दिसम्बर के आते ही
सुनाई देने लगती है नए साल की दस्तक
जो तेज़ होती जाती है हर दिन
मानों आगंतुक अधीर हो उठा हो !
मेरा मन भी अधीर हो उठता है
जाते वर्ष की रूंधी आवाज़ और सीली पलकें देख....
बिसरा दिए जाने का दुःख खूब जानती हूँ मैं |
तसल्ली दी मैंने बीते साल को कि
वो रहेगा सदा मेरी स्मृतियों में !
सो जमा कर रही हूँ एक संदूक में
बीते वर्ष की हर बात
जिसने मुझे सहलाया/रुलाया/बहकाया/सिखाया...
...
संदूक में सबसे नीचे रखीं मैंने
अधूरे स्वप्नों की टीस,अनकही बातों की कसक
और कहे - सुने कसैले शब्द !
भटकनों को दबा रही हूँ तली में, अखबार के नीचे......
फिर रखे खट्टे मीठे ,इमली के बूटों जैसे दिन.....
कि उन्हें देख कभी मुस्कुराऊँगी,सीली आँखों से !
इसके ऊपर रखे मैंने मोरपंखी दिन
साथ में तुम्हारी हंसी,होशियारी और मेरा प्रेम |
सबसे ऊपर रखूँगी मेरी डायरी का पन्ना
जिस पर लिखा होगा
विदा
तुमसे ही सुना था ये शब्द......
विदा !!!!
संदूक में सबसे नीचे रखीं मैंने
अधूरे स्वप्नों की टीस,अनकही बातों की कसक
और कहे - सुने कसैले शब्द !
भटकनों को दबा रही हूँ तली में, अखबार के नीचे......
फिर रखे खट्टे मीठे ,इमली के बूटों जैसे दिन.....
कि उन्हें देख कभी मुस्कुराऊँगी,सीली आँखों से !
इसके ऊपर रखे मैंने मोरपंखी दिन
साथ में तुम्हारी हंसी,होशियारी और मेरा प्रेम |
सबसे ऊपर रखूँगी मेरी डायरी का पन्ना
जिस पर लिखा होगा
विदा
तुमसे ही सुना था ये शब्द......
विदा !!!!
-अनुलता -