इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Monday, April 4, 2016

सितोलिया

बहुत दिनों से कविता या नज़्म लिखना जैसे बंद ही हो गया था.....कहानियाँ लिखते लिखते जैसे छंद रूठ गए हों मुझसे.....मन के सारे भाव गद्य बन कर ही निकलते....
मगर शायद मन को मनाना आता है......लिखी है एक कविता आज....
अच्छा लगा ब्लॉग पर आना भी.....


सितोलिया

खेलने की उम्र थी
हाँ! तो?
खेल कर ही बिताई !!
पीले हाथों से रखती गयी
पत्थर के ऊपर पत्थर
अग्नि के हर फेरे का एक
जैसे सितोलिया के सात पत्थर|
खेल शुरू हुआ......
उम्मीद की एक गेंद पड़ी और बिखर गए सारे...
वो हाँफते दौड़ते भागते कोशिश करती उन्हें जमाने की...
जमा भी लेती.....
और जीत की घोषणा कर डालती
खुश होकर...
तभी एक और उम्मीद,कुछ और अपेक्षाएं.....
और एक और सीधी चोट
फिर से वही भागना दौड़ना और हांफना...
पत्थर पर पत्थर ज़माना....सितोलियाsss.....चिल्लाना.....
याने जीत की एक और घोषणा...

बस यूँही खेलते खेलते, तमगों को सहलाते उम्र गुज़रती है..........
और उसे लगता है वो जीत गयी !!

अनुलता

10 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05-04-2016) को "जय बोल, कुण्डा खोल" (चर्चा अंक-2303) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. जीतने की हर ख्वाहिश हारने के भय को जन्म देती है..जिंदगी वाकई एक खूबसूरत खेल है यदि कोई हारने को तैयार हो..

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  3. beautiful....

    welcome to my new post-->> http://raaz-o-niyaaz.blogspot.com/2016/04/blog-post.html

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  4. एक जीतना हार जाने जैसा... एक हारना जीत जाने जैसा...

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  5. आजकल सितोलिया बहुत काम बच्चे खेलते हैं लेकिन हमारे आँगन में बच्चों को सितोलिया खेलता देख हमें अपने बचपन के दिन खूब याद आते हैं ..
    बहुत सुन्दर रचना ..
    आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!

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  6. यही जीत और हार ही तो ज़िन्दगी है
    बहुत उम्दा रचना अनु जी
    बचपन की याद आ गयी।

    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  7. सितोलिया जैसी ही ज़िन्दगी जीती है नारी ...एक अपेक्षा पर खरी उतर जाए तो फिर दूसरी उम्मीद और अपेक्षा और बढ़ जाती है ....यूँ ही भागती हांफती ज़िन्दगी बसर हो जाती है .

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  8. मन को छू लेने वाली रचना

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