इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Saturday, August 17, 2013

अकेलापन

अकेली राह मुश्किल नहीं
खुद का बोझ ढोना जायज़ है,
ज़रुरत है...
जब मौका मिला किसी पेड़ के नीचे सुस्ता लिए
खुद को अपने से परे रख कर !

ज़ख्मों को ख़ुद सीना सीख जाते हैं हम
यूँ अकेली राह में ज़ख्मों की गुन्जाइश कम होती है...
राह में कोई ठंडे पानी का सोता मिलता ही है ज़ख्म धोने को
प्यास बुझाने को.....

जीने की कोई वजह खोजने का वक्त नहीं मिलता
अकेलपन की अपनी मसरूफ़ियत है
और कट जाती है जिंदगियाँ यूँ ही अक्सर, बिना जिए ही.
धूप खुशबू हवाएं मिल ही जाती हैं सबको अपने अपने हिस्से की.....

(आप जब अकेले होते हैं तब ख्यालों की भीड़ लग जाती है,ऐसे ही....... )
~अनु ~

47 comments:

  1. "और कट जाती है जिंदगियाँ यूँ ही अक्सर, बिना जिए ही.
    धूप खुशबू हवाएं मिल ही जाती हैं सबको अपने अपने हिस्से की....."

    सच बयान करती कविता।


    सादर

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  2. हर ख्याल अपना सा ...:)

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक कल रविवार (18-08-2013) को "नाग ने आदमी को डसा" (रविवासरीय चर्चा-अंकः1341) पर भी होगा!
    स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. ह्रदय से आभार शास्त्री जी.

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  4. राह में कोई ठंडे पानी का सोता मिलता ही है ज़ख्म धोने को
    प्यास बुझाने को.....
    ***
    ऐसा ही एक सोता है आपका यह पता!

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  5. कभी कभी अकेलापन और तन्हाई दोनों अच्छे होते हैं
    वैसे देखा जाए तो चलना खुद अकेले ही है,,,,,

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  6. बहुत ही खूबसूरती से यथार्थ को अभिव्यक्त किया है आपने, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  7. सच, अकेलापन भी आदमी झेल ही लेता है

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  8. बेहतरीन, गहन भाव

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  9. वाह! अकेलापन घटता है .कटता है
    यादों की भीड़ में जब ये बटता है ......
    शुभकामनायें

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  10. जीने की कोई वजह खोजने का वक्त नहीं मिलता
    अकेलपन की अपनी मसरूफ़ियत है,,,

    वाह !!! बहुत सुंदर रचना,,,

    RECENT POST: आज़ादी की वर्षगांठ.

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  11. अकेलपन की अपनी मसरूफ़ियत है

    bahut sahi kaha...

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  12. जीने का एक नायाब तरीका...बहुत सुन्दर और प्रभावी रचना..

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  13. एकला चलो एकला चलो ...........का याद दिल दिया आपने -बहुत अच्छी
    latest os मैं हूँ भारतवासी।
    latest post नेता उवाच !!!

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  14. अकेली राह मुश्किल नहीं
    खुद का बोझ ढोना जायज़ है,
    गहन भाव,बहुत सुन्दर............

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  15. जीने की कोई वजह खोजने का वक्त नहीं मिलता
    अकेलपन की अपनी मसरूफ़ियत है


    सच कहा

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  16. धूप खुशबू हवाए मिल ही जाती हैं सबको अपने अपने हिस्से की....... बहुत खूब
    बेहतरीन गहन भाव लिए रचना ....

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  17. अकेलापन ऐसा ही होता है । परन्तु कभी कभी भीड़ में खो जाने से भी अधिक खतरनाक हो जाता है अकेलेपन में खुद का खो जाना , क्योंकि फिर ढूँढने वाला कोई नहीं होता ,वहां ।

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  18. गहन अभिवयक्ति......

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  19. यथार्थ से परिचय कराती रचना ,सुंदर

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  20. बहुत सुन्दर और गहन भाव..

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  21. ब्लॉग बुलेटिन की ६०० वीं बुलेटिन कभी खुशी - कभी ग़म: 600 वीं ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. शुक्रिया सलिल दादा <3

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  22. तन्हाई में तो खुद के लिए फुर्सत होती है...
    गहन भाव लिए सुन्दर रचना....
    :-)

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  23. लाजबाब :) अकेलापन एक ऐसी चीज़ है जो गर दूसरों द्वारा दिया जाये तो उससे बड़ा कोई अभिषाप नहीं है लेकिन खुद के द्वारा खुशी से चुना जाय तो इससे बड़ा कोई वरदान नहीं है...बेहतरीन प्रस्तुति।।।

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  24. (आप जब अकेले होते हैं तब ख्यालों की भीड़ लग जाती है,ऐसे ही....... )
    sach hai anu ji ..
    har bar ki tarah sundar rachna
    !!

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  25. धूप खुशबू और हवाएँ मिल ही जाती है सबको अपने-अपने हिस्से की सच शायद इसी का नाम ज़िंदगी है। बेहतरीन भावभिव्यक्ति।

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  26. हाँ ....जी तो लिया ही जाता है
    जीना कैसे होता है ...जाने बिना
    खूबसूरत मंथन ....अकेलेपन में अकसर पहचान पाता है

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  27. वही पुरानी बात पूछूं..
    अंतर है न कुछ अकेलेपन और एकांत में...

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    1. दुःख और सुख जैसा अंतर है.......

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  28. जब मौका मिला किसी पेड़ के नीचे सुस्ता लिए
    खुद को अपने से परे रख कर

    भई वाह..

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  29. जिस प्रकार खामोशी और सन्नाटे में अन्तर है उसी प्रकार तन्हाई और अकेलेपन में भी अन्तर है! और इन दोनो का सीधा सम्बन्द्य हमारे दिल से है ! सुन्दर !

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  30. और कट जाती है जिंदगियाँ यूँ ही अक्सर, बिना जिए ही.
    धूप खुशबू हवाएं मिल ही जाती हैं सबको अपने अपने हिस्से की
    बहुत सुंदर रचना .

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  31. जब मौका मिला किसी पेड़ के नीचे सुस्ता लिए
    खुद को अपने से परे रख कर
    ... क्‍या बात है
    बहुत ही बढिया

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  32. ज़रुरत है...
    जब मौका मिला किसी पेड़ के नीचे सुस्ता लिए
    खुद को अपने से परे रख कर ...

    बढ़िया अभिव्यक्ति --

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  33. जीने की वजह खोजने का समय मिले न मिले ... जीना तो पड़ता ही है ... ओर यूं ही सफर चलता रहता है ...

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  34. अकेलापन तो हम सब के जीने का एक हिस्सा बन चूका है .. एक प्यारी सी नज़्म


    दिल से बधाई स्वीकार करे.

    विजय कुमार
    मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com

    मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com

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  35. हाँ अकेले होने पर ऐसे ऐसे कितने ही ख्याल मन में आते हैं!!!

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  36. जीने की कोई वजह खोजने का वक्त नहीं मिलता
    अकेलपन की अपनी मसरूफ़ियत है !

    आप जब अकेले होते हैं तब ख्यालों की भीड़ लग जाती है...!!

    है न.....

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