जाने कब से पल रहा है
न जाने कब से चल रहा है.....
एक ख्वाब
मेरे ज़ेहन में,
मेरे मन में.....
एक ख्वाब
जो थक गया है
पलते पलते
चलते चलते.....
थक गया है ये
मुकम्मल होने का इंतज़ार करते करते
थक गयी हूँ मैं भी
इसको ढोते ढोते.....
सोचती हूँ
सुला दूं इस ख्वाब को
चिरनिद्रा में
तो शायद
मुझे भी नींद आ जाए
थोड़ा सुकून मिल जाए.....
(कभी कभी ख़्वाबों का टूटना भी ज़रूरी है )
अनु
न जाने कब से चल रहा है.....
एक ख्वाब
मेरे ज़ेहन में,
मेरे मन में.....
एक ख्वाब
जो थक गया है
पलते पलते
चलते चलते.....
थक गया है ये
मुकम्मल होने का इंतज़ार करते करते
थक गयी हूँ मैं भी
इसको ढोते ढोते.....
सोचती हूँ
सुला दूं इस ख्वाब को
चिरनिद्रा में
तो शायद
मुझे भी नींद आ जाए
थोड़ा सुकून मिल जाए.....
(कभी कभी ख़्वाबों का टूटना भी ज़रूरी है )
अनु
बेहद गहरी अभिव्यक्ति अनु जी वाह
ReplyDeleteसोचती हूँ
ReplyDeleteसुला दूं इस ख्वाब को
चिरनिद्रा में
तो शायद
मुझे भी नींद आ जाए
थोड़ा सुकून मिल जाए.......kash ...bahut sundar yahi khyaal aksar mere dil mein bhi aate hain ..anu ...
सोचती हूँ
ReplyDeleteसुला दूं इस ख्वाब को
चिरनिद्रा में.....
.......................
वाह.....बेहद खूब .....
मनोवैज्ञानिक कहते है कि,ख्वाब नींद के लिए जरुरी होते है !
ReplyDeleteवैसे ख्वाब कोई थका हुआ है उसके साकार होने के कोई आसार नहीं दिख रहे है तो उसका टूटना ही अच्छा है !
ख्वाब कांच के नहीं मिटटी के होते हैं कुछ पक के आकार ले लेते हैं तो कुछ कच्चे ही रह जाते हैं.पर हमारे पास हमेशा उन्हें फिर से आकार देने का विकल्प होता है :).
ReplyDeleteसोचती हूँ
ReplyDeleteसुला दूं इस ख्वाब को
चिरनिद्रा में.....
ऐसा हो पाता ... गहन भाव लिये उत्कृष्ट लेखन ... आभार
थक गया है ये
ReplyDeleteमुकम्मल होने का इंतज़ार करते करते
थक गयी हूँ मैं भी
इसको ढोते ढोते.....
बहुत सुंदर, क्या कहने
मत सुलाओ ख्वाब को
ReplyDeleteएक प्याली गरम चाय के साथ उससे गुफ्तगू करो ....फिर थकान दूर,उदासी दूर
ख्बाब था मेहनत के बल पर , हम बदल डालेंगे किस्मत
ख्बाब केवल ख्बाब बनकर, अब हमारे रह गए है
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .
आपके शब्दों में आत्मा बस्ती है ..भाव छलक छलक जाते है दिल तक उतरने वाला लेखन ..बधाई
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति....!
ReplyDeleteसपने तो सभी तरह के आते हैं!
शुभसंध्या!
खुद सोने के लिए ख्वाब को सुलाना जरूरी है
ReplyDeleteकिन्तु चिरनिद्रा में...कदापि नहींः)
सस्नेह
आभार रविकर जी.
ReplyDeleteसोचती हूँ
ReplyDeleteसुला दूं इस ख्वाब को
चिरनिद्रा में
तो शायद
मुझे भी नींद आ जाए
थोड़ा सुकून मिल जाए....
बहुत खूबशूरत भाव लिये सुंदर अभिव्यक्ति
MY RECENT POST: माँ,,,
bahut hi khoobsoorsti se shabd diye hai bhavnaon ko badhai
ReplyDeleteख्वाब टूटने चाहिए पर ख़त्म नहीं....।
ReplyDeleteहम तो यही कहेंगे --
ReplyDeleteएक आस जगाये रखना
ख्वाबों को सजाये रखना .
सोचती हूँ
ReplyDeleteसुला दूं इस ख्वाब को
चिरनिद्रा में....नही,नही बिल्कुल नही सुलाना अनु. ख्वाब है तो जिन्दगी है..जागते रहो जगाते रहो!..शुभकामनाएं
kabhi kabhi kwab jeene ka sahara hi ban jate hain........di apke sare kwab sach ho yahi dua hai meri.....
ReplyDeleteशुभकामनायें ...
ReplyDeleteऐसे ख्वाबों से क्या मतलब जो थका दे,फिर उनका टूट ही जाना बेहतर है...|
ReplyDeleteदेखो,
ReplyDeleteआहिस्ता चलो
और भी आहिस्ता जरा
देखना, सोच समझकर
जरा पांव रखना
जोर से बज न उठे
पैरों की आवाज कहीं
कांच के ख्वाब हैं
बिखरे हुए तनहाई में
ख्वाब टूटे न कोई
जाग न जाये देखो
जाग जायेगा कोई ख्वाब
तो मर जायेगा....
/
चचा गुलज़ार के बाद मेरी औकात ही क्या!!
ख्वाब तो निद्रा में ही गोचर होते है , फिर सो जाइये और ख्वाबो को पल्लवित होने दीजिये .
ReplyDeleteमत सुलाइए ख्वाब को ये सो गए तो नींद कैसे आएगी, सुकूं कहाँ बिन ख्वाब की नींद में... गहन भाव अनुजी...
ReplyDeleteकल नींद उचट सी गई थी ,
ReplyDeleteकुछ ख़्वाब बिखर से गए ,
आज सो लेने दो सितारों मुझको,
खबर है ख़्वाब में आने की उनकी |
गुलज़ार साहब की वही नज़्म दिमाग में आई थी जिसे सलिल चचा ने लिखा है!!अब आगे क्या कहूँ!!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति..गहन भाव
ReplyDeleteभावों से भरी सुंदर रचना |
ReplyDeleteनई पोस्ट:- ओ कलम !!
ख्वाब तो ख्वाब हैं...अगर पूरे हो गए तो ख्वाब ही कहाँ रहे ...हैं न ..इसलिए ख्वाब को ख्वाब ही रहने दो ...हक़ीक़त न करो
ReplyDeleteख्वाब
ReplyDeleteनहीं थकता
थक जाता है
आदमी ,
और भूलना चाहता है
ऐसे ख्वाब जो
मुकम्मल न हो
पर ख्वाब तो वही
जो कभी मुकम्मल न हो
गर हो जाये तो
फिर ख्वाब कहाँ ?
खूबसूरत नज़्म
umda nazm Anu Ji..
ReplyDeleteSulana chahte hain khwabon ko magar
yeh khwab hame sone nahin dete..
Abhaar..
sundar prastuti
ReplyDeleteख्वाबोँ का भी एक सीमा तक अपना महत्व होता है ।
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण रचना ....
ख्वाब कितना भी खूबसूरत हो, होता काँच से भी नाज़ुक है।
ReplyDeleteपर ख्वाब तो वही
ReplyDeleteजो कभी मुकम्मल न हो
गर हो जाये तो
फिर ख्वाब कहाँ ?
...बिलकुल सच..बहुत सुन्दर रचना..
Dreams are important and when they break, it hurts. Poignant read but very practical.
ReplyDeleteजब ख्याब टूटेंगे तभी हकीकत की सूरत नज़र आएगी ....
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति तभी तो कहते हैं .....
ReplyDeleteअनसुलझे सवालों से बहुत परेशान है जिन्दगी ....मेरी सुनती ही नहीं अपनी ही सुनाये जाती है जिन्दगी |
ख्वाबों के जिन्दा रखने में एक आशा जीवित रहती है और उनके टूटने पर वह नभी समाप्त. चलो हकीकत से अमन सामना भी कर लेना चाहिये कभी कभी.
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण कविता.
उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
ReplyDelete(कभी कभी ख़्वाबों का टूटना भी ज़रूरी है )
ReplyDeleteआपकी मान्यता है कि कभी-कभी ख्वावों का टूटना भी जरूरी है। आपसे मैं सहमत हूं लेकिन इस बात से आपको भी सहमत होना पड़ेगा कि इंसान भी सपनों की दुनिया से हरदम प्रभावित रहा है। ऐसे में मनोवैज्ञानिकों ने भी स्वप्न - संसार पर गहन अध्ययन किया है। उनके अनुसार, हर सपना कुछ कहता है। जरूरत इस बात की है कि स्वप्न के सार को समझा जाए। इसलिए सपनों को कभी टूटने मत दीजिए। मेरे पोस्ट पर मुझे प्रोत्साहित करने के लिए आपका विशेष आभार ।
ख़्वाबों की ख़ासियत यही है कि वो पूरे हों अथवा अधूरे रह जाएँ ,रक्तबीज जैसे नित नये प्राकार से बनते रहते हैं .......सस्नेह :)
ReplyDeleteउस रोज़-
ReplyDeleteएक नर्म सी ख्वाहिश
किसी सख्त बिस्तर की
सलवटों पर थी
दम तोड़ती .... behad najuk khyaal khoobsurat prastuti...
ब्रेकेटवाली आखिरी पंक्ति एक्स्ट्रा लगी ----बाकी खूबसूरत...और करुण-
ReplyDeleteकभी कभी ख़्वाबों का टूटना भी ज़रूरी है
ReplyDeleteBahut khoob!
माफ करना दीदी ,
ReplyDeleteमैं इस बात से असहमत हूँ कि कभी कभी ख़्वाबों का टूटना भी जरूरी है (शायद अभी मुझे इस बात का कोई अनुभव नहीं है)
लेकिन कविता के नजरिये से देखें तो , बहुत सुन्दर |
यहाँ मैं अपनी कोई पंक्ति नहीं डालूँगा क्यूंकि सलिल बाऊ जी ऊपर गुलज़ार साब को पहले ही ले आये हैं , अब कुछ रहता ही नहीं कहने को |
पुनः माफ़ी ,
सादर
आकाश
मैं तब से सोच रहा हूँ कि आपने वो बात बेवजह तो नहीं लिखी होगी , कुछ तो सोचा ही होगा |
ReplyDeleteफिर अभी-अभी मेरे दिल में ख्याल आया है :)
कि सचमुच ख़्वाबों का टूटना बहुत जरूरी है , अगर हमारे ख्वाब टूटेंगे नहीं तो हम जागेंगे कैसे और अगर हम जागेंगे नहीं तो उन ख़्वाबों को पूरा करेंगे कैसे |
गलत है ख़्वाबों का मरना , न कि उनका टूटना (क्यूंकि दृढसंकल्पित ख्वाब टूट कर बिखर भले ही जाए पर कभी मरता नहीं)
कितनी गहरी सोच छिपा के रखी थी आपने इसमें , हमें पता भी नहीं चला ,
अब तो और ज्यादा माफ़ी मांगनी पड़ेगी , क्षमा ..क्षमा ..क्षमा ..
:)
सादर
shayad kabhi kabhi yehi sahii hota hai...
ReplyDelete