इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Wednesday, January 14, 2015

"पेशावर"


एक दर्द सा बहता आया है
कुछ चीखें उड़ती आयीं है
दहशत की सर्द हवाओं के संग
खून फिजां में छितराया है....

कुछ कोमल कोमल शाखें थीं
कुछ कलियाँ खिलती खुलती सीं
एक बाग़ को बंजर करने को
ये कौन दरिंदा आया है ?

हैरां हैं हम सुनने वाले
आसमान भी गुमसुम है,
कतरा कतरा है घायल
हर इक ज़र्रा घबराया है.....

टूटे दिल और सपने छलनी
इक खंजर पीठ पे भोंका है
घुट घुट बीतेंगी अब सदियाँ
ज़ख्म जो गहरा पाया है....

 11 जनवरी 2014 दैनिक भास्कर "रसरंग " में प्रकाशित
http://epaper.bhaskar.com/magazine/rasrang/211/11012015/mpcg/1/

26 comments:

  1. आपकी यह कविता जब मैंने रसरंग में पढ़ी तो बड़ा अच्छा लगा . रचना ही बताती है कि आपने कितनी गहराई अनुभव किया .

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  2. टूटे दिल और सपने छलनी
    इक खंजर पीठ पे भोंका है
    घुट घुट बीतेंगी अब सदियाँ
    ज़ख्म जो गहरा पाया है....

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  3. सच कहा आपने कुछ दर्द नासूर बन जाते हैं … हृदयस्पर्शी रचना ,मकर संक्रांति की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं ...

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  4. मर्मस्पर्शी रचना ....

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  5. हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ है अनु.

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  6. अत्यंत मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी रचना ! इस खौफनाक वारदात का ख्याल ही रोंगटे खड़े कर देता है ! सशक्त अभिव्यक्ति !

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  7. घुट घुट बीतेंगी अब सदियाँ
    ज़ख्म जो गहरा पाया है....
    bahut achchha
    मेरी सोच मेरी मंजिल

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  8. मार्मिक रचना...

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  9. भावपूर्ण रचना

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  10. 'घुट घुट बीतेंगी अब सदियाँ..' नहीं नहीं .अब लाचारी में घुट-घुट के रहने के बजाय ,खुल कर सामने आना ज़रूरी है , सहनशीलता से पशुबल को जीतना संभव नहीं !

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  11. सुन्दर प्रस्तुति

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  12. बहुत खूब ....इक कोमल सी डाली पर ...किसी ने पत्थेर लहराया है .......

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  13. भावपूर्ण रचना

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  14. गहरा अर्थ लिए रचना ... सुन्दर अभिव्यक्ति ... बधाई प्रकाशन की ...

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  15. आपने सही कहा है जी . दिल को छु गयी मासूमो की पुकार आपके शब्दों में .
    मेरे ब्लोग्स पर आपका स्वागत है .
    धन्यवाद.
    विजय

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  16. news paper me mene aapka nam dekhte hi wo paper bahut sahejkar rakh liya tha......peshawar ke baare me likhi gayi do hi logon ki rachnae mujhe achchi lagi thi ek aapki yah or dusri parsun joshi G ki samjho kuch galat h.......aha....:-)

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  17. अनुपम रचना...... बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो
    मुकेश की याद में@चन्दन-सा बदन

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  18. बेहद सुन्दर....अद्भुत लेखन।

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  19. कुछ कोमल कोमल शाखें थीं
    कुछ कलियाँ खिलती खुलती सीं
    एक बाग़ को बंजर करने को
    ये कौन दरिंदा आया है ?
    समय का सच और सवाल भी
    कुछ कोमल कोमल शाखें थीं
    कुछ कलियाँ खिलती खुलती सीं
    एक बाग़ को बंजर करने को
    ये कौन दरिंदा आया है ?

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  20. टूटे दिल और सपने छलनी
    इक खंजर पीठ पे भोंका है
    घुट घुट बीतेंगी अब सदियाँ
    ज़ख्म जो गहरा पाया है....

    वाकई गहरा ज़ख्म है

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  21. घुट घुट बीतेंगी अब सदियाँ
    ज़ख्म जो गहरा पाया है....

    कुछ जख्म सदियों तक नहीं भर पाते !!

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  22. very deep and thoughtful.. reminded me of something i wrote a few years ago..

    http://www.kaunquest.com/2005/11/roz-ke-haadse.html

    Cheers,
    kaunquest

    www.kaunquest.com

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  23. आपका ब्लॉग मुझे बहुत अच्छा लगा,आपकी रचना बहुत अच्छी और यहाँ आकर मुझे एक अच्छे ब्लॉग को फॉलो करने का अवसर मिला. मैं भी ब्लॉग लिखता हूँ, और हमेशा अच्छा लिखने की कोशिश करता हूँ. कृपया मेरे ब्लॉग www.gyanipandit.com पर भी आये और मेरा मार्गदर्शन करें

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