इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Saturday, September 21, 2013

“अमलतास की डाली”



फेनिल नदी में 
कंपकंपाते चाँद का प्रतिबिम्ब
बिंम्ब जो  
ठहरा हुआ है वहीं
बहता नहीं लहरों के साथ,
और उस पर झुकी वो 
अमलतास की डाली,
जिसने उतार फेंके थे
अपने सभी स्वर्ण आभूषण और
हरे रेशमी वस्त्र भी
लहरों संग बह जाने को... 
कि प्रेम में जोगन बन जाना सुहाता है
इसे पंखुड़ियों और पत्तों का झड़ना मत कहो
ये प्रेम है,विशुद्ध प्रेम....
ठूंठ हुई डाली अपना सर्वस्व तजना चाहती है  
प्रेम के लिए स्थान बनाने को.
संसार के आवागमन से परे
मन समर्पित हो जाना चाहता है !
हाँ ! प्रेम की पराकाष्ठा भी तथागत बना देती है.
-अनुलता-
19/9/2013

34 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार - 22/09/2013 को
    क्यों कुर्बान होती है नारी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः21 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra





    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार - 22/09/2013 को
    क्यों कुर्बान होती है नारी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः21 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra





    ReplyDelete
  3. वाह, कितना सुन्दर वर्णन किया है आपने प्रेम की स्थिति का

    ReplyDelete
  4. आज की विशेष बुलेटिन विश्व शांति दिवस .... ब्लॉग बुलेटिन में आपकी इस पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर .... आभार।।

    ReplyDelete
  5. वाह अनु...प्रेम और समर्पण की यह अद्भुत अभिव्यक्ति मोह गयी ...:)

    ReplyDelete
  6. प्रेम की सरिता में बलखाती पंक्तियाँ..... बहुत सुन्दर.....

    ReplyDelete
  7. यह भी प्यार का एक रूप है या शायद यही प्यार है बेहद खूबसूरत रचना...:)

    ReplyDelete
  8. Anu Ji
    Your poem is so beautiful just like the swaying branches reflected in the moving river. I love the picture of you relaxing on your dad's shoulder. Have a great week end.
    Best Wishes Ram

    ReplyDelete
  9. very beautiful line"prem me jogan ban suhata hain"...

    Love is pure n innocent. It's d people with their lies, insecurities, egos n immoral drama that hurt each other n then blame it on love.
    - “अजेय-असीम{Unlimited Potential}”

    ReplyDelete
  10. अनु जी बिल्कुल नई तरह की अच्छी कविता है ।

    ReplyDelete
  11. प्रेम और समर्पण ..पूरक एक दूजे के. सुन्दर .

    ReplyDelete
  12. बहुत खूब,गहन भाव लिए सुंदर रचना !

    ReplyDelete
  13. बहुत खूब,गहन भाव लिए सुंदर रचना !

    ReplyDelete
  14. कितना भी हसीन ख्वाब टूट जाता हैं हकीकत को समझाने के लिए .....
    बहुत गहराए हुए हैं भाव

     आंधी

    ReplyDelete
  15. आप हृदय से 'कवियत्री' हैं ,इसीलिए आप लिखती नहीं ,बस सहज उत्पन्न भावों को ज्यों का त्यों परोस देती हैं । प्रेम और समर्पण का बहुत पारदर्शिता से उदाहरण दिया है आपने ।

    ReplyDelete
  16. हाँ ! प्रेम की पराकाष्ठा भी तथागत बना देती है....
    !!
    हार्दिक शुभकामनायें

    ReplyDelete
  17. कि प्रेम में जोगन बन जाना सुहाता है
    इसे पंखुड़ियों और पत्तों का झड़ना मत कहो

    गहन भावों से सजी रचना

    ReplyDelete
  18. हाँ ! प्रेम की पराकाष्ठा भी तथागत बना देती है.

    समर्पण की पराकाष्ठा दर्शाती सुंदर अभिव्यक्ति ...अनु ....!!

    ReplyDelete
  19. फेनिल नदी में
    कंपकंपाते चाँद का प्रतिबिम्ब
    बहुत उम्दा बिम्ब . सुन्दर भाव प्रवाह.. अच्छी रचना ..
    .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (23.09.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि और अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .

    ReplyDelete
  20. प्रेम की पराकाष्ठा भी तथागत बना देती है.

    वाह ! अत्यंत दार्शनिक बात कही है.

    ReplyDelete
  21. बिल्कुल सही कहा.

    रामराम.

    ReplyDelete
  22. गहन अहसास ,,,
    कोमल अभिव्यक्ति...
    :-)

    ReplyDelete

  23. प्रेम को नई तरीके से परिभाषित करती पोस्ट -बहुत अच्छा
    Latest post हे निराकार!
    latest post कानून और दंड

    ReplyDelete
  24. बहुत सुन्दर गहन अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  25. प्रेम की पराकाष्ठा भी तथागत बना देती है
    बिल्‍कुल सच

    ReplyDelete
  26. prem ki utkrish abhiwayakti .....mera blog aapke intjaar me hai ...anu jee ..samay nikalen .....

    ReplyDelete
  27. प्रेम की अद्भुत अनुभूति व्यक्त करती सुंदर रचना

    ReplyDelete

नए पुराने मौसम

मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...