गुनगुना रही थी झील
एक बंदिश राग भैरवी की
कि पानी में झलक रहा था अक्स
उसके ललाट की बिंदी का |
उसके डूबे हुए तलवों ने
पवित्र कर दिया था पानी
कि घुल रही थी पायलों की चांदी
धीरे धीरे.....
झील की सतह पर
उँगलियों से अपनी
वो लिखती रही
प्रेम !!
पढ़ा था झील ने ,
और उसको
फ़रिश्ता करार दिया |
~अनुलता~
एक बंदिश राग भैरवी की
कि पानी में झलक रहा था अक्स
उसके ललाट की बिंदी का |
उसके डूबे हुए तलवों ने
पवित्र कर दिया था पानी
कि घुल रही थी पायलों की चांदी
धीरे धीरे.....
झील की सतह पर
उँगलियों से अपनी
वो लिखती रही
प्रेम !!
पढ़ा था झील ने ,
और उसको
फ़रिश्ता करार दिया |
~अनुलता~
प्रेम के कोमल अहसास से मर्म को सहलाती कोमल सी रचना !
ReplyDeleteऔर झील नदी होकर बह चली प्रेम बांटने उस फ़रिश्ते के साथ …बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteरे मन
ReplyDeleteप्रेम पर ठहरी हैं
झील सी गहरी हैं
तोरे मन की बतियाँ ......
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ॥अनु ...!!
Soft, Delicate and Beautiful ...
ReplyDeleteWaah, Behtreen....
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन मिलिए १६ वीं लोकसभा की नई अध्यक्षा से - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteशुक्रिया शिवम् !!
Deleteयकीनन एक सुन्दर पोस्ट.....
ReplyDeleteझील पर मन का श्रृंगार .... बधाई
ReplyDeleteप्रेम लिखने और समझने वाला तो फ़रिश्ता ही हुआ !
ReplyDeleteखूबसूरत गीत है प्रेम का !
बहुत ही सुंदर और भावमय.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत खूब .. और झील बांटती रही ताउम्र उस प्रेम को ... शीतल करती रही प्रेम के प्यासों को ...
ReplyDeleteगहरा प्रेम ...
पढ़ा था झील ने ,
ReplyDelete.......
वाह ..... अनुपम भाव
बहुत खूब... :)
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteअनुलता का दूसरा नाम प्रेम है.. :)
ReplyDelete:-) <3
Deleteमैं भी वही कहना चाहती हूँ जो दीपिका जी ने कहा है । सचमुच प्रेम की अभिव्यक्ति आपका अनुपम है अनु जी ।
ReplyDeleteतुम्हारी कविताओं में प्रेम के जितने शेड्स दिखे हैं मुझे और जितने अनोखे, उसका बयान मुश्किल है!! जीती रहो!
ReplyDeleteदादा शुक्रिया <3
Deleteबहुत खूब...
ReplyDeleteबेहद सशक्त व सार्थक अभिव्यक्ति इतनी सुन्दर रचना के लिए बधाई तो लेना ही पड़ेगी
ReplyDeleteसुन्दर..
ReplyDeleteप्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति .
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर चित्रांकन। :)
ReplyDeleteसादर
मधुरेश