तेरे बाद
बेतरतीब सी ज़िन्दगी को
समेटा पहले...
अपने बिखरे वजूद को
करीने से लगाया ..
अब इकट्ठा कर रही हूँ
तेरी यादों की रद्दी,
गराज में पड़े एक
पुराने सीले
गत्ते के बक्से में..
वक्त के साथ पड़ती
दीमक देख कर
तसल्ली भी है,
कि शायद
देर सवेर निजात पा ही लूंगी
इन बासी होती यादों से.....
मोहब्बत से खाली दिल
भुतही यादों का डेरा बन गया है
जल्द से जल्द
कैसे निज़ात पाऊं इनसे ?
कमबख्त यादें...
इनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!
अनु
बेतरतीब सी ज़िन्दगी को
समेटा पहले...
अपने बिखरे वजूद को
करीने से लगाया ..
अब इकट्ठा कर रही हूँ
तेरी यादों की रद्दी,
गराज में पड़े एक
पुराने सीले
गत्ते के बक्से में..
वक्त के साथ पड़ती
दीमक देख कर
तसल्ली भी है,
कि शायद
देर सवेर निजात पा ही लूंगी
इन बासी होती यादों से.....
मोहब्बत से खाली दिल
भुतही यादों का डेरा बन गया है
जल्द से जल्द
कैसे निज़ात पाऊं इनसे ?
कमबख्त यादें...
इनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!
अनु
कमबख्त यादें...
ReplyDeleteइनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!
....कमबख्त यादों में जंग नहीं लगती। आ ही जाती हैं वक्त बे वक्त।
कितना दर्द भरा है....जब यादें बोझ बन जायें...जब उनकी सीलन मन में गंध बनकर पैठने लगे....तो इससे ज्यादा तक़्लीफ़्देह ...शायद ही कुछ हो ...भगवन करे यह सिर्फ एक कविता हो ...बस
ReplyDeletepal pal ki smriton me hai,nic presentation
ReplyDeleteकमबख्त यादें...
ReplyDeleteइनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!
...क्या बात है...बहुत खूब!
यही तो ...यादे जस की तस ही रहती हैं.
ReplyDeleteकमबख्त यादें...
ReplyDeleteइनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!
sabse khubsoorat line... :(
sundar, n bhoolo kabhi bhool kar bhi mujhe,yad lamahon se sadiya bani ja rahi......yad hone ka ahshash bhi zooroori hai
ReplyDelete
ReplyDeleteदेर सवेर निजात पा ही लूंगी
इन बासी होती यादों से....
कमबख्त यादें...
इनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!
waah Anu ji what a antithesis used ---वाह क्या विरोधाभाष है
देर सवेर निजात पा ही लूंगी
ReplyDeleteइन बासी होती यादों से..
कमबख्त यादें...
इनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!---kya baat hai
what a antithesis used
कमबख्त यादें...
ReplyDeleteइनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!
और कभी जंग लग भी नहीं सकती क्योंकि यादें अच्छी क्वालिटी के स्टील जैसी होती हैं।
सादर
NO COMMENTS........
ReplyDeleteना जंग लगेगी इनमे ना ही वक़्त की दीमक, रह -रह के आती हैं, अमृत पीकर ही जनम लेती हैं ये कमबख्त यादें.....
ReplyDeleteyadon me kabhi jang nahi lagti , ve to parat dar parat gahri hoti jati.....
ReplyDeleteक्या करें इन यादों का चाह कर भी दिल से हटाई नही जाती । या पिर हम चाहते ही नही हटाना ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर, भावुक प्रस्तुति ।
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या बात
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 08 - 11 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
सच ही तो है .... खूँटे से बंधी आज़ादी ..... नयी - पुरानी हलचल .... .
शुक्रिया संगीता दी...
Delete...अरे, वो भुतही यादें भी मोहब्बत ही है।
ReplyDeleteबेहतरीन ..
ReplyDeleteaisi bhi kya betabi hai jang lagva dene ki.....kuchh haseen pal hi chhant lijiye na inme se.
ReplyDeleteकमबख्त यादें...
ReplyDeleteइनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!
वाह !! बहुत खूब
मुहब्बत अपने भीतर का सच है , उसे सोचो-भूत भाग जायेगा ....हाँ यादों का कोई ईलाज नहीं
ReplyDeleteसुंदर रचना अनु !
ReplyDeleteमगर एक बात कहें...?
यादें...कभी बासी नहीं होतीं, रद्दी का ढेर नहीं होतीं..., कितनी भी सीली क्यों न हों... जब भी उन्हें हल्के से सहलाओ...यादें हमेशा निखार कर तरो ताज़ा रूप धारण कर लेती हैं ! जब दिल मोहब्बत से खाली हो ना...तो यही यादें...जीने का सहारा बन जातीं हैं.....~बस उन यादों से प्यार होना चाहिए... :-)
~ढेर सारा स्नेह !
क्यों कुछ यादे पीछा ही नहीं छोड़ती ???
ReplyDeleteखूबसूरत भाव ..
bahut hi behtreen rachna hai lagi apki yah anu ..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया . यादों में जंग नहीं लगता ,
ReplyDeleteyaadon ko kambakht kahan bhata nahin magar "kambakht" baar baar aa bhi to jaati hai, hasane rulane ke liye ,isi janam ka bair hai shayad :)
ReplyDeleteसीली सी यादें
ReplyDeleteभिगो दिया है मन
पीछा न छूटा....
वजूद पाया
करेने से सजाया
यादें बुहारीं....
खाली सा दिल
बिना मुहब्बत के
भुतहा डेरा ...
खुद से जंग
जंगरहित यादें
निजात नहीं ....
बहुत भावपूर्ण रचना .... हाइकु में मेरे जवाब :):)
वाह दी वाह....
Deleteबहुत सुन्दर ...
शुक्रिया <3
सुंदर रचना उम्दा भाव ।
Deleteवजूद पाया
Deleteकरेने से सजाया
यादें बुहारीं.... इसे इस तरह पढ़ा जाये ------
वजूद पाया
करीने से सजाया
यादें बुहारीं ।
beautiful lines :)
ReplyDeleteअन्तरमन के भाव मुखारित हुए।
ReplyDeleteगत्ते के बक्से में..
ReplyDeleteवक्त के साथ पड़ती
दीमक देख कर
तसल्ली भी है,
कि शायद
देर सवेर निजात पा ही लूंगी
इन बासी होती यादों से.....
wah gajab ki samvedana ....bahut hi sundar Anu ju
वाह अनुजी, क्या बात है, ‘कमबख्त यादें, इनमें जंग भी तो नहीं लगती।’ बहुत खूब, अच्छी रचना के लिए बधाई।
ReplyDeleteएक पुराना खत निकला है , उस कच्ची अलमारी से ,
ReplyDeleteजब तुम मुझसे अलग हुए थे , अपनी कुछ लाचारी से |
हमेशा की तरह बहुत अच्छा लिखा है |
सादर
कमबख्त यादें...
ReplyDeleteइनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!
यादों को जंग लगाना क्या बात है ....
प्रत्यूत्तर में संगीता जी के हाइकु अच्छे लगे !
दीमक देख कर
ReplyDeleteतसल्ली भी है,
कि शायद
देर सवेर निजात पा ही लूंगी
इन बासी होती यादों से.....
aamin ...koshish karne men kya jata hai ....dard bhari....abhiwayakti....khud se narajgi darshaati hui......
bhawpurn abhiwayakti......
ReplyDeleteआपकी लिखने और सोचने की क्षमता अद्भुत है |अच्छी कविता |
ReplyDeleteयाद न जाए बीते दिनों की ......| बहुत खूब |
ReplyDeleteउफ़...
ReplyDeleteयादों में जंग लगती तो क्या होता?
ReplyDeleteऔर ज्यादा तकलीफ होती...
यादें चमकती रहनी चाहिए...बरतनों की तरह!!!
सस्नेह
What a beautiful poem for showing the confusion of heart. The paradox is amazing in this and last line.
ReplyDelete"तेरी यादों की रद्दी"
क्या बात कही है, अपने अनोखे अन्दाज़ में!!
ReplyDeleteयादों की रद्दी , वक्त की दीमक !
ReplyDeleteयादें फिर भी बची रहती है , आंसुओं का कीटनाशक दीमक की धुंध हटा कर यादों को बचा रखता है !
स्मृतियाँ सदा साथ ही रहती हैं......
ReplyDeleteवो उन्हें याद करें ...जिसने भुलाया हो कभी ...
ReplyDeleteहमने उनको न भुलाया ...न कभी याद किया ...
गहरी यादों की भटकन ....
उनकी यादों से कब तक और कहाँ तक मैं बच पाई,
ReplyDeleteजहां जहां भी उनकी ही यादें मेरे जेहन मे आईं
बहुत सुंदर अनु दी
उनकी यादों से कब तक और कहाँ तक मैं बच पाई,
ReplyDeleteजहां जहां भी गई उनकी ही यादें मेरे जेहन मे आईं
बहुत सुन्दर कविता है अनु जी |यादें कभी मिटती नहीं कही किसी कौने में छुप कर रह जाती हैं |दीपावली पर अग्रिम शुभकामनाएं |
ReplyDeleteबातें भूल जाती है, यादें ही तो याद आती है
ReplyDeleteबहुत खूब !!
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
माँ नहीं है वो मेरी, पर माँ से कम नहीं है !!!
"कमबख्त यादें...इनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!" I loved and loved theese lines.. kya kahun bas lajawaab hai Anu di!! :) :)
ReplyDeleteकमबख्त यादें...
ReplyDeleteइनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!
बेहतरीन कहें या उन यादों में खो जाए... लाजवाब...
ज्योति पर्व दीपावली की शुभकामनायें |
ReplyDeleteबेहतरीन रचना.....सबसे अंतिम पंक्ति ने कविता के आनंद को एवरेस्ट जैसे उत्कर्ष पर ला दिया. सुन्दर रचना के लिए मेरा आभार.
ReplyDeleteनिहार
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteकमबख्त यादें...
ReplyDeleteइनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!..अरे ! क्या बात है..अनु..बहुत बढिया..सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं |
shabdo ke angan me bhavnao ka khel ..behad khubsurti se racha h tekhe sabdo se mithi kavita ko. . . So nice.
ReplyDeleteसौहाद्र का है पर्व दिवाली ,
ReplyDeleteमिलजुल के मनाये दिवाली ,
कोई घर रहे न रौशनी से खाली .
हैपी दिवाली हैपी दिवाली .
शुक्रिया आपका .
वीरू भाई .
smrition ki sundar abhivyakti .deepawali ki hardik subhkamnaye
ReplyDeletekash ki in yaadon par jang lag paati to jeena aasan bhi ,hota mushkil bhi.bahut badhiyaan ,sunder rachna. diwali ki hardik shubhkamna.
ReplyDeleteदिपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteअब इकट्ठा कर रही हूँ
ReplyDeleteतेरी यादों की रद्दी,
गराज में पड़े एक
पुराने सीले
गत्ते के बक्से में..
वक्त के साथ पड़ती
दीमक देख कर
तसल्ली भी है,
कि शायद
देर सवेर निजात पा ही लूंगी
इन बासी होती यादों से..... निजात ना भी मिले तो सच का गरल बहुत कुछ देगा