इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Tuesday, November 19, 2013

सज़ाएं कभी ख़त्म नहीं होतीं.............किये, अनकिये अपराधों की सदायें जब तब कुरेद डालती हैं भरते घावों की पपड़ियों को |
वक्त ज़ख्मों को भरता है...नासूर रिसते हैं ताउम्र.......

जो गलतियाँ हम करते हैं उसके लिए खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाते हैं और अपने ही नाखूनों  से अपना अंतर्मन खुरचते रहते हैं .शायद अपने लिए यही सजा मुक़र्रर कर लेते हैं |
और अनकिये अपराधों की सज़ा तो दोहरी होती है | बेबसी की यातनाएं सहता लहुलुहान मन बस एक काल्पनिक अदालत में खड़ा चीखता रह जाता है और उनकी दलीलें टकरा-टकरा कर वापस उसी पर प्रहार करती रहती  हैं | 
कभी हम खुद को कोसते हैं कभी कोई यूँ ही आता जाता हमारे ज़ख्मों के सूखे  दरवाजों पर दस्तक देता निकल जाता हैं...बस यूँ ही !!
तारीखें बदलती हैं ....वक्त के साथ सब कुछ घटता जाता है ,सिर्फ अपराध वहीं के वहीं रह जाते हैं ,उतने ही संगीन |
सज़ाएँ पूरी करके भी अपराधी रहता अपराधी ही है |और उसे जीना होता इन  बेचैनियों का बोझ ढोते हुए |
किसी निरपराधी को सज़ा मिले तो मौत ही मिले , कि आत्मा के घुटने  से सांस का घुट जाना बेहतर है....

~अनु ~

[कुछ ख़याल यूँ ही आते हैं ज़हन में......और उन्हें कह देना सुकून देता है....बस थोडा सा आराम बेचैनियों को....]

36 comments:

  1. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार आदरेया-

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  2. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार आदरेया-

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  3. ये भी द्वंद्व है .... वैचारिक भाव

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  4. विचारों में उबाल , मनःस्थिति उवाच.

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  5. बढ़िया प्रस्तुति

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  6. वैचारिक अंतर्द्वंदों को बहुत खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है.

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  7. waah bahut badhiya abhiwykti yah bhi man ke bhaaw hai

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  8. जग से कोई भाग ले प्राणी खुद से भाग न पाये...क्राइम और पनिशमेंट का यही सिलसिला है...

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  9. खुबसूरत अभिवयक्ति.....

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  10. उन गलतियों का एहसास ही बड़ी बात है..

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  11. guilt is a severe punishment.. it consumes to the core

    Nice read

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  12. इस द्वैत में ही संसार समाया है, बेहतरीन रचना.

    रामराम.

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  13. भावनाओं का सुन्दर चित्रण ..

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  14. निःशब्द ...
    मन के सैलाब को कई बार कागज़ पे उतारना ज्यादा अच्छा होता है ...

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  15. तारीखें बदलती हैं ....वक्त के साथ सब कुछ घटता जाता है ,सिर्फ अपराध वहीं के वहीं रह जाते हैं ,उतने ही संगीन |
    .... बहुत सही कहा आपने
    आभार

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  16. सही कहा अपने, अपराध बोध जीने नहीं देता, बहुत सुन्दर भाव हैं...

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  17. इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :- 21/11/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -47 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....

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  18. इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :- 21/11/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक - 47 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....

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  19. अपराधी तो फिर भी बिना अपराधबोध के जी लेते हैं , निरपराधी जीवन भर दबे रहते हैं बिना गुनाह की सजा पा कर !
    मर्मस्पर्शी !

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  20. तुमने हमारे मनमें तो खलबली मचा दी अनु...! सशक्त और सच्चा सच ..!!!

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  21. बहुत बहुत शुक्रिया !!

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  22. भर जाते हैं घाव तो, भरें नहीं नासूर।
    मामूली आघात भी, चोट करें भरपूर।।

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  23. इसीलिये भारतीय-जीवन की व्यवहारिक-सामाजिक व्यवस्था है ...ईश्वर प्रणनिधान .... यह ईश्वर की मर्जी थी ...हमारे ही किसी पूर्व पाप-कर्म का फल होगा ... हमारा भाग्य ....इस पर संतोष करके व्यक्ति घावों को नासूर न बनने देकर ....बीती ताहि बिसर दे के अनुसार जीवन के अगले क्रम में कदम बढाता है..... और जीवन ठहरता नहीं है...

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  24. आंदोलित करने वाली रचना

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  25. सुन्दर है भावाभिव्यक्ति।

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  26. किसी निरपराधी को सज़ा मिले तो मौत ही मिले , कि आत्मा के घुटने से सांस का घुट जाना बेहतर है....
    बहुत ही सही बात..

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  27. लग रहा है खुद को ही तुम्हारे शब्दों में पढ़ रही हूँ ..... सस्नेह :)

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  28. अनु मैम बहुत बढ़ियाँ अभिव्यक्ति.....
    कभी हमारे ब्लॉग पर भी पधारे....!!!

    खामोशियाँ

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  29. काफी सुंदर चित्रण ..... !!!
    कभी हमारे ब्लॉग पर भी पधारे.....!!!

    खामोशियाँ

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  30. उम्दा अभिव्यक्ति

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  31. और अनकिये अपराधों की सज़ा तो दोहरी होती है | बेबसी की यातनाएं सहता लहुलुहान मन बस एक काल्पनिक अदालत में खड़ा चीखता रह जाता है और उनकी दलीलें टकरा-टकरा कर वापस उसी पर प्रहार करती रहती हैं |

    विचारों की उथल पथल भी सत्य को उजागर कर रही है ...

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