बदलते दौर में सब कुछ अलग सूरत अख्तियार करता जा रहा है.....यहाँ तक की भावनाएं भी बदल गयी हैं....सोच तो बदली ही है|
प्रेम जैसा स्थायी भाव भी कुछ बदला बदला लगने लगा है...
दैनिक भास्कर की पत्रिका अहा! ज़िन्दगी में प्रकाशित मेरी लिखी आवरण कथा आपके साथ साझा कर रही हूँ| उम्मीद है आपको पसंद आयेगी....
http://epaper.bhaskar.com/patna-city/patna-aha-zindagi/397/09012017/bihar/4/
याने हर बात की एक बात है कि प्रेम का ओहदा सबसे ऊपर है......समाज की मान्यताओं से कहीं ज़्यादा ऊपर| तभी तो कृष्ण और राधा के रिश्ते को कृष्ण और रुक्मणी के वैवाहिक संबंधों के मुकाबले बहुत ऊंचा दर्ज़ा प्राप्त है| गर्गसंहिता के मुताबिक जिस तरह पार्वती शिव की शक्ति है उसी तरह राधा कृष्ण की शक्ति हैं| कृष्ण के प्रति राधा का प्रेम निस्वार्थ भाव से था....कहते हैं एक बार रुक्मणी ने कृष्ण को गर्म दूध पीने के लिए दे दिया था तब राधा के तन पर छाले पड़ गए थे......
प्रेम जैसा स्थायी भाव भी कुछ बदला बदला लगने लगा है...
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विवाह के बाद प्रेम या प्रेम के
बाद विवाह – क्या है सही रास्ता
प्रेम जीवन की सबसे मूलभूत आवश्यकता है इसमें
कोई दो राय नहीं|
प्रेम से पेट नहीं भरता ये बात शाब्दिक अर्थों में तो एक दम सही है मगर हमारा पेट भरा और मन ख़ाली हो तब भी कहाँ बात बनती है|
प्रेम से पेट नहीं भरता ये बात शाब्दिक अर्थों में तो एक दम सही है मगर हमारा पेट भरा और मन ख़ाली हो तब भी कहाँ बात बनती है|
प्रेम का होना ही वास्तव में जीवन का होना है| एक चित्रकार को
रंगों से प्रेम होता है तो रचनाकार को शब्दों से, कलाकार को मंच से तो देशभक्त को
देश से| याने प्रेम का स्वरुप भिन्न हो सकता है मगर उसके अस्तित्व को कतई नकारा
नहीं जा सकता|
प्रेम के होने में ही जीवन का आनंद है फिर चाहे वो किसी से भी
हो,कैसा भी हो,कभी भी हो.....मगर प्रेम का डंका पीटने वाली संसार की सबसे बड़ी
संस्था याने विवाह की जीवन में कितनी ज़रुरत है ये एक विवाद का विषय है......
मैंने अपने आसपास के कोई दस युवाओं से बात की जिनकी उम्र 25
के आस-पास है| और उनमें से ज़्यादातर विवाह की आवश्यकता पर ही प्रश्न चिन्ह लगाते
है| क्यूंकि उनमें प्रेम को समझने की गंभीरता नहीं है और प्रेम या उनके शब्दों में
कहूँ तो कम्पेटिबिलिटी याने आपसी सामंजस्य के बिना साथ रहने का औचित्य ही क्या
है.....और प्रेम हो गया तब किसी और बंधन की आवश्यकता ही क्या है !
कुछ हद तक वे ठीक भी हैं....प्रेम को स्त्री पुरुष के
सन्दर्भ में याने रूमानी तौर पर परिभाषित करने पर जटिलता बढ़ जाती है| मानव मन में
इतने जंजाल होते हैं कि सही रास्ता पकड़ना बड़ा मुश्किल हो जाता है|
और अगर प्रसंग विवाह का हो तो प्रेम जैसे छलिया बन जाता है|
न जाने किस किस रूप में विद्यमान रहता है....कभी होकर भी न होने का स्वांग रचता है
और न हो तो अपने होने का ढोंग भी करता है| प्रेम और विवाह यूँ तो एक ही सिक्के के दो पहलु
माने जा सकते हैं परन्तु ये भी सच है कि सिक्के में कभी एक चेहरा ऊपर रहता है तो
कभी दूसरा| याने ज़रूरी नहीं कि वैवाहिक जोड़ों में प्रेम हो या हर प्रेमी विवाह के
बंधन में बंधा हो |
हमारे देश में आज भी अक्सर अरेंज्ड मैरिज होती हैं याने
बिना प्रेम के विवाह| जहाँ दो अनजान इंसान एक दूसरे के बारे में उतना ही जानते हैं
जितना उन्हें बताया गया है | आमतौर पर ऐसी शादियों का आधार शक्ल-सूरत,आर्थिक और
सामाजिक स्थिति,शिक्षा आदि ही होते हैं | और ऐसे गठबंधन इस उम्मीद से किये जाते
हैं कि साथ रहते रहते अंततोगत्वा प्रेम हो ही जाएगा|
अब दो परिस्थितियां बनती हैं- एक तो ये कि पति-पत्नी के
स्वभाव,मानसिक और बौद्धिक स्तर,उनकी रुचियाँ,उनकी प्राथमिकताएं इतनी भिन्न हों कि
प्रेम के अंकुरण के लिए न ज़मीन मिले न खाद मिट्टी.....
याने कोई ऐसे तत्व न हों कि प्रेम उपज सके......ये स्थिति
सबसे कष्टकारी है कि आपने साथ रहने का निर्णय लिया और उस पर समाज और सरकार की मुहर
भी लगा ली और अब एक छत के नीचे रहना दुश्वार हो गया हो........
मगर बहुत सी जोड़ियां ऐसी सूरत में भी साथ रहती हैं जिसके
कुछ स्पष्ट और कुछ लुके-छिपे कारण रहते हैं | सबसे बड़ा कारण है किसी एक का जो
आमतौर पर स्त्री ही होती है,आर्थिक रूप से स्वतंत्र ना होना| और भी दूसरे कारण हैं
जैसे बच्चे....क्यूंकि अलगाव का दंश सबसे गहरा बच्चों को ही लगता है| तो माँ-बाप
उनकी खातिर प्रेम के अभाव में भी साथ रहना गवारा कर लेते हैं| फिर समाज भी एक कारण
रहता है कि लोग क्या कहेंगे- इसलिए चारदीवारी के भीतर जितने भी मतभेद हों बाहर तो
ये गलबहियाँ डाल कर ही घूमेंगे| कई बार युगल आपसी सामंजस्य न होने पर अलग-अलग ही
रहने लगते हैं और कानूनी रूप से उनका रिश्ता बना रहता है....याने जैसे विवाह होकर
भी नहीं हुआ हो | मगर प्रेम में ऐसी स्थिति नहीं होती....प्रेम या तो होगा या नहीं होगा.....
हालाँकि ये चोंचले मंध्यम वर्गीय परिवारों के
हैं,उच्च्वार्गीय तबके में समाज को ज़्यादा तवज्जो नहीं दी जाती|
अरेंज्ड मैरिज के बाद की दूसरी परिस्थिति ये है कि
पति-पत्नी बेहतरीन दोस्त बन जाएँ ,अपनी हर बात साझा करें,एक दूसरे का ख्याल रखें
और उनके बीच प्यार इसी दोस्ती की शक्ल में सदा हरा भरा बना रहे| यहाँ प्यार का
स्वरुप कुछ अलग हो सकता है जैसे मान लीजिये कि पत्नी आत्मनिर्भर नहीं है और पति
अपनी पूरी तनख्वाह उसके हाथ में रख देता है तो यकीन मानिए ये उसका प्रेम है|
वहीं पत्नी खाने पर हमेशा पति का इंतज़ार करती हो तो ये उसका
प्रेम है......हम इसे उसकी आदत या दिनचर्या का हिस्सा भी मान सकते हैं मगर वैवाहिक
जोड़ों में प्रेम ऐसे ही अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराता है| आश्वस्ति और समर्पण किसी भी
रिश्ते की रीढ़ की हड्डी होते है....जिन्हें विश्वास और प्रेम के तंतु सहारा दिए
रहते हैं |
प्रेम और विवाह के बीच तब एक और परिस्थिति बनती है जब जोड़ों
में आपसी प्रेम तो होता है मगर वे विवाह नहीं करना चाहते......याने बंधनों से परे
रहना उनको भाता है | शायद प्रतिबद्धता याने कमिटमेंट से बचना चाहता है आज का युवा
वर्ग| ऐसे ही विचारों की देन हैं ‘लिव इन रिलेशनशिप’ |
ऐसे रिश्तों को समाज का अधिकाँश वर्ग सवालिया नज़र से देखता
है मगर ऐसे युगल समाज की ओर ही कब देखते हैं.......
प्रेम जैसे एहसास से जुड़े किसी भी रिश्ते में प्रेम के
अलावा कोई दूसरा तार या सपोर्ट सिस्टम नहीं होता है इसलिए ये रिश्ता हमेशा टूटने
की रिस्क अपने साथ लिए चलता है| क्यूंकि यहाँ माँ-बाप, रिश्तेदार, बच्चे,समाज या
कानून जैसे कोई बंदिश नहीं कोई बंधन नहीं.......याने जब दिल चाहा अपना सामान उठाया
और निकल पड़े....मगर ऐसा तभी होगा जब पहले प्रेम घर को छोड़ेगा.....मन को छोड़ेगा|
प्रेम होना और विवाह न होना की बात हो तो ज़हन में सबसे पहले
मशहूर कवयित्री अमृता प्रीतम और इमरोज़ साहब का ख़याल आता है | इस जोड़े ने इकतालीस
बरस एक साथ एक ही छत के नीचे बिताये बिना किसी वैवाहिक बंधन के........
अमृता की ज़िन्दगी में झाँकने से प्रेम के हज़ारों रंग दिख
जायेंगे......उन्होंने जिसे भी चाहा पूरी शिद्दत से चाहा फिर वो चाहे उनका साहिर
से इकतरफ़ा प्रेम हो या इमरोज़ की ओर प्लेटोनिक झुकाव|
वर्तमान में लिव इन रिलेशनशिप के दुखद नतीजे देखने में आ
रहे हैं जहाँ लडकियाँ या तो आत्महत्या कर रही हैं या किसी मानसिक विषाद में घिर
रही हैं| प्रेम के लिए अपना करियर दांव पर लगा रही हैं या कहीं कहीं करियर के लिए
प्रेम की बलि दे दी जाती है|
ऐसे रिश्तों की नाकामयाबी के पीछे सबसे बड़ा कारण है प्रेम
के स्वरुप को न समझ पाना| जैसे अतिमहत्त्वाकांक्षी लड़कियां जब अपने बॉस,मेंटर या
एम्पलॉयर के हुनर,ओहदे या शानोशौकत से प्रभावित होने लगती हैं तो अक्सर ये देखा
गया है कि वक्त के साथ धीरे धीरे उनका मन भी उस ओर झुकने लगता है.......और उनका
नाज़ुक दिल समझने लगता है कि ये मोहब्बत है|
जैसे फिल्म इंडस्ट्री में नवोदित अभिनेत्रियाँ डायरेक्टर या
अपनी पहली फिल्म के हीरो की तरफ झुक जाती हैं....याने आकर्षण को प्यार समझने की
गलती बहुत आम है और इसी आकर्षण के चलते युगल साथ रहने लगते हैं और फिर दुष्परिणाम
किसी भयावाह शक्ल में सामने आते हैं |
प्रेम विवाहों के टूटते या मोहब्बत के रिश्तों के त्रासद
अंत को देखते हुए ये मान लेना ग़लत है कि प्रेम कोई बहुत कठिन काम है | प्रेम बहुत
सहज और सरल भावना है......ये किसी शिष्य का गुरु से हो सकता है,किसी भक्त का अपने
ईश से.....जैसे मीरा का कृष्ण से प्रेम भक्ति थी और सुदामा का प्रेम दोस्ती......
प्रेम बड़ी मधुर अनुभूति है......ये बड़ी सहजता से पैदा होती
है और उतनी ही सरलता से स्वीकारी भी जानी चाहिए मगर जैसे ही बात स्त्री पुरुष के
प्रेम की होती है इसमें कई प्रश्नचिन्ह लगा दिए जाए हैं,सवालों की गोलियाँ बरसाई
जाती हैं और एक लिखित नियमावली थमा दी जाती है कि ये सही है ये ग़लत| जैसे किसी
युगल का प्रेम में रहना समाज को स्वीकार्य है मगर सारी ज़िन्दगी प्रेम में रहना और
विवाह न करना कतई स्वीकार्य नहीं|
कोई स्त्री या पुरुष भी अगर किसी रिलेशनशिप में है तो उसका
अगला कदम विवाह हो ये बहुत ज़रूरी है| माता-पिता, परिवार के लोग,अड़ोसी पड़ोसी सभी
आते जाते सवाल कर सकते हैं कि “ भई शादी कब कर रहे हो......गोया मोहब्बत इस सरकारी
मोहर के बिना नाजायज़ है| ऐसे जोड़ों के चरित्र को भी शक की नज़र से देखा जाता है |
यदि आप विवाहित हैं और आपके बीच प्रेम जैसी कोई भावना नहीं,आपके घर से रोज़ लड़ाई
झगड़े,बर्तन पटकने की आवाजें आ रही हैं,स्त्री की आँखों के नीचे काले घेरे हैं,पुरुष
ने कई दिन से हजामत नहीं बनायी हो तब भी समाज को आपसे कोई दिक्कत नहीं है| लोगों
के पेट में दर्द तब होता है जब दो लोग प्रेम में हों पर बंधनों से परे हों |
इसकी वजह क्या हो सकती है आख़िर?
एक वजह तो दकियानूसी सोच है...याने परम्पराओं को ढोना है
बस!!
दूसरी एक सकारात्मक वजह ये मानी जा सकती है कि विवाह से
रिश्ते में ज़्यादा स्थायित्व की उम्मीद बन जाती है | अगर युगल बच्चा पैदा करना
चाहता है तो कानूनी दांव पेंच नहीं होते|
लेकिन अगर समाज बंधनों से परे इन प्रेम संबंधों को खुले
ह्रदय से स्वीकार ले याने लिवइन रिलेशनशिप को जैसे कानूनी मान्यता मिली है वैसे
समाज भी हरी झंडी दे दे तो रिश्तों में खुलापन आएगा| प्रेमी निश्चिन्त होकर रह
सकेंगे...उनका रिश्ता खुल कर सांस ले सकेगा| अपराधों में भी कमी आयेगी|
याने हर बात की एक बात है कि प्रेम का ओहदा सबसे ऊपर है......समाज की मान्यताओं से कहीं ज़्यादा ऊपर| तभी तो कृष्ण और राधा के रिश्ते को कृष्ण और रुक्मणी के वैवाहिक संबंधों के मुकाबले बहुत ऊंचा दर्ज़ा प्राप्त है| गर्गसंहिता के मुताबिक जिस तरह पार्वती शिव की शक्ति है उसी तरह राधा कृष्ण की शक्ति हैं| कृष्ण के प्रति राधा का प्रेम निस्वार्थ भाव से था....कहते हैं एक बार रुक्मणी ने कृष्ण को गर्म दूध पीने के लिए दे दिया था तब राधा के तन पर छाले पड़ गए थे......
प्रेम ना बाड़ी उपजे । प्रेम ना हाट बिकाय
॥
बल्कि ये तो प्रेमियों के दिल में छिपा
बैठा रहता है और मुस्कुराने की वजह बनता है|
याने विवाह के पहले प्रेम हो या विवाह के
बाद पनपे,सबसे ज़रूरी है प्रेम का होना......कि इन्हीं ढाई आख़रों में ज़िदगी का सुख छिपा
है |
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अनुलता राज नायर - भोपाल
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