अकेली राह मुश्किल नहीं
खुद का बोझ ढोना जायज़ है,
ज़रुरत है...
जब मौका मिला किसी पेड़ के नीचे सुस्ता लिए
खुद को अपने से परे रख कर !
ज़ख्मों को ख़ुद सीना सीख जाते हैं हम
यूँ अकेली राह में ज़ख्मों की गुन्जाइश कम होती है...
राह में कोई ठंडे पानी का सोता मिलता ही है ज़ख्म धोने को
प्यास बुझाने को.....
जीने की कोई वजह खोजने का वक्त नहीं मिलता
अकेलपन की अपनी मसरूफ़ियत है
और कट जाती है जिंदगियाँ यूँ ही अक्सर, बिना जिए ही.
धूप खुशबू हवाएं मिल ही जाती हैं सबको अपने अपने हिस्से की.....
(आप जब अकेले होते हैं तब ख्यालों की भीड़ लग जाती है,ऐसे ही....... )
~अनु ~
खुद का बोझ ढोना जायज़ है,
ज़रुरत है...
जब मौका मिला किसी पेड़ के नीचे सुस्ता लिए
खुद को अपने से परे रख कर !
ज़ख्मों को ख़ुद सीना सीख जाते हैं हम
यूँ अकेली राह में ज़ख्मों की गुन्जाइश कम होती है...
राह में कोई ठंडे पानी का सोता मिलता ही है ज़ख्म धोने को
प्यास बुझाने को.....
जीने की कोई वजह खोजने का वक्त नहीं मिलता
अकेलपन की अपनी मसरूफ़ियत है
और कट जाती है जिंदगियाँ यूँ ही अक्सर, बिना जिए ही.
धूप खुशबू हवाएं मिल ही जाती हैं सबको अपने अपने हिस्से की.....
(आप जब अकेले होते हैं तब ख्यालों की भीड़ लग जाती है,ऐसे ही....... )
~अनु ~
"और कट जाती है जिंदगियाँ यूँ ही अक्सर, बिना जिए ही.
ReplyDeleteधूप खुशबू हवाएं मिल ही जाती हैं सबको अपने अपने हिस्से की....."
सच बयान करती कविता।
सादर
हर ख्याल अपना सा ...:)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक कल रविवार (18-08-2013) को "नाग ने आदमी को डसा" (रविवासरीय चर्चा-अंकः1341) पर भी होगा!
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ह्रदय से आभार शास्त्री जी.
Deleteराह में कोई ठंडे पानी का सोता मिलता ही है ज़ख्म धोने को
ReplyDeleteप्यास बुझाने को.....
***
ऐसा ही एक सोता है आपका यह पता!
कभी कभी अकेलापन और तन्हाई दोनों अच्छे होते हैं
ReplyDeleteवैसे देखा जाए तो चलना खुद अकेले ही है,,,,,
बहुत ही खूबसूरती से यथार्थ को अभिव्यक्त किया है आपने, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
सच, अकेलापन भी आदमी झेल ही लेता है
ReplyDeleteबेहतरीन, गहन भाव
ReplyDeleteवाह! अकेलापन घटता है .कटता है
ReplyDeleteयादों की भीड़ में जब ये बटता है ......
शुभकामनायें
जीने की कोई वजह खोजने का वक्त नहीं मिलता
ReplyDeleteअकेलपन की अपनी मसरूफ़ियत है,,,
वाह !!! बहुत सुंदर रचना,,,
RECENT POST: आज़ादी की वर्षगांठ.
अकेलपन की अपनी मसरूफ़ियत है
ReplyDeletebahut sahi kaha...
जीने का एक नायाब तरीका...बहुत सुन्दर और प्रभावी रचना..
ReplyDeleteएकला चलो एकला चलो ...........का याद दिल दिया आपने -बहुत अच्छी
ReplyDeletelatest os मैं हूँ भारतवासी।
latest post नेता उवाच !!!
so we are never alone
ReplyDeleteउत्तम रचना!
ReplyDeleteअकेली राह मुश्किल नहीं
ReplyDeleteखुद का बोझ ढोना जायज़ है,
गहन भाव,बहुत सुन्दर............
ReplyDeleteजीने की कोई वजह खोजने का वक्त नहीं मिलता
अकेलपन की अपनी मसरूफ़ियत है
सच कहा
धूप खुशबू हवाए मिल ही जाती हैं सबको अपने अपने हिस्से की....... बहुत खूब
ReplyDeleteबेहतरीन गहन भाव लिए रचना ....
अकेलापन ऐसा ही होता है । परन्तु कभी कभी भीड़ में खो जाने से भी अधिक खतरनाक हो जाता है अकेलेपन में खुद का खो जाना , क्योंकि फिर ढूँढने वाला कोई नहीं होता ,वहां ।
ReplyDeleteगहन अभिवयक्ति......
ReplyDeleteयथार्थ से परिचय कराती रचना ,सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और गहन भाव..
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की ६०० वीं बुलेटिन कभी खुशी - कभी ग़म: 600 वीं ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteशुक्रिया सलिल दादा <3
Deleteतन्हाई में तो खुद के लिए फुर्सत होती है...
ReplyDeleteगहन भाव लिए सुन्दर रचना....
:-)
लाजबाब :) अकेलापन एक ऐसी चीज़ है जो गर दूसरों द्वारा दिया जाये तो उससे बड़ा कोई अभिषाप नहीं है लेकिन खुद के द्वारा खुशी से चुना जाय तो इससे बड़ा कोई वरदान नहीं है...बेहतरीन प्रस्तुति।।।
ReplyDeleteसुंदर।।।
ReplyDeleteबिलकुल सच कहा .....
ReplyDeleteबेहद सुंदर....
ReplyDelete
ReplyDelete(आप जब अकेले होते हैं तब ख्यालों की भीड़ लग जाती है,ऐसे ही....... )
sach hai anu ji ..
har bar ki tarah sundar rachna
!!
धूप खुशबू और हवाएँ मिल ही जाती है सबको अपने-अपने हिस्से की सच शायद इसी का नाम ज़िंदगी है। बेहतरीन भावभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहाँ ....जी तो लिया ही जाता है
ReplyDeleteजीना कैसे होता है ...जाने बिना
खूबसूरत मंथन ....अकेलेपन में अकसर पहचान पाता है
वही पुरानी बात पूछूं..
ReplyDeleteअंतर है न कुछ अकेलेपन और एकांत में...
दुःख और सुख जैसा अंतर है.......
Deleteजब मौका मिला किसी पेड़ के नीचे सुस्ता लिए
ReplyDeleteखुद को अपने से परे रख कर
भई वाह..
जिस प्रकार खामोशी और सन्नाटे में अन्तर है उसी प्रकार तन्हाई और अकेलेपन में भी अन्तर है! और इन दोनो का सीधा सम्बन्द्य हमारे दिल से है ! सुन्दर !
ReplyDeleteऔर कट जाती है जिंदगियाँ यूँ ही अक्सर, बिना जिए ही.
ReplyDeleteधूप खुशबू हवाएं मिल ही जाती हैं सबको अपने अपने हिस्से की
बहुत सुंदर रचना .
जब मौका मिला किसी पेड़ के नीचे सुस्ता लिए
ReplyDeleteखुद को अपने से परे रख कर
... क्या बात है
बहुत ही बढिया
वाह!
ReplyDeleteज़रुरत है...
ReplyDeleteजब मौका मिला किसी पेड़ के नीचे सुस्ता लिए
खुद को अपने से परे रख कर ...
बढ़िया अभिव्यक्ति --
gudgudate khyal :)
ReplyDeleteजीने की वजह खोजने का समय मिले न मिले ... जीना तो पड़ता ही है ... ओर यूं ही सफर चलता रहता है ...
ReplyDeleteसुन्दर ...!!
ReplyDeleteअकेलापन तो हम सब के जीने का एक हिस्सा बन चूका है .. एक प्यारी सी नज़्म
ReplyDeleteदिल से बधाई स्वीकार करे.
विजय कुमार
मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com
मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com
हाँ अकेले होने पर ऐसे ऐसे कितने ही ख्याल मन में आते हैं!!!
ReplyDeleteजीने की कोई वजह खोजने का वक्त नहीं मिलता
ReplyDeleteअकेलपन की अपनी मसरूफ़ियत है !
आप जब अकेले होते हैं तब ख्यालों की भीड़ लग जाती है...!!
है न.....