इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Thursday, November 14, 2013

दुखों के बीज

आस पास कुछ नया नहीं....
सब वही पुराना,
लोग पुराने
रोग  पुराने
रिश्ते नाते और उनसे जन्में शोक पुराने |
नित नए सृजन करने वाली धरती को
जाने क्या हुआ ?
कुछ नए दुखों के बीज डाले थे कभी
अब तक अन्खुआये नहीं
दुखों के कुछ वृक्ष होते तो
जड़ों से बांधे रहते मुझे/तुम्हें /हमारे प्रेम को....
सुखों की बाढ़ में बहकर
अलग अलग किनारे आ लगे हैं हम |
~अनुलता ~




41 comments:

  1. ये लो जी, सब सुख बुलाते है , आपको दुःख के पेड की पड़ी है . मस्त रहिये . :)

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  2. दुःख बांधते हैं ...करीब लाते हैं , यह तो जाना था ....पर दुःख की कामना करना .......सुखों के एवज में ....अनूठा लगा ......प्यारा भी .....तभी तो अलग हो सबसे ....!!!!

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  3. सचमुच जड़ों में अद्भुत शक्ति होती है बांधे रखने की …अप्रतिम भाव

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  4. सच है दुखों के भी अपने कुछ सुख होते हैं.. बहुत मार्मिक.

    रामराम.

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  5. दुःख के दिन भी कई बार काम का जाते हैं .
    मंगलकामनाएं !

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  6. दुःख और आक्रोश भरी रचना,बेहतरीन , आभार।
    कभी इधर भी पधारें

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  7. प्राकृति दुखों के पेड़ आत्मसात कर लेती है ... बस खुशियों को ही उगने देती है ...
    नारी मन से कम तो नहीं होती प्राकृति ...

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  8. जहां सुख के पेड़ों की छांव होती है, वहां दुखों के पौधे नहीं पनपते... आप बस अपने सुख के पेड़ को सींचें

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  9. दुखों के बीज दबे ही पड़े रहें तो अच्छा है !

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  10. एक अलग भाव लिए रचना...
    दुःख के प्रति भी नजरिया अच्छा हो रहा है..
    बहुत बेहतरीन...
    :-)

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  11. दुःख अपनों को करीब लातें हैं

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  12. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरणीया

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  13. bilkul sahi anu ji , badhai aapko , pyara sa srjan kiya aapne

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  14. हम बबूल बो कर आम की उम्मीद रखते हैं...

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  15. ऐसे ही दुखो से भरी पड़ी है दुनिया ॥ अब दुख के वृक्ष हो जाए तो :)
    बेहतरीन ...

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  16. वाह, बहुत खूब

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  17. हर रिश्ता सुख के साथ दुःख भी देता है
    और दुःख का भी अपना एक सुख होता है
    आपने नए दुःख की कामना की है इस रचना में,
    बहुत सुन्दर और एकदम अनूठी रचना है अनु ,

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  18. चिंता न करें सुख के बाद दुख आता ही है ,कहीं ना कहीं इस दुक का बीज हो रहा होगा अंकुरित। पर कामना तो यही है कि आप सुख पूर्वक रहें। अचछी लगी ये अलग सी रचना

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  19. बस आह! साथ में वाह भी..

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  20. चिंतन की नई धारा --सुन्दर !
    नई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ

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  21. आपकी कविताओं की शैली का मैं कायल हूँ और उनमें भी खासकर प्रेमाभिव्यक्ति से संतृप्त कविताओं का..भला कौन इस तरह से प्रेम को बेहद संक्षेप में अभिव्यक्त कर पायेगा जैसा आपकी इस कविता की आखरी पंक्तियाँ कर रही हैं-

    दुखों के कुछ वृक्ष होते तो
    जड़ों से बांधे रहते मुझे/तुम्हें /हमारे प्रेम को....
    सुखों की बाढ़ में बहकर
    अलग अलग किनारे आ लगे हैं हम।

    शानदार!!!

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  22. beautiful..
    sometimes pain brings two people together
    and sometimes it does exactly the opposite..

    hope u r doing fine.. it's been long since my last visit !!

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  23. दुख करीब लाता है , सुख दूर ले जाता है … उलटबांसी है मगर सच है !

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  24. भावो का सुन्दर समायोजन......

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  25. क्‍या बात है ..... ये ख्‍याल भी कुछ बुरा नहीं :)

    अच्‍छी लगी आपकी रचना
    सादर

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  26. सुन्दर भाव.. दुःख में ही रिश्तों की पहचान होती है .. दुःख भी जीवन का एक आयाम है ..

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  27. सच कहा वाकई दुख ही जड़ से बांधे रखता है कुछ रिश्तों को वरना सुखों की बाड़ जड़े उखाड़ जाती है और बह जाता है सब भावनाओं के सैलाब में कहीं...दूर बहुत दूर जहां कई बार तो किनारा भी नहीं मिलता अति सुंदर भाव संयोजन...

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  28. बहुत सुन्दर कविता। दुःख सीमेंट की तरह होता है।

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  29. दुःख से ही अपने-पराये की पहचान होती है .
    ख्याल अनूठा है

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  30. भावपूर्ण विवेचन करती पंक्तियाँ

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  31. सुन्दर है भावाभिव्यक्ति।

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  32. तुम्हारी रचनाओं को समझना बड़ा ही रोचक रहता है अनु! यही देख रहे हैं... कि सबने अपने हिसाब से सही ही समझा ... मगर हम कुछ और ही सोच रहे हैं... बताएँगे कभी :))
    <3

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    1. अनिता मैं खुद सबके interpretations देख हैरान होती हूँ.....बहुत अच्छा लगता है अपनी रचना को किसी और की नज़र से देखना.....इंतज़ार रहेगा तुम्हारी सोच का :-)

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  33. Still, we can't give up on relationships and people whom we love:)

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  34. दुख के सब साथी सुख में न कोय ..... दुख बांधे रखता है .... कितनी गहनता से बात कही है ....

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  35. वैसे कहा तो ये गया है कि सुख में सब साथ देते हैं दुख में कोई नहीं .... पर सच तो ये है कि दुख आपस में दो लोगों को बांधे रहता है ।

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  36. Kavita ke sandesh seedhe aakar dil ki deevaro se takrate hai....sukh dukh ki paribhasha ek alag hi sandesh de jati hai yaha...

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