हर रचना है मेरे दिल की किताब का एक पन्ना .... धीरे धीरे सारी किताब पढ़ लेंगे...तब जान भी जायेंगे मुझे....कभी चाहेगे...कभी नकारेंगे... यही तो जिंदगी है...!!!
इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........
Thursday, September 27, 2012
Sunday, September 23, 2012
चिता
जल रही थी चिता
धू-धू करती
बिना संदल की लकड़ी या घी के....
हवा में राख उड़ रही थी
कुछ अधजले टुकड़े भी....
आस पास मेरे सिवा कोई न था...
वो जगह श्मशान भी नहीं थी शायद...
हां वातावरण बोझिल था
और धूआँ दमघोटू.
मौत तो आखिर मौत है
चाहे वो रिश्ते की क्यूँ न हो....
लौट रही हूँ,
प्रेम की अंतिम यात्रा से...
तुम्हारे सारे खत जला कर.....
बाकी है बस
एहसासों और यादों का पिंडदान.
दिल को थोड़ा आराम है अब
हां ,आँख जाने क्यूँ नम हो आयी है...
उसे रिवाजों की परवाह होगी शायद.....
अनु
धू-धू करती
बिना संदल की लकड़ी या घी के....
हवा में राख उड़ रही थी
कुछ अधजले टुकड़े भी....
आस पास मेरे सिवा कोई न था...
वो जगह श्मशान भी नहीं थी शायद...
हां वातावरण बोझिल था
और धूआँ दमघोटू.
मौत तो आखिर मौत है
चाहे वो रिश्ते की क्यूँ न हो....
लौट रही हूँ,
प्रेम की अंतिम यात्रा से...
तुम्हारे सारे खत जला कर.....
बाकी है बस
एहसासों और यादों का पिंडदान.
दिल को थोड़ा आराम है अब
हां ,आँख जाने क्यूँ नम हो आयी है...
उसे रिवाजों की परवाह होगी शायद.....
अनु
Thursday, September 20, 2012
आश्रिता
कभी कभी प्रकृति
अजीब से सवालों में उलझा
देती है,
सोच में डाल देती है...
जैसे आँगन की दीवार पर चिपक
कर
चढ़ने वाली वो बेल
क्या उस खुरदुरी सूखी दीवार
से
मोहब्बत करती होगी ?
या बिना उसके सहारे चढ़ जो
नहीं सकती
आश्रित है उस पर
इसलिए उससे मोहब्बत का स्वांग
रचती है ??
काश के सच्चे प्यार को
पहचानना
इस कदर मुश्किल न होता.....
-अनु
Sunday, September 16, 2012
हार
मोहब्बत के किस्से भी अजीब हैं.......जितने आशिक उतनीं बातें........कुछ किस्से महकते तो कुछ दहकते से....कुछ सही कुछ झूठे....मोहब्बत पर यकीं करना भी बड़ा कठिन है.......सच और दिखावे के बीच बड़ी महीन सी रेखा होती है.....मेरी मोहब्बत का भी कहाँ यकीं किया तुमने......चट्टान की तरह अड़े रहे अपनी बात पर......
काश के मेरे दिल पर हाथ रख तुम सुनते धडकन मेरी........अपना नाम सुन कर शायद पिघल जाते और यकीनन लावा बन बह जाता तुम्हारा गुस्सा.
मगर तुम्हारी जिद्द...............!!!!
शायद तुम कोई मौका ही खोज रहे थे मुझसे दूर जाने का...........
गवाह बना था चाँद और सभी तारे
उन मूक चाँद-तारों का साक्ष्य काम ना आया..
कितनी दलीलें पेश कीं और तुझे मनाया ...
बुझे मन और थके कदमों से हम लौट आये..
काश के मेरे दिल पर हाथ रख तुम सुनते धडकन मेरी........अपना नाम सुन कर शायद पिघल जाते और यकीनन लावा बन बह जाता तुम्हारा गुस्सा.
मगर तुम्हारी जिद्द...............!!!!
शायद तुम कोई मौका ही खोज रहे थे मुझसे दूर जाने का...........
गवाह बना था चाँद और सभी तारे
फिर भी तू न माना
कि हम सिर्फ तेरे हैं और तुम हमारे...
उन मूक चाँद-तारों का साक्ष्य काम ना आया..
कुछ कह ना सकते थे..
बस सिसक कर रो पड़े वो नज़ारे...
कितनी दलीलें पेश कीं और तुझे मनाया ...
मगर तुम्हारी एक ना से
हम जिंदगी का वो मुकदमा हारे..
बुझे मन और थके कदमों से हम लौट आये..
बस ठहरे थे तेरे दर पर दो पल..
और अश्कों से अपने सारे क़र्ज़ उतारे...
-अनु
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
-अनु
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Friday, September 14, 2012
प्रेमपत्र
ये मेरा
आखरी प्रेम पत्र है..
अब कभी नहीं लिखूंगी तुम्हें कोई खत....
इसलिए इस आखरी खत को
भर देना चाहती हूँ एहसासों से,
महका देना चाहती हूँ अपनी साँसों से
अरसे से जज़्ब किये जज्बातों से..
रंग देना चाहती हूँ हर लफ्ज़
मोहबत के रंग से..
इकरार के हर ढंग से.
भिगो देना चाहती हूँ खत
अपने आंसुओं से
क्योंकि ये मेरा आखरी प्रेम पत्र है.....
अब के बाद कोई पत्र नहीं...
कोई प्रेम नहीं (ऐसा मैंने कब कहा !!)
तोड़ दूँगी कलम
इसे लिखने के बाद
तुमसे वास्ता न रखना
मौत की सजा से कम है क्या?
पत्र लिखूं / न लिखूं
तुमसे कहूँ/ न कहूँ
प्रेम तो रहेगा ......
तुम खत पढो/ न पढ़ो..
सहेजो/ फाड़ दो.....
प्रेम तो रहेगा ही......
मानो या न मानो....
-अनु
आखरी प्रेम पत्र है..
अब कभी नहीं लिखूंगी तुम्हें कोई खत....
इसलिए इस आखरी खत को
भर देना चाहती हूँ एहसासों से,
महका देना चाहती हूँ अपनी साँसों से
अरसे से जज़्ब किये जज्बातों से..
रंग देना चाहती हूँ हर लफ्ज़
मोहबत के रंग से..
इकरार के हर ढंग से.
भिगो देना चाहती हूँ खत
अपने आंसुओं से
क्योंकि ये मेरा आखरी प्रेम पत्र है.....
अब के बाद कोई पत्र नहीं...
कोई प्रेम नहीं (ऐसा मैंने कब कहा !!)
तोड़ दूँगी कलम
इसे लिखने के बाद
तुमसे वास्ता न रखना
मौत की सजा से कम है क्या?
पत्र लिखूं / न लिखूं
तुमसे कहूँ/ न कहूँ
प्रेम तो रहेगा ......
तुम खत पढो/ न पढ़ो..
सहेजो/ फाड़ दो.....
प्रेम तो रहेगा ही......
मानो या न मानो....
-अनु
Monday, September 10, 2012
ज़िक्र
अपनी एक पुरानी डायरी मिल गयी मुझे आज ....
बदरंग से पन्नों पर दिखाई पड़ा अपना ही माज़ी..खोजने लगी तुम्हें वहाँ..
याद आया कि जिस सफ़हे पर ज़िक्र होता तुम्हारा..उसे मोड़ दिया करती थी.
मगर ये क्या...हर सफहा ही मुड़ा पाया...
फिर ख्याल आया उस रोज का ..जब तुम चल दिये थे...ना जाने क्या कह कर या शायद कुछ कहा भी ना था...
मगर वो मुड़ा पन्ना दिखा नहीं मुझे !!
शायद नहीं किया होगा मैंने,
तेरे चले जाने का ज़िक्र.....
-अनु
मगर ये क्या...हर सफहा ही मुड़ा पाया...
कभी चाँद का ज़िक्र
कभी तेरी किसी मांग का ज़िक्र...
कभी तेरे रूठने को लिखा
कभी तेरे मान जाने का ज़िक्र...
कभी तेरी खुशबू पर लिखी शायरी
कभी तेरे लम्स का ज़िक्र..
कभी तेरी हँसी लिख डाली
कभी तेरी उदासी का ज़िक्र...
कभी तेरी याद का रोना
कभी किसी मीठी बात का ज़िक्र...
कभी सेहरा की धूप लिखी
कभी रूमानी शाम का ज़िक्र...
फिर ख्याल आया उस रोज का ..जब तुम चल दिये थे...ना जाने क्या कह कर या शायद कुछ कहा भी ना था...
मगर वो मुड़ा पन्ना दिखा नहीं मुझे !!
शायद नहीं किया होगा मैंने,
तेरे चले जाने का ज़िक्र.....
-अनु
Friday, September 7, 2012
कठिन है बिटिया की माँ होना....
है आशाएं
मेरी लाडली की...
कोमल और चंचल ...
रंगबिरंगी
विस्तृत नभ में ऊँचा उड़ती
इन्द्रधनुषी रंगों से
अपना जीवन
रंग देने को छटपटाती सी...
थाम रखी है,
उसकी डोर मैंने
कस कर !
समाज के पेंचो से
बचाती फिर रही हूँ..
कभी ढील देती ,
कभी तानती हुई ...
काँच के महीन टुकड़ों से
मांजा बनाती हूँ...
कभी खुद लहुलुहान होकर भी
घिसती हूँ डोर पर,
कि कहीं
पड़ कर कमज़ोर
कट ना जाये
पतंग ...
हौले से
थामे रहती हूँ छोर,
कि कहीं टूट ना जाये
उसकी आस की डोर...........
Monday, September 3, 2012
मोहब्बत/मैं /तुम/एक नज़्म.....
क्या मोहब्बत अपने अस्तित्व को खो देने का दूसरा नाम है....या तेरे मेरे एक हो जाने का??? क्या सदा तुझे खोने का भय ज़रूरी है.....जबकि पाया ही न हो कभी पूर्ण रूप से ?? मोहब्बत का ये असर क्यूँ...जबकि तू बेअसर है मेरे हर एहसास से???? कुछ उलझे सुलझे से एहसासों का गुच्छा है मोहब्बत, जिनमे कहीं अटकी होती है कोई एक नज़्म...कोई गज़ल....कोई कविता....
तुमसे जुदा होकर
जब तन्हा, घर जाती हूँ
मैं डर जाती हूँ...
तुम्हें खोने का एहसास
बस इतनी सी बात !!
मैं सिहर जाती हूँ.....
तुम बात नहीं करते
और चुप सी छा जाती है,
गागर सा मैं भर जाती हूँ....
तुम कहते हो मुझसे
तुम्हें भूल जाने को-
जीते जी मर जाती हूँ....
दीवानी मैं मोहब्बत में
जो कुछ है मना, अकसर
वो कर जाती हूँ......
तू हौले से आता है
तसव्वुर में मेरे...
मैं तर जाती हूँ....
ख्यालों में सही
तेरा वो स्पर्श और
हरसिंगार सा झर जाती हूँ.....
-अनु
तुमसे जुदा होकर
जब तन्हा, घर जाती हूँ
मैं डर जाती हूँ...
तुम्हें खोने का एहसास
बस इतनी सी बात !!
मैं सिहर जाती हूँ.....
तुम बात नहीं करते
और चुप सी छा जाती है,
गागर सा मैं भर जाती हूँ....
तुम कहते हो मुझसे
तुम्हें भूल जाने को-
जीते जी मर जाती हूँ....
दीवानी मैं मोहब्बत में
जो कुछ है मना, अकसर
वो कर जाती हूँ......
तू हौले से आता है
तसव्वुर में मेरे...
मैं तर जाती हूँ....
ख्यालों में सही
तेरा वो स्पर्श और
हरसिंगार सा झर जाती हूँ.....
-अनु
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नए पुराने मौसम
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दुनिया में सबसे सुन्दर रिश्ता माँ और उसके बच्चे के बीच होता है......इस रिश्ते की वजह से जीवन में कई खट्टे मीठे अनुभव होते हैं.....सुनिए...
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इन दिनों, सांझ ढले,आसमान से परिंदों का जाना और तारों का आना अच्छा नहीं लगता गति से स्थिर हो जाना सा अच्छा नहीं लगता..... ~~~~~~~~~~~...