तुम्हारी गुलामी मैंने स्वीकारी
क्यूंकि तुम्हारी ख़ुशी इसी में थी....
और इसमें मेरा कुछ जाता नहीं था
बेशक बेड़ियों ने मुझे जकड़ रखा था मगर
रूह आज़ाद थी मेरी
और वक्त भी आज़ाद था...
पीछे छूट रहा था वक्त और आगे बढ़ती जा रही थी मैं
बीच में तुम खड़े थे स्थिर ,गतिहीन,संतुष्ट
बेड़ियों में जकड़े मेरे शरीर को देखते !!
ज़ाहिर है
इस कहानी में प्रेम ने कोई किरदार नहीं निभाया !!
~अनु ~
क्यूंकि तुम्हारी ख़ुशी इसी में थी....
और इसमें मेरा कुछ जाता नहीं था
बेशक बेड़ियों ने मुझे जकड़ रखा था मगर
रूह आज़ाद थी मेरी
और वक्त भी आज़ाद था...
पीछे छूट रहा था वक्त और आगे बढ़ती जा रही थी मैं
बीच में तुम खड़े थे स्थिर ,गतिहीन,संतुष्ट
बेड़ियों में जकड़े मेरे शरीर को देखते !!
ज़ाहिर है
इस कहानी में प्रेम ने कोई किरदार नहीं निभाया !!
~अनु ~
बहुत बढिय प्रस्तुति..अनु ..
ReplyDeleteSUNDAR BHAV UKERE HAI AAPNE ,YAHI KATU SATY HAI JEEVAN KAA
DeleteBahut acchi kavita
ReplyDeleteज़ाहिर है
ReplyDeleteइस कहानी में प्रेम ने कोई किरदार नहीं निभाया !!..........सही बहुत खूब ..प्रेम कैसे आता जब मंजिल और रस्ते ही अलग मायने में थे ..बेहतरीन अभिव्यक्ति अनु
अगर प्रेम साथ होता थी बेड़ियों का अहसास ही नहीं आता मन में
ReplyDeleteरूह आज़ाद... बेड़ियों से युक्त शरीर... और उसे देख संतुष्ट 'तुम'
ReplyDeleteइस विरोधाभास में प्रेम कहाँ...!
निश्चित ही
'इस कहानी में प्रेम ने कोई किरदार नहीं निभाया !!'
lovely composition........
ReplyDeleteबहुत बढिय प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत बढिय प्रस्तुति.
ReplyDeletesundar rachna....jakadna prem nahi....unmukut kar dena prem hai......
ReplyDeleteबस समझौता ही बन कर रह गयी ज़िंदगी ..... संवेदनशील प्रस्तुति
ReplyDeleteसमझौता...जाहिर है इसमें प्रेम कहीं नहीं है.
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है अनु
अगर प्रेम होता तो वहाँ बेड़ियों की कभी कोई बात ही नहीं आती
ReplyDeleteवाह ! अनु जी ..आह निकाल दिया..
ReplyDeleteबिलकुल ठीक ऐसी कहानियों में अक्सर किरदार खुद ही गुम हो जाया करते हैं...
ReplyDeleteबेहतरीन भावभिव्यक्ति...
बहुत सही लिखा है आपने .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..............प्रेम होता तो रूह बेचैन नहीं होती ................
ReplyDeleteजाहिर है इस कहानी में
ReplyDeleteप्रेम ने कोई किरदार
नहीं निभाया...
बहुत प्रभावपूर्ण रचना।
जाहिर है इस कहानी में
ReplyDeleteप्रेम ने कोई किरदार
नहीं निभाया...
बहुत प्रभावपूर्ण रचना।
bahut hi lajawab prastuti.............
ReplyDeleteपीछे छूट रहा था वक्त और आगे बढ़ती जा रही थी मैं
ReplyDeleteबीच में तुम खड़े थे स्थिर ,गतिहीन,संतुष्ट
बेड़ियों में जकड़े मेरे शरीर को देखते !!
ज़ाहिर है
इस कहानी में प्रेम ने कोई किरदार नहीं निभाया !!
बहुत ही प्रभावशाली रचना.
रामराम.
बेहतरीन भावभिव्यक्ति... प्रभावपूर्ण!
ReplyDeleteAmazingly written as if coming from the as deep as ocean...
ReplyDeleteWOW!!!
ऐसी लाइने आज़ाद रूह ही रखने वाली लिखने की हिम्मत
ReplyDeleteकर सकती है अनु जी...
बधाई !
बहुत उम्दा,प्रभावी सृजन,,,
ReplyDeleteRECENT POST : अभी भी आशा है,
Sundar abhivyakti
ReplyDeleteसंजीदा प्रेम की पेंचिंदगी , बढ़िया है.
ReplyDeletekhoobsurat ruhaani peshkash aapki.....atyant sundar!!
ReplyDeleteक्या खूबसूरत रचना लिखी... बधाई !!
ReplyDeleteरूह की लिखी ... रूह ने महसूस की...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना अनु!
<3
बहुत उम्दा,रूहानी प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteप्रेम बंधने को विवश तो कर सकता है पर रुकने को नहीं
ReplyDeleteबेहतरीन
साभार
जहां प्रेम न हो वहाँ रूह ठहरती भी कैसे? बहुत सुन्दर रचना, बधाई.
ReplyDeleteबड़ियाँ भी और प्रेम का किरदार भी नहीं तो जिंदगी जी कहाँ .....?
ReplyDeleteबस काटी न .....?
जिंदगी निरंतर आगे बढ़ते रहने का नाम है। जो थम गए तो कुछ नहीं। बढ़िया रचना ।
ReplyDeleteसच कहा है । छोटी कविता में बडे विस्तृत भाव ।
ReplyDeleteक्या बात, बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
मेरी कोशिश होती है कि टीवी की दुनिया की असल तस्वीर आपके सामने रहे। मेरे ब्लाग TV स्टेशन पर जरूर पढिए।
MEDIA : अब तो हद हो गई !
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/media.html#comment-form
ज़ाहिर है....
ReplyDeleteरूह को आजाद होना ही चाहिए..प्रेम में भी ...प्रेम से परे भी....
मेरा नया ब्लॉग अब ये है ...
rahulkmukul.blogspot.com
sundar...sahi...:) :)
ReplyDeleteबहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
ReplyDeletethe fight between mind, body and soul..
ReplyDeleteit just goes on and on
बहुत अच्छी रचना, बहुत सुंदर
ReplyDeleteज़ाहिर है
ReplyDeleteइस कहानी में प्रेम ने कोई किरदार नहीं निभाया !!
एकदम - था कहाँ वह निष्ठुर प्रेम ?
एक मृग-मरीचिका, के पीछे भागते, अपने ही तर्कों के सहारे खुद को सही ठहराते....केवल बाहरी आवरण देख आकर्षित हो रहे या फिर बड़े-बड़े भारी-भरकम शब्दों के जाल में उलझकर उसी को सच मान बैठे हैं----------- कोई किसी को जबर्दस्ती तो गुलाम नहीं बना लेता और ना ही कोई ऐसा सोच भी सकता है, अगर उसकी खुशी का ख्याल था तो दिल से भी अपनाना था, अगर कोई इंसान भावुक और संवेदनशील ना हो तो, नहीं महसूस कर सकता की जीवन और उसकी सच्चाई यही नहीं जो हम जिये जा रहे हैं ... भौतिकतावादी सोच के साथ केवल अपने अहम और उसकी संतुष्टि के जीना, कभी पसंद नहीं किया मैंने, समर्पित प्रेम की परिभाषा में तो ऐसे विचार आ ही नहीं सकते जैसे कि उक्त कविता में दर्शाये गए हैं ... फिर भी किसी को पसंद हो तो कोई कुछ नहीं कर सकता है, समय .... जी हाँ समय ... समय किसी के लिए नहीं रुकता है, लोग आते हैं और जाते हैं, किसी के भी रहने और ना रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता है, ....ये पूरा का पूरा ब्रह्मांड मेरे लिए एक सपने से ज्यादा कुछ नहीं........ कोई दुःख या रंज नहीं...मुझे अहसास है कि नश्वर है शरीर ....परमात्मा एक विशाल प्रकाश पुंज है, और आत्मा उसका बहुत ही छोटा सा अंश मात्र.... !! हरि ॐ तत्सत !!
ReplyDeleteYour comment will be visible after approval......... सच ये भी कि मेरा कमेन्ट पब्लिश हो संभावना एक परसेंट ही है !!!! जीवन कहीं भी ठहरता नहीं है ... चलते जाना ही ज़िंदगी ......... "
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteजीवन के कई सत्य में से एक ये भी है ....
ReplyDeleteबहुत मार्मिक
उनके पास ताकत होती तो वो रूह भी कैद कर लेते, एक कहानी बचपन में सुनते थे। राक्षस के पास राजकुमारी है लेकिन उसकी रूह राजकुमार के पास है।
ReplyDeleteक्या बात है...बहुत उम्दा!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे ,
हसरते नादानी में
http://sagarlamhe.blogspot.in/2013/07/blog-post.html
स्मृतियों का भावपूर्ण कैनवाश
ReplyDeleteबहुत गहन और सुंदर अनुभूति
उत्कृष्ट प्रस्तुति-----
सादर
आग्रह है
केक्ट्स में तभी तो खिलेंगे--------
कभी कभी सपना लगता है, कभी ये सब अपना लगता है ..... मैंने कभी भी पूरी तरह से काल्पनिक कुछ भी नहीं लिखा .... और ना ही ऐसा पढ़ना पसंद करता हूँ जिसमे लिखने वाले इंसान की विचारधारा और उसके स्वभाव की झलक ना दिखे .... ये आभासीय दुनियाँ है यहाँ केवल दो परसेंट इंसान ही ऐसे लोग होते हैं जो बिलकुल खुले दिल के होते हैं और अपने बारे में कुछ भी नहीं छिपाते हैं और ना ही चैटिंग को एक बुराई के रूप में लेते हैं खुले दिल के होते हैं .... मुझे भी कुछ ऐसे लोग मिले फेसबुक पर जिन्होने अपने अच्छे व्यवहार से मेरा दिल जीत लिया .... मुझे भी सुखद एहसास हुआ कि वर्चुअल दुनियाँ में भी अच्छे इंसान हैं .... "
ReplyDeleteधन्यवाद आपका अनु जी, आपने मेरी आशंका को गलत साबित किया है, मेरे कमेंट्स प्रकाशित करके, एक बात कहें आपसे, दोस्त वही जो हमारे मन की बात और हमारी भावनाओं का ख्याल रखे, और हम उसकी भावनाओं को पूरा सम्मान दें, गलती इंसान से ना चाहते हुए भी हो जाती है, और ये कोई अपराध भी नहीं है, अगर हमसे कोई गलती किसी के प्रति होती है तो हम कभी नहीं हिचकते अपनी गलती स्वीकार कर लेते हैं.... जय श्री कृष्ण !!!!!
शुभ-रात्रि !!!!!!
बहुत ही सुन्दर रचना, शानदार प्रस्तुति!
ReplyDeleteस्नील शेखर
बहुत सुंदर !
ReplyDelete़़़़़़
वैसे भी आदमी तो सम्भलता नहीं रूह को कौन संभाले बबाल अपने लिये मोल लेना भी नहीं चाहिये (अन्यथा ना लिया जाय अपने लिये ये है क्योंकि अपनी कैमिस्ट्री ऎसी ही है :)
अनु , गुरु पूर्णिमा की शुभ-कामनाएँ आपको ... जो अब के सतगुरु मिले, सब दुःख आँखों रोये | चरणों ऊपर सिस धर, कहो जो कहना होए ||
ReplyDeleteअनु जी ... शुभ-संध्या !!!!!! अब हम आपकी पिछली सभी रचनाओं को एक-एक करके पढ़ेंगे, जब भी समय मिलेगा और आपकी लिखी हर पंक्ति की आलोचना और समालोचना, लिखेंगे, आपने मेरा हौसला बढ़ाया है, मेरे कमेंट्स पब्लिश करके .... जय श्री कृष्ण !!!!!
ReplyDeleteबढिय प्रस्तुति.अनु ..सुंदर अनुभूतिसुंदर अनुभूति.
ReplyDeleteबेड़ियों मे बेशक
ReplyDeleteछूट रहा वक्त शुभ-कामनाएँ लिए.
प्रेम का कोई किरदार नहीं था ... ये प्रेम ही प्रेम था हर जगह ...
ReplyDeleteया शायद किसी एक जगह तो था ही ...
सुंदर रचना...
ReplyDeletebhavon ki aviral bahati hui saras salil dhara si anubhuti......atyant sunder avam nischal....
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति...हमेशा की तरह
ReplyDeletekai jindgi kat li jati hai prem ke bina .....katu satya .....sidhe shabdon men ...
ReplyDeleteदेह जकडी लेकिन रूह आजाद ......
ReplyDeleteकितनी स्त्रियां कर पाती हैं ये ।
mere shabdon se pare hai iski tarif karna .....chhu gaye shabd dil ko
ReplyDeleteबहुत सुंदर...
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना!
ReplyDeleteबार बार पड़ने को मन कर रहा है इसे ...
ReplyDeleteBohot pasand aayi mujhe aapki kavitaye ma'am :)
ReplyDeletehttp://simplysaid22.blogspot.in/
स्त्री का समर्पण
ReplyDeleteपुरूष की उदासीनता
सम्बन्धों में प्रेम का अभाव
बहुत बढि़या प्रस्तुति