माँ के ज़ेवरों की तरह
सम्हाल रखी हैं मैंने
तुम्हारी बातें,
सहेज रखा है हर महका लम्हा
रेशम की लाल पोटली में !
सम्हाला है
स्मृतियों को
एक विरासत की तरह
अगली पीढ़ी के लिए!
कभी खोल लेती हूँ वो पोटली
देखती हूँ चमकते गहने
और
आँखों में हौले से उतर आते हैं वो मोती...
ख़ालिस सोने की बनी-
सच!!
बुरे वक्त का सहारा हैं वे स्मृतियाँ
माँ के ज़ेवरों की तरह......
~अनु~
सम्हाल रखी हैं मैंने
तुम्हारी बातें,
सहेज रखा है हर महका लम्हा
रेशम की लाल पोटली में !
सम्हाला है
स्मृतियों को
एक विरासत की तरह
अगली पीढ़ी के लिए!
कभी खोल लेती हूँ वो पोटली
देखती हूँ चमकते गहने
और
आँखों में हौले से उतर आते हैं वो मोती...
ख़ालिस सोने की बनी-
सच!!
बुरे वक्त का सहारा हैं वे स्मृतियाँ
माँ के ज़ेवरों की तरह......
~अनु~