फेनिल नदी में
कंपकंपाते
चाँद का प्रतिबिम्ब
बिंम्ब जो
ठहरा हुआ है वहीं
बहता नहीं लहरों के साथ,
बिंम्ब जो
ठहरा हुआ है वहीं
बहता नहीं लहरों के साथ,
और उस पर झुकी वो
अमलतास की
डाली,
जिसने उतार फेंके थे
जिसने उतार फेंके थे
अपने सभी स्वर्ण आभूषण और
हरे रेशमी वस्त्र भी
लहरों संग बह जाने को...
लहरों संग बह जाने को...
कि प्रेम में जोगन बन जाना
सुहाता है
इसे पंखुड़ियों और पत्तों का
झड़ना मत कहो
ये प्रेम है,विशुद्ध
प्रेम....
ठूंठ हुई डाली अपना सर्वस्व तजना चाहती है
ठूंठ हुई डाली अपना सर्वस्व तजना चाहती है
प्रेम के लिए स्थान बनाने को.
संसार के आवागमन से परे
मन समर्पित हो जाना चाहता है !
संसार के आवागमन से परे
मन समर्पित हो जाना चाहता है !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार - 22/09/2013 को
ReplyDeleteक्यों कुर्बान होती है नारी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः21 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
अद्भुत
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार - 22/09/2013 को
ReplyDeleteक्यों कुर्बान होती है नारी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः21 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
वाह, कितना सुन्दर वर्णन किया है आपने प्रेम की स्थिति का
ReplyDeleteआज की विशेष बुलेटिन विश्व शांति दिवस .... ब्लॉग बुलेटिन में आपकी इस पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर .... आभार।।
ReplyDeleteवाह अनु...प्रेम और समर्पण की यह अद्भुत अभिव्यक्ति मोह गयी ...:)
ReplyDeleteप्रेम की सरिता में बलखाती पंक्तियाँ..... बहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteयह भी प्यार का एक रूप है या शायद यही प्यार है बेहद खूबसूरत रचना...:)
ReplyDeleteAnu Ji
ReplyDeleteYour poem is so beautiful just like the swaying branches reflected in the moving river. I love the picture of you relaxing on your dad's shoulder. Have a great week end.
Best Wishes Ram
very beautiful line"prem me jogan ban suhata hain"...
ReplyDeleteLove is pure n innocent. It's d people with their lies, insecurities, egos n immoral drama that hurt each other n then blame it on love.
- “अजेय-असीम{Unlimited Potential}”
बहुत सुंदर ,तर्क से परे .
ReplyDeleteनई पोस्ट : अद्भुत कला है : बातिक
अनु जी बिल्कुल नई तरह की अच्छी कविता है ।
ReplyDeleteप्रेम और समर्पण ..पूरक एक दूजे के. सुन्दर .
ReplyDeleteबहुत खूब,गहन भाव लिए सुंदर रचना !
ReplyDeleteबहुत खूब,गहन भाव लिए सुंदर रचना !
ReplyDeleteकितना भी हसीन ख्वाब टूट जाता हैं हकीकत को समझाने के लिए .....
ReplyDeleteबहुत गहराए हुए हैं भाव
आंधी
आप हृदय से 'कवियत्री' हैं ,इसीलिए आप लिखती नहीं ,बस सहज उत्पन्न भावों को ज्यों का त्यों परोस देती हैं । प्रेम और समर्पण का बहुत पारदर्शिता से उदाहरण दिया है आपने ।
ReplyDeleteहाँ ! प्रेम की पराकाष्ठा भी तथागत बना देती है....
ReplyDelete!!
हार्दिक शुभकामनायें
कि प्रेम में जोगन बन जाना सुहाता है
ReplyDeleteइसे पंखुड़ियों और पत्तों का झड़ना मत कहो
गहन भावों से सजी रचना
सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteहाँ ! प्रेम की पराकाष्ठा भी तथागत बना देती है.
ReplyDeleteसमर्पण की पराकाष्ठा दर्शाती सुंदर अभिव्यक्ति ...अनु ....!!
फेनिल नदी में
ReplyDeleteकंपकंपाते चाँद का प्रतिबिम्ब
बहुत उम्दा बिम्ब . सुन्दर भाव प्रवाह.. अच्छी रचना ..
.. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (23.09.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि और अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .
प्रेम की पराकाष्ठा भी तथागत बना देती है.
ReplyDeleteवाह ! अत्यंत दार्शनिक बात कही है.
Anuji,
ReplyDeleteVery well written.
Vinnie
अच्छी है ...............
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा.
ReplyDeleteरामराम.
गहन अहसास ,,,
ReplyDeleteकोमल अभिव्यक्ति...
:-)
Bahut sundar
ReplyDelete
ReplyDeleteप्रेम को नई तरीके से परिभाषित करती पोस्ट -बहुत अच्छा
Latest post हे निराकार!
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बहुत सुन्दर गहन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteप्रेम की पराकाष्ठा भी तथागत बना देती है
ReplyDeleteबिल्कुल सच
prem ki utkrish abhiwayakti .....mera blog aapke intjaar me hai ...anu jee ..samay nikalen .....
ReplyDeleteprem ki inteha...........:)
ReplyDeletesundar!!
प्रेम की अद्भुत अनुभूति व्यक्त करती सुंदर रचना
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