ये मेरी डायरी का वो पन्ना है जिसे मैं शायद फिर कभी न पढना चाहूँ.....दिल बेशक गुनगुनाता रहेगा !!!
(कविता दिवस पर -कुछ पंक्तियाँ उन्हें समर्पित जिन्होंने उँगलियाँ पकड़ कर लिखना सिखाया ...)
बचपन से सुनती आयी थी
वो अटपटी सी कविता
न अर्थ जानती थी
न सुर समझती....
कविता थी या गीत ???
मचलती आवाज़ से लेकर
खरखराती ,कांपती आवाज़ तक
जाने कितनी बार सुना
लफ्ज़ रटे हुए थे...
जब जब कहती
तब तब वो बेहिचक सुनाने लगते
और मैं खूब हंसती...
बस अपने बाबा की बच्ची बन जाती....
बरसों बाद...
उस रोज़
उस जीर्ण काया के सिरहाने खडी
अचानक वही गीत गाने लगी..
अनायास ही
लगा कि वो मुस्कुराए...
कस के हाथ थामे खडी गुनगुनाती रही....
अटपटे बेमानी से शब्द,
जो सुना था वही दुहराती रही....
वही मुस्कान चेहरे पर लिए
पिता के दिल ने
आख़री बार हरकत की
और फिर शान्ति...
मानो गहरी नींद में चले गए हों...
एक कौतुहल जागा मन में...
और जाने पहले ये ख़याल क्यूँ नहीं आया था ...
खोजबीन की तो पता लगा
वो अटपटा गीत,जिसके अर्थ से अनजान थी
वो एक लोरी थी.....जो गुनगुनाया करते थे पापा.....
और जब मैंने गुनगुनाया तो वे सचमुच सो गए
शायद सुख सपनों में कहीं खो गए.
अनु
ये मेरी पापा के साथ आख़री तस्वीर है....उनके जन्मदिन की.उनके जाने के बस 17 दिन पहले.
जिस गीत का ज़िक्र किया है मैंने वो एक लोरी है जो मलयालम में पापा गाया करते थे.....उनके जाने के बाद गूगल पर देखा तो जाना कि वो एक लोरी है जिसे केरल के राजा "स्वाति थिरूनल" को सुलाने के लिए गाया जाता था .इसको प्रसिद्द कवि "इरवि वर्मन थम्पी" 1783-1856 A.D. ने लिखा था....एक और संयोग है कि पापा भी स्वाति नक्षत्र में जन्में थे....और हमारे लिए किसी राजा से कम न थे.
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(कविता दिवस पर -कुछ पंक्तियाँ उन्हें समर्पित जिन्होंने उँगलियाँ पकड़ कर लिखना सिखाया ...)
बचपन से सुनती आयी थी
वो अटपटी सी कविता
न अर्थ जानती थी
न सुर समझती....
कविता थी या गीत ???
मचलती आवाज़ से लेकर
खरखराती ,कांपती आवाज़ तक
जाने कितनी बार सुना
लफ्ज़ रटे हुए थे...
जब जब कहती
तब तब वो बेहिचक सुनाने लगते
और मैं खूब हंसती...
बस अपने बाबा की बच्ची बन जाती....
बरसों बाद...
उस रोज़
उस जीर्ण काया के सिरहाने खडी
अचानक वही गीत गाने लगी..
अनायास ही
लगा कि वो मुस्कुराए...
कस के हाथ थामे खडी गुनगुनाती रही....
अटपटे बेमानी से शब्द,
जो सुना था वही दुहराती रही....
वही मुस्कान चेहरे पर लिए
पिता के दिल ने
आख़री बार हरकत की
और फिर शान्ति...
मानो गहरी नींद में चले गए हों...
एक कौतुहल जागा मन में...
और जाने पहले ये ख़याल क्यूँ नहीं आया था ...
खोजबीन की तो पता लगा
वो अटपटा गीत,जिसके अर्थ से अनजान थी
वो एक लोरी थी.....जो गुनगुनाया करते थे पापा.....
और जब मैंने गुनगुनाया तो वे सचमुच सो गए
शायद सुख सपनों में कहीं खो गए.
अनु
ये मेरी पापा के साथ आख़री तस्वीर है....उनके जन्मदिन की.उनके जाने के बस 17 दिन पहले.
जिस गीत का ज़िक्र किया है मैंने वो एक लोरी है जो मलयालम में पापा गाया करते थे.....उनके जाने के बाद गूगल पर देखा तो जाना कि वो एक लोरी है जिसे केरल के राजा "स्वाति थिरूनल" को सुलाने के लिए गाया जाता था .इसको प्रसिद्द कवि "इरवि वर्मन थम्पी" 1783-1856 A.D. ने लिखा था....एक और संयोग है कि पापा भी स्वाति नक्षत्र में जन्में थे....और हमारे लिए किसी राजा से कम न थे.
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Nice sharing .
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना ..रचना कहना गलत होगा शायद बीएस ये प्रेम है आपका अपने पिता के लिए जो शब्द बनकर पन्नो पे उभर आया है ...एक रिश्ता जो कभी ख़तम नहीं हो सकता ..मेरे पास कोई शब्द नहीं है इस रचना के लिए ....
ReplyDeleteभावभीनी श्रद्धांजलि ...
ये जो लोरियां होती हैं न
ReplyDeleteये ऐसे ही घूमती हैं विराट में
कभी सोती नहीं हैं ये
बस सुलाती हैं
बिटियों को छोटी छोटी और
पिताओं को लम्बी नींद
I wish you recall of all sweet memories of your dad !!
तब तब वो बेहिचक सुनाने लगते
ReplyDeleteऔर मैं खूब हंसती...
बस अपने बाबा की बच्ची बन जाती....
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अपने बाबा की सोन चिरैया ....
बहुत भावभीनी रचना ....
ReplyDeletepadh kar aankhe nam ho gayi ...yahi kuch baaten hai jo dil kabhi bhul nahi paata hai ..mujhe bhi apni maa ki gaayi lori ke rup mein bacchan ji ki kavita jo beet gayi so baat gayi ..kaanon mein ab bhi unki awaz mein gunj jati hai ...
ReplyDeletesmritio ke zarokhe se jhankta bachpan aur yade
ReplyDeleteपिताजी को नमन....हमेशा यादों में रहेंगे ।
ReplyDeleteसचमुच अनु जी कुछ अनमोल क्षण अविस्मरणीय होते हैं और हर क्षण एक कसक के रूप में हमारे साथ ही रहते हैं...
ReplyDeleteआपके हृदयस्पर्शी शब्दों ने भावुक कर दिया।
शुभकामनाएं
सादर
पिता का साथ छूट जाना बहुत अखरता है, जैसे जीवन थम सा गया हो, लेकिन उनकी यादें और बातें सदा जेहन में रची बसी रहती है, बहुत मार्मिक और भाव पूर्ण रचना.
ReplyDeleteरामराम.
पिता का साथ छूट जाना बहुत अखरता है, जैसे जीवन थम सा गया हो, लेकिन उनकी यादें और बातें सदा जेहन में रची बसी रहती है, बहुत मार्मिक और भाव पूर्ण रचना.
ReplyDeleteरामराम.
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि
ReplyDeleteबस अब उनकी ये यादें ही सहारा हैं ,जो दिल को सुकून देंगी
पता नहीं क्यों पर पापा के जाने के बाद उनके बोल हर क्षणांश में समा कर हमको शांत करते से लगते हैं ....... सस्नेह !
ReplyDeleteभावभीनी श्रद्धांजलि,,,बस उनकी यादें ही सहारा रह गई,,,
ReplyDeleteRecentPOST: रंगों के दोहे ,
पिताजी को नमन और भावभीनी श्रद्धांजलि ....
ReplyDeleteएक एक पंक्ति सिहरन पैदा करती है ....
सिसकी रुकती नहीं ....
शुभकामनायें !!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,पिताजी को भावभीनी श्रद्धांजलि.
ReplyDelete"स्वस्थ जीवन पर-त्वचा की देखभाल"
लोरी - जीवनयात्रा का प्रथम संगीत, जो आजीवन मन-हृदय में गूंजता रहता है।
ReplyDeleteपिताजी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि !
di aaj fir apne rula diya apne shabdo say......aur kuch likhne ki himmat nahi ho rahi....janti hu kaisa feel hota hai....shardangli
ReplyDeleteभावभीनी श्रद्धांजलि पिताजी को!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
पधारें "चाँद से करती हूँ बातें "
इन लोरी की यादों को हमेशा संजोय रखना ....
ReplyDeleteये पापा का आशीर्वाद है ...
खुश रहिये !
निर्वाण से पहले लोरी , भाग्यवान ही सुन पाते होगे. महाप्राण को मेरी पुष्पांजलि .
ReplyDeleteआखिरी लम्हात की जो तस्वीर आपने खींची है कुछ ऐसी ही तस्वीर से मैं भी गुजरी थी कभी जो आज भी यादों में ज़िन्दा है । और कुछ नही कह सकती ………भावभीनी श्रद्धांजलि
ReplyDeleteबस यादें ही रह जाती हैं।
ReplyDeleteकभी दिल दुखाती हैं , कभी दिल बहलाती हैं।
अनु उम्र के जिस पड़ाव पर हम हैं ..वहां से अपने बुजुर्गों को बस जाता हुआ ही देखना है ..काश उन्हें रोकना हमारे बस में होता ......कोरों पर आकर रुक गयी तुम्हारी रचना
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी शब्द... भाग्यशाली हैं आप अंतिम समय उनका सानिंध्य पा सके...जाने वाले कभी नहीं आते लेकिन हमारी यादों में जीते हैं सदा के लिए...
ReplyDeleteनिशब्द हूँ ....
ReplyDeleteभावभीनी श्रद्धांजलि ...!!
very nice..kudos
ReplyDeleteplz .visit :
http://swapnilsaundarya.blogspot.in/2013/03/blog-post_21.html
आज टहलते-टहलते आपके ब्लॉग पर आना हुआ ...आपके पिताजी को मेरी श्रधांजली आर्पित है ......
ReplyDeleteउनको याद करके आपने जो भी लिखा हृदय को छू गया ....पिता से संतान का सम्बन्ध ही कुछ ऐसा है ...मन को भावुक होने से कौन रोक सकता .....
शुभ-कामनायें
आज टहलते-टहलते आपके ब्लॉग पर आना हुआ ...आपके पिताजी को मेरी श्रधांजली आर्पित है ......
ReplyDeleteउनको याद करके आपने जो भी लिखा हृदय को छू गया ....पिता से संतान का सम्बन्ध ही कुछ ऐसा है ...मन को भावुक होने से कौन रोक सकता .....
शुभ-कामनायें
मन को अभिभूत करने वाली पोस्ट |माँ और पिता स्मृतिशेष होने पर भी पल -पल स्मृतियों में विराजमान रहते हैं |
ReplyDeleteमाता-पिता का स्नेह और प्यारी यादें. इस फानी दुनिया में यही रह जाता है हमें संबल देने के लिए.
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी एवं भावपूर्ण स्मृतियाँ ...विनम्र नमन
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी एवं भावपूर्ण स्मृतियाँ ...विनम्र नमन
ReplyDeleteनिशब्द हूँ। आपकी रचना पढने के बाद एक कंपकंपी सी दौड़ गयी ह्रदय में। बहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteVery Deep Expressions
ReplyDeleteअक्सर पेन पेन्सिल लेकर
ReplyDeleteमाँ कैसी थी ?चित्र बनाते,
पापा इतना याद न आते
पर जब आते, खूब रुलाते !
उनके गले में,बाहें डाले,खूब झूलते , मेरे गीत !
पिता की उंगली पकडे पकडे,चलाना सीखे मेरे गीत !
पिता का स्थान जीवन में कोई नहीं ले सकता | पिता हमेशा बरगद का साया बन हमारे साथ बने रहते हैं | जब वो साथ थे तब सजीव रूप में उनका हाथ सर पर था आज वो ब्रह्मलीन हैं तब भी उनका अदृश्य स्नेह भरा करुनामय हाथ सदा उनकी यादों के रूप में सर पर बना रहता है | मैं इससे ज्यादा और कुछ नहीं कह पाउँगा इस कविता के बारे में | बहुत मर्म लिए कोमल भावपूर्ण अभिव्यक्ति | बहुत बहुत आभार |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
ReplyDeleteपिता को भावभीनी श्रद्धांजलि है
latest post भक्तों की अभिलाषा
latest postअनुभूति : सद्वुद्धि और सद्भावना का प्रसार
भावुक प्रस्तुति ।
ReplyDeleteઅનુંજી :बहुत विशिष्ट स्मृति, विशिष्ट रचना.
ReplyDeleteपिता के लिए सच्ची श्रद्धांजलि ..बेहद मर्मस्पर्शी!
ReplyDeleteक्या कहूँ बस पढ़कर मौन हूँ कुछ कहते नहीं बन रहा है आज !
ReplyDeleteआज की ब्लॉग बुलेटिन चटगांव विद्रोह के नायक - "मास्टर दा" - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteभावभीनी रचना
ReplyDeleteअनु जी आपकी ये दिल छू लेने वाली रचना ,
ReplyDeleteआँखे नम कर गई ,चित्र सा खीच दिया हो जैसे
आपने ,पिताश्री को मेरे श्रध्हा-सुमन.....
आँखें भर आईं... अनु.....
ReplyDeleteऔर कुछ कहने को शब्द नहीं बचे..... :(
<3
मार्मिक ... सुख की गहरी नींद वाले जागते नहीं ...
ReplyDeleteबस यादें दे जाते हैं ...
बहुत मर्मस्पर्शी...आँखें नम कर गयी आपकी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteमन के किसी कोने में ये शब्द हमेशा अपने रहेंगे ...
ReplyDeleteभावमय करती प्रस्तुति
सादर
केरल की संस्कृति और पिता जी की स्मृति को नमन!!
ReplyDeleteयह लोरी सीधा दिल में उतर गयी!!
अनु दी
ReplyDeleteनमस्ते !!
जब जब कहती
तब तब वो बेहिचक सुनाने लगते
और मैं खूब हंसती...
बस अपने बाबा की बच्ची बन जाती....
सच्ची श्रद्धांजलि दी है आपने ,अपने बाबा को
नमन एवं श्रद्धांजलि
ReplyDeleteitna bhi acha na likha karo ki har bar ansoo thamne ka naam hi nahi lete.luv u
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