निरर्थक है
लिखा जाना
प्रेम कविताओं का |
कि जो लिखते हैं
उन्होंने भोगा नहीं होता प्रेम !
और जो भोगते हैं
उन्हें व्यर्थ लगता है
उसे यूँ
व्यक्त करना....
मनगढ़ंत किस्से,
काल्पनिक बातें
और कोरी बयानबाजियां हैं
प्रेम कवितायें |
प्रेमी नहीं करते बातें
चाँद तारों की
नदी पहाड़ों की
लहरों किनारों की या
झड़ते चनारों की.....
प्रेमी नहीं करते बातें
ऐसी -वैसी
कैसी भी !
वे नहीं करते प्रेम से इतर
कुछ भी....
~अनुलता ~
लिखा जाना
प्रेम कविताओं का |
कि जो लिखते हैं
उन्होंने भोगा नहीं होता प्रेम !
और जो भोगते हैं
उन्हें व्यर्थ लगता है
उसे यूँ
व्यक्त करना....
मनगढ़ंत किस्से,
काल्पनिक बातें
और कोरी बयानबाजियां हैं
प्रेम कवितायें |
प्रेमी नहीं करते बातें
चाँद तारों की
नदी पहाड़ों की
लहरों किनारों की या
झड़ते चनारों की.....
प्रेमी नहीं करते बातें
ऐसी -वैसी
कैसी भी !
वे नहीं करते प्रेम से इतर
कुछ भी....
~अनुलता ~
प्रेम के रूप जाने कितने ... कभी मन में पले कभी शब्दों में ढले
ReplyDeletebikul sahi farmaya aapne .. jinhone pyar kiya hota hai wo aise nadi talaab baadal ki baatein nahi karte aur jo aise chaand taaron ke kisse kahte hain unko pyar ki speling bhi nahi aati ... kuchh baatein ankahi hi bhali.
ReplyDeleteअनु ,प्रेम होता ही इतना प्यारा है कि और कुछ सोचने ही नही देता ..... इस प्रेमिल रचना के लिये बहुत - बहुत ढेर सारा प्यार ..... सस्नेह !
ReplyDeleteवे नहीं करते प्रेम से इतर
ReplyDeleteकुछ भी....
...वाह..बिल्कुल सच..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
सच है! प्रेम पर तो उसे ही लिखना चाहिए जिसे इसका अनुभव हो!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अनु दी!
आपकी लिखी रचना शनिवार 05 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
शुक्रिया यशोदा :-)
DeleteLoves never explain
ReplyDeleteप्रेमी कहाँ मिलते हैं
ReplyDeleteमिलना चाहो अगर
इस जहाँ में कहीं :)
सुंदर भाव सुंदर रचना ।
प्रेम तो अपरिभाषित होता है ..जो परिभाषित हो पाए वो प्रेम कहाँ
ReplyDeleteवे नहीं करते प्रेम से इतर
ReplyDeleteकुछ भी....
प्रेम होता है तो मौन में भी एक संवाद होता है
आपका बहुत बहुत शुक्रिया !!
ReplyDeleteऔर जो भोगते हैं
ReplyDeleteउन्हें व्यर्थ लगता है
उसे यूँ
व्यक्त करना....
/
यही कारण है कि मैं प्रेम कविताएँ नहीं लिख पाता... प्रेम बहुत कुछ वैसा ही है कि जिसने देखा है (दिल) वो बेचारा कविता नहीं कर सकता, और जो कविता कर सकता है (दिमाग़) उसने देखा ही कहाँ!
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति!
बहुत ही सशक्त.
ReplyDeleteरामराम.
वाह, कमाल की रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत ही ख़ूबसूरती से आपने प्रेम को महसूस कराती रचना पढ़वाई है. सचमुच प्रेम बातें कैसे कर सकता है. प्रेम करने वाले तो बस प्रेम करते हैं. बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबिलकुल सत्य कहा है अनु,
ReplyDeleteप्रेम कविताओं का लिखा जाना ही साबित करता है कि प्रेम की कमी है !
प्रेम में जिया जाता है लिखा नहीं जाता और जो जीते है वे कहते नहीं, जो प्रेम को जीते नहीं वे कहते है ! लेकिन अनु, प्रेम कविता प्रेम गीत लिखने में कोई हर्ज भी तो नहीं है इतना निरर्थक भी तो नहीं है क्या पता प्रेम कविता लिखते लिखते एक दिन प्रेम में जीना भी आ जाय :) सुन्दर लगी रचना !
प्रेमी प्रेम से इतर कुछ नहीं करते ... पर जब जुदाई के लम्हे आते हैं ... तब शब्द अपने आप निकल आते हैं ...
ReplyDeleteशायद कल्पना प्रेम से अधिक खूबसूरत होती है, और प्रेम कल्पना जैसा खूबसूरत नहीं होता :) . बहुत सुन्दर कविता।
ReplyDeleteप्रेम होने में जो है , शब्दों में कहीं अधिक है !
ReplyDeleteजरुरी है प्रेम का होना , शब्दों के सिवा भी !!
प्रेम में जाने क्या-क्या करते पर काम की बातें नहीं... ये भी सच है कि न चाँद तारों की बातें न वैसी बातें जो कविता में उतरती है...
ReplyDeleteगहरे अर्थ लिए हुए रचना, बधाई.
वे नहीं करते प्रेम से इतर
ReplyDeleteकुछ भी....Bilkul sach!
सच है , प्रेम करने वालों के पास न कोई 'ब्लू प्रिंट' होता है ,न कोई 'रोड मैप' । वो तो बस प्रेम कर बैठते हैं और डूब जाते हैं अपने प्रेम में , दुनिया से बेखबर ।
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