दर्द का कोई आकार नहीं होता
मन के सारे भेद खोल देती है
एक आह !
वरना रंजो ग़म की दास्तानें यूँ सरेआम नीलाम न होतीं.....
~अनुलता ~
दुःख का कोई रंग नहीं
महकती नहीं उदासियाँ
महकती नहीं उदासियाँ
एक आह !
उलझे बालों की लटें
कसी मुट्ठियाँ
और भिंचे दांत !!
कसी मुट्ठियाँ
और भिंचे दांत !!
उतरे चेहरे,
शिकन पड़ा हुआ माथा
पपडाए होंठ
आवाज़ की लर्जिश
आवाज़ की लर्जिश
और गुलाबी डोरों वाली आँखे
कर देती हैं चुगलियाँ !~अनुलता ~
दर्द का प्रतिबिम्ब - बहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteखुबसूरत रचना।
ReplyDeletesunder likha hai bahai
ReplyDeleterachana
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया अनु, ..
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteऐ भौंरें ! सूनो !
बहुत सुन्दर अनु जी ! सच है दर्द का ना कोई आकार होता है ना ही उसे नापने के लिये कोई पैमाना ! मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteदर्द का कोई आकार नहीं होता
ReplyDeleteदुःख का कोई रंग नहीं
महकती नहीं उदासियाँ
सच कहा आपने दर्द का कोई आकार नहीं होता।
सुंदर पंक्तियां।
आह ये चुगलियाँ ... जो न होतीं
ReplyDeleteक्या खूब बयाँ किया है दर्द .
dard ka koi aakar va rang nahi hora.... bahut sunder dard ka bayaan.....umda rachna
ReplyDeletedard ka koi aakar va rang nahi hota.... bahut sunder dard ka bayaan.....umda rachna
ReplyDeleteमन पर और कई बार आँखों पर भी बस नहीं होता ...
ReplyDeleteसामने ले आते हैं सभी भाव ...
उतरे चेहरे,
ReplyDeleteशिकन पड़ा हुआ माथा
पपडाए होंठ
आवाज़ की लर्जिश
और गुलाबी डोरों वाली आँखे
कर देती हैं चुगलियाँ !
वरना रंजो ग़म की दास्तानें यूँ सरेआम नीलाम न होतीं.....
अद्भुत।।।
सूंदर अभिव्यक्ति
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