दैनिक भास्कर -मधुरिमा- में प्रकाशित मेरी कवर स्टोरी 9 अक्टूबर 2013
http://epaper.bhaskar.com/magazine/madhurima/213/09102013/mpcg/1/
पौराणिक और प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ करते हुए यदि आज तक स्त्रियों के विषय में विचार करें तो सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा से लेकर, वैदिक काल की अपाला,घोषा, सावित्री और सूर्या जैसी ऋषिकायें, उपनिषद काल की गार्गी और मैत्रेयी जैसी विदुषियाँ , मध्यकाल और पूर्व-आधुनिक काल की अहिल्या बाई, रज़िया सुल्तान, लक्ष्मी बाई और चाँद बीबी जैसी शासक सम्पूर्ण नारी शक्ति को बेहद सुन्दर और सशक्त रूप से परिभाषित करती हैं |
फिर इतने गौरवान्वित इतिहास वाली नारी उन्नीसवीं सदी के आते आते इतनी अधिकारविहीन और निर्भर कैसे हो गयी ? आखिर नारीवाद के तहत नारियों के उत्थान की आवश्यकता हुई क्यूँ ?
“शक्ति रूपी” दुर्गा याने दुर्ग, अर्थात अभेद्य | जो सुरक्षित है जो शक्तिशाली है, ईश्वरीय है, श्रेष्ठ है और जो माँ है | दुर्गा शिव की ऊर्जा हैं उनकी अभिव्यंजना हैं | शिव स्थिर और अपरिवर्तनीय हैं , ब्रह्माण्ड की प्रक्रियाओं से अप्रभावित हैं,इसलिए दुर्गा ही कर्ता हैं जो मानवजाति की पाप और विपत्तियों से रक्षा करती हैं और उन्हें क्रोध, पाप, घृणा, अहं लोभ और अहंकार से बचाती है | दुर्गा केवल ईश्वरीय शक्ति नहीं है बल्कि उन्होंने सृष्टि की रक्षा के लिए देवों की सम्पूर्ण शक्ति को ग्रहण किया |
पार्वती के तन से मुक्त होकर दुर्गा शक्ति बनीं और शुम्भ निशुम्भ का नाश किया | दुर्गा ने “काली” का सृजन किया रक्तबीज के संहार के लिए | आज जब सैकड़ों रक्तबीज फैले हैं तो नारी के भीतर भी तो काली का वास है ! काली की शक्ति ने समूचा ब्रह्माण्ड दहला दिया था तब उनके क्रोध को शांत करने के लिए स्वयं शिव उनके पैरों तले आये | आधुनिक समाज ने जाने अनजाने स्त्रियों को सिखाया अपनी क्षमताओं अपनी शक्तियों को कम आंकना | स्त्रियाँ जूझती रही हैं अपनी स्त्रियोचित समस्याओं से, फिर वे चाहे कामकाजी हों,श्रमिक हों या घरेलू हों और भूलती गयीं कि उनके भीतर शक्ति का वास है, वे जननी हैं,सृष्टिकर्ता हैं |
वास्तव में हर स्त्री के भीतर अलौकिक दृष्टि होती है किसी भी रूप में छिपे राक्षस को पहचान पाने की,बस उसे पहचानना है स्वयं अपने भीतर छिपी इस शक्ति को |
दुर्गा की तरह स्त्री में भी देवों सी शक्ति है,ऋषियों सा धैर्य और ज्ञान है | वो आलोकित करती है चारों दिशाओं को, मगर उसे ख़याल रखना होगा कि दीप तले अँधेरा न होने पाए | वो स्वाभिमानी हो अभिमानी नहीं | अंधविश्वासों और रूढ़ियों को तोड़ने का साहस करे | शिक्षित और सुसंस्कृत समाज की नींव का पत्थर बन नारी आज अपने भविष्य की इमारत को स्वयं सुदृढ़ कर सकती है |
राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त जी ने कहा भी है-
"एक नहीं, दो-दो मात्राएँ, नर से बढ़कर नारी"......|
- अनुलता राज नायर -
http://epaper.bhaskar.com/magazine/madhurima/213/09102013/mpcg/1/
पौराणिक और प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ करते हुए यदि आज तक स्त्रियों के विषय में विचार करें तो सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा से लेकर, वैदिक काल की अपाला,घोषा, सावित्री और सूर्या जैसी ऋषिकायें, उपनिषद काल की गार्गी और मैत्रेयी जैसी विदुषियाँ , मध्यकाल और पूर्व-आधुनिक काल की अहिल्या बाई, रज़िया सुल्तान, लक्ष्मी बाई और चाँद बीबी जैसी शासक सम्पूर्ण नारी शक्ति को बेहद सुन्दर और सशक्त रूप से परिभाषित करती हैं |
फिर इतने गौरवान्वित इतिहास वाली नारी उन्नीसवीं सदी के आते आते इतनी अधिकारविहीन और निर्भर कैसे हो गयी ? आखिर नारीवाद के तहत नारियों के उत्थान की आवश्यकता हुई क्यूँ ?
“शक्ति रूपी” दुर्गा याने दुर्ग, अर्थात अभेद्य | जो सुरक्षित है जो शक्तिशाली है, ईश्वरीय है, श्रेष्ठ है और जो माँ है | दुर्गा शिव की ऊर्जा हैं उनकी अभिव्यंजना हैं | शिव स्थिर और अपरिवर्तनीय हैं , ब्रह्माण्ड की प्रक्रियाओं से अप्रभावित हैं,इसलिए दुर्गा ही कर्ता हैं जो मानवजाति की पाप और विपत्तियों से रक्षा करती हैं और उन्हें क्रोध, पाप, घृणा, अहं लोभ और अहंकार से बचाती है | दुर्गा केवल ईश्वरीय शक्ति नहीं है बल्कि उन्होंने सृष्टि की रक्षा के लिए देवों की सम्पूर्ण शक्ति को ग्रहण किया |
पार्वती के तन से मुक्त होकर दुर्गा शक्ति बनीं और शुम्भ निशुम्भ का नाश किया | दुर्गा ने “काली” का सृजन किया रक्तबीज के संहार के लिए | आज जब सैकड़ों रक्तबीज फैले हैं तो नारी के भीतर भी तो काली का वास है ! काली की शक्ति ने समूचा ब्रह्माण्ड दहला दिया था तब उनके क्रोध को शांत करने के लिए स्वयं शिव उनके पैरों तले आये | आधुनिक समाज ने जाने अनजाने स्त्रियों को सिखाया अपनी क्षमताओं अपनी शक्तियों को कम आंकना | स्त्रियाँ जूझती रही हैं अपनी स्त्रियोचित समस्याओं से, फिर वे चाहे कामकाजी हों,श्रमिक हों या घरेलू हों और भूलती गयीं कि उनके भीतर शक्ति का वास है, वे जननी हैं,सृष्टिकर्ता हैं |
वास्तव में हर स्त्री के भीतर अलौकिक दृष्टि होती है किसी भी रूप में छिपे राक्षस को पहचान पाने की,बस उसे पहचानना है स्वयं अपने भीतर छिपी इस शक्ति को |
दुर्गा की तरह स्त्री में भी देवों सी शक्ति है,ऋषियों सा धैर्य और ज्ञान है | वो आलोकित करती है चारों दिशाओं को, मगर उसे ख़याल रखना होगा कि दीप तले अँधेरा न होने पाए | वो स्वाभिमानी हो अभिमानी नहीं | अंधविश्वासों और रूढ़ियों को तोड़ने का साहस करे | शिक्षित और सुसंस्कृत समाज की नींव का पत्थर बन नारी आज अपने भविष्य की इमारत को स्वयं सुदृढ़ कर सकती है |
राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त जी ने कहा भी है-
"एक नहीं, दो-दो मात्राएँ, नर से बढ़कर नारी"......|
- अनुलता राज नायर -
नारी के अनेक रूपों को बहुत सुंदर और सधे हुए रूप में आपने परिभाषित किया है .... बहुत ही सुंदर और अच्छा आलेख ....
ReplyDeleteनारी के अनेक रूपों को बहुत सुंदर और सधे हुए रूप में आपने परिभाषित किया है .... बहुत ही सुंदर और अच्छा आलेख ....
ReplyDelete'नारी' की उन दो अधिक मात्राओं में बच्चों की मात्रा और जुड़ जाती है फिर तो वे सर्वसर्वसर्वसर्वशक्तिशाली हो जाती हैं ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति पर बधाई -
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनायें -
आभार आदरणीया-
बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteसार्थक लेखन के लिए
नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें
bahut prerak kruto
ReplyDeleteनारी सृजन का दूसरा पर्याय है.उसकी शक्ति पुरुषों के मुकाबले के लिए नहीं वरन सृष्टि के संतुलन के लिए है.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति और सार्थक लेखन के लिए बधाई,,,,
ReplyDeleteRECENT POST : अपनी राम कहानी में.
बढ़िया लेख ...बहुत बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteमन को शक्ति दे रहा है ....उज्ज्वल आलेख .....!!
ReplyDeleteवाह बहुत सही बात लिखी है आपने काश हर नारी अपने अंदर छिपी हुई इस शक्ति हो पहचान जाये तो हो सही मायने में एक बार फिर भारत निर्माण...सार्थक भावभिव्यक्ति ...:-)
ReplyDeleteजय माता दी |बहुत सुंदर लेखन |
ReplyDeleteइस सार्थक ओर सामयिक लेख के प्रकाशन पर बहुत बहुत बधाई ...
ReplyDeleteनारी शक्ति को नारी को ही पहचानना होगा ...
अच्छा लगा आलेख , सम्यक विचार
ReplyDeleteबहुत सुंदर .सार्थक लेखनी पर बधाई .
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनाएँ .
इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-10/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -21 पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....
आपका बहुत शुक्रिया.
Deleteसत्य के साथ ..खूबसूरत आलेख
ReplyDelete"एक नहीं, दो-दो मात्राएँ, नर से बढ़कर नारी"......|फिर भी नारी अस्तित्वविहीन...
ReplyDeleteबहुत सुंदर आलेख अनु
सस्नेह
जी मैंने पढ़ी थी..पढ़ते वक्त ही काफी हर्ष हुआ था।। बधाई आपको...
ReplyDeleteसार्थक ओर सामयिक .....खूबसूरत आलेख
ReplyDeleteहर स्त्री के भीतर एक अलौकिक शक्ति छुपी है जिसे उसे खुद ही पहचानना है...बहुत सुन्दर आलेख .
ReplyDeleteबहुत बढिया सार्थक ओर सामयिक ..आलेख...नवरात्रि की शुभकामनाएँ .
ReplyDeleteआभार!!
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है आपने | मैंने पढ़ा पेपर में |
ReplyDeleteमेरी नई रचना :- मेरी चाहत
सुन्दर सार्थक सामयिक प्रस्तुति ..
ReplyDeleteकल पेपर में पढ़कर बहुत अच्छा लगा ..
हार्दिक बधाई
शुभ नवरात्री!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (10-10-2013) "दोस्ती" (चर्चा मंचःअंक-1394) में "मयंक का कोना" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका बहुत आभार शास्त्री जी.
Deleteबहुत ही सशक्त और सारवान, हार्दिक बधाईयां
ReplyDeleteरामराम.
वर्त्तमान सन्दर्भ में बहुत उपयुक्त और सटीक आलेख !
ReplyDeleteलेटेस्ट पोस्ट नव दुर्गा
वर्तमान सन्दर्भ में बहुत उपयुक्त और सटीक आलेख
ReplyDeleteलेटेस्ट पोस्ट नव दुर्गा
@वो स्वाभिमानी हो अभिमानी नहीं
ReplyDeleteबहुत बढ़िया मेरे मन की बात कही है अनु,
बढ़िया लेख के लिए और कवर स्टोरी के प्रकाशन पर
बहुत बहुत बधाई !
नारी सर्वोच्च है ..इसमें और मत कहाँ !
ReplyDeleteनारी सर्वोच्च है ..इसमें और मत कहाँ !
ReplyDeleteनारी को अपनी सकती स्वयं ही पहचाननी है .... बहुत सुंदर लेख ।
ReplyDeleteपौराणिक संदर्भ को आधुनिकता के साथ जोड़कर और विशेषकर नारी शक्ति एक बेहतरीन आलेख |दिल का कोना कोना आपको नमन कर रहा है इस आलेख को पढ़कर |आभार अनु जी |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लेख
ReplyDeleteबहुत सुंदर विश्लेषण !
ReplyDeleteबहुत सुंदर विश्लेषण !
ReplyDeleteबहुत सुंदर विश्लेषण !
ReplyDeleteशक्ति हो-------
ReplyDeleteमधुरिमा का जैसे ही मुख प्रष्ठ देखा मन प्रसन्न हो गया
माँ दुर्गा को केंद्र में रखकर लिखा गया
जानी पहचानी रचनाकार मित्र का आलेख
जिसमे "नारी"को विशेष शक्ति का रूप माना गया
जो धर्मदर्शन के माध्यम से यथार्थ को परिभाषित करता है
यह लेखन की महत्वपूर्ण उपलब्धि है------
बेहद प्रभावशाली व रोचक आलेख
आदरणीया बहुत बहुत बधाई
सादर
बिल्कुल सही बात
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनाएँ .
ReplyDeletebadhaaaaaaaaaaaiiiiiiiiiiiiiiii
ReplyDeletewaastav me shakti ki strot hai naari sundar abhiwayakti ...
ReplyDeleteHi Anuji
ReplyDeleteAnother thought provoking piece from you.
Best Wishes Ram
विचारणीय संस्मरणीय लेख। बधाई।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना!!
ReplyDeleteसुंदर और मनोहारी प्रस्तुति ,मेरे भी ब्लॉग पर आये
ReplyDeletebahut acha kaha apne, par hum bhi ek shakti ko jante hai jiska varnan aap nahi kar payi. hamari di, jo hamare sare pariwar ki shakti hai (aap di ) , humare dadoo and amma ka abhiman hai aap aur hum sab ki jaan hai aap.
ReplyDeletebulu.............<3
Deleteरूक कर चल दी है ... नारी ....?
Deleteया फिर थकती और नए संघर्ष को खोजती है ...|
शक्तिप्रद ....
ReplyDeleteसही बात है..................
ReplyDeleteBahut sundar sandesh.
ReplyDelete