तुम परेशान थे मेरी आदतों से......चाहते थे कि बदल जाऊं मैं !! हार कर, न चाहते हुए भी, सिर्फ तुम्हारी खुशी के लिए मैंने भी अपना वजूद एक लिबास की तरह उतार डाला...और उतारते हुए पलट गया मेरा "मैं",एक लिबास की तरह ही फिर पहन लिया मैंने उसे, उल्टा !!
नतीजतन , अब मेरी आदतें भी उलट गयी हैं, देखो बदल डाला है मैंने खुद को तुम्हारे लिए.......
अब मुझ में जो बुरा था वो भला हो गया और जो थोडा कुछ भला था बुरा हो गया.......
जानती हूँ !
तुम अब भी परेशां हो ??
बस परेशानी की वजहें बदल गयी हैं!!
(गलती तुम्हारी बस ये है कि तुम रिश्तों में परफेक्शन खोजते रहे,और मैं खोजती रहे प्रेम.....तुमने सिर्फ मुझे खोया और मैंने खोया सारा का सारा प्रेम....
[मन की सबसे ऊपरी परत और बक्से में सबसे नीचे दबी हुई डायरी के पन्ने से.... ]
~अनु ~
कुछ तलाशने में हम कुछ न कुछ खो ही देते हैं न.
ReplyDeleteLoved it!! :)
ReplyDeleteजो जैसा है वैसा ही अपनाना चाहिए ... बदलाव सारे वजूद को खत्म कर देता है .... अंतस से निकले शब्द ...
ReplyDeleteAwsomee...asusual...touched
ReplyDeleteगलती तुम्हारी बस ये है कि तुम रिश्तों में परफेक्शन खोजते रहे,और मैं खोजती रहे प्रेम.....तुमने सिर्फ मुझे खोया और मैंने खोया सारा का सारा प्रेम....
ReplyDeleteसच है प्रेम का कैनवास ज्यादा विशाल है और उसे खोने की पीड़ा भी ज्यादा होती है
शुभप्रभात
ReplyDeleteआपकी लेखनी दिल को छूती है
अगर ये बाते जीवन में सच हो तो .........
हार्दिक शुभकामनायें
प्रेम पे परफेक्शन हो ......परफेक्शन के प्रेम की जगह.....सुन्दर
ReplyDeleteक्या उसने सुना नहीं था - कुछ भी परफेक्ट नहीं होता !!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से आपने अपनी बात कही है
ReplyDeleteसब परफेक्ट नहीं हो सकता, बदलाव की चाहत अस्तित्व ही बदल देता है..
ReplyDeleteगहन भाव लिए बेहतरीन रचना...
:-)
शायद जीवन में यही सबसे अहम खोया जाता है.
ReplyDeleteरामराम.
dil se nikli racnha ,,,,,khona aur pana yahi to jivan hai ..........
ReplyDeleteपरफेक्ट तो भगवान भी नहीं रहे इस दुनिया में ओर अवतार ले के उन्होंने यही साबित भी किया ... फोर काहे को इसकी चाह ... प्रेम के आगे भी क्या कुछ होता है ...
ReplyDeleteAnuji, Wonderfully expressed. Have a nice weekend. Best Wishes Ram
ReplyDeleteसच है इस जद्दोज़हद में यही होता है अक्सर ....
ReplyDeleteखूबसूरत लेखनी
ReplyDeletesundar kathan
ReplyDeleteतुम रिश्तों में परफेक्शन खोजते रहे,और मैं खोजती रहे प्रेम.....तुमने सिर्फ मुझे खोया और मैंने खोया सारा का सारा प्रेम....
ReplyDeleteसुंदर सृजन !
RECENT POST : बिखरे स्वर.
अंतर्मन से निकले शब्द.
ReplyDeleteनई पोस्ट : कितना चमत्कारी है : रुद्राक्ष
नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (15-09-2013) के चर्चामंच - 1369 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteमुसीबत तो यही है .. कि हम जो हैं, जैसे हैं उसे स्वीकृति नहीं मिलती.. एक ऐसे परफेक्शन की तलाश रहती है जो किसी में नहीं होता .. दिल को छू गयी आपकी यह रचना अनु ..
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट रचना की प्रविष्टि कल रविवार, 15 सितम्बर 2013 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in पर भी... कृपया पधारें ... औरों को भी पढ़ें |
कितना सोच लेती हैं आप !
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति।
वाह .. बढ़िया .
ReplyDeleteबहुत बढियां जी |
ReplyDeleteजो जैसा है उसे वैसे ही स्वीकार करना प्रेम का आधार है...तुम अगर मुझे बदलना चाहते हो...तो मै भी तो कुछ बदलाव की उम्मीद कर सकता हूँ तुममें...
ReplyDeleteLekin prem to kabhi khota nahin hai ,Anu ......vo to perfection tak lekar hii jayega ,bhale adrishya ho jaye ....!!
ReplyDeleteदिल से निकली हुई सच्ची बात
ReplyDeletebehtreen rachna sidhe dil se nikli hui ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाषा
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
जंगल की डेमोक्रेसी
ब्लॉग प्रसारण लिंक 10 - परफेक्शन [अनुलता]
ReplyDeleteअनु जी कितनी उम्दा बात आपने बड़ी ही सहजता और सरलता से कह गए वाह बहुत बहुत बधाई
सीधे दिल को छुती हुई रचना ....
ReplyDeleteदर्दनाक अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteअति सुंदर।
ReplyDeleteअति सुंदर।
ReplyDeleteसच्ची, सहज दिल की बात ...
ReplyDeleteI could really feel the helplessness..
ReplyDeletereaching a place where no one is wrong and no one's right
@गलती तुम्हारी बस ये है कि तुम रिश्तों में परफेक्शन खोजते रहे,और मैं खोजती रहे प्रेम.....तुमने सिर्फ मुझे खोया और मैंने खोया सारा का सारा प्रेम....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अनु हमेशा की तरह …
शायद प्यार इसी को कहते हैं जैसे वो गीत हैं न " कुछ मिल जाता है कुछ खो जाता है क्या जानिए क्या हो जाता है "
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDelete☆★☆★☆
तुम रिश्तों में परफेक्शन खोजते रहे,
और मैं खोजती रहे प्रेम.....
तुमने सिर्फ मुझे खोया
और मैंने खोया सारा का सारा प्रेम....
क्याऽऽ… अनुलता जी !
अभी आपकी इतनी सरस ललित रचनाएं पढ़ कर मन सुकून की स्थिति तक पहुंचा था...
खोने का भाव मुझे भीतर तक आहत कर देता है...
आपकी कई रचनाएं सीधे स्पर्श करती है मन को
आपकी लेखनी से सदैव संदर श्रेष्ठ सार्थक सृजन होता रहे...
मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
खूबसूरत ..................
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