मैं प्रेम में हूँ
इसका सीधा अर्थ है
मैं नहीं हूँ
कहीं और.
प्रेम स्वार्थी होता है
ये दीवारें खड़ी करता है
प्रेमियों और शेष दुनिया के बीच
और जब ये नहीं होता है
तब ये दीवार गिरती नहीं
बस,सरक कर
आ जाती है
दोनों प्रेमियों के बीच.
मैं प्रेम में हूँ
इसका अर्थ है
मैं उड़ रहा हूँ...
प्रेम पंख देता है
प्रेमी पतंग हो जाते हैं.
और जब ये नहीं रहता
तब लड़ जातें हैं पेंच...
कट जाती हैं पतंगें
आपस में ही उलझ कर.
मैं प्रेम में हूँ .....इसके कई अर्थ है.....और सभी निरर्थक.....
अनु
इसका सीधा अर्थ है
मैं नहीं हूँ
कहीं और.
प्रेम स्वार्थी होता है
ये दीवारें खड़ी करता है
प्रेमियों और शेष दुनिया के बीच
और जब ये नहीं होता है
तब ये दीवार गिरती नहीं
बस,सरक कर
आ जाती है
दोनों प्रेमियों के बीच.
मैं प्रेम में हूँ
इसका अर्थ है
मैं उड़ रहा हूँ...
प्रेम पंख देता है
प्रेमी पतंग हो जाते हैं.
और जब ये नहीं रहता
तब लड़ जातें हैं पेंच...
कट जाती हैं पतंगें
आपस में ही उलझ कर.
मैं प्रेम में हूँ .....इसके कई अर्थ है.....और सभी निरर्थक.....
अनु
मैं प्रेम में हूँ .....इसके कई अर्थ है.....और सभी निरर्थक.....
ReplyDeleteसच है 'प्रेम में होना' पल भर में सार्थक बना देता है तो कभी निरर्थक. बहुत अच्छी रचना, बधाई.
bahut acche rang anu ji , pre, tyag hai , samahit nahi hota par ek dor sadaiv judi rahatai hai prem ki
Deletekya baat hai aaj prem ka ye rup mila padhne ko anu ji lekin to prem se pareshan ho gayi hu kyonki meri khidki ke baahar ek premi apni premika se itna baat karta ki meri nind haram ho gayi hai . shayad uske sir par vasant puri tarah sawar hai aur vo abhi bhi meri khidki ke baahar maujud hai
ReplyDeleteसंध्या जी...
Deleteप्रेम दीवारें खड़ी करता है
प्रेमियों और शेष दुनिया के बीच...
उस प्रेमी युगल को आपके होने का भान ही नहीं होगा...माफ़ कर दीजिये उन्हें...जल्द ही वो पतंग बनेंगे...और आपकी समस्या हल होगी :-)
मैं प्रेम में हूँ
ReplyDeleteइसका अर्थ है
मैं उड़ रहा हूँ...........के बजाय आपने (मैं उड़ रही हूँ) क्यों नहीं लिखा? क्या आप पुरुष बन कर प्रेम महसूस कर रहे हैं?
..............वैसे गूढ़ दर्शन समेटे हुए है आपकी कविता। पंख, पंतग, पेंच और अन्त में उलझाव.....वास्तविक रुप में क्या यही है प्रेम?
प्रेमी का मन उड़ रहा है....यहाँ मन के लिए "रहा" शब्द लिखा है...और प्रेम के अर्थ पुरुष और स्त्री के भिन्न कहाँ....
Deleteपुष्टि करने के लिए धन्यवाद।
Deleteमैं प्रेम में ज़रूर हूँ ...पर परिस्थितियों के वश में हूँ......वह परिस्थितियाँ जो मेरे प्रेम का हश्र तै करती हैं ..इसीलिए मेरा प्रेम में होना न होना निरर्थक है ....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति अनु
ReplyDeleteप्रेम,बुखार है
ReplyDeleteचढ़ता है,कभी उतरता है
कभी नफरत ,कभी परहेज है।
latestpost पिंजड़े की पंछी
बस,सरक कर
ReplyDeleteआ जाती है
दोनों प्रेमियों के बीच.
----------------------------
प्रेम के नए फ्रेम...बढ़िया लगा
बधाई आपको ...
बढ़िया है प्रेम-
ReplyDeleteआभार आदरेया ||
प्रेम की बहुत ही सुन्दर विवेचना,सुन्दर कविता.
ReplyDeleteप्रेम की सटीक व्याख्या, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
और जब ये नहीं होता है
ReplyDeleteतब ये दीवार गिरती नहीं
बस,सरक कर
आ जाती है
दोनों प्रेमियों के बीच.
सच्ची बात ...
प्रेम क्या है क्या नहीं ...प्रेमी ही जाने :)
ReplyDeleteप्रेम ही प्रेम को प्रेम बनाता है …………बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं।
ReplyDelete
ReplyDeleteमैं प्रेम में हूँ
इसका अर्थ है
मैं उड़ रहा हूँ...
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना
Recent Post दिन हौले-हौले ढलता है,
रोचक विश्लेषण अनु... :-)
ReplyDelete~प्रेम में होना...
एक ऐसी सुखद अनुभूति ...
जिसमें प्रेम करने वाले के भीतर
खुद एक दीवार खड़ी हो जाती है..
वो अपने आप को भी भूल जाता है...~
ऐसा हमें लगता है.. :-)
<3
जय हो ... प्रेम मे तो होना ही चाहिए ... बहुत जरूरी है ज़िन्दगी मे !
ReplyDeleteआज की ब्लॉग बुलेटिन १९ फरवरी, २ महान हस्तियाँ और कुछ ब्लॉग पोस्टें - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
Superb Anulata, the one who loves knows what is and what is not, being and not being, one or a separate entity, but still..... love remains.
ReplyDeleteYe halki patang hi hai..
ReplyDeleteJo do Premiyon ko uda rahi hai...
Dar lagta hai Anu ji...
Kahi ye patang kat n jaaye...
वाह, प्रेम क्या है ये अब जाना . बढ़िया
ReplyDeleteप्रेम में होने का सीधा सा अर्थ है, प्रेम करने वाले पर उस परम पिता परमेश्वर की महती कृपा है ।
ReplyDeleteप्रेम है ही इतना ज़टिल कि समझ में आना मुश्किल है।
ReplyDeleteप्रेम सिर्फ एक स्वप्नलोक है जहाँ कुछ समय यथार्थ की दुनिया से दूर सब कुछ अच्छा लगता है पर अन्त में सब निरर्थक । बहुत अच्छी कविता अनु जी ।
ReplyDeleteप्रेम पंख देता है
ReplyDeleteप्रेमी पतंग हो जाते हैं.
और जब ये नहीं रहता
तब लड़ जातें हैं पेंच...
कट जाती हैं पतंगें
आपस में ही उलझ कर.
बिलकुल सही कहा है आपने अनुजी... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर..... भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDelete'मैं प्रेम में हूँ' सिर्फ ये अहसास बहुत है :)
ReplyDeleteजो प्रेम में है , उसके लिए अर्थ क्या , निरर्थक क्या ...
ReplyDeleteअच्छी कविता!
लाजवाब...
ReplyDeleteप्रेम में जो है ... वह मात्र प्रेम है और कुछ नहीं- कहीं नहीं
ReplyDeleteमैं प्रेम में हूँ .....इसके कई अर्थ है.....और सभी निरर्थक.....
ReplyDeleteबहुत बढि़या, प्रेम अहसास (भाव) - कुछ विचारों की पुनरावृत्ति (अहसास), जो वि-िभन्न प्रेमियों के विचारों में उभयनिष्ठ विचारों का संग्रह हैं ।
मैं प्रेम में हूँ .....इसके कई अर्थ है.....और सभी निरर्थक.....
ReplyDeletephilosophical yet romantic :)
kya baat kahi hai ....
ReplyDeleteमैं प्रेम में हूँ .....इसके कई अर्थ है.....और सभी निरर्थक....
superb..
मैं प्रेम में हूँ .....इसके कई अर्थ है.....और सभी निरर्थक....
ReplyDeleteभाव पूर्ण अभिव्यक्ति अनु ........
प्रेम में होना ही सब कुछ है ... बाकी सब तो ओने आप ही होता है ...
ReplyDeleteभावपूर्ण ...
प्रेम में रहना कभी निरर्थक नहीं हो सकता
ReplyDeleteप्रेम रहे न रहे , ज़िन्दगी को एक अर्थ दे जाता है।
सुन्दर कविता
प्रेम को नए अर्थ प्रदान करती सुन्दर कविता!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना...
ReplyDeleteप्रेम में होने को बहुत अच्छे से परिभाषित किया है...
मानो तो अर्थ ही अर्थ...नहीं तो सब निरर्थक|
सस्नेह
वाह वाह प्रेम और प्रेमियों की पतंगी पेंच मजेदार लगा.
ReplyDeleteबधाई अनु जी.
प्रेम की उपस्थिति ही कुछ ऐसी होती है ...
ReplyDeleteउम्दा लाजवाब ...
सादर !
प्रेमी पतंग हो जाते हैं सचमुच रहिमन धागा प्रेम का पंक्तियाँ याद आती हैं... सुंदर कविता
ReplyDeleteमैं प्रेम में हूँ .....इसके कई अर्थ है.....और सभी निरर्थक.....
ReplyDeleteसही कहा है अनु ,.....बस एक ही सार्थक है प्रेम अंत में मुक्त कर देता है !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteप्रेम में होना .... इसकी यही तो सार्थकता है
ReplyDeleteआभार
बहुत सुंदर.....
ReplyDeleteप्रेम स्वार्थी होता है
ReplyDeleteये दीवारें खड़ी करता है
प्रेमियों और शेष दुनिया के बीच
और जब ये नहीं होता है
तब ये दीवार गिरती नहीं
बस,सरक कर
आ जाती है
दोनों प्रेमियों के बीच.
आपकी रचनाएं कई बार मेरे कई प्रश्नों का जबाब दे जाती हैं...सुंदर प्रस्तुति।।।
so very nice :) i like it
ReplyDeletewow so very nice i like it
ReplyDeleteanu ji aapki hausla afzayee ka... aabhar ,avm prem ke anek roopon ki sashkt abhivykti ki badhayee...sunder rchna
ReplyDeleteLove is such a complex feeling but love it is...
ReplyDeleteBeautiful verse!
जब हम प्रेम में होते हैं, तो बस प्रेम में होते हैं, उसके कोई अन्य अर्थ ढूंढ़ने की कोशिश ही न किया जाए तो बेहतर है।
ReplyDeleteभाव पूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रेम रस जिसने पिया मन मंदिर सा होए
सर्व जगत का स्वामी, फिर काहे का रोये.
सादर
नीरज'नीर'
मैं प्रेम में हूँ .....इसके कई अर्थ है.....और सभी निरर्थक.....
ReplyDeleteअच्छी कविता अनु जी !..................
bahut badhiya prem ke wivin roopon ki badi acchi wyaakhya .....sundar rachna ...
ReplyDelete