लगता है सदियाँ बीत गयीं,
बात कल की नही है,
बात कल की नही है,
मानों किसी
पिछले जन्म का किस्सा था.
जाने कैसे पहचानूंगी तुम्हें
तुम भी कैसे जानोगे
कि ये मैं ही हूँ ??
जिन्हें तुम झील सी
शरबती आँखें कहते थे,
शरबती आँखें कहते थे,
अब पथरा सी गयीं है,
गुलाब की पंखुरी सामान अधर
सूख के पपड़ा गए हैं
इनमें बस
इनमें बस
भूले भटके ही
आती है कोई
आती है कोई
पोपली सी,खोखली सी हंसी !!
रेशमी जुल्फों के साये खोजने निकलोगे,
तो चंद चांदी के तारों में
उलझ कर ज़ख़्मी हो जाओगे...
स्निग्ध गालों की लालिमा
महीन झुर्रियों में लुप्त हो गयी है
मगर ये सब तो होना ही था,
तुम होते या ना होते !!
परिवर्तन तो अवश्यम्भावी है..
तुम होते या ना होते !!
परिवर्तन तो अवश्यम्भावी है..
बस फर्क इतना होता कि
तुम साथ होते तो
मेरी आँखें पथराती नहीं,
उन पनीली आँखों में
तुम देख पाते अपना अक्स
और हम देखते
गुज़रते हुए वक्त को
और हम देखते
गुज़रते हुए वक्त को
इन्ही सब सहज बदलावों के साथ
कितना आसान होता यूँ
साथ साथ बुढा जाना..
कितना आसान होता यूँ
साथ साथ बुढा जाना..
-अनु
बहुत ही मार्मिक । सचमुच किसी शून्य को जीते हुए जीना जमीन को अनछुए ही गुजर जाने जैसा लगता है । फिर भी भाव तो कभी मरते नही न ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर...बुढ़ापा तक के साथ की सुंदर कामना...सुंदर अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteआपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 30/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी एडवांस बुकिंग के लिए शुक्रिया
Deleteभावनात्मक सरिता के प्रबाह सी सुंदर कविता.
ReplyDeleteआपको गणतंत्र दिवस की बधाइयाँ और शुभकामनायें.
आया है मुझे फिर याद वो ज़ालिम , गुजरा ज़माना ---
ReplyDeleteउम्र के साथ बदलाव तो निश्चित है। लेकिन जीवन के सब उपवन जब मुरझा जाएँ, तब किसी का साथ ही नैया पार लगता है।
आपकी यह रचना पढ़कर अपनी ही लिखी एक हास्य कविता याद आ गई।
विरह वेदना उन दो मानव-प्राणियों की जो केवल भाव-जगत में एक-दूसरे के लिए होते हैं।
ReplyDelete
ReplyDeleteमिलोगे तुम मुझे अब ?
जाने कितने अरसे बाद....
लगता है सदियाँ बीत गयीं,
बात कल की नही है,
मानों किसी
पिछले जन्म का किस्सा था.
जाने कैसे पहचानूंगी तुम्हें
तुम भी कैसे जानोगे
कि ये मैं ही हूँ ??
जिन्हें तुम झील सी
शरबती आँखें कहते थे,
अब पथरा सी गयीं है,
गुलाब की पंखुरी सामान अधर
सूख के पपड़ा गए हैं
इनमें बस
भूले भटके ही
आती है कोई
पोपली सी,खोखली सी हंसी !!
रेशमी जुल्फों के साये खोजने निकलोगे,
बहुत ही गहन भाव समेटे एक उत्कृष्ट कविता |
साथ बिताया हर पल नेमत होता है ...फिर चाहे जिस अवस्था में गुज़रे ...है न ...:)
ReplyDeleteबहुत प्यारी लगी तुम्हारी रचना अनु ...
प्यार से सराबोर ...:)
बहुत खूब दीदी
ReplyDeleteसादर
वाकई .....
ReplyDeleteअद्भुत रचना ...
शुभकामनायें !
शुभकामनायें आदरेया |
ReplyDeleteप्रभावी प्रस्तुति ||
इनमें बस
ReplyDeleteभूले भटके ही
आती है कोई
पोपली सी,खोखली सी हंसी !!
बहुत ही मार्मिक ---
-मे बुढा होना नहीं चाहता हू
बुढा होने से पहले मृत्यु का वरण चाहता हू |
चाँद अब भी निकलता है
ReplyDeleteऔर कई ख्याल दे जाता है
तुमसे जुड़े - तुम्हारे लिए
कथ्य प्रभावित करता है और भाव अनुपम .बस एक खटका सा लगा तो सोचा स्पष्ट कर लूं , आंखे, झील सी गहरी सुनी है, झील सी शरबती नहीं सुनी . मुझे जहाँ तक पता है , शरबती होने का मतलब हलकी गुलाबी या हलके लाल रंग के द्रव जैसे रंग का होने से है . हो सकता है ये मेरा अल्पज्ञान हो .
ReplyDeleteआप तो ज्ञानी हो आशीष जी....और हम है कवियित्री...मगर ये मोहब्बत करने वाले अल्पज्ञानी हैं...प्यार में जाने क्या क्या उपमाएं दिए जाते हैं..कुछ भी न...माफ़ कर दें अपन इन्हें :-)
Deleteबहुत सुंदर रचना प्रभावी अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
recent post: गुलामी का असर,,,
भावुक कर गई आपकी ये रचना । अत्यन्त सुन्दर व मार्मिक ।
ReplyDeleteसही कहा आपने वक़्त के साथ साथी की कमी और खटकने लगती है। सालों का साथ से हम एक दूसरे की जरूरतों को यूँ समझने लगते हैं कि अचानक किसी के चले जाने से अपना अस्तित्व अधूरा लगने लगता है।
ReplyDeleteबहुत उम्दा
ReplyDeleteबहुत उम्दा
ReplyDeleteसुन्दर...कोमल भावों की अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteइन्ही सब सहज बदलावों के साथ
ReplyDeleteकितना आसान होता यूँ
साथ साथ बुढा जाना..
...बिल्कुल सच....बहुत भावपूर्ण और संवेदनशील प्रस्तुति...
उन पनीली आँखों में
ReplyDeleteतुम देख पाते अपना अक्स
और हम देखते
गुज़रते हुए वक्त को
बहुत सुन्दर!
सादर!
http://voice-brijesh.blogspot.com
काश!ऐसा हो पाता....
ReplyDeleteशुभकामनायें!
बहुत बढ़िया ..कोमल भावों की सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeleteभावपूर्ण और संवेदनशील रचना .............
ReplyDeleteह्रदय से आभारी हूँ....
ReplyDeleteअनु जी ..कितना सही लिखा है आपने ...किसी अपने के पास होने पर उम्र तो बढ़ती है...पर अहसास बूढ़े नहीं होते ,,बेहद भावप्रवण रचना!
ReplyDeleteबहुत मुश्किल से खुला है यह ब्लॉग.. इसलिए अनु बहन, आज कोई गलती नहीं निकालूँगा.. बस इतना ही कहूँगा कि कविता में जितनी गहराई से इंतज़ार के भाव को रेखांकित किया है वह प्रभावशाली है..
ReplyDeleteआज फिर से वही भूली हुई कहानी याद आ गयी.. तकषी शिवशंकर पिल्लै की!! :)
बहुत सुन्दर!
तुम साथ होते तो
ReplyDeleteमेरी आँखें पथराती नहीं....
---------------------
अश्कों को दामन देते शब्द ....
हृदय के अंतर सी निकली सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति. सच में परिवर्तन के घुमते पहिये पर कौन शै स्थावर हो के टिक पाया है. जीवन तो एक उन्मादी नदी है जिसे बहना आता है. वो हमे मंज़ूर हो या नहीं.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteवन्देमातरम् !
गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ!
awesome ....
ReplyDeletesuperb one ..... loved it ..
have a natural flow <3
बहुत प्यारी रचना ...
ReplyDeleteभूले भटके ही
ReplyDeleteआती है कोई
पोपली सी,खोखली सी हंसी !!
वाकई अपने दादा-दादी को साथ देखकर लगता है कि कितना प्यारा होता होगा उम्र के इस पड़ाव का प्यार |
हमेशा की तरह बहुत सुन्दर प्रस्तुति |
सादर
जीवन की गहरी अनुभूति-----सुंदर रचना
ReplyDeleteबधाई
bahut khoob anu di.......saath saath budhane mey hi maza hai
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeletebahot khoob...
ReplyDeletehii i am auther of blog http://differentstroks.blogspot.in/
ReplyDeletehereby nominate you to LIEBSTER BLOGERS AWARD.
further details can be seen on blog posthttp://differentstroks.blogspot.in/2013/01/normal-0-false-false-false-en-us-x-none.html#links
await your comment thanks
thanks, sunil aryaji.
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहमसफ़र हमेशा सफ़र को आसां बना देता है
ReplyDeleteसुन्दर भाव !
अत्यंत भावप्रबल ....गहन रचना ......!!
ReplyDeleteशुभकामनायें अनु ....
<3 <3
ReplyDeletespeechless...मोहब्बत करने वाले दिल को खूब पहचानती हैं आप :) :)
can feel each n every word <3
...bahut hi sundar...hameshaa ki tarah, Anu!
ReplyDeleteexcellent anu ji...
ReplyDeletebeautifully written.
bahut sundar likhti hain aap! meri bhi ek hi khwahish hai, apne priytam ke saath Sath "Budhi hona" aur aakhiri saans unke saaye me lete hue....purn santosh ke sath........dheere se ye duniya chhod dena.....!
ReplyDeleteAameen!!
हम तो अब इसी दूर से गुज़र रहे हैं .... सच कहा साथ रहते हुये ये बदलाव महसूस नहीं होते ... सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति..
ReplyDeleteमिलोगे तुम मुझे अब ?
जाने कितने अरसे बाद....
बहुत दिनों के बाद आपकी ये कविता पढ़ी..लगा लम्बा अरसा गुजर गया था..एकदम दिल को छू गयी..अति उत्तम.
और हम देखते
ReplyDeleteगुजरते हुए वक्त को
इन्ही सब सहज बदलावों के साथ
कितना आसान होता यूँ
साथ साथ बुढा जाना..
यथार्थ से कल्पना की ओर झांकती अच्छी रचना।
और हम देखते
ReplyDeleteगुज़रते हुए वक्त को
इन्ही सब सहज बदलावों के साथ
कितना आसान होता यूँ
साथ साथ बुढा जाना..
Adbhut ! mai mugdh ho gayi hun itni sundar bhavpurn rachna padh kar.... Anu aap bahut hi achcha likhti hain... dil ko chhoo jata hai.....
बढ़िया रचना अनु,
ReplyDeleteप्रकाशित रचना के लिए बधाई !
साथ साथ सब कुछ हो जाना ... सच में प्रेम में जीवन हो जाना होता है ...
ReplyDeleteलाजवाब रचना ...