अपने कुछ बिखरे एहसासों को
जोड़ कर ...सिलसिलेवार संजोया हैं मैंने.....मेरे दिल की खुली किताब के कुछ भीगे पन्ने समझ
लीजिए.....
तुम से शुरू और तुम पे ही
आकर रुकी है मेरी हर नज़्म......तुमसे जुदा कोई बात नज़्म सी लगती नहीं ,
क्या करूँ !!
मेरे हाथों में तुम्हारा
हाथ..
याने
-अवसर,संभावना,खुशी....
याने
-अवसर,संभावना,खुशी....
तुम्हारे काँधे पर टिका
मेरा सर
याने
-प्यार,आशा जादू....
याने
-प्यार,आशा जादू....
तुम्हारा मेरे नज़दीक होना
याने
-ज़िन्दगी,ज़िन्दगी,ज़िन्दगी
याने
-ज़िन्दगी,ज़िन्दगी,ज़िन्दगी
देखा था एक ख्वाब...संजोयी
थी एक आस....कि बस यूँ ही बसर होती रहे ज़िन्दगी एक नज़्म सी....एक गीत सी,एक राग सी
जो रहे सदा सुर में....
उस रोज
जब सीना चीर कर
तुम दे रहे थे
सबूत अपनी मोहब्बत का..
तब चुपके से वहाँ
मैंने अपना एक ख्वाब
छिपा दिया था ...
जो हलचल है तेरे दिल में उसे
धडकन न समझना....
जब सीना चीर कर
तुम दे रहे थे
सबूत अपनी मोहब्बत का..
तब चुपके से वहाँ
मैंने अपना एक ख्वाब
छिपा दिया था ...
जो हलचल है तेरे दिल में उसे
धडकन न समझना....
मगर न तुम हो,न जादू,न खुशी ,न ख्वाब,न ज़िन्दगी,न मोहब्बत,न कोई नज़्म.......बस मैं हूँ और मेरे सवाल कि –जब कुछ नहीं तो मेरा होना भी कोई भरम तो नहीं....
बूंदा बांदी के बीच
अचानक नाज़ुक सी धूप खिल गयी..
मुस्कुराते बादलों की ओट से
इन्द्रधनुष झाँकने लगा,
दूर कहीं बांसुरी बज रही है शायद...
और ये खुशबु का झोंका???
अरे बस कर मेरे मन...
उसकी मोहब्बत का तुझे
फिर से भरम हुआ लगता है....
.......और इन दिनों
ज़िन्दगी यूँ ही बसर होती
है.
बस यूँ ही..
ओफ्फो...
गुड़ की तरह
जुबां पर घुलती मोहब्बत में
जाने किरकिरी कहाँ से आई थी!
इस मोहब्बत को भी न
बदमज़ा होने में वक्त नहीं लगता..
गुड़ की तरह
जुबां पर घुलती मोहब्बत में
जाने किरकिरी कहाँ से आई थी!
इस मोहब्बत को भी न
बदमज़ा होने में वक्त नहीं लगता..
@तुम से शुरू और तुम पे ही आकर रुकी है मेरी हर नज़्म......तुमसे जुदा कोई बात नज़्म सी लगती नहीं ,
ReplyDeleteक्या करूँ !!
.
इस पर तो गुलज़ार साहब की दो लाइनें ही याद आरही हैं...
बात तुमपे ही खत्म होती है,
हमसे चाहे कहीं की बात करो!
.
और फिर मोहब्बत के मुख्तलिफ रंग!!! एक एहसास की कई तस्वीरें.. और आखिर में गुड़ की डली... मुहब्बत को गुड़ की तरह
बताया है और ये भी कि कैसे वो बदमजा हो जाता है घुलकर..
गुड़ यानि सैकेराइड्स.. कार्बोहाइड्रेट... सुक्रोज.. ज़ुबान पर आते ही बैक्टीरिया उन्हें एसिड में तब्दील कर देते हैं.. ऐसे में बदमजा तो होगा ही..
तभी तो मुहब्बत के गुड़ को ज़ुबान पे ठहरने ही नहीं देना चाहिए.. जहाँ आँखें ज़ुबान का काम करती हों वहाँ मिठास सीधी रूह में उतर जानी चाहिए.. देखिये फिर मुहब्बत बेमजा नहीं होगी!!
सही व्याख्या कर दिए हैं ।
Deleteसुन्दर पोस्ट |
ReplyDeletewaah anu ji sundar .........khwab mohabaat , har rang bikher diya ..........aapki yadi ada ke kayal hai ham :) dear
Deleteअनु, सच है! ज़िंदगी बस यूँ ही बसर होती रही है...होती रहेगी...
ReplyDelete~प्यार और एहसास..
ज़िंदगी की किताब के..
हैं अनमोल शब्द !
दिल से बहे जब..
निर्मल मासूम प्रेम-धार...
जीवन-बगिया खिले...! ~
मगर ऐसा लगता है अक्सर...
~आख़िर कैसी है ये ज़िंदगी...
'जीती' तो हूँ मैं...
मगर 'हारी' सी...~
मगर फिर...यही है ज़िंदगी...यूँ ही चलते रहना है, मुस्कुराते रहना है... :-))<3
और इन दिनों
ReplyDeleteज़िन्दगी यूँ ही बसर होती है.
बस यूँ ही..
सुन्दर..........
bahut hi sunder bhav bhare hai
ReplyDeletebadhai
rachana
बहुत खूबसूरती से एहसासों को महकाया है ....
ReplyDeleteमुहब्बत मे भरम होता है ....मुहब्बत को इबादत मे बदलकर देखो ...
इबादत में यक़ीन होता है ...:))
बहुत सुंदर पोस्ट अनु ....एक राह दिखती हुई इबादत की तरफ ....
हर पन्ना अपना अहसास छोडता है ...
ReplyDeleteबधाई !
bade andaz se zazbato ko piroya hai
ReplyDeleteउस रोज
ReplyDeleteजब सीना चीर कर
तुम दे रहे थे
सबूत अपनी मोहब्बत का..
तब चुपके से वहाँ
मैंने अपना एक ख्वाब
छिपा दिया था ...
जो हलचल है तेरे दिल में उसे
धडकन न समझना....
this one is still my fav .
regards.
-aakash
"ज़िन्दगी कुछ यूँ ही बसर होती है" इन सब से मिलके- अवसर,संभावना,खुशी,प्यार,आशा जादू....
ReplyDeleteसादर |
मोहब्बत के अहसास सबके ज़ुदा-ज़ुदा ।
ReplyDeleteक्या लिखा है ...वाह
ReplyDeleteबहुत सुन्दर हर नज़्म . आभार
ReplyDeleteमेरे दिल की खुली किताब के कुछ भीगे पन्ने समझ लीजिए.....
ReplyDeleteओह,,,इन भीगे पन्नों ने मन भी मेरा कुछ यूँ भिगोया !
बहुत बढ़िया लगी यह पोस्ट !
.......और इन दिनों
ReplyDeleteज़िन्दगी यूँ ही बसर होती है.
बस यूँ ही..
क्या बात है ...
लिखने का अंदाज रोचक ...
ReplyDeleteओफ्फो...
गुड़ की तरह
जुबां पर घुलती मोहब्बत में
जाने किरकिरी कहाँ से आई थी!
इस मोहब्बत को भी न
बदमज़ा होने में वक्त नहीं लगता....यूँ ही स्वाद बदल जाता है
वाह सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक हैं बहुत खूब उम्दा पोस्ट
ReplyDeleteबूंदा बांदी के बीच
अचानक नाज़ुक सी धूप खिल गयी..
मुस्कुराते बादलों की ओट से
इन्द्रधनुष झाँकने लगा,
दूर कहीं बांसुरी बज रही है शायद...
और ये खुशबु का झोंका???
अरे बस कर मेरे मन...
उसकी मोहब्बत का तुझे
फिर से भरम हुआ लगता है....
अतिसुन्दर बिम्ब
ओफ्फो...
ReplyDeleteगुड़ की तरह
जुबां पर घुलती मोहब्बत में
जाने किरकिरी कहाँ से आई थी!
इस मोहब्बत को भी न
बदमज़ा होने में वक्त नहीं लगता.....waah bahut khub naye andaaj mein yah bahut pasnd aayi panktiyaan .........
अनु जी .... वाह - बहुत सुंदर.
ReplyDeleteऔर इन दिनों
ReplyDeleteज़िन्दगी यूँ ही बसर होती है.
बस यूँ ही.........अनु ! बहुत सही, बस यूँ ही..कुछ प्यार ,कुछ याद कुछ अहसाहों के सहारे जिन्दगी बसर होती है..बहुत सुन्दर..
कुछ इस तरह से जिंदगी गुजर जाये ..तेरे कंधों पे हर सांस लूं, तेरे ज़ानो पे जान जाये :).
ReplyDeleteवाह , खूबसूरती से लिखे एहसास , हर क्षणिका अलग अलग रंग लिए हुये ...
ReplyDeleteमेरे हाथों में तुम्हारा हाथ..
याने
-अवसर,संभावना,खुशी....
तुम्हारे काँधे पर टिका मेरा सर
याने
-प्यार,आशा जादू....
तुम्हारा मेरे नज़दीक होना
याने
-ज़िन्दगी,ज़िन्दगी,ज़िन्दगी
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नज़दीकियों ने जागा दिया है जैसे कोई जादू
हर लम्हा बस मुझे ज़िंदगी सा लगता है ।
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उस रोज
जब सीना चीर कर
तुम दे रहे थे
सबूत अपनी मोहब्बत का..
तब चुपके से वहाँ
मैंने अपना एक ख्वाब
छिपा दिया था ...
जो हलचल है तेरे दिल में उसे
धडकन न समझना....
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सांसें जो चल रही हैं तेरी
वो मेरी आस है ,
तेरे दिल में मेरा ही तो
ख्वाब धडक रहा है
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बूंदा बांदी के बीच
अचानक नाज़ुक सी धूप खिल गयी..
मुस्कुराते बादलों की ओट से
इन्द्रधनुष झाँकने लगा,
दूर कहीं बांसुरी बज रही है शायद...
और ये खुशबु का झोंका???
अरे बस कर मेरे मन...
उसकी मोहब्बत का तुझे
फिर से भरम हुआ लगता है....
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ख्वाबों में देखा था मैंने
इंद्रधनुष का झांकना
मेरे मन ने जैसे उसमें
तेरी तस्वीर दिखा दी ।
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ओफ्फो...
गुड़ की तरह
जुबां पर घुलती मोहब्बत में
जाने किरकिरी कहाँ से आई थी!
इस मोहब्बत को भी न
बदमज़ा होने में वक्त नहीं लगता..
***********************
आज कल है हर चीज़ में
मिलावट का ज़माना
कम से कम मुहब्बत को तो
इस मिलावट से बचाना । :):)
देखा था एक ख्वाब...संजोयी थी एक आस....कि बस यूँ ही बसर होती रहे ज़िन्दगी एक नज़्म सी....एक गीत सी,एक राग सी जो रहे सदा सुर में....
ReplyDeleteक्या बात
बड़ा प्यारा लगा ये अंदाज़
अच्छी रचना, बहुत सुंदर
ReplyDeleteअनु जी सच में आपको पढना वाकई सुखद है..
मेरे नए ब्लाग TV स्टेशन पर देखिए नया लेख
http://tvstationlive.blogspot.in/2012/10/blog-post.html
दिल तक उतर गई आपकी मुहब्बत की मिठास .... बेमिसाल!
ReplyDeleteमेरे हाथों में तुम्हारा हाथ..
ReplyDeleteयाने
-अवसर,संभावना,खुशी....
बहुत ही उत्तम है अनु जी...हमेशा की तरह दिल के तार झंकृत हो उठें.
बहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट 'बहती गंगा" पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteमिठास लिए रचना...
ReplyDeleteगुड़ की जगह चीनी का इस्तेमाल अच्छा हैः)
सस्नेह
बहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट 'बहती गंगा" पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteआपकी रचना में तो मिठास ही मिठास है | कहीं कोई किरकिरी नहीं |
ReplyDeleteदिल को छूते एहसास ....
ReplyDeleteहो ताल्लुक तो रूह से हो,
दिल तो अक्सर भर भी सकता है
--जावेद अख्तर
शुभकामनाएँ!
आज 06-10-12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete.... आज की वार्ता में ... उधार की ज़िंदगी ...... फिर एक चौराहा ...........ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
अनु इतना सारा प्यार ...कहाँ रखती हो ...ह्म्म्म जाना ...कुछ दोस्तों में और कुछ अपनी रचनाओं में तक़सीम कर देती हो न .....!
ReplyDeletetumse say shuru aur tumhi par zindgani khatam....di
ReplyDeleteबूंदा बांदी के बीच
अचानक नाज़ुक सी धूप खिल गयी..
मुस्कुराते बादलों की ओट से
इन्द्रधनुष झाँकने लगा,
दूर कहीं बांसुरी बज रही है शायद...
और ये खुशबु का झोंका???
अरे बस कर मेरे मन...
उसकी मोहब्बत का तुझे
फिर से भरम हुआ लगता है....these lines r my personal favourite....
इस मोहब्बत को भी न
ReplyDeleteबदमज़ा होने में वक्त नहीं लगता..
kyaa khoob kaha hai aapne:):)
प्रेम के रंगों से सराबोर सुन्दर कृति।
ReplyDeleteदिल को छू गई अनु जी वाह
ReplyDeletewaah......fouru..jabardast :)
ReplyDeleteWaqt is the culprit most of the time. Such a deep moving kavita. Somehow I have missed your poems. Will try to keep up :D
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDelete.......और इन दिनों
ReplyDeleteज़िन्दगी यूँ ही बसर होती है.
बस यूँ ही..
क्या बात है
जिदगी के सुर ताल का सुंदर लेखा जोखा.
ReplyDeleteबेहतरीन.
जिन्दगी के हर लम्हे को अपनी भावनाओं की चासनी में डुबाकर
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दरता से व्यक्त किया है..
शब्द-शब्द अहसाह से परिपूर्ण...
:-)
उस रोज
ReplyDeleteजब सीना चीर कर
तुम दे रहे थे
सबूत अपनी मोहब्बत का..
तब चुपके से वहाँ
मैंने अपना एक ख्वाब
छिपा दिया था ...
जो हलचल है तेरे दिल में उसे
धडकन न समझना...
पंक्तियाँ अंतर्मन को छू गईं, वाह !!!!!!!!!!!
यह मोहब्बत का भरम भी कितना खूबसूरत होता है । बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteजिंदगी के हर रंग में भीगो दिया है आपने अनु :)
ReplyDelete