सरसराती ,फन उठाती
बिन बुलाये ,
अनचाही एक
याद गुज़री.....
जाने कब की
बीती बितायी
बासी पड़ी
एक बात गुज़री...
ले गयी वो
चैन मन का
आंसुओं में
रात गुज़री.....
भीगे भीगे ख्वाब सारे
भीगे थे हर सू नज़ारे
बादलों में भीगती
बारात गुज़री.....
महके गुलाबी
कागजों में
झूठी एक
सौगात गुज़री....
बंद करके
रख दिए थे
मैंने माज़ी के दरीचे
सेंध करके
छुप-छुपाती
याद वो बलात गुज़री....
सच का चेहरा
मुझको दिखाती
आइना ले साथ गुज़री !
सरसराती फनफनाती
विष भरी
एक याद गुज़री...............
~अनुलता~
बिन बुलाये ,
अनचाही एक
याद गुज़री.....
जाने कब की
बीती बितायी
बासी पड़ी
एक बात गुज़री...
ले गयी वो
चैन मन का
आंसुओं में
रात गुज़री.....
भीगे भीगे ख्वाब सारे
भीगे थे हर सू नज़ारे
बादलों में भीगती
बारात गुज़री.....
महके गुलाबी
कागजों में
झूठी एक
सौगात गुज़री....
बंद करके
रख दिए थे
मैंने माज़ी के दरीचे
सेंध करके
छुप-छुपाती
याद वो बलात गुज़री....
सच का चेहरा
मुझको दिखाती
आइना ले साथ गुज़री !
सरसराती फनफनाती
विष भरी
एक याद गुज़री...............
~अनुलता~
I loved these lines -
ReplyDelete"महके गुलाबी
कागजों में
झूठी एक
सौगात गुज़री...."
Beautiful poem.
आभार आपका रविकर जी !
ReplyDeletebahut sundar bhav anu ji ............
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन बच्चे और हम - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआभारी हूँ शिवम्...
Deleteबड़ी अजीब शै है ये गुज़री यादें भी, कभी मन का चैन हर लेती हैं, तो कभी सुकून देती हैं। बहुत खूबसूरत रचना...
ReplyDeleteहर मन की तो यही गति.. सुन्दर लिखा है..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबच्चन जी ने लिखा था - रात आधी/खींचकर मेरी हथेली/ एक उँगली से लिखा था प्यार तुमने.
ReplyDeleteऔर तुमने आँसुओं से भीगी रातों में यादों के नागों के दंश को जिस तरह से प्रस्तुत किय है वह सचमुच महसूस होता है. कविता की बुनावट ऐसी है मानो साँपों की चाल हो, जो कविता के भाव को बड़ी ख़ूबसूरती से सम्प्रेषित करती है. बहुत बढिया!
विष भरी यादों को भी न जाने क्यों मिल जाते हैं दरीचे जब कि बलात हम उन्हें बंद कोठरी में रखना चाहते हैं .
ReplyDeleteविश्भारी यादें गुज़र जाएँ और लौट के न आयें तो कितना अच्छा ... पर ऐसा कहाँ होता है ...
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति ...
गुजरी यादें .....हवा,मिट्टी और पानी की तरह होती हैं जो किसी के रोके नही रूकती ....
ReplyDeleteखूब | स्वस्थ रहें!
अनचाही विषधर याद :) सुंदर !!
ReplyDeleteअचानक ही ऐसी यादों के थपेड़े चलते हैं और हम हरबार सभलने के बाद फिर बिखर जाते हैं...सही उपमा दी है 'विष भरी इक याद गुजरी'....
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना है अनु , मंगलकामनाएं आपको !
ReplyDelete
ReplyDeleteबंद करके
रख दिए थे
मैंने माज़ी के दरीचे
सेंध करके
छुप-छुपाती
याद वो बलात गुज़री....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
सादर -----
सुंदर रचना
ReplyDeletebahut hi shaandar rachna
ReplyDeleteबधाई स्वीकार करे और आपका आभार !
कृपया मेरे ब्लोग्स पर आपका स्वागत है . आईये और अपनी बहुमूल्य राय से हमें अनुग्रहित करे.
कविताओ के मन से
कहानियो के मन से
बस यूँ ही
बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteबधाई
नई पोस्ट पर भी पधारेँ।
सरसराती फनफनाती विष भरी एक याद गुज़री...............achchha bimb hai
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteना चाहते हुए भी कुछ यादें सदा के लिए याद रह जाती हैं
ReplyDeleteबहुत खूब !
साभार !
क्या बात है ......... यादों को हथेली में ले मुट्ठी बंद करो तो कुछ यूँ ही बूंदा-बांदी होती है
ReplyDeleteचाहे जितना फन फैलाएँ... मगर यह यादें ही तो है जो जीवन का आधार होती है। नहीं ? हमेशा की तरह सुंदर भाव लिए सार्थक भवाभिव्यक्ति... ...:-)
ReplyDeleteउम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@दर्द दिलों के
नयी पोस्ट@बड़ी दूर से आये हैं
ये तो बिलकुल गीत जैसा लगा, बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है।
ReplyDeletebahut hi sundar rachna...
ReplyDeleteapki ye kavita sada hame yaad rahegi.... ek amit chap chor gayi aur is kavita ki yaad ko hum "guzarne" nahi denge... sada asmaran rehne wali hai ye kavita...
a masterpiece...