उस बूढ़े पेड़ की कोटर में
चिड़िया का बच्चा...
और याद मुझे वो कोयल आई.......
नंगे पाँव-
वो लुका छुपी का खेल
दरख्तों के पीछे
चोरी-चोरी,तेरे-मेरे
सपनो का मेल...
याद मुझे है
बचपन से यौवन तक
पगडण्डी पर दौड़ना,
आषाढ़ से सावन तक
संग तेरा न छोडना...
याद मुझे है...
कच्ची पक्की अम्बियाँ...
तेरी झूठी सच्ची बतियाँ...
वो शहर को तेरा जाना..
लौट के फिर न आना....
याद मुझे है...
तेरा मुझको वो खिजाना
फिर मेरा तुझे सताना....
तेरा जामुन के धोखे में
मुझे निम्बोली खिलाना....
सब याद है मुझे........
अब तक जुबां पर वो कड़वा स्वाद जो रक्खा है......
-अनु
(aug 11/2011)
चोरी-चोरी,तेरे-मेरे
ReplyDeleteसपनो का मेल...
याद है मुझे.....
..................
बहुत ही सुन्दर
सुबह की भीनी-भीनी खुशबू
जैसी.....
वाह... कड़वे अनुभव की कड़वी याद
ReplyDeleteAnu ji, Your poem is so refreshing,beautiful and sublime.Have a great Sunday! Warm Regards Ram
ReplyDeleteकड़वी होकर भी मीठी मीठी यादें! हम भी लौटे उन अतीत की पगडंडियों पर इन सतरों के सहारे!
ReplyDeleteवो शहर को तेरा जाना..
ReplyDeleteलौट के फिर न आना....
याद मुझे है...
ये बहुत सुन्दर पंक्तियाँ लगीं.अपने आप में एक जज्बात और एक शिकायत लिए बड़ी ही भावनात्मक लगीं.बहुत बहुत सुन्दर रचना.
मोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
बहुत कुछ कहती निम्बोली
ReplyDeleteअब तक जुबां पर वो कड़वा स्वाद जो हमेशा के लिए रक्खा है.... !!
ReplyDeleteयादों के घुंघरू जब-तब छनछना उठते हैं।
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना।
ultimately deceit overshadows the pleasant moments-well said anu.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .
ReplyDeleteसावन में किसी की कडवी यादों ने बचपन की मीठी यादें ताज़ा कर दीं .
कड़वी मीठी यादें एक नया स्वाद लिये हुए.
ReplyDeleteशुभकामनायें.
वाह अनु जी कितनी सुन्दर है ये निम्बोली, बधाई स्वीकार करें
ReplyDelete"Nimboli" is a powerful thought in the garb of a simple poem. I 'm at a loss of words, and even if I were not they wouldn't have sufficed!
ReplyDeleteसंवेदनशील भाव व्यक्त करती रचना..
ReplyDeleteमीठी मीठी बाते कड़वी हो गयी..
कड़वी हो गयी और
यादे बन गयी...
:-)
मीठी यादें कभी कभी कड़वी भी हो जाया करती हैं समय के साथ ....
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति !
याद मुझे है अब भी-
ReplyDeleteगाँव की भीगी अमराई
उस बूढ़े पेड़ की कोटर में
चिड़िया का बच्चा...
और याद मुझे वो कोयल आई.......
नंगे पाँव-
वो लुका छुपी का खेल
दरख्तों के पीछे
चोरी-चोरी,तेरे-मेरे
सपनो का मेल...
बहुत सुन्दर रचना.....!
wah.....
ReplyDeleterefreshing!
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
अभिव्यक्ति शानदार है ..
ReplyDeleteक्या बात है...कडवे स्वाद के साथ मीठी यादों का संयोजन क्या खूब रंग लाया है...
ReplyDeleteYEH KACHHI KADWEE NIBOLI MEETHE ANGOOR KI TARAH PRASTUT HUI HAI ATAH
ReplyDeleteMAZA AA GAYA .
वाह, बहुत खूब
ReplyDeleteI recall the days.. thanks for writing such beautiful lines for us to read.
ReplyDeleteमान में बसी मीठी यादें...सुन्दर रचना, बधाई.
ReplyDeleteAk ak shabad sachaai se bhara huaa hai ..
ReplyDeleteYaad dila di aapne bachpan ki..
Bahut hi khubsurat rachna....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...!!
ReplyDeleteबचपन की यादगार यादो को भुलाया नही जा सकता,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST,,,इन्तजार,,,
those good old days...loved it :)
ReplyDeleteजामुन के धोखे निबौली या रमास के धोखे मिर्च खिलाना... बचपन की खूबसूरत शरारतें हुआ करती थी । वे यादें जो जीवन भर हमारे साथ चलतीं हैं ।
ReplyDeleteखट्टा मुझे लगता था ,
ReplyDeleteआँखें वह मीच लेती थी,
शर्त में मिर्च खाता मैं था,
आँखे उसकी झरझराती थीं,
सब याद है,
बस यादों में उनकी,
मैं नहीं |
nice .thanks
ReplyDeleteTIME HAS COME ..GIVE YOUR BEST WISHES TO OUR HOCKEY TEAM -BEST OF LUCK ..JAY HO !
बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन , बधाई.
Deleteअनु, आपकी इस कविता ने
ReplyDeleteमुझे भी अपने गाँव की याद आई
सुंदर अहसासो भरी रचना ....
वाह ... बहुत ही बढिया ...आभार
ReplyDeleteदिल्ली में यह सब देखने को ही नहीं मिलता :(
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteकडवी चीज़ों के स्वाद का मीठी याद बनकर रह जाना
बहुत ही उम्दा कविता |
ReplyDeleteगाँव की यादें मधुर हैं. निम्बोली का स्वाद भी ऐसा कड़ुवा नहीं होता कि उसे कोई याद न रखना चाहे. ऐसे में कविता का स्वाद अच्छा लग रहा है.
ReplyDeleteब्लॉग की दुनिया से दूर हुए सच में चार महीने हो गए !
ReplyDeleteजामुन निम्बोली..... बहुत बढ़िया स्मरण ...!
आभार आपका !
Beautiful :)
ReplyDeletevery b'ful complialtion of memories !!
ReplyDeleteकुछ यादे खट्टी मीठी सी ...
ReplyDeletebahut khubsurat, bahut asardaar....Anu ji-
ReplyDeleteकिशोर मन की यादों के दरीचों से यकसां सदा आती है ...बहुत बढ़िया किशोरपन को दुलारती दोहराती मधुरिम रचना .
ReplyDeleteइस कड़वे खट्टे-कसैले स्वाद के बाद शीतल पानी मुंह में डालिए तो बड़ा मीठा लगता है।
ReplyDeleteवाह बहुत बढ़िया अनु जी ! बहुत प्यारी रचना है ! कितनी मीठी यादें और बाद में निम्बोली सा कड़वा अंत, सब कुछ मन पर गहरा असर डालते हैं और ना जाने कितने छूटे हुए सूत्र हाथों में पकड़ा जाते हैं ! बहुत खूब ! साभार !
ReplyDeleteummm....nostalgia overpowering me....
ReplyDeleteहम तो कहेंगे, कडुवे अनुभव की मीठी याद नहीं तो कविता ही नहीं बन पाती. बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अंदाज़ में कही गई कविता वाह
ReplyDeleteबहुत बढ़िया किशोरपन को दुलारती सुन्दर खट्टी मीठी यादें..
ReplyDeletea nostalgic peep transforming into a beautiful poem!
ReplyDeleteसुन्दर!
बहुत प्यारी रचना |
ReplyDeleteसादर