इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Thursday, August 29, 2013

स्मृतियाँ

माँ के ज़ेवरों की तरह
सम्हाल रखी हैं मैंने
तुम्हारी बातें,
सहेज रखा है हर महका लम्हा
रेशम की लाल पोटली में !

सम्हाला है
स्मृतियों को
एक विरासत की तरह
अगली पीढ़ी के लिए!

कभी खोल लेती हूँ वो पोटली
देखती हूँ चमकते गहने
और
आँखों में हौले से उतर आते हैं वो मोती...

ख़ालिस सोने की बनी-
सच!!
बुरे वक्त का सहारा  हैं वे स्मृतियाँ
माँ के ज़ेवरों की तरह......
~अनु~





Saturday, August 17, 2013

अकेलापन

अकेली राह मुश्किल नहीं
खुद का बोझ ढोना जायज़ है,
ज़रुरत है...
जब मौका मिला किसी पेड़ के नीचे सुस्ता लिए
खुद को अपने से परे रख कर !

ज़ख्मों को ख़ुद सीना सीख जाते हैं हम
यूँ अकेली राह में ज़ख्मों की गुन्जाइश कम होती है...
राह में कोई ठंडे पानी का सोता मिलता ही है ज़ख्म धोने को
प्यास बुझाने को.....

जीने की कोई वजह खोजने का वक्त नहीं मिलता
अकेलपन की अपनी मसरूफ़ियत है
और कट जाती है जिंदगियाँ यूँ ही अक्सर, बिना जिए ही.
धूप खुशबू हवाएं मिल ही जाती हैं सबको अपने अपने हिस्से की.....

(आप जब अकेले होते हैं तब ख्यालों की भीड़ लग जाती है,ऐसे ही....... )
~अनु ~

Monday, August 12, 2013

शब्द

कहा गया हर शब्द
स्थायी है
हर अक्षर होता है कालजयी...
शब्द के सृजन की प्रक्रिया अपरिवर्तनीय है...
एक बार बन जाने के बाद
शब्द भटकते हैं,
खोजते हैं ठौर...कहीं ठहर जाने को.

शब्द कभी मरते नहीं
शब्दों के दिए घाव कभी भरते नहीं....
मेरे कानों से टकराए हैं ऐसे कई शब्द
और उन्होंने स्थायी ठिकाना बना लिया
मेरे मन को...
एक के ऊपर एक
परत दर परत टिकते ये शब्द
रौंदते मेरी शिराओं को...
इनसे रिसता धीमा ज़हर फ़ैल रहा है पूरे बदन में

दर्द असह्य हुआ
तो नोच नोच कर शब्दों को उठा कर
सृजन किया एक नज़्म का...
चूंकि हर शब्द तेरा है
सो दर्द भरी इस नज़्म का सेहरा तेरे सर.....
~अनु~

नए पुराने मौसम

मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...