जल रही थी चिता
धू-धू करती
बिना संदल की लकड़ी या घी के....
हवा में राख उड़ रही थी
कुछ अधजले टुकड़े भी....
आस पास मेरे सिवा कोई न था...
वो जगह श्मशान भी नहीं थी शायद...
हां वातावरण बोझिल था
और धूआँ दमघोटू.
मौत तो आखिर मौत है
चाहे वो रिश्ते की क्यूँ न हो....
लौट रही हूँ,
प्रेम की अंतिम यात्रा से...
तुम्हारे सारे खत जला कर.....
बाकी है बस
एहसासों और यादों का पिंडदान.
दिल को थोड़ा आराम है अब
हां ,आँख जाने क्यूँ नम हो आयी है...
उसे रिवाजों की परवाह होगी शायद.....
अनु
धू-धू करती
बिना संदल की लकड़ी या घी के....
हवा में राख उड़ रही थी
कुछ अधजले टुकड़े भी....
आस पास मेरे सिवा कोई न था...
वो जगह श्मशान भी नहीं थी शायद...
हां वातावरण बोझिल था
और धूआँ दमघोटू.
मौत तो आखिर मौत है
चाहे वो रिश्ते की क्यूँ न हो....
लौट रही हूँ,
प्रेम की अंतिम यात्रा से...
तुम्हारे सारे खत जला कर.....
बाकी है बस
एहसासों और यादों का पिंडदान.
दिल को थोड़ा आराम है अब
हां ,आँख जाने क्यूँ नम हो आयी है...
उसे रिवाजों की परवाह होगी शायद.....
अनु
बाकी है बस
ReplyDeleteएहसासों और यादों का पिंडदान.
..................................................
एक रास्ता और भी था
ख़त को गंगा या गंगा जैसी किसी नदी में प्रवाहित कर दिया जाता
रचना अति उत्तम
बहते पानी में आग कैसे लगाती :-)
Deleteदिल को छू गई ये रचना आपकी प्रिय अनु ये अंतिम दो पंक्तियाँ ही सम्पूर्णता है इस रचना की बधाई आपको
ReplyDeleteप्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति ........
ReplyDelete...प्रेम की तपिश बरकरार है अभी ।
ReplyDeleteदिल को थोड़ा आराम है अब
ReplyDeleteहां ,आँख जाने क्यूँ नम हो आयी है...
उसे रिवाजों की परवाह होगी शायद.....very nice..
with full of expressions, nice presentation, "aakhiri khwahish" aur"beti vytha"
ReplyDeleteखतों की चिता । क्या विचार है।
ReplyDeleteजब किसी बेवफ़ा की आख़िरी निशानी के भी नामो-निशां मिटा देते हैं, तो असीम चैन मिलता है।
ReplyDeletebahut marmik anu ji
ReplyDeleteबाकी है बस
एहसासों और यादों का पिंडदान.
दिल को थोड़ा आराम है अब
हां ,आँख जाने क्यूँ नम हो आयी है...
उसे रिवाजों की परवाह होगी शायद.....
yah aisi aag hai jo bujhne ke baad bhi dhadhakti rahati hai sine me .......jara si hawa ka jhokha aakar rakh ko uda jata hai aur chingari mrut aatma me bhi llaga deta hai
रिश्तो की मौत..एहसासों और यादों का पिंडदान.क्या खूब..अनु..
ReplyDeleteप्रेम का अंतिम संस्कार .... खातों को जला कर .... लेकिन यादें फिर भी पीछा नहीं छोड़तीं ... आँखों की नमी महसूस हो रही है ।
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी कविता |
ReplyDeletehappens..
ReplyDeleteबाकी है बस
ReplyDeleteएहसासों और यादों का पिंडदान... एहसास अपने,और अपनी यादों के सिवा कुछ है नहीं,फिर भी कर ही दूंगी
try deceiving ur heart , ur eyes will always disagree. Well conceived and delivered feelings !
ReplyDeletetry deceiving ur heart , ur eyes will always disagree. Well conceived and delivered feelings !
ReplyDeleteaaj bahut lambe samay ke baad yaha aana hua....aapki rachna padhkar mera aana sarthak hua.....kai acchi rachnao ko padhne se vanchit rah gai pichhle dino....aabhar
ReplyDeleteदिल को थोड़ा आराम है अब
ReplyDeleteहां ,आँख जाने क्यूँ नम हो आयी है...
उसे रिवाजों की परवाह होगी शायद.....
शब्द मन को छूते हुए ... बहुत ही अच्छा लिखा है आपने
आभार
Very beautiful !
ReplyDelete?kya jajbaton ka samundar hai aapka hriday:)waah
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
उफ़..अच्छा नहीं प्रेम का यूँ दफ़न होना..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteपिंडदान के बाद भी यादें आती रहती है,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता
पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
आँख से अब नहीं दिख रहा है जहाँ ,आज क्या हो रहा है मेरे संग यहाँ .
माँ का रोना नहीं अब मैं सुन पा रहा ,कान मेरे ये दोनों क्यों बहरें हुए.
उम्र भर जिसको अपना मैं कहता रहा ,दूर जानो को बह मुझसे बहता रहा.
आग होती है क्या आज मालूम चला,जल रहा हूँ मैं चुपचाप ठहरे हुए.
शाम ज्यों धीरे धीरे सी ढलने लगी, छोंड तनहा मुझे भीड़ चलने लगी.
अब तो तन है धुंआ और मन है धुंआ ,आज बदल धुएँ के क्यों गहरे हुए..
जिस समय जिस्म का पूरा जलना हुआ,उस समय खुद से फिर मेरा मिलना हुआ
एक मुद्दत हुयी मुझको कैदी बने,मैनें जाना नहीं कब से पहरें हुए
उफ़...बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबाकी है बस
ReplyDeleteएहसासों और यादों का पिंडदान.
मार्मिक ....
बहुत खूबसूरत ......हां ,आँख जाने क्यूँ नम हो आयी है...
ReplyDeleteउसे रिवाजों की परवाह होगी शायद..... .....बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति
पहले से ही उलझा मन और भी उलझ गया ......
ReplyDeleteपत्र फाड़ने से प्रेम कैसे मर जाएगा ...यादें और गहराती जायेंगी ...
ReplyDeleteबहुत उदासी भरी रचना ...!!वेदना मन छू गयी ...!!
बहुत ही संवेदनशील रचना..
ReplyDeleteबहुत सुँदर ,अंत बहुत ही सुँदर .विरह वेदना को रस्मों की कब परवाह है .
ReplyDeleteलौट रही हूँ,
ReplyDeleteप्रेम की अंतिम यात्रा से...
तुम्हारे सारे खत जला कर.....
बाकी है बस
एहसासों और यादों का पिंडदान.
teekhee .....bahut teekhee abhivykti ...sadar abhar.
dard hi dard bass.....khat chahe jala do....yadon ka kya ??
ReplyDeletevery nicee one di
वाह बेहद दर्द भरी रचना ........प्यार में हमेशा एक दिल टूटता और रोता क्यों है ?
ReplyDeleteबाकी है बस
ReplyDeleteएहसासों और यादों का पिंडदान ........
:'(
जबरदस्त .....|
ReplyDeleteसचं में पिंडदान बहुत मुशिक्ल होता है
ReplyDeleteतेरे खतों को आज भी संजो कर रखा है ,
ReplyDeleteजाते-जाते इन्ही में जलकर राख हो जाउंगी |
बहुत सुन्दर रचना |
-आकाश
अति सुन्दर....यादों के अन्दर दबी अग्नि फिर प्रदीप्त हो गयी है. बहुत अछि लगी आपकी यह कविता.
ReplyDeleteनिहार रंजन
एहसासों और यादों का पिंडदान..वाह!
ReplyDeleteएक सूनापन, एक उदासी..
ReplyDelete++++++++++++++++++++++++++++
आत्मसमर्पण
प्रतीकों के अनुकूल संयोजन ने कविता के कथ्य को हस्तामलकवत् बना दिया है।
ReplyDeleteहृदय को नम कर गई आपकी यह रचना... निसंदेह रिश्तों की मौत भीतर तक तोड़ देती है इंसान को.
ReplyDeleteआभार
शालिनी
BAHUT HI VEDNAPURN RACHNA PAR SUNDER
ReplyDeleteप्रेम की ऐसी परिणति वेदना दे जाती है.. ऐसा न हो बस..
ReplyDeleteबहरहाल, सुन्दर अभिव्यक्ति अनु दी!
सादर
मधुरेश
prem ki antim chita:(
ReplyDeletebahut behtareen..
✿ Heart melting...:) NICE ✿
ReplyDelete---
गुलाबी कोंपलें
दिल को थोड़ा आराम है अब
ReplyDeleteहां ,आँख जाने क्यूँ नम हो आयी है...
उसे रिवाजों की परवाह होगी शायद.....
..सच सबकुछ खत्म कहाँ होता है किसी कोने में कोई आवाज दुबकी रह ही जाती है ...
मनोभावों की गहन प्रस्तुति
"दिल को थोड़ा आराम है अब
ReplyDeleteहां ,आँख जाने क्यूँ नम हो आयी है...
उसे रिवाजों की परवाह होगी शायद....."
कसक और भावुक भावों से सजी एक बेहतरीन रचना |
लौट रही हूँ,
ReplyDeleteप्रेम की अंतिम यात्रा से...
तुम्हारे सारे खत जला कर.....
बाकी है बस
एहसासों और यादों का पिंडदान.
Amazing.
New post
Kyun???
https://udaari.blogspot.in
mera hirday pighal raha hai aapki yah rachna padhkar
ReplyDeletebehad marmsprashi...
rishton ki maut hona khud ke marne se jyda peedadayk hoti hai shayd...
mere pas shabd nhi hai .apki kavita padhne ke bad .....kyonki main bhi inhi paristhiyon se gujar raha hoon. par prem ki antim yatra ke bad bhi pind dan ka sahas nhi kar pa rha hoon . .........sadar naman !
ReplyDeleteदिल को छू गयी अनु...
ReplyDelete~यादें...कभी मरतीं नहीं हैं...
ता-उम्र हमारे अंदर साँस लेतीं रहती हैं...
कभी हमें जलाती हैं....
कभी सर्द एहसास से सराबोर कर जातीं हैं...~
.
ReplyDeleteआँख जाने क्यूँ नम हो आयी है...
उसे रिवाजों की परवाह होगी शायद.....
आऽऽह… ! करुण रस चू रहा है अनुजी आपकी कविता से …
मार्मिक अभिव्यक्ति !
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
read it late but worth reading , beautifully xpressed. hum to tarif bhi mamuli se shabdo me kar sakte hai, aap khubsorat lafsh samajh kar read kar liya kare
ReplyDeletekitni khoobsurti se aap mannav ke man ki bhaavnaao ko shabdo mei vyakt kar deti hai di ..bahut bahut bahut hi khoobsurat rachna .. kitni ajeeb baat hai na ek kaavya hi aisi jagah hai jahan dard par bhi hum log wah wah karte hain !!!
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