चाहे बादलों से टपकी हों
ReplyDeleteया मन के घावों से रिसी हों,
अपने पास रखती हैं चोर चाभी
यादों की संदूकची की.....
सच बड़ी ही छुपी रुस्तम होती हैं यह बुँदे
इसलिए शायद खुशी और ग़म दोनों में छलक जाती है
और जब तक खुल ही जाती है यादों की संदूकची...
बेहतरीन ह्रदय स्पर्शी रचना....
ReplyDeleteवाह अनु जी बहुत ही भावपूर्ण मार्मिक रचना है ।
ReplyDeleteबूँदे चाहे बादलों से टपकी हों
ReplyDeleteया मन के घावों से रिसी हों,
अपने पास रखती हैं चोर चाभी
bs mn ko chho gyee ....aabhar anu ji
hello Anu ji
ReplyDeletekasii hain....
jaanti hain..aapke yahaan aati to aksr hun...pr bheed aur halchal se drti hun...so chupchaap aapko dekh ke hli jaati hun...............
aaj bhi sochaa....aapse baat vaat kr ke aayun..pr dekhaa 58 comments....sochaa ptaa nhi...aapki nazr meri baat pe pregi bhi ki...nhi...........fir sochaa...khat aapko bhi psnd hain..so ik khat daale aati hun...kyaa ptaa aap bhi aadatan postbox dekh leti hon..so chayd ye dikh jaaye...aur haan..aapkaa dil ..bahut sneh ke sath rahegaa.....salt analysis ki kyaa zarurat jab qualitativly hi ptaa chal rhaa ....:)....
aapkaa prempatr...mere bahut psndidaa he...akr prne aati hun..use.......
yuhin likti rhe...aur muskuraahate failaati raheen....
aur haan..ik bdi pyaari baatlgi aapke prichay se...ki aap do bachchon ki maa hain.:d...LGTI NHI HAIN.....aur jis style se likhaa he naa...aapne..subhaan allah........vaise..meri bhii trkkki ho gyi he........lol........main bhi ik bachche ki maa bn chuki ab..ha ha.......
dono anu byproducts ko dher sara pyaar..
take care
जोया............
Deleteजाने कितने बाद कोई ख़त मिला है <3 शुक्रिया.....
कितने भी comments हों,हम कभी एक भी अनदेखा नहीं करते...मोहब्बत की बेहद कद्र करते हैं हम.तुम्हारा आना और इतनी प्यारी बातें कहने का शुक्रिया.
यूँ ही महकती रहो..महकाती रहो...
प्यार-
अनु
बहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteसुन्दर रचना ह्रदय को स्पर्श करती हुई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDelete