इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Saturday, November 24, 2012

बावली नदी


 नदी हूँ मैं 

नदिया के जैसी ही  

चाहत मेरी है... 

समंदर! तू कितना खारा है 

फिर भी मुझे जान से प्यारा है....


इतराती,इठलाती
मेरी हर मस्ती पर तू
रोक लगा देता है
ठहरा देता है मुझे...
पर मेरा मन तो तेरे लिए बावरा है
समंदर ! तू मुझे जान से प्यारा है...

तुझ में मिल कर
मैं भी खारी हो जाती
नदी,नदी न रहती
वो भी समंदर हो जाती..
मुझे मेरा अस्तित्व खोना भी गवारा है
तू मुझे जान से जो प्यारा है...

अब न कोई फूल खिले मुझमें 
न प्यास बुझे प्यासे की
मुझ जैसी जाने कितनी को
तूने खुद में उतारा है
मैंने  ये स सहर्ष स्वीकारा है
क्यूँकि एक तू ही मुझे जान से प्यारा है... 

-अनु 


Monday, November 19, 2012

प्रेम और जुदाई (दूसरी किश्त)



प्रेम की दूसरी किश्त तो जुदाई ही हो सकती है...कौन सा प्रेम है जिसने जुदाई का दर्द न भोगा हो.....जब जुदाई है तो दर्द है...और दर्द है तभी तो उपजी है कविता...

पहले मेरे दिल में तुम्हारा प्रेम पला करता था
अब तुम्हारे लौट आने की उम्मीद...
तुम्हारे प्रेम से उत्सर्जित
पराबैंगनी किरणों ने
मुझे दृष्टिहीन कर दिया है...
नष्ट हो जाती है
प्रेमोन्माद में 
ओजोन लेयर.......
(प्रेम ह्रदय में एक झूठी आस का दीप जला देता है.....और रोशन रहता है मन इस की लौ से )

तेरे जाने के बाद
जिए हैं मैंने
एक बरस में कई बरस..
कुछ साल
तुमसे
बड़ी हो गयी हूँ
उम्र में ..
अब तो मान लो मेरा कहा .....
(प्रेम याचक बना देता है कभी कभी,या शायद हमेशा...प्रेम देता अधिकार से है मगर इसके पास मांगने के हक़ नहीं हुआ करते...)

तय होती है
सबके हिस्से की ज़िन्दगी
जन्म के पहले से ही....
तेरे साथ
उन चंद सालों में
जी ली मैंने
अपने हिस्से की
पूरी ज़िन्दगी...
अब कहो-
कैसे गुजारूं
अपनी बाकी की उम्र ?
(तेरा यूँ साथ छोडना मुझे गवारा नहीं....जिद्द है तुझे फिर पाने की,मगर कैसे कहूँ???) 

अब  तुम यूँ मिले हो कि पास होकर भी जाने कितनी दूरियां हैं हमारे दरमियान...कितना अनकहा है हमारे बीच, मगर शब्द नहीं हैं...
चुप्पी से बेहतर है
की जायें कुछ
बातें बेवजह....
प्यार का न सही
कोई पुल
तकरार का ही बने
तेरे मेरे दरमियान......
अब नहीं तो क्या....कभी तो था तेरा मुझसे कोई वास्ता.

तू  चला गया इसका क्या गम करूँ.....कभी पास था ये सुकून है......
क्या हुआ जो सुखान्त नहीं,
तेरी मेरी एक कहानी तो है..............
-अनु

Thursday, November 15, 2012

प्रेम और जुदाई (पहली किश्त )


पूरे चाँद की रात हो या हो अमावस...
झरा हो हरसिंगार या कोई काँटा चुभा हो...
तेरा आना हो या चले जाना हो...
दिल में मोहब्बत का सैलाब हो या आँखों में आंसुओं का.......कलम का चल पड़ना लाज़मी है

और ये जज़्बात न वक्त देते हैं न मौका......सो जब,जैसा और जहाँ दिल ने कहा और कलम ने लिखा वो आपसे साझा करती हूँ.....याने टुकड़े टुकड़े हाले दिल <3
   
       एक कारवां की तलाश थी
       
कि भीड़ में गुम हो सकूँ,
       
कारवां तो पा लिया
       
वहीँ तू मुझको मिल गया..
       
अब न कारवां मुझे चाहिए
       
न भीड़ में सुकून है.......(यूँ शुरू हुआ सिलसिला मोहब्बत का.......)
2       
   तितली बनना चाहती हूँ....
रंगबिरंगी तितली
महके फूलों के करीब
उडूं आज़ादी से...
और कभी उसके हाथ आयी
तो पकड़ कर
सीने से लगायी
किसी पुस्तक में सहेज लेगा
सदा के लिए...
.....(प्रेम की पराकाष्ठा !!!!)
  
    उस रोज
जब सीना चीर कर
तुम दे रहे थे
सबूत अपनी मोहब्बत का..
तब चुपके से वहाँ
मैंने अपना एक ख्वाब
छिपा दिया था ...
जो हलचल है तेरे दिल में उसे
धडकन न समझना......
(मोहब्बत एक दीवानगी ही तो है...)

एहसास किसी ख्वाहिश के पूरा होने सा.....
अमावस में चाँद के मिलने सा....
मुस्कुरा उठते हैं लब
चमक जाती हैं आँखें....

मेरे खुश होने के लिए
एक फूल का खिलना काफी है....(खुश होने के बहाने खोजना ही प्रेम है शायद...)
 
   कभी तुम
     
मेरा कोई ख्वाब तो देखो !!
     
देखो मुझे ,
     
तुम से मोहब्ब्त करते...
     
क्यूंकि मैंने
     
तेरे ख्वाबों के
    
सच होने की
    
दुआ मांगी है...... 
  (कुछ अधूरापन सा लगता है कभी......तब ख्वाब  बुने जाते हैं यूँ ही.)
    फिर जुदाई का मौसम..........प्यार में दर्द न हो ऐसा कब होता है.

क्रमशः..... 

अनु


Wednesday, November 7, 2012

तेरे बाद......

तेरे  बाद
बेतरतीब सी ज़िन्दगी को
समेटा पहले...
अपने बिखरे वजूद को
करीने  से लगाया ..

अब इकट्ठा कर रही हूँ
तेरी यादों की रद्दी,
गराज में पड़े एक
पुराने सीले
गत्ते के बक्से में..
वक्त  के साथ पड़ती
दीमक  देख कर
तसल्ली  भी है,
कि शायद 
देर सवेर निजात पा ही लूंगी
इन बासी होती यादों से.....

मोहब्बत  से खाली दिल
भुतही  यादों का डेरा बन गया है
जल्द  से जल्द
कैसे  निज़ात पाऊं इनसे ?

कमबख्त यादें...
इनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!

अनु

Saturday, November 3, 2012

आप ही आप रूठी हूँ इन दिनों....

सुस्त रफ़्तार दिन
नीरस पल छिन
बेसुर गीत
बेसुध हवा
पसरा  सन्नाटा
अलसाया जंगल
चिड़चिड़ी चिड़िया
अनमना आसमान
बुझे बुझे तारे
अटपटा  चाँद
रूठे से फूल
ज़र्द पत्ते
सर्द मौसम
बेतरतीब किरणें
उलझे लोग
निरुत्तरित आँखें


मुझे सब मुझ जैसा  दिखता  इन दिनों.....
      शायद आप ही आप रूठी हूँ इन दिनों.......

-अनु 

नए पुराने मौसम

मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...