इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Tuesday, September 9, 2014

बेटियाँ


दुष्यंत संग्रहालय, भोपाल में सरोकार संस्था द्वारा बेटियों पर आधारित समारोह - 


मेरी जिस कविता को सम्मान और सराहना मिली वो साझा कर रही हूँ.....


" भेदभाव "

मिट्टी नहीं करती भेदभाव
अपने भीतर दबे बीजों पर...
होते हैं सभी बीज अंकुरित
और लहलहाते हैं
फूलते हैं, खिलते हैं....
मनुष्य ऐसा नहीं है !
वो मसल देता है
उन बीजों को
जिनसे जन्मती हैं बेटियाँ ...
ईश्वर ने मनुष्य को बुद्धि दी,
मनुष्य ने
स्वयं को ईश्वर बना लिया |
ईश्वर के आंसुओं से भीगती हैं मिट्टी
अन्खुआते हैं बीज,
मनुष्य का मन नहीं भीगता
न आंसुओं से न रक्त से !


बेटियाँ

बेटियाँ अलग होती हैं

पहला निवाला
घी वाला
उसका नहीं होता अक्सर
मगर
उसे आता है ये भूल जाना
और तोडती है वो अपने निवाले खुद,
हर कौर उसका अपना !

उसके हिस्से आती है पुरानी यूनिफोर्म
पढ़ती है पुरानी किताबों से
फिर लिखती है नयी कहानियाँ
उसके हस्ताक्षर अब सब जानते हैं !

उसके जन्म के समय
नहीं खाए माँ ने लड्डू,
नहीं बांटी मिठाई पिता ने/दादी ने
मगर बेटियाँ नहीं याद रखतीं ये सब...
लड्डुओं की बड़ी टोकरी
पहुँचती है मायके
हर सावन
बिना नागा !

सच !! बेटियाँ अलग होती हैं !!

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

16 comments:

  1. आपका आभार रविकर जी

    ReplyDelete
  2. बधाई की पात्र है रचना आपकी

    ReplyDelete
  3. बेटियाँ सचमुच अलग होती हैं ... तभी तो पाती हैं जब भी मुक़ाम कोई तो
    कभी माँ को समर्पित करती हैं तो कभी बाबा का नाम करती हैं
    ...............बहुत-बहुत बधाई के साथ अनंत शुभकामनाएँ
    सादर

    ReplyDelete
  4. बहुत संवेदनशील ... बेटियाँ जो घर का नगीना होती हैं उसे जाने कैसे मसल देते हैं लोग ...

    ReplyDelete
  5. घर, घर ;लगता है बेटियों से ही. हैवान होते हैं वे लोग जो कद्र नहीं करते उनकी.

    ReplyDelete
  6. दोनों कविता बहुत सुन्दर हैं दीदी...बहुत संवेदनशील..और एक बार फिर से बधाई आपको !

    ReplyDelete
  7. मर्मस्पर्शी कविताएं ...

    ReplyDelete
  8. शायद इसीलिए बेटियां घर की "चिराग" कही गयी
    आपका लेखन हमेशां शानदार और जानदार लगता है

    :)

    रंगरूट

    ReplyDelete
  9. मुबारकबाद...बहुत खूब...

    ReplyDelete
  10. बेटियों को समर्पित सुंदर भावपूर्ण रचना...

    ReplyDelete
  11. मर्मस्पर्शी रचना

    ReplyDelete
  12. यह सत्य है कि मिट्टी और स्त्री दोनों ही का बहुत महत्त्व है और दोनों बहुत कुछ देती हैं और अक्सर बिना कुछ पाए। स्वयं शून्य

    ReplyDelete
  13. betiyan tulsi aangan ki
    kabhi is ghar kabhi us ghar
    karti roshan jala kar khud ko
    jindgi ka har pahar ........Ekla सड़क

    ReplyDelete
  14. बेटियों का मार्मिक सच --- अदभुत
    बधाई और शुभकामनाएं
    सादर

    ReplyDelete

नए पुराने मौसम

मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...