सफ़र में होंगे कांटें भी
इस बात से बेखबर न थे
मगर
खबर न थी
के चुभेंगे इस कदर
कि तय न हो सकेंगी
ये लम्बी दूरियां कभी.....
(या कौन जाने ,कोई चुनता रहा हो कांटे मेरी राह के अब तक.... पैरों तले मखमली एहसास यूँ ही तो नहीं था अब तक.......
यकायक मंजिल दूर चली गयी हो जैसे....)
अनु
इस बात से बेखबर न थे
मगर
खबर न थी
के चुभेंगे इस कदर
कि तय न हो सकेंगी
ये लम्बी दूरियां कभी.....
(या कौन जाने ,कोई चुनता रहा हो कांटे मेरी राह के अब तक.... पैरों तले मखमली एहसास यूँ ही तो नहीं था अब तक.......
यकायक मंजिल दूर चली गयी हो जैसे....)
अनु
बहुत सुन्दर अहसास...अनु
ReplyDeleteस्नेह जो अब तलक अतिरिक्त था,
ReplyDeleteन रहा अब और सब रिक्त कर गया ।
यही प्रकृति है ।
जैसे दो छोटी कवितायेँ , एक '()' के अंदर और दूसरी बाहर |
ReplyDeleteसुन्दर
सादर
वाह! बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteहकीक़त से रु ब रु होने के नाते .... मुझे ये रचना एक बेटी के जज्बात लगे ....
ReplyDeleteपिता से विछुड़ने की अभिव्यक्ति दिल को छू रही है ....
शुभकामनायें !!
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
वो भी एक एहसास, ये भी एक एहसास -अंतर समय का बता दिया एहसासों का अंतर -आभार
ReplyDeletelatest postऋण उतार!
बहुत सुंदर,प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteRecent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,
यकायक मंजिल दूर चली गयी हो जैसे..
ReplyDelete---------------
समझ सकता हूँ ....
जी सफर में काटें तो मिलते ही है,सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteदोनों ही बातें एक दूसरे की पूरक हैं. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
शब्दों का इतना सुन्दर शिल्प आपकी कलात्मकता का परिचय देता आप को जब भी पड़ती हूँ हमेशा ही ये दीखता है बधाई की पात्र हैं
ReplyDeleteमखमली अहसास
ReplyDeleteदेता है , अपनों का साथ।
दिल के सच्चे उदगार।
सहजता से कही गयी मन की अनुभूति
ReplyDeleteबहुत सुंदर
खूब कही....
ReplyDeletesometimes things doesn't turn out the way we think..
ReplyDeleteu beautifully expressed that thought
हकीक़त
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteएकदम सटीक और सार्थक प्रस्तुति आभार
ReplyDeleteबहुत सुद्नर आभार अपने अपने अंतर मन भाव को शब्दों में ढाल दिया
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
एक शाम तो उधार दो
आप भी मेरे ब्लाग का अनुसरण करे
~वो मखमली एहसास ना भूलेगा कभी....
ReplyDeleteजब-जब चुभेंगे काँटे.. याद आयेगा..और भी...~
तुम्हारे दुख का बहुत दुख है... अनु!
<3
aapki lekhni me dusron ko mahsoos karaa dene ki kshamta hai.......!!!
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteइस यथार्थ एवं भावपूर्ण रचना के लिए सादर बधाई।
सुन्दर।
ReplyDeleteकौन तय कर सका है ये लम्बी दूरियां अनु जी... उनका आशीर्वाद और प्यार हमेशा आपके साथ रहेगा... शुभकामनायें
ReplyDeleteShayad Khud ko samjhaane bhar ka tarika ho sakta hai ye pr zindagi ki yahi sachhayi hai...
ReplyDeleteNamskar :)
बहुत उम्दा. दो भिन्न भाव में बहुत सहजता से घुमाव लेती हुई रचना.
ReplyDeleteWahh... true words....
ReplyDeleteयही यथार्थ है और इसी के साथ जीना होता है...
ReplyDeleteइस बात से बेखबर न थे
ReplyDeleteमगर
खबर न थी
के चुभेंगे इस कदर
सच ... मन को छूते शब्द
अच्छा है.
ReplyDeleteकाँटों के साथ जीवा पड़ता है ... हर समय तो कोई नहीं रहता कांटे दूर करने को ...
ReplyDeleteगहरा एहसास लिए ...
ऊपर की पंक्तियों का उत्तर स्वयं आपने ही दे दिया है
ReplyDeleteवो भी बड़ी खूबसूरती से ...बहुत सुन्दर ..
sundar eahsaas anu ji pahale ki bhi post padhi acchi lagi sabhi ke liye badhai
ReplyDeletesacchi aur gahri anubhuti .......
ReplyDeleteबहुत गहरी अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteहर सफर का फ़साना है .... बहुत खूब अनु!
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