अंगूरी हो रक्खे थे बादल
उस रोज़,
गहरे नीले आकाश में
गुच्छा गुच्छा छितरे
जमुनी गुलाबी रंगत लिए
धूसर बादल....
तुमने कहा
ये बादल
तुम्हारे आंसुओं की वाष्प से बने हैं !
मैंने मान लिया था उस रोज़
कि तुम दुनिया की
सबसे दुखी लडकी थी |
वो बड़ी स्याह रात थी
तूफानी,
खूब बरसे थे वो बादल
गुलाबी जमुनी रंगत वाले
काले बादल....
तुम्हारा कहा परखने को
चखी थी मैंने
कुछ बूँदें...
सचमुच खारी थीं|
तुमने सही कहा था
कि मैं दुनिया का सबसे बुरा आदमी हूँ !
मैंने मान लिया था उस रोज़
बिना ख़ुद को परखे हुए !
~अनुलता ~
उस रोज़,
गहरे नीले आकाश में
गुच्छा गुच्छा छितरे
जमुनी गुलाबी रंगत लिए
धूसर बादल....
तुमने कहा
ये बादल
तुम्हारे आंसुओं की वाष्प से बने हैं !
मैंने मान लिया था उस रोज़
कि तुम दुनिया की
सबसे दुखी लडकी थी |
वो बड़ी स्याह रात थी
तूफानी,
खूब बरसे थे वो बादल
गुलाबी जमुनी रंगत वाले
काले बादल....
तुम्हारा कहा परखने को
चखी थी मैंने
कुछ बूँदें...
सचमुच खारी थीं|
तुमने सही कहा था
कि मैं दुनिया का सबसे बुरा आदमी हूँ !
मैंने मान लिया था उस रोज़
बिना ख़ुद को परखे हुए !
~अनुलता ~
बहुत उम्दा प्रस्तुति...!
ReplyDeleteRECENT POST - फिर से होली आई.
चखना नहीं था उन बूंदो को??
ReplyDeleteन......
Deleteचखना याने परखना....परखने से कोई अपना नहीं रहता !!!
परख लिया ज़माने को
ReplyDeleteन बचा,कोई आज़माने को ..
--अशोक'अकेला'
स्वस्थ रहें!
ओह .. परख ही लिया आखिर ..
ReplyDeleteउम्दा.....
ReplyDeleteपरखने में छिन जाने का भय जो छुपा होता है । प्यारी सी रचना ,हमेशा की तरह ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (13-03-2014) को "फिर से होली आई" चर्चा- 1550 "अद्यतन लिंक" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर. कभी कभी खुद को परखना भी अच्छा रहता है.
ReplyDeleteनई पोस्ट : होली : अतीत से वर्तमान तक
आजकल कविताओं मे विज्ञान का असर दिखने लगा है :)
ReplyDeleteबेहतरीन तो आप लिखते ही हो :)
बिना खुद को परखे हुए मान लेना ... ये प्रेम की शिद्दत है ... बुरा भला तो प्रेम में सब भला ही है ...
ReplyDeleteगहरी बात को सहज कहना ही कविता है ...
मनोभावों का सुन्दर चित्रण...
ReplyDeleteबहुत प्यारी सी बात .... प्रेम से भरी गहरी बात
ReplyDeleteवाह
angoori baadal- sundar khayal hai :-)
ReplyDeleteDr.Bashir Badra sahab ki ek gazal yaad aa rahi hai
Parakhna mat parakhne mein koi apna nahin rahta
Kisi bhi aine mein der tak chehra nahin rahta
सुन्दर ग़ज़ल है.....नज़्म लिखते वक्त हमारे ज़ेहन में भी आयी थी :-)
Deleteवाह ........ बहुत खूब
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति
परखना रिश्तों में दीमक होती है , उसने आंसुओं का स्वाद चखा न होता तो खारे भी न रहे होते !
ReplyDeleteअंगूरी बादल पढना अच्छा लगा !
रिश्तों में परख कैसी, तुमने कहा और मैंने मान लिया … बहुत खूबसूरत भाव
ReplyDeleteसुन्दर रचना हमेशा की तरह, कल पढ़कर गयी थी
ReplyDeleteपर टिप्पणी नहीं कर पायी !
कुछ उलझे उलझे से भाव लिए ... पढ़ कर भाव भूमि तलाश कर रही हूँ . कि किस भूमि पर खींची हैं लकीरें :)
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