सिमट गए जब
तुम्हारे कहे लफ्ज़ मेरे ज़ेहन में
तब दर्द की एक नज़्म फूटी..
तेरी खुशबु से महकती इस नज़्म को
धो डाला मैंने
जुलाई की तेज़ बारिश में
कि नज़्म अब तरोताज़ा है मिट्टी और घास की महक लिए...
उसे निचोड़ा कस कर
कि रह न जाए एक भी रिसता एहसास बाकी...
हटाने को यादों की सीलन
मिटाने को दर्द की सभी सिलवटें
फेर दी बेरुखी की गर्म इस्त्री उस नज़्म पर
पुरानी हर नज़्म की तरह इस नज़्म का सेहरा तुम्हारे सर नहीं....
इस पर और मुझ पर तुम्हारा कोई हक नहीं, कोई निशाँ नहीं....
ये नज़्म मेरी है
और बाकी की ज़िन्दगी भी सिर्फ मेरी.......
~अनु ~
तुम्हारे कहे लफ्ज़ मेरे ज़ेहन में
तब दर्द की एक नज़्म फूटी..
तेरी खुशबु से महकती इस नज़्म को
धो डाला मैंने
जुलाई की तेज़ बारिश में
कि नज़्म अब तरोताज़ा है मिट्टी और घास की महक लिए...
उसे निचोड़ा कस कर
कि रह न जाए एक भी रिसता एहसास बाकी...
हटाने को यादों की सीलन
मिटाने को दर्द की सभी सिलवटें
फेर दी बेरुखी की गर्म इस्त्री उस नज़्म पर
पुरानी हर नज़्म की तरह इस नज़्म का सेहरा तुम्हारे सर नहीं....
इस पर और मुझ पर तुम्हारा कोई हक नहीं, कोई निशाँ नहीं....
ये नज़्म मेरी है
और बाकी की ज़िन्दगी भी सिर्फ मेरी.......
~अनु ~
बेरुखी की गर्म इस्त्री ...क्या खूब..
ReplyDeleteबहुत खूब ... गहरे एहसास से सजाया है इस नज़्म को ... पुरानी यादों को पौंचने पे क्या एकसास मिल जायगा ... यादें तो वैसे भी अपनी ही होती हैं उस पे किसी का अधिकार कहां ...
ReplyDeleteवाह . बहुत उम्दा
ReplyDeleteपुरानी हर नज़्म की तरह इस नज़्म का सेहरा तुम्हारे सर नहीं....
ReplyDeleteइस पर और मुझ पर तुम्हारा कोई हक नहीं, कोई निशाँ नहीं....
ये नज़्म मेरी है
और बाकी की ज़िन्दगी भी सिर्फ मेरी.......बिलकुल ठीक अब जो भी है सिर्फ अपना है उसे पर किसी का कोई हक़ नहीं फिर वो चाहे गम हो या खुशी नज़म हो या गजल गीत हो या अभिव्यक्ति... :)
जिंदगी जीने का अलहदा फलसफा . बढ़िया .
ReplyDeleteजिंदगी जीने का अलहदा फलसफा . बढ़िया .
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeletewaah bahut khub
ReplyDeleteक्या बिम्ब है... बहुत ही बढ़िया. . और एक आक्रोश भी.
ReplyDeleteअच्छी लगी नज़्म.
पुरानी हर नज़्म की तरह इस नज़्म का सेहरा तुम्हारे सर नहीं....
ReplyDeleteइस पर और मुझ पर तुम्हारा कोई हक नहीं, कोई निशाँ नहीं....
ये नज़्म मेरी है
और बाकी की ज़िन्दगी भी सिर्फ मेरी.......
बेहद खूबसूरत नज्म, शुभकामनाएं.
रामराम.
मेरी नज़्म -- बहुत खूबसूरत।
ReplyDeleteबहुत खूब..........एक बेहतरीन रचना
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन जनसंख्या विस्फोट से लड़ता विश्व जनसंख्या दिवस - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत नज़्म
ReplyDeleteमिटाने को दर्द की सभी सिलवटें
ReplyDeleteफेर दी बेरुखी की गर्म इस्त्री उस नज़्म पर...अरे क्या बात कह दी अनु..बहुत सुन्दर..
दर्द की सिलवटें
ReplyDeleteहटती नहीं हैं
भले ही फेर दो तुम
बेरुखी की गर्म इस्त्री
न मानों कि इस नज़्म का सेहरा
उसके ऊपर नहीं है
पर उसके कहे लफ्जों पर ही तो
बुन डाली है ये नज़्म .....
बहुत सुंदर और मन के आक्रोश को व्यक्त करती नज़्म
तुम ऐसे पत्थर तो न थे...
ReplyDeleteनज्म से रीसते मेरे आँसुओं को एक नजर तो डाला होता ।
:)
बहुत ही सुन्दर भाव!
मिटाने को दर्द की सभी सिलवटें
ReplyDeleteफेर दी बेरुखी की गर्म इस्त्री उस नज़्म पर...
कहाँ से लाती हैं आप ये बेहतरीन शब्द...बेहद प्रभावी।।।
वाह !!! बहुत उम्दा लाजबाब प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteजुलाई की तेज़ बारिश में
ReplyDeleteकि नज़्म अब तरोताज़ा है मिट्टी और घास की महक लिए...
उसे निचोड़ा कस कर
कि रह न जाए एक भी रिसता एहसास बाकी...
बहुत सुंदर , शुभकामनाये
शानदार...एज युज्वल!
ReplyDeleteचलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनों .....:))
ReplyDeletesimply beautiful..
ReplyDeletethe beauty and depth in your words are magnificent :)
bahut shandaar...... mam bahut hi sundar rachna...........
ReplyDeleteआक्रोश भरी सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeletelatest post केदारनाथ में प्रलय (२)
जब जज्बात चोट खाते हैं तो कुछ ऐसे ही नज्म बनते हैं
ReplyDeleteलाजवाब
साभार !
जुलाई की तेज़ बारिश में
ReplyDeleteकि नज़्म अब तरोताज़ा है मिट्टी और घास की महक लिए...
उसे निचोड़ा कस कर
कि रह न जाए एक भी रिसता एहसास बाकी............. awesome..
दर्द से रिश्ता तोड़ लिया ….
ReplyDeleteनाज़ुक सी नज़्म ..... बहुत सुंदर
बहुत ख़ूबसूरत अहसास...
ReplyDeleteनज़्म यहीं कहीं घूमती-फिरती मिलती है... अपने ही आस-पास... है ना अनु!
ReplyDelete<3
पुरानी हर नज़्म की तरह इस नज़्म का सेहरा तुम्हारे सर नहीं....
ReplyDeleteइस पर और मुझ पर तुम्हारा कोई हक नहीं, कोई निशाँ नहीं....
ये नज़्म मेरी है
और बाकी की ज़िन्दगी भी सिर्फ मेरी.......
आपकी हर रचना संग्रहणीय होती अनु जी
वाह, बहुत उम्दा
ReplyDeleteबहुत प्यारी नज्म है...इस पर और मुझ पर तुम्हारा कोई हक नहीं, कोई निशाँ नहीं....
ReplyDeleteये नज़्म मेरी है
और बाकी की ज़िन्दगी भी सिर्फ मेरी....... वाह बहुत सुन्दर
बहुत ही बढ़िया नज़्म.....
ReplyDeleteनूतन प्रतीकों का सराहनीय प्रयोग, वाह !!!!!!!
ReplyDeleteनूतन प्रतीकों का सराहनीय प्रयोग, वाह !!!!!!!
ReplyDeleteसिमट गए जब
ReplyDeleteतुम्हारे कहे लफ्ज़ मेरे ज़ेहन में
तब दर्द की एक नज़्म फूटी..
तेरी खुशबु से महकती इस नज़्म को
धो डाला मैंने
जुलाई की तेज़ बारिश में---------
नयी अनुभूतियों का बहुत सुंदर प्रयोग
बेहतरीन शिल्प
उत्कृष्ट रचना
सादर
अनु दी
ReplyDeleteनमस्ते !
क्या नज़्म लिखी है आपने !! हमेशा की तरह लाजवाब !!
नई पोस्ट
तेरी ज़रूरत है !!
एक रिसता अहसास...बहुत खूब!
ReplyDeleteAdutiy
ReplyDeleteLaajawab! (as always:))
ReplyDeleteBahut sundar!
ReplyDeleteBeautiful. Such reads make your day!
ReplyDeleteकोमल अहसास लिए भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteअपनी सत्ता के घमंड में,मेधा का अपमान न करना !
ReplyDeleteहमने अक्सर,ब्रूटस द्वारा, घर में ,सीज़र मरते देखे !
मंगल कामनाएं अनु !!
दर्द की एक नज़्म फूटी..
ReplyDeleteतेरी खुशबु से महकती इस नज़्म को
धो डाला मैंने
जुलाई की तेज़ बारिश में
कि नज़्म अब तरोताज़ा है मिट्टी और घास की महक लिए...:)
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!......!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
गहन दर्द भरी अभिव्यक्ति ....
ReplyDeletebahut hi sundar khyaalo ko bahut hi sundar vastra odha deti hain aap ... makhmali si lagti lagti hai bhale hi kitna bhi dard samete ho apne andar aapki najm ... kyuki dard se bhari najmo ko july ki tej baarish bhi kahan dho paati hai!!! badhai
ReplyDeleteवाह, बहुत उम्दा
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत
ReplyDeleteफेर दी बेरुखी की गर्म इस्त्री उस नज़्म पर
ReplyDeleteपुरानी हर नज़्म की तरह इस नज़्म का सेहरा तुम्हारे सर नहीं....
इस पर और मुझ पर तुम्हारा कोई हक नहीं, कोई निशाँ नहीं....
ये नज़्म मेरी है
और बाकी की ज़िन्दगी भी सिर्फ मेरी.......
अब सिर्फ और सिर्फ खालिस यह नज्म मेरी है ...
वाकई बढ़िया रचना है अनु ,
अनु जी : आ..ह.....!! अनु द मेजिशीयन इज बेक....!! इस रचना में घरगुती रोजाना टास्क के हवाले अहसास के दौर को बयाँ करने का फॉर्म तो अनन्य है ही...पर एक और बात जो उत् स्फूर्त होती है और भाती है वो है स्वत्व... बहुत बहुत बधाई....
ReplyDeleteNice
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