मुश्किल था
एक दिन से
दूसरे दिन तक का सफ़र |
एक दिन
जब तुमने कहा विदा !
और दूसरा दिन
जब तुम चले गए....
फिर आसान था
हर एक दिन से
दूसरे दिन का सफ़र,
कि तुम्हारे बिना तेज़ थी
क़दमों की रफ़्तार,
कि कोई मुझे पीछे
अब खींचता न था....
~अनुलता ~
एक दिन से
दूसरे दिन तक का सफ़र |
एक दिन
जब तुमने कहा विदा !
और दूसरा दिन
जब तुम चले गए....
फिर आसान था
हर एक दिन से
दूसरे दिन का सफ़र,
कि तुम्हारे बिना तेज़ थी
क़दमों की रफ़्तार,
कि कोई मुझे पीछे
अब खींचता न था....
~अनुलता ~
पर सच मे ऐसा कहाँ होता है ... कदम तो जैसे रुक से जाते है किस ऐसे के जाने के बाद |
ReplyDeleteबहुत उम्दा कविता |अनु जी आभार
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शनिवार 18/01/2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in
कृपया पधारें ....धन्यवाद!
आपका बहुत बहुत शुक्रिया यशोदा !!
Delete''मैं तूफानों में चलने का आदि हूँ
ReplyDeleteतुम मत मेरी मंज़िल आसान करो ''
.....गहन दर्द से भारी ....हृदय छूती पंक्तियाँ .........!!बहुत सुंदर अभिव्यक्ति अनु ....
बढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें आदरणीया-
कोई आए या जाये, सफर चलता रहे :)
ReplyDeleteदिल की खाली जगह कई बार रफ़्तार बढ़ा देती है !
ReplyDeleteबढ़िया !
वाह! बेहतरीन, विछोह के सन्ताप,और
ReplyDeleteफिर से सकारात्मक जीवन की तरफ
बढ़ने को दर्शाते सुन्दर शब्द।
वाह और सिर्फ वाह !!....तुम्हारी हर बात..... भीतर गहरे उतर जाती है अनु...जैसे बड़ी शिद्दत से महसूस कर लिखा हो उसे ....बहोत सुन्दर !!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर .... यूँ ही जीवन चलता है ....
ReplyDelete'मैं तूफानों में चलने का आदि हूँ
ReplyDeleteतुम मत मेरी मंज़िल आसान करो ''
....................हृदय छूती पंक्तियाँ .
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति अनु ....
ReplyDeleteExquisite thoughts beautifully penned !
ReplyDeleteमन का यही खालीपन जीवन की निरंतरता को बढ़ा देता है। के कोई होता ही नहीं पीछे से रोकने के लिए। बहुत ही सुंदर भवाभिव्यक्ति जी :)
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteपर बिना खींच तान के तेज चल लेना भी आज की तेज दुनिया में गजब गजब नहीं है क्या :)
कि तुम्हारे बिना तेज़ थी
ReplyDeleteक़दमों की रफ़्तार,
कि कोई मुझे पीछे
अब खींचता न था....
:-)
बहुत ही सुंदर भवाभिव्यक्ति उम्दा प्रस्तुति...!
ReplyDeleteRECENT POST -: कुसुम-काय कामिनी दृगों में,
तुम -- हो तो मुश्किल , ना हो तो -- और भी मुश्किल !
ReplyDeleteसुन्दर रचना !
कई बार यूँ भी होता है ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना अनु .
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन इंटरनेशनल अवॉर्ड जीतने वाली पहली बंगाली अभिनेत्री थीं सुचित्रा मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteशुक्रिया शिवम्!!
Deleteगहन अभिव्यक्ति...अपने ही पीछे खींचते हैं...
ReplyDeleteउम्दा गहन .......
ReplyDeleteसुन्दर रचना .. सुन्दर भाव..
ReplyDeletekitna mushkil...kitni aasani se utar jata hai dil mein..
ReplyDeleteआसान था
ReplyDeleteहर एक दिन से
दूसरे दिन का सफ़र,
कि तुम्हारे बिना तेज़ थी
क़दमों की रफ़्तार,
कि कोई मुझे पीछे
अब खींचता न था....
बहुत गहरी बात...प्रायः हर एक विदा के बाद कुछ ऐसी ही अनुभूति होती है जब भी कोई बेहद अपना विदा ले लेता है।।।
किसी ने कहा था कि बहुत ख़ूबसूरत होते हैं वे पल जो "चलते हैं" से चले जाने तक के बीच होते हैं!! और विदाई की यह अन्दाज़... बेहतरीन!!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गहरे भाव अनु जी । ऐसी अनुभूतियाँ तो प्रायः होतीं है पर कविता हमेशा नही बनती । तो वे पल भी जब दर्द कविता का रूप ले लेता है कम खूबसूरत नही होते ।
ReplyDeleteगहरा एहसास .. किसी की यादें जरूर खींचती हैं पीछे ...रफ़्तार आसांन तो नहीं होती ...
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteघुटन से मुक्ति - सुंदर रचना
ReplyDeletebahut sunder!
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