इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Sunday, April 27, 2014

रूपांतरण

स्त्री के भीतर
उग आती हैं और एक स्त्री
या अनेक स्त्रियाँ.....
जब वो अकेली होती है
और दर्द असह्य हो जाता है |
फिर सब मिल कर बाँट लेती हैं दुःख !

औरत अपने भीतर उगा लेती है एक बच्चा
और खेलती हैं बच्चों के साथ
खिलखिलाती है,तुतलाती है 
घुलमिल कर !
रूपांतरण की ये कला ईश्वर प्रदत्त है |

कभी कभी
एक पुरुष भी उग आया करता है
स्त्री के भीतर
जब बाहर के पुरुषों द्वारा
तिरस्कृत की जाती है |
तब वो सशक्त होती  है उनकी तरह !

सदियों से
इस तरह कायम  है
स्त्रियों का अस्तित्व !
कि उनके भीतर की उपजाऊ मिट्टी में
उम्मीद के बीज हैं बहुत
और नमी है काफी !
~अनुलता ~

37 comments:

  1. Ultimate...simply awesome..स्त्री की इस उपयोगिता को समझकर ही उसे दूसरी पंक्ति से उठाकर मुख्यधारा में लाया जा सकता है। बेहतरीन रचना।।

    ReplyDelete
  2. स्त्री से मजबूर और धरी शाली कोई दूसरा नहीं होता ... अपने दर्द को आप बांटने कि क्रिया से वाकिफ होती है वो... उसे अकेले उठने कि जरूरत है बस ...

    ReplyDelete
  3. जबरदस्त रचना...

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (28-04-2014) को "मुस्कुराती मदिर मन में मेंहदी" (चर्चा मंच-1596) पर भी होगी!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका बहुत आभार शास्त्री जी.

      Delete
  5. बनाये रखने को अपना वजूद स्त्रियॉं जन्म देने की प्राकृतिक क्षमता के अतिरिक्त भी कई और जन्म लेती हैं !

    ReplyDelete
  6. कभी कभी
    एक पुरुष भी उग आया करता है
    स्त्री के भीतर
    जब बाहर के पुरुषों द्वारा
    तिरस्कृत की जाती है |

    तभी तो स्त्रियाँ सुदृढ़ होती हैं, !! माँ होती हैं !!

    ReplyDelete
  7. प्रकृति की सबसे सुन्दर रचना है, सृजनकर्ता है माँ है, फिर भी तिरस्कृत अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए भटकती क्योंकि स्त्री है ... सशक्त अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  8. बहुत बहुत सुन्दर भाव आदरणीया अनु जी

    ReplyDelete
  9. @ कभी कभी
    एक पुरुष भी उग आया करता है
    स्त्री के भीतर
    जब बाहर के पुरुषों द्वारा
    तिरस्कृत की जाती है |
    तब वो सशक्त होती है उनकी तरह !
    बहुत सार्थक रचना है अनु,
    स्त्री उनकी तरह सशक्त जरुर बने पर उनके जैसी बिलकुल भी न बने ! स्त्री जब उनके जैसी बनने क़ी कोशिश मे लगतीं है उसके सहज स्वाभाविक नैसर्गिक कोमल गुण नष्ट हो जाते है, इसीसे उसका अस्तित्व उपजाऊ है ! सुन्दर रचना बहुत पसन्द आयी !

    ReplyDelete
  10. बहुत सुन्दर भाव..अनु.. बधाई

    ReplyDelete
  11. har pal badalti hain roop striyaan, janchti hain har roop men striyan.
    behad khoobsurat likha hai anu,

    ReplyDelete
  12. गज़ब... बहुत बेहतरीन अभिव्यक्ति, बधाई.

    ReplyDelete
  13. वाह बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
  14. सदियों से
    इस तरह कायम है
    स्त्रियों का अस्तित्व !
    कि उनके भीतर की उपजाऊ मिट्टी में
    उम्मीद के बीज हैं बहुत
    और नमी है काफी ! ----

    बहुत सुन्दर और प्रभावपूर्ण रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    सादर

    आग्रह है----
    और एक दिन

    ReplyDelete
  15. कभी कभी
    एक पुरुष भी उग आया करता है
    स्त्री के भीतर
    जब बाहर के पुरुषों द्वारा
    तिरस्कृत की जाती है |
    तब वो सशक्त होती है उनकी तरह !... very strong and meaningful... ek baar phir fida

    ReplyDelete
  16. bahut hi achhi rachna, dil ko chhoo gai.

    shubhkamnayen

    ReplyDelete
  17. सुंदर सुघड़ आत्मविश्वास ...!!

    ReplyDelete
  18. नारी मन वाकई सशक्त होती है
    साभार !

    ReplyDelete
  19. आपका बहुत शुक्रिया यशोदा :-)

    ReplyDelete
  20. बेहतरीन रचना , प्रस्तुति भी बेहद बेहतर , अनु जी धन्यवाद !
    I.A.S.I.H ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )

    ReplyDelete
  21. बहुत असरदार रचना.... यकीनन औरत का वजूद पुख़्ता है...

    ReplyDelete
  22. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  23. वाह !!!
    स्त्री के भीतर
    उग आती हैं और एक स्त्री
    या अनेक स्त्रियाँ.....
    जब वो अकेली होती है
    और दर्द असह्य हो जाता है |
    फिर सब मिल कर बाँट लेती हैं दुःख !,,

    शुरुआत ही बेहतरीन है .. और बाकि लाजवाब

    ReplyDelete
  24. सदियों से
    इस तरह कायम है
    स्त्रियों का अस्तित्व !
    कि उनके भीतर की उपजाऊ मिट्टी में
    उम्मीद के बीज हैं बहुत
    और नमी है काफी !

    बहुत सुंदर रचना...नारी के असंख्य जज़्बातों और नारी चरित्रों को आप अपनी कविताओं में प्रस्तुत करती हैं वो अतुलनीय है..Just awesome :)

    ReplyDelete
  25. कि उनके भीतर की उपजाऊ मिट्टी में
    उम्मीद के बीज हैं बहुत
    और नमी है काफी !

    स्त्री तेरे अनेकों रूप। और हर किरदार को बखूबी निभाती है स्त्री।
    बहुत सुन्दर रचना। बधाई।

    ReplyDelete
  26. bahut khoon stri ka pura chitran
    badhai
    rachna

    ReplyDelete
  27. बिन स्त्री के संसार का कोई अस्तित्व कहाँ

    बहुत बढ़िया गंभीर चिंतनशील रचना

    ReplyDelete
  28. वाह !!! बहुत खूब !!! !!! !!!

    ReplyDelete
  29. अनेक रूपों को लिए स्त्री फिर भी एक आवरण में ढकी रहती है .

    ReplyDelete
  30. जब तक स्त्री का अस्तित्व है, तभी तक ये सृष्टि भी है! अन्यथा कुछ नहीं रहेगा।

    ReplyDelete

नए पुराने मौसम

मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...