इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Thursday, October 3, 2013

सिंदूर

किसी ढलती शाम को
सूरज की एक किरण खींच कर
मांग में रख देने भर से
पुरुष पा जाता है स्त्री पर सम्पूर्ण अधिकार |
पसीने के साथ बह आता है सिंदूरी रंग स्त्री की आँखों तक
और तुम्हें लगता है वो दृष्टिहीन हो गयी |
मांग का टीका गर्व से धारण कर
वो ढँक लेती है अपने माथे की लकीरें
हरी लाल चूड़ियों से कलाई को भरने वाली  स्त्रियाँ
इन्हें हथकड़ी नहीं समझतीं ,
बल्कि इसकी खनक के आगे
अनसुना कर देती हैं अपने भीतर की हर आवाज़ को....
वे उतार नहीं फेंकती
तलुओं पर चुभते बिछुए ,
भागते पैरों पर
पहन लेती हैं घुंघरु वाली मोटी पायलें
वो नहीं देती किसी को अधिकार
इन्हें बेड़ियाँ कहने का |

यूँ ही करती हैं ये स्त्रियाँ
अपने समर्पण का ,अपने प्रेम का,अपने जूनून  का
उन्मुक्त प्रदर्शन !!

प्रेम की कोई तय परिभाषा नहीं होती |

-अनुलता-


57 comments:

  1. इस कविता को मनीषा पांडे की फेसबुक वाल पर चिपका दें :) फिर वह आपको स्त्री स्वतंत्रता पर भाषण देंगी :):) वैसे कविता पर आते हुए, अनुलता का दूसरा नाम प्रेम है। लिखती रहें...

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  2. sahi kaha di......aur hamesha karti rahengi.......shringar bedi nahi balki gehna hai hamara....hamare pyar ka...superb ...

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  3. एकदम सही ...वाकई प्रेम की कोई तय परिभाषा नहीं होती। वह तो कुछ वैसा ही होता है जैसे
    "जाकी रही भावना जैसे, प्रभू मूरत देखी तिन तैसी" बहुत ही सुंदर भाव संयोजन से सजी भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

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  4. दीदी
    अच्छी रचना
    कोई और परिभाषा खोजूँ क्या
    शायद
    प्रेम की कोई तय परिभाषा नहीं होती |
    आप सच कहती हैं
    सादर

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  5. गनीमत प्रतिक्रिया पर केप्चा का ग्रहण नहीं लगा है

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  6. हां ये जेवर कहीं न कहीं औरतों के लिए बनाये गये बंधेज हो सकते हैं, पर ये समर्पण और प्रेम के भाव हीं हैं जो औरत इन्हें आभूषण मानकर स्वीकार करतीं हैं.. बहुत सुन्दर लिखा है अनु जी।

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  7. m borrowing these words with due respect .. अनुलता का दूसरा नाम प्रेम है। :)
    Bahut pyari kavita :)

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  8. सुन्दर प्रस्तुति -
    शुभकामनायें आदरणीया-

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  9. kya khub kahi hai apne....shabd hi nhi baya kar dun....ati sundar

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  10. So heart felt and soulful thoughts :)

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  11. बहुत सही कहा .....
    प्रेम की कोई तय परिभाषा नहीं होती.
    बहुत सुन्दर .
    नई पोस्ट : भारतीय संस्कृति और कमल
    नई पोस्ट : पुरानी डायरी के फटे पन्ने

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  12. यूँ ही करती हैं ये स्त्रियाँ
    अपने समर्पण का ,अपने प्रेम का,अपने जूनून का
    उन्मुक्त प्रदर्शन !!
    लेकिन पुरुष इसे कभी न समझ पाया ...इसे सदा वर्चस्व का ही नाम दिया

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  13. Dil ko chhoo lene waali rachanaa....satya kaa anaavaran...atulneey ..Badhaaee..!

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  14. प्रेम सिक्त रचना . बहुत सुन्दर .

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  15. बहुत सुन्दर ........

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  16. प्रेम एहसास है ,इसे शब्दों में बाँधा नहीं जा सकता -बहुत सटीक अभिव्यक्ति !
    नवीनतम पोस्ट मिट्टी का खिलौना !
    नई पोस्ट साधू या शैतान

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  17. प्रेम की कोई तय परिभाषा नहीं होती | आपने सच कहा !

    RECENT POST : मर्ज जो अच्छा नहीं होता.

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  18. प्रेम या द्वंद.......... ?

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  19. ..उफ्फ! आसानी से नहीं मिलता यह एक चुटकी सिंदूर भी!!

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  20. प्रेम की कोई तय परिभाषा नहीं होती |
    बहुत सशक्त अभिव्यक्ति ....!!
    सुंदर रचना अनु ...!!

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  21. मन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने...

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  22. बल्कि इसकी खनक के आगे
    अनसुना कर देती हैं अपने भीतर की हर आवाज़ को....

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  23. बहुत सुंदर नाज़ुक अभिव्यक्ति ..

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  24. प्रेम बोझ तो कतई नहीं हो सकता...हाँ समर्पण ज़रूर है...पर दोनों तरफ से...

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  25. Waah....aapne aurat ko kitne sunder rup mai prastut kiya hai...badhaiya :)

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  26. बहुत सुंदर प्रस्तुति।

    पर क्या ये प्रदर्शन हमेशा उन्मुक्त होता है कई बार परंपरा का निर्वाह भी तो होता है।

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  27. अभिव्यक्ति का जबाब नही |
    "न आँखों से कभी ढले आंसू न चेहरे पे शिकस्ती के निशान उभरे
    मैं इस सलीके से रोया हूँ , पूरी उम्र भर , हंस हंस कर ."
    “अजेय-असीम{Unlimited Potential}”

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  28. मांग का टीका गर्व से धारण कर
    वो ढँक लेती है अपने माथे की लकीरें
    हरी लाल चूड़ियों से कलाई को भरने वाली स्त्रियाँ
    इन्हें हथकड़ी नहीं समझतीं ,
    बल्कि इसकी खनक के आगे
    अनसुना कर देती हैं अपने भीतर की हर आवाज़ को....

    दिल को छू गया नारी का यह समर्पण यह प्रेम !!!

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  29. दो व्यक्तियों के बीच प्रेम की परिभाषा सिर्फ वे दो इंसान ही तय कर सकते हैं , जो उस समय प्रेम में हैं। उसे अपनी सुविधा से दकियानूसी या प्रगतिशील निर्धारित करना संभव ही नहीं है।

    क्या कमाल है , कल ही लिखा यह स्टेटस।

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  30. प्रेम की कोई तय परिभाषा नहीं होती |
    बहुत सुन्दर लिखा है अनु जी

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  31. प्रशंसनीय रचना - बधाई
    शब्दों की मुस्कुराहट पर ....क्योंकि हम भी डरते है :)

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  32. ये सब तो श्रृंगार है भारतीय नारी के..
    इन्हें बेड़ियाँ कैसे कहने दे सकती है..
    बहुत ही सुन्दर रचना...
    :-)

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  33. बहुत ही खूबसूरत रचना.

    रामराम.

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  34. "अनसुना कर देती हैं अपने भीतर की हर आवाज़ को....
    वे उतार नहीं फेंकती
    तलुओं पर चुभते बिछुए ,
    भागते पैरों पर
    पहन लेती हैं घुंघरु वाली मोटी पायलें
    वो नहीं देती किसी को अधिकार
    इन्हें बेड़ियाँ कहने का |"
    -
    -
    -
    बेहतरीन / उत्कृष्ट रचना
    बहुत अनुपम लेखन

    आभार

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  35. बहा ले गयी आप..

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  36. शुक्रिया यशवंत !

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  37. बहुत बहुत शुक्रिया.

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  38. बहुत खूबसूरत भावों को सरलता एवं प्रभावपूर्ण ढंग से अभिव्यक्त किया है .

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  39. यूँ ही करती हैं ये स्त्रियाँ
    अपने समर्पण का ,अपने प्रेम का,अपने जूनून का
    उन्मुक्त प्रदर्शन !!.....................खूबसूरत /उत्कृष्ट रचना

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  40. भावपूर्ण खूबसूरत रचना ...

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  41. क्‍या बात है ... हमेशा की तरह जबरदस्‍त लिख्‍खा है

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  42. बहुत खूब .... प्रेम की कोई तय परिभाषा नहीं होती ... पर इन भौतिक बातों एमिन भी प्रेम कहाँ होता है ..
    गहरे परिपेक्ष में लिखी रचना ...

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  43. यूँ ही करती हैं ये स्त्रियाँ
    अपने समर्पण का ,अपने प्रेम का,अपने जूनून का
    उन्मुक्त प्रदर्शन !!

    प्रेम की कोई तय परिभाषा नहीं होती |
    . सही कहा आपने ...
    स्त्री और पुरुष के लिए प्रेम के मायने एक होकर भी एक न होना मन में हरदम एक कसक जगाता है ..

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  44. तभी तो तुम अतुलनीय हो
    सृजक हो, संस्कारों,
    मूल्यों और सृष्टि का
    अमूल्य उपहार हो ...

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  45. स्त्रियाँ इसी तरह भ्रम में जीती हैं ...

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  46. बड़ी बेबाक तस्वीर खींच दी ........ सस्नेह :)

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  47. :) ... जो भी मान लो ..

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  48. बहुत सुंदर रचना है...मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है.
    http://iwillrocknow.blogspot.in/

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