इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Sunday, April 24, 2016

अहा ! ज़िन्दगी



दैनिक भास्कर की पत्रिका - अहा ! ज़िन्दगी  में प्रकाशित मेरी एक आवरण कथा....

 

बदलाव में छुपा है भविष्य



समूचे ब्रह्माण्ड में जो भी बना है उसे मिटना होता है,नव निर्माण के लिए ये एक आवश्यक शर्त है और प्रकृति का नियम भी |वक्त के साथ संस्कृति बदलती है, समाज बदलता है, साहित्य बदलता है | अर्थात समग्र मानव जाति बदलाव की प्रक्रिया से होकर गुज़रती है और इसे ही विकास की संज्ञा दी जाती है |
 
भोजन को सुपाच्य और स्वादिष्ट बनाने के लिए उसके मूल स्वरुप में जिस तरह बदलाव किये जाते हैं वैसे ही नीतियों, नियमों, विचारधाराओं और मानसिकताओं में लाये गए बदलाव मानव का जीवन बेहतर और सरल बनाते हैं | बदलाव न होना याने जड़ता याने स्थितियों का जस का तस बने रहना......अर्थात भविष्य की आमद बदलाव की सीढ़ियों पर चढ़ कर ही होती है | समाज में,सोच में और तकनीकियों में आये बदलावों में ही छिपी है विकास की चाभी |
समाज में रहना और उसके कायदे कानूनों को मानना मानव का सहज स्वभाव है और आवश्यकता भी| ज़माने से चली आ रही प्रथाओं में उल्लेखनीय बदलाव आया है | जैसे आज हमारे लिए ये बात कल्पना से परे है कि पति की मृत्यु के पश्चात स्त्री को उसके साथ चिता में जल मरना होगा....मगर हमारा अतीत ऐसी घटनाओं से भरा हुआ है जब स्त्री ने पति की चिता पर प्राण त्यागे और फिर उसको इस “सत्कर्म” के लिए देवी की तरह पूजा गया |

आज के दौर में स्त्री का अपने पति के प्रति प्रेम और समर्पण प्रदर्शित करने का तरीका बदल गया है जो निश्चित रूप से एक बेहतर भविष्य के आगमन का शुभ संकेत है| स्त्रियाँ अब बेशक मंगलसूत्र,सिन्दूर या बिछिये नियमपूर्वक धारण नहीं करतीं मगर वे हाथ से हाथ और कंधे से कन्धा मिलाकर अपने पति और परिवार के लिए पूरे समर्पण और स्नेह से काम करती हैं |
बीते कई वर्षों में बाल विवाह में रोक, विधवा विवाह को कानूनी मंजूरी मिलना, भ्रूण परिक्षण और कन्या भ्रूण ह्त्या पर रोक, लड़कियों को शिक्षा के अधिकार , बेटियों को जायदाद में हिस्सा मिलने जैसे कई कानूनी बदलाव आये हैं जो भविष्य को नयी उम्मीद से भरते हैं |
बदलाव अस्तित्व के संरक्षण के लिए ज़रूरी है | चार्ल्स डार्विन के सिद्धांत सर्वाइवल ऑफ़ द फिट्टेस्ट अर्थात योग्यतम की उत्तरजीविता,याने जो योग्य होगा वही जीवित रह पायेगा...और योग्यता की परिभाषा समय के साथ बदलती रही है,योग्य होने की पात्रता हर युग में अलग रही है |
पिछले दशकों में इंटरनेट सबसे बड़ी क्रांति के रूप में उभरा और जिसकी वजह से मनुष्य के जीने के तौर तरीके पूरी तरह से बदल गए| कंप्यूटर का ज्ञान होना वक्त की ज़रुरत बन गयी और इसने बहुत सारे सकारात्मक बदलाव लाये | बहुत बड़े और विस्तृत सन्दर्भ में बात करने की बजाय यहाँ छोटे छोटे बदलावों और उनसे जुड़े फायदों पर जोर देना बेहतर होगा |
जैसे एक छोटा सा बदलाव आया है चिट्ठियों के दौर का गुज़र जाना और ईमेल का आना | उँगलियों से चंद बटन दबाये और चिट्ठी तैयार, फिर एक क्लिक के साथ पल भर में ख़त अपने गंतव्य तक पहुँच जाता है | डाकघर से डाक टिकट या अंतर्देशीय पत्र लाकर लिखना फिर पोस्ट बॉक्स में डाल कर आने की जटिल प्रक्रिया से हम बच गए | और ख़त कब पहुंचेगा,पहुंचेगा भी या नहीं ये उहापोह भी समाप्त हो गयी| कितना आसान हो गया है अब अपनों से जुड़े रहना |
हाँ गुलाबी खुशबूदार कागजों पर सुनहरी रोशनाई से लिखे खतों जैसी मुलायमियत, और धड़कते दिल से लिफ़ाफ़े पर लिखी हैण्डराइटिंग को पहचानते हुए किसी प्रिय का ख़त खोलने का रोमांच ईमेल में नहीं है मगर कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ता है और ये बदलाव निश्चित तौर पर बेहतरी के लिए ही कहा जा सकता है |
वैसे ही टेलीग्राम और मनी आर्डर का बंद होना भावनात्मक रूप से ज़रा सा आहत ज़रूर कर गया मगर वो भी उस पीढ़ी को जिसने वो गुज़रा ज़माना जिया है.....जिस बहन के पास सावन में नैहर से शगुन के पैसे आये हों ,या जिस पिता के पास दूर देश बैठे बेटे का मनी आर्डर ठीक पहली तारीख़ को पहुंचता हो.....वैसे आज भी बहनों को भाइयों से तोहफ़े आते हैं मगर ऑनलाइन शॉपिंग से....याने भाई के कंप्यूटर से एक क्लिक और बहन के दरवाज़े पर एक दस्तक ! बस इतना ही......
याने बदलाव तौर तरीकों में आया अवश्य है पर बेहतरी के लिए....

तकनीकी के क्षेत्र में हुए बदलावों ने तो ज़िन्दगी जीने का अंदाज़ ही बदल कर रख दिया है| स्पेस साइंस और रोबोटिक टेक्नोलॉजी में हुए विकास ने तो जैसे पूरा दृश्य ही परिवर्तित कर दिया है......तूफ़ान के आने से पहले की चेतावनी हो या किसी प्राकृतिक आपदा के बाद के रेस्क्यू ऑपरेशन हों, उन्नत तकनीकों ने जीने की राह आसान कर दी है |
विज्ञान हमारे रोज़मर्रा के जीवन में इस तरह घुस गया है कि इसके बिना एक पल भी जीने की कल्पना नहीं जा सकती | अगर स्त्रियों या गृहणियों के सन्दर्भ में देखा जाय तो इन बदलावों ने उनके जीवन का स्तर ही बदल डाला है....जैसे हमारी नानी दादी पहले लकड़ी जला कर चूल्हे पर खाना पकाती थीं | वाकई क्या स्वाद होता था कल्ले की रोटियों का ! खाने वाले के लिए तो बड़ा सुख था मगर पकाने वालियों का तो सारा दिन बस चूल्हे के सामने ही बीतता था....बिना सर उठाये वे रोटियाँ बेलती जातीं कि ज़रा सा ध्यान बंटा और रोटी जली....आंच को कम ज्यादा करना तक संभव नहीं था.....
चूल्हे के बाद स्टोव और फिर गैस आयी | औरतों की ज़िन्दगी आसान हो गयी | माचिस और लाइटर के बाद अब तो ऑटो इग्निशन कुक टॉप्स आते हैं....याने नॉब घुमाया और गैस चालू.....उसके बाद माइक्रोवेव,इंडक्शन चूल्हे और भी ढेरों उपकरण आये जिन्होंने औरतों को दो घड़ी सुस्ताने का वक्त दिया....अब वे कुछ पल अपने लिए निकालने लगी हैं| घर बैठे रचनात्मक कार्यों में वक्त देने लगीं हैं | ऐसे बदलाव जो सुन्दर कल की ओर ले जाते हों उनका तो ह्रदय से स्वागत होना ही चाहिए......

एक वक्त था जब यात्रा में जाते समय लोग चोर पॉकेट बनवाया करते थे, और डरते सहमते, लुका छुपा कर अपने पैसे ले जाया करते थे फिर ट्रैवलर्स चेक बनाये जाने लगे | तब किसी ने कैश कार्ड्स या क्रेडिट डेबिट कार्ड की कल्पना भी न की होगी | आरम्भ में लोगों ने इसके उपयोग में थोड़ी झिझक महसूस भी की, ई बैंकिंग से भी लोग कतराते रहे पर ये बदलाव नयी पीढ़ी ने स्वेच्छा से और पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनाए और धीरे धीरे अब इनका प्रयोग आम है |   
लकीर के फ़कीर बने रहने में किसी का भला नहीं | शिक्षित लोगों के अलावा आज जो अशिक्षित है या निरक्षर है वे भी बदलावों को खुले दिल से बल्कि बाहें पसार कर स्वीकार कर रहे हैं | किसानों ने अब खेती के पारंपरिक तौर तरीकों को छोड़ कर आधुनिक तकनीकों का वरण किया है| उन्नत बीज, आधुनिक यंत्र और उपकरणों का इस्तेमाल वे खुल कर करते है और इससे उनकी आमदनी बढ़ी है, सोच का स्तर बढ़ा है और वे एक बेहतर जीवन की ओर अग्रसर हुए हैं | परम्परावादी किसान भी अब भाग्य के भरोसे न बैठ कर कृषि के क्षेत्र में आये बदलावों को अपनाने लगा है और अपने लिए बेहतर भविष्य सुरक्षित कर पाया है |
एक बेहतर समाज के लिए हमारे देश में बढ़ती जनसँख्या,बढ़ते प्रदूषण और बढ़ती गंदगी की दिशा में भी जो सार्थक कदम उठाये गए हैं वे एक अच्छे बदलाव का संकेत देते हैं |
सुबह उठ कर अपना आँगन बुहारकर द्वार पर अल्पनायें डालने का रिवाज़ तो हमारे देश में सदियों से हैं मगर आँगन बुहार कर फिर उस कचरे का निस्तारण कहाँ और किस तरह किया जाय इस बात के लिए भी आज लोग जागरूक हैं | बड़ी बड़ी प्रसिद्द हस्तियाँ इस जागरूकता अभियान से जुड़ी हैं | प्लास्टिक की थैलियों के इस्तेमाल पर रोक भी एक बहुत बड़ा और सार्थक बदलाव है और जो समय की मांग भी था |
लोगों की मानसिकता में बदलाव के साथ व्यवहार में खुलापन भी आया है | कई ऐसे विषयों पर अब खुल के बात होने लगी है जो पहले वर्जित थे जैसे जनसँख्या वृद्धि रोकने के उपाय या यौन संबंधी रोगों से बचाव इत्यादि और जिसके बेहद सकारात्मक परिणाम मिले हैं | पाश्चात्य देशों का पहनावा अपनाकर ही आधुनिक हो जाने का ढ़कोसला बहुत हुआ, अब सोच में बदलाव आया है विचारों में आधुनिकता और खुलापन आया है जो एक सुखद संकेत है |

सोच में खुलापन और मानसिक संकीर्णता का कम हो जाना एक बहुत सार्थक बदलाव है जो समाज के भविष्य को निश्चित तौर पर किसी बेहतर और ज्यादा खूबसूरत मकाम की ओर ले जाता है |

जातिवाद कम हुआ है , अब पहले के मुकाबले लोग विजातीय विवाह को सहज रूप से स्वीकारते हैं वरना कुछ दशक पहले ये पारिवारिक विघटन का कारण बनते थे | वैचारिक कट्टरता कम हुई है इसलिए उदारता बढ़ी है और दो जाति या धर्मों के लोगों का आपस में तालमेल आसान हुआ है | प्रेम विवाह को सहज स्वीकृतियां मिलने लगी हैं....अब माँ बाप इस बात को मुद्दा नहीं बनाते कि बेटे या बेटी ने अपनी मर्ज़ी से जीवनसाथी चुन लिया है और इसी वजह से दहेजप्रथा भी कुछ हद तक सिमट गयी है , समाप्त अब भी नहीं हुई है मगर एक शुरुआत तो है....एक शुभ शुरुआत |
जैसे जैसे समाज में बदलाव आते हैं वैसे वैसे उसकी संस्कृति और अभिव्यक्ति में बदलाव आता है | पिछले कुछ दशकों से पाश्चात्य संस्कृति ने हमारे जीवन में, हमारी विचार धाराओं में भारी घुसपैठ की है, जिसका परिणाम यदि कुछ नकारात्मक रहा तो बहुत कुछ सकारात्मक भी रहा है |   
उदहारण के लिए पिछले कुछ सालों से हम सभी भारतीय वैलेंटाइन डे पूरे जोर शोर से मनाने लगे है | वैलेंटाइन डे याने प्रेम की अभिव्यक्ति का दिन | कुछ संकीर्ण मानसिकता वालों ने और कुछ कट्टरपंथियों ने इसका विरोध किया,कुछ ने इसे बाज़ारवाद क़रार दिया मगर प्रेम ने कब सुनी है किसी की....इस दिन बाज़ार में जी भर के गुलाबों की बिक्री होती है ,गुलाबी रंगों वाले ग्रीटिंग कार्ड बिकते हैं और खुल्लमखुल्ला प्रेम का इज़हार होता है.......
इस बदलाव में एक गौर फरमाने लायक बात ये रही कि इस त्यौहार को सिर्फ युवाओं ने नहीं मध्यम आयुवर्ग के जोड़ों ने भी पूरे जोश से मनाया.....याने ब्याह के 25 बरस बाद भी जिसने अपने साथी से प्रेम का शब्दों में इज़हार न किया हो उसने भी खुल कर आय लव यू कह दिया | तो क्यूँ न ऐसे बदलावों का स्वागत किया जाय और उन्हें बाहें पसार कर पूरे मन से औदार्य भाव से अपनाया जाय | अगर ज़िन्दगी किसी खूबसूरत दृश्य के लिए करवट बदलती है तो अच्छा ही है |
भौगोलिक परिस्थियाँ और जलवायु भी किसी क्षेत्र विशेष की संस्कृति को निर्धारित करती हैं और इनमें आये बदलाव संस्कृति के विकास पर असर डालते हैं | आज यातायात और संचार के साधनों में असाधारण उन्नति हुई है जिसकी वजह से विभिन्न क्षेत्रों की संस्कृतियाँ आपस में मिलजुल गयीं हैं | एक प्रदेश में पहने जाने वाले कपड़े, खाए जाने वाले व्यंजन और मनाये जाने वाले त्यौहार अब दूसरे प्रदेशों की संस्कृति का भी हिस्सा बन चुके हैं | ये बदलाव समाज को उदार बनाता है और उन्मुक्त विचारधारा का संकेत देता है |  
बदलाव सदैव चुनौती के साथ आते हैं, यदि आपके भीतर भविष्य की ओर कदम बढ़ाने का जज़्बा है तो आप बदलावों को साहस के साथ सहर्ष स्वीकारेंगे वरना घोंघा बसंत बनकर ही रह जाना होगा | बदलाव को स्वीकारने पर ही मनुष्य अपने वर्तमान स्वरुप में आया है और यदि आगे भी बदलावों को नहीं स्वीकार गया तो हम उलट दिशा में चल कर संभवतः फिर चौपाये बन जायेंगे | बदलाव भविष्य की ओर बढ़ता एक सुदृढ़ और सार्थक कदम है.....इसकी ताल से ताल मिलकर चलते हुए ही हम सुनहरे विहान की ओर अग्रसर होंगे |
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अनुलता राज नायर
भोपाल



16 comments:

  1. बहुत सार्थक आलेख...सभी बदलावों को खुले मन से स्वीकार करती पुरानी फीढ़ी भी लुत्फ उठा रही है...नई पीढ़ी की फर्राटेदार जिंदगी सँवर रही है|

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " पप्पू की संस्कृत क्लास - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. अच्छा आलेख ... समय भी यही चाहता है आज ...

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  4. सही कहा आपने। बदलाव समय की जरुरत है।

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  5. सही कहा आपने। बदलाव समय की जरुरत है।

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  6. Badlav waqt ki jarurat b hai or jindgi me hmesha kuchh naya karne k liye chunouti b...... Behad sashakt or sarthak aalekh......

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  7. सही है समय के साथ हर चीज बदल जाती है..बस एक वही नहीं बदलता..

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  8. बदलाव प्रकृति का नियम जो है
    ,बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    हार्दिक बधाई!

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  9. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-04-2016) को "मुक़द्दर से लड़ाई चाहता हूँ" (चर्चा अंक-2324) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  10. बहुत बढ़ि‍या आलेख

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  13. वक्त के साथ साथ देश , समाज और व्यक्तिगत रूप से भी अनेक बदलाव आते हैं .आपने इस लेख में बदलाव के अनेक विषयों को छुआ है . रीति रिवाज़ , और परम्पराओं के बदलाव को सकारात्मक दृष्टि से ही अपनाना चाहिए . अच्छे लेख के लिए बधाई .

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