आँखें खाली
ज़हन उलझा
ठिठुरते रिश्ते
मन उदास....
सही वक्त है कि उम्मीद की सिलाइयों पर
नर्म गुलाबी ऊन से एक ख्वाब बुना जाय !!
माज़ी के किसी सर्द कोने में कोई न कोई बात,
कोई न कोई याद ज़रूर छिपी होगी
जिसमें ख़्वाबों की बुनाई की विधि होगी,
कितने फंदे ,कब सीधे, कब उलटे......
बुने जाने पर पहनूँगी उस ख्वाब को
कभी तुम भी पहन लेना..
कि ख़्वाबों का माप तो हर मन के लिए
एक सा होता है |
कि उसकी गर्माहट पर हक़ तुम्हारा भी है.....
~अनुलता~
ज़हन उलझा
ठिठुरते रिश्ते
मन उदास....
सही वक्त है कि उम्मीद की सिलाइयों पर
नर्म गुलाबी ऊन से एक ख्वाब बुना जाय !!
माज़ी के किसी सर्द कोने में कोई न कोई बात,
कोई न कोई याद ज़रूर छिपी होगी
जिसमें ख़्वाबों की बुनाई की विधि होगी,
कितने फंदे ,कब सीधे, कब उलटे......
बुने जाने पर पहनूँगी उस ख्वाब को
कभी तुम भी पहन लेना..
कि ख़्वाबों का माप तो हर मन के लिए
एक सा होता है |
कि उसकी गर्माहट पर हक़ तुम्हारा भी है.....
~अनुलता~
माज़ी के किसी सर्द कोने में कोई न कोई बात,
ReplyDeleteकोई न कोई याद ज़रूर छिपी होगी
जिसमें ख़्वाबों की बुनाई की विधि होगी,
कितने फंदे ,कब सीधे, कब उलटे......
इन पंक्तियों ने मन मोह लिया .... कविता बहुत ही खूबसूरती से वीव की गयी है .... आई मीन बुनी गयी है ....
बहुत ही सुंदर ....
माज़ी के किसी सर्द कोने में कोई न कोई बात,
ReplyDeleteकोई न कोई याद ज़रूर छिपी होगी
जिसमें ख़्वाबों की बुनाई की विधि होगी,
कितने फंदे ,कब सीधे, कब उलटे......
इन पंक्तियों ने मन मोह लिया .... कविता बहुत ही खूबसूरती से वीव की गयी है .... आई मीन बुनी गयी है ....
बहुत ही सुंदर ....
बुनो कुछ ख़ाब के फिर धूप सी खिले ...ठिठुरते रिश्ते कुछ खिल उठें ....गर्मजोशी से मिलें .........!!
ReplyDeleteसुंदर जज़्बात अनु ....!!
well knitted Anu.. if I may say so :)
ReplyDeleteभावनाओं की बुनावट में भी फंदे उतरते है ,गिरते है , बस सलाइयां चलती रहे, ख्वाब तो बुन ही जायेंगे . एक कविता उनको पहन के होनी चाहिए.
ReplyDeleteकि ख़्वाबों का माप तो हर मन के लिए
ReplyDeleteएक सा होता है |
कि उसकी गर्माहट पर हक़ तुम्हारा भी है.....
...वाह! बहुत खूबसूरती से बुने अहसास...बहुत सुन्दर
Filhaal to dekh raha hoon ki shabdon ki salaiyon par bhaavnaon ke dhaagon se ehasaas ki garmi liye ek khwabnuma kavita ya kavita numa khwaab buna hai tumne... Resham sa narm-o-naazuk.
ReplyDeleteकि ख़्वाबों का माप तो हर मन के लिए
ReplyDeleteएक सा होता है |
कि उसकी गर्माहट पर हक़ तुम्हारा भी है.....अरे गज़ब, कितने सरल शब्दों में कितनी गहरी बात कह दी आपने बहुत खूब।
anu ji khwabo ki bunavat aur use pahan hi to ji rahe hai ham aur usme uljhe rahna bhi chahte hai............
ReplyDeleteमाज़ी के किसी सर्द कोने में कोई न कोई बात,
ReplyDeleteकोई न कोई याद ज़रूर छिपी होगी
...बहुत ही ख़ूबसूरत
खूशुरत रेशमी धागों में बुने ख़्वाबों की कलियाँ
ReplyDeleteठिठुरते इस मौसम में... ख्वाब के गर्माहट लिए.... खूबसूरत प्रस्तुति .....
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteवाह अनु ......बहोत खूब....कितना अच्छा लिखती हो ......!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार को (27-11-2013) तिनके तिनके नीड़, चीर दे कई कलेजे :चर्चा मंच 1443 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी.
Deleteबहुत खूब . . .
ReplyDeleteशुभकामनायें !
Khwabon ke swetar mein unka naap ... Sukoon dega sard mousam mein ... Sulgayega unki yaaden ...
ReplyDeleteकि ख़्वाबों का माप तो हर मन के लिए
ReplyDeleteएक सा होता है |
आपने कह दिया तब महसूस हुआ कि हां... ऐसा भी कहा जा सकता था :)
<3
कि ख़्वाबों का माप तो हर मन के लिए
ReplyDeleteएक सा होता है |
कि उसकी गर्माहट पर हक़ तुम्हारा भी है.
सुहाना मौसम है ,स्वेटर की जरुररत है --बहुत सुन्दर भाव !
(नवम्बर 18 से नागपुर प्रवास में था , अत: ब्लॉग पर पहुँच नहीं पाया ! कोशिश करूँगा अब अधिक से अधिक ब्लॉग पर पहुंचूं और काव्य-सुधा का पान करूँ | )
नई पोस्ट तुम
अनु मैम ठंड-ज़िदगी;एक रिस्ता का पूरा एहसास कराती आपकी पंक्तियाँ....
ReplyDeleteनयी पोस्ट
मकान बदल जाते
खूब लिखा है .... .
ReplyDeleteपहनेगा इसको किस्मत वाला
ReplyDeleteनर्म अहसासों का गर्म दुशाला .....
स्वस्थ रहो अनु !
भाव संगी सहभावी सभी तो हैं इस बुनावट में स्वेटर की। फंदे ही फंदे हैं एक सीधा दो उलटे।
ReplyDeleteबुने जाने पर पहनूँगी उस ख्वाब को
ReplyDeleteआमीन !!!!
बस... पहनने वाला पहन ले ..~ वरना तो... आजकल ऊन-सलाईयों पर बुने नर्म, भावनाओं के स्वेटर पहनना पसंद किसे हैं... इसकी क़दर कुछ ही लोग समझते हैं...
ReplyDelete<3
उम्दा
ReplyDeleteजले अलाव
ठिठुर रहे रिश्ते
सर्द है रात
माज़ी के किसी सर्द कोने में कोई न कोई बात,
ReplyDeleteकोई न कोई याद ज़रूर छिपी होगी
जिसमें ख़्वाबों की बुनाई की विधि होगी,
कितने फंदे ,कब सीधे, कब उलटे......
अपनी बात कहने के लिये बहुत ही शानदार बिंब लिया आपने, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
behtreen
ReplyDeleteबहुत सुंदर...
ReplyDeleteसुन्दर।।
ReplyDeleteनई चिट्ठियाँ : ओम जय जगदीश हरे…… के रचयिता थे पंडित श्रद्धा राम फिल्लौरी
नया ब्लॉग - संगणक
ReplyDeleteसही वक्त है कि उम्मीद की सिलाइयों पर
नर्म गुलाबी ऊन से एक ख्वाब बुना जाय !! .... अच्छे डिज़ाइन वाले :)
शायद कुछ गर्मी,राहत मिले
buno ek khwaab garm sa ... thithurti ruh sukun to paaye :)
ReplyDeletebahut sundar.
मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...। (catch line of my blog cover)
ReplyDeleteकि ख़्वाबों का माप तो हर मन के लिए
ReplyDeleteएक सा होता है.....
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वाह...कितना निर्मल भाव .....
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ,ह्रदयस्पर्शी.आभार
ReplyDeleteबुनो इक ख्वाब
ReplyDeleteके तुम्हारा ख्वाब
ओढ़ना है हमें
ह्रदयस्पर्शी सुन्दर पंक्तियाँ,.. .आभार
ReplyDeleteमाज़ी के किसी सर्द कोने में कोई न कोई बात,
ReplyDeleteकोई न कोई याद ज़रूर छिपी होगी
जिसमें ख़्वाबों की बुनाई की विधि होगी,
कितने फंदे ,कब सीधे, कब उलटे.....
सहजता से कही गयी गहरी बात
वाकई जीवन जीना एक अनकहे,अधबुने फंदे की तरह है
बहुत सुंदर सोच की रचना---
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
Nostalgic
ReplyDeleteडायरी
ReplyDeleteअनकही बातों की
अनकही सोच की
अनकही मुलाकातों की
अनकहे रिश्तों की - ख़ास दोस्त होती है
अगर दोस्त को सम्भाल के रखो
तो वह दोस्ती निभाती है
किसी से कुछ नहीं कहती
पर सहनशीलता की हदें टूटने लगे
तो डायरी अपने पन्नों की सरसराहट में
सबकुछ कहती है
अनुमान के कांच तोड़ती है डायरी
हंसी के पीछे छुपे दर्द की कराहटें कहती है डायरी …
http://www.parikalpnaa.com/2013/12/blog-post.html
वाह!....
ReplyDeleteवाह उधर मैंने , रजाई पर स्टेटस लिखा इधर स्वेटर की बात पढ़ी.
ReplyDeleteहम्म सर्दियों अच्छी हैं.
ख्वाबों का माप भी अलग होता है .... पर बुनना ज़रूर ..... गर्माहट का अहसास होता रहना चाहिए ...
ReplyDelete