इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Friday, September 13, 2013

परफेक्शन


तुम परेशान थे  मेरी आदतों से......चाहते थे कि बदल जाऊं मैं !! हार कर, न चाहते हुए भी, सिर्फ तुम्हारी  खुशी के लिए मैंने भी अपना वजूद एक  लिबास की तरह उतार डाला...और उतारते हुए पलट गया मेरा "मैं",एक लिबास की तरह ही फिर पहन लिया मैंने उसे, उल्टा !!
नतीजतन , अब मेरी आदतें भी उलट गयी हैं, देखो बदल डाला है मैंने खुद को तुम्हारे लिए.......
अब मुझ में जो बुरा था वो भला हो गया और जो थोडा कुछ भला था बुरा हो गया.......

जानती हूँ !
तुम अब भी परेशां हो ??

बस परेशानी की वजहें बदल गयी हैं!!

(गलती तुम्हारी बस ये है कि तुम रिश्तों में परफेक्शन खोजते रहे,और मैं खोजती रहे प्रेम.....तुमने सिर्फ मुझे खोया और मैंने खोया सारा का सारा प्रेम....

[मन की सबसे ऊपरी परत और बक्से में सबसे नीचे दबी हुई  डायरी के पन्ने से.... ]
~अनु ~


41 comments:

  1. कुछ तलाशने में हम कुछ न कुछ खो ही देते हैं न.

    ReplyDelete
  2. जो जैसा है वैसा ही अपनाना चाहिए ... बदलाव सारे वजूद को खत्म कर देता है .... अंतस से निकले शब्द ...

    ReplyDelete
  3. गलती तुम्हारी बस ये है कि तुम रिश्तों में परफेक्शन खोजते रहे,और मैं खोजती रहे प्रेम.....तुमने सिर्फ मुझे खोया और मैंने खोया सारा का सारा प्रेम....

    सच है प्रेम का कैनवास ज्यादा विशाल है और उसे खोने की पीड़ा भी ज्यादा होती है

    ReplyDelete
  4. शुभप्रभात
    आपकी लेखनी दिल को छूती है
    अगर ये बाते जीवन में सच हो तो .........
    हार्दिक शुभकामनायें

    ReplyDelete
  5. प्रेम पे परफेक्शन हो ......परफेक्शन के प्रेम की जगह.....सुन्दर

    ReplyDelete
  6. क्या उसने सुना नहीं था - कुछ भी परफेक्ट नहीं होता !!

    ReplyDelete
  7. बहुत खूबसूरती से आपने अपनी बात कही है

    ReplyDelete
  8. सब परफेक्ट नहीं हो सकता, बदलाव की चाहत अस्तित्व ही बदल देता है..
    गहन भाव लिए बेहतरीन रचना...
    :-)

    ReplyDelete
  9. शायद जीवन में यही सबसे अहम खोया जाता है.

    रामराम.

    ReplyDelete
  10. dil se nikli racnha ,,,,,khona aur pana yahi to jivan hai ..........

    ReplyDelete
  11. परफेक्ट तो भगवान भी नहीं रहे इस दुनिया में ओर अवतार ले के उन्होंने यही साबित भी किया ... फोर काहे को इसकी चाह ... प्रेम के आगे भी क्या कुछ होता है ...

    ReplyDelete
  12. Anuji, Wonderfully expressed. Have a nice weekend. Best Wishes Ram

    ReplyDelete
  13. सच है इस जद्दोज़हद में यही होता है अक्सर ....

    ReplyDelete
  14. खूबसूरत लेखनी

    ReplyDelete
  15. तुम रिश्तों में परफेक्शन खोजते रहे,और मैं खोजती रहे प्रेम.....तुमने सिर्फ मुझे खोया और मैंने खोया सारा का सारा प्रेम....

    सुंदर सृजन !

    RECENT POST : बिखरे स्वर.

    ReplyDelete
  16. नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (15-09-2013) के चर्चामंच - 1369 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

    ReplyDelete
  17. मुसीबत तो यही है .. कि हम जो हैं, जैसे हैं उसे स्वीकृति नहीं मिलती.. एक ऐसे परफेक्शन की तलाश रहती है जो किसी में नहीं होता .. दिल को छू गयी आपकी यह रचना अनु ..
    आपकी इस उत्कृष्ट रचना की प्रविष्टि कल रविवार, 15 सितम्बर 2013 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in पर भी... कृपया पधारें ... औरों को भी पढ़ें |

    ReplyDelete
  18. कितना सोच लेती हैं आप !
    सुन्दर प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  19. जो जैसा है उसे वैसे ही स्वीकार करना प्रेम का आधार है...तुम अगर मुझे बदलना चाहते हो...तो मै भी तो कुछ बदलाव की उम्मीद कर सकता हूँ तुममें...

    ReplyDelete
  20. Lekin prem to kabhi khota nahin hai ,Anu ......vo to perfection tak lekar hii jayega ,bhale adrishya ho jaye ....!!

    ReplyDelete
  21. दिल से निकली हुई सच्ची बात

    ReplyDelete
  22. बहुत सुन्दर भाषा
    सुन्दर प्रस्तुति

    जंगल की डेमोक्रेसी

    ReplyDelete
  23. ब्लॉग प्रसारण लिंक 10 - परफेक्शन [अनुलता]
    अनु जी कितनी उम्दा बात आपने बड़ी ही सहजता और सरलता से कह गए वाह बहुत बहुत बधाई

    ReplyDelete
  24. सीधे दिल को छुती हुई रचना ....

    ReplyDelete
  25. दर्दनाक अभिव्यक्ति ..

    ReplyDelete
  26. सच्ची, सहज दिल की बात ...

    ReplyDelete
  27. I could really feel the helplessness..
    reaching a place where no one is wrong and no one's right

    ReplyDelete
  28. @गलती तुम्हारी बस ये है कि तुम रिश्तों में परफेक्शन खोजते रहे,और मैं खोजती रहे प्रेम.....तुमने सिर्फ मुझे खोया और मैंने खोया सारा का सारा प्रेम....
    बहुत सुन्दर अनु हमेशा की तरह …

    ReplyDelete
  29. शायद प्यार इसी को कहते हैं जैसे वो गीत हैं न " कुछ मिल जाता है कुछ खो जाता है क्या जानिए क्या हो जाता है "

    ReplyDelete


  30. ☆★☆★☆

    तुम रिश्तों में परफेक्शन खोजते रहे,
    और मैं खोजती रहे प्रेम.....
    तुमने सिर्फ मुझे खोया
    और मैंने खोया सारा का सारा प्रेम....

    क्याऽऽ… अनुलता जी !

    अभी आपकी इतनी सरस ललित रचनाएं पढ़ कर मन सुकून की स्थिति तक पहुंचा था...
    खोने का भाव मुझे भीतर तक आहत कर देता है...
    आपकी कई रचनाएं सीधे स्पर्श करती है मन को


    आपकी लेखनी से सदैव संदर श्रेष्ठ सार्थक सृजन होता रहे...
    मंगलकामनाओं सहित...
    -राजेन्द्र स्वर्णकार



    ReplyDelete
  31. खूबसूरत ..................

    ReplyDelete

नए पुराने मौसम

मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...