दुष्यंत संग्रहालय, भोपाल में सरोकार संस्था द्वारा बेटियों पर आधारित समारोह -
मेरी जिस कविता को सम्मान और सराहना मिली वो साझा कर रही हूँ.....
मिट्टी नहीं करती भेदभाव
अपने भीतर दबे बीजों पर...
होते हैं सभी बीज अंकुरित
और लहलहाते हैं
फूलते हैं, खिलते हैं....
अपने भीतर दबे बीजों पर...
होते हैं सभी बीज अंकुरित
और लहलहाते हैं
फूलते हैं, खिलते हैं....
मनुष्य ऐसा नहीं है !
वो मसल देता है
उन बीजों को
जिनसे जन्मती हैं बेटियाँ ...
वो मसल देता है
उन बीजों को
जिनसे जन्मती हैं बेटियाँ ...
ईश्वर ने मनुष्य को बुद्धि दी,
मनुष्य ने
स्वयं को ईश्वर बना लिया |
मनुष्य ने
स्वयं को ईश्वर बना लिया |
ईश्वर के आंसुओं से भीगती हैं मिट्टी
अन्खुआते हैं बीज,
मनुष्य का मन नहीं भीगता
न आंसुओं से न रक्त से !
अन्खुआते हैं बीज,
मनुष्य का मन नहीं भीगता
न आंसुओं से न रक्त से !
बेटियाँ
बेटियाँ अलग होती हैं
पहला निवाला
घी वाला
उसका नहीं होता अक्सर
मगर
उसे आता है ये भूल जाना
और तोडती है वो अपने निवाले खुद,
हर कौर उसका अपना !
उसके हिस्से आती है पुरानी यूनिफोर्म
पढ़ती है पुरानी किताबों से
फिर लिखती है नयी कहानियाँ
उसके हस्ताक्षर अब सब जानते हैं !
उसके जन्म के समय
नहीं खाए माँ ने लड्डू,
नहीं बांटी मिठाई पिता ने/दादी ने
मगर बेटियाँ नहीं याद रखतीं ये सब...
लड्डुओं की बड़ी टोकरी
पहुँचती है मायके
हर सावन
बिना नागा !
सच !! बेटियाँ अलग होती हैं !!
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बेटियाँ अलग होती हैं
पहला निवाला
घी वाला
उसका नहीं होता अक्सर
मगर
उसे आता है ये भूल जाना
और तोडती है वो अपने निवाले खुद,
हर कौर उसका अपना !
उसके हिस्से आती है पुरानी यूनिफोर्म
पढ़ती है पुरानी किताबों से
फिर लिखती है नयी कहानियाँ
उसके हस्ताक्षर अब सब जानते हैं !
उसके जन्म के समय
नहीं खाए माँ ने लड्डू,
नहीं बांटी मिठाई पिता ने/दादी ने
मगर बेटियाँ नहीं याद रखतीं ये सब...
लड्डुओं की बड़ी टोकरी
पहुँचती है मायके
हर सावन
बिना नागा !
सच !! बेटियाँ अलग होती हैं !!
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आपका आभार रविकर जी
ReplyDeleteshubhkaamnaein
ReplyDeleteबधाई की पात्र है रचना आपकी
ReplyDeleteबेटियाँ सचमुच अलग होती हैं ... तभी तो पाती हैं जब भी मुक़ाम कोई तो
ReplyDeleteकभी माँ को समर्पित करती हैं तो कभी बाबा का नाम करती हैं
...............बहुत-बहुत बधाई के साथ अनंत शुभकामनाएँ
सादर
बहुत संवेदनशील ... बेटियाँ जो घर का नगीना होती हैं उसे जाने कैसे मसल देते हैं लोग ...
ReplyDeleteघर, घर ;लगता है बेटियों से ही. हैवान होते हैं वे लोग जो कद्र नहीं करते उनकी.
ReplyDeleteअच्छी रचनाएँ।
ReplyDeleteदोनों कविता बहुत सुन्दर हैं दीदी...बहुत संवेदनशील..और एक बार फिर से बधाई आपको !
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी कविताएं ...
ReplyDeleteशायद इसीलिए बेटियां घर की "चिराग" कही गयी
ReplyDeleteआपका लेखन हमेशां शानदार और जानदार लगता है
:)
रंगरूट
मुबारकबाद...बहुत खूब...
ReplyDeleteबेटियों को समर्पित सुंदर भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteयह सत्य है कि मिट्टी और स्त्री दोनों ही का बहुत महत्त्व है और दोनों बहुत कुछ देती हैं और अक्सर बिना कुछ पाए। स्वयं शून्य
ReplyDeletebetiyan tulsi aangan ki
ReplyDeletekabhi is ghar kabhi us ghar
karti roshan jala kar khud ko
jindgi ka har pahar ........Ekla सड़क
बेटियों का मार्मिक सच --- अदभुत
ReplyDeleteबधाई और शुभकामनाएं
सादर