इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Wednesday, November 7, 2012

तेरे बाद......

तेरे  बाद
बेतरतीब सी ज़िन्दगी को
समेटा पहले...
अपने बिखरे वजूद को
करीने  से लगाया ..

अब इकट्ठा कर रही हूँ
तेरी यादों की रद्दी,
गराज में पड़े एक
पुराने सीले
गत्ते के बक्से में..
वक्त  के साथ पड़ती
दीमक  देख कर
तसल्ली  भी है,
कि शायद 
देर सवेर निजात पा ही लूंगी
इन बासी होती यादों से.....

मोहब्बत  से खाली दिल
भुतही  यादों का डेरा बन गया है
जल्द  से जल्द
कैसे  निज़ात पाऊं इनसे ?

कमबख्त यादें...
इनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!

अनु

64 comments:

  1. कमबख्त यादें...
    इनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!

    ....कमबख्त यादों में जंग नहीं लगती। आ ही जाती हैं वक्त बे वक्त।

    ReplyDelete
  2. कितना दर्द भरा है....जब यादें बोझ बन जायें...जब उनकी सीलन मन में गंध बनकर पैठने लगे....तो इससे ज्यादा तक़्लीफ़्देह ...शायद ही कुछ हो ...भगवन करे यह सिर्फ एक कविता हो ...बस

    ReplyDelete
  3. pal pal ki smriton me hai,nic presentation

    ReplyDelete
  4. कमबख्त यादें...
    इनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!

    ...क्या बात है...बहुत खूब!

    ReplyDelete
  5. यही तो ...यादे जस की तस ही रहती हैं.

    ReplyDelete
  6. कमबख्त यादें...
    इनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!

    sabse khubsoorat line... :(

    ReplyDelete
  7. sundar, n bhoolo kabhi bhool kar bhi mujhe,yad lamahon se sadiya bani ja rahi......yad hone ka ahshash bhi zooroori hai

    ReplyDelete

  8. देर सवेर निजात पा ही लूंगी
    इन बासी होती यादों से....

    कमबख्त यादें...
    इनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!

    waah Anu ji what a antithesis used ---वाह क्या विरोधाभाष है

    ReplyDelete
  9. देर सवेर निजात पा ही लूंगी
    इन बासी होती यादों से..

    कमबख्त यादें...
    इनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!---kya baat hai
    what a antithesis used

    ReplyDelete
  10. कमबख्त यादें...
    इनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!

    और कभी जंग लग भी नहीं सकती क्योंकि यादें अच्छी क्वालिटी के स्टील जैसी होती हैं।


    सादर

    ReplyDelete
  11. ना जंग लगेगी इनमे ना ही वक़्त की दीमक, रह -रह के आती हैं, अमृत पीकर ही जनम लेती हैं ये कमबख्त यादें.....

    ReplyDelete
  12. yadon me kabhi jang nahi lagti , ve to parat dar parat gahri hoti jati.....

    ReplyDelete
  13. क्या करें इन यादों का चाह कर भी दिल से हटाई नही जाती । या पिर हम चाहते ही नही हटाना ।

    बहुत सुंदर, भावुक प्रस्तुति ।

    ReplyDelete
  14. Replies
    1. शुक्रिया संगीता दी...

      Delete
  15. ...अरे, वो भुतही यादें भी मोहब्बत ही है।

    ReplyDelete
  16. aisi bhi kya betabi hai jang lagva dene ki.....kuchh haseen pal hi chhant lijiye na inme se.

    ReplyDelete
  17. कमबख्त यादें...
    इनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!
    वाह !! बहुत खूब

    ReplyDelete
  18. मुहब्बत अपने भीतर का सच है , उसे सोचो-भूत भाग जायेगा ....हाँ यादों का कोई ईलाज नहीं

    ReplyDelete
  19. सुंदर रचना अनु !
    मगर एक बात कहें...?
    यादें...कभी बासी नहीं होतीं, रद्दी का ढेर नहीं होतीं..., कितनी भी सीली क्यों न हों... जब भी उन्हें हल्के से सहलाओ...यादें हमेशा निखार कर तरो ताज़ा रूप धारण कर लेती हैं ! जब दिल मोहब्बत से खाली हो ना...तो यही यादें...जीने का सहारा बन जातीं हैं.....~बस उन यादों से प्यार होना चाहिए... :-)
    ~ढेर सारा स्नेह !

    ReplyDelete
  20. क्यों कुछ यादे पीछा ही नहीं छोड़ती ???

    खूबसूरत भाव ..

    ReplyDelete
  21. bahut hi behtreen rachna hai lagi apki yah anu ..

    ReplyDelete
  22. बहुत बढ़िया . यादों में जंग नहीं लगता ,

    ReplyDelete
  23. yaadon ko kambakht kahan bhata nahin magar "kambakht" baar baar aa bhi to jaati hai, hasane rulane ke liye ,isi janam ka bair hai shayad :)

    ReplyDelete
  24. सीली सी यादें
    भिगो दिया है मन
    पीछा न छूटा....

    वजूद पाया
    करेने से सजाया
    यादें बुहारीं....

    खाली सा दिल
    बिना मुहब्बत के
    भुतहा डेरा ...

    खुद से जंग
    जंगरहित यादें
    निजात नहीं ....


    बहुत भावपूर्ण रचना .... हाइकु में मेरे जवाब :):)

    ReplyDelete
    Replies
    1. वाह दी वाह....
      बहुत सुन्दर ...
      शुक्रिया <3

      Delete
    2. सुंदर रचना उम्दा भाव ।

      Delete
    3. वजूद पाया
      करेने से सजाया
      यादें बुहारीं.... इसे इस तरह पढ़ा जाये ------

      वजूद पाया
      करीने से सजाया
      यादें बुहारीं ।

      Delete
  25. अन्तरमन के भाव मुखारित हुए।

    ReplyDelete
  26. गत्ते के बक्से में..
    वक्त के साथ पड़ती
    दीमक देख कर
    तसल्ली भी है,
    कि शायद
    देर सवेर निजात पा ही लूंगी
    इन बासी होती यादों से.....

    wah gajab ki samvedana ....bahut hi sundar Anu ju

    ReplyDelete
  27. वाह अनुजी, क्या बात है, ‘कमबख्त यादें, इनमें जंग भी तो नहीं लगती।’ बहुत खूब, अच्छी रचना के लिए बधाई।

    ReplyDelete
  28. एक पुराना खत निकला है , उस कच्ची अलमारी से ,
    जब तुम मुझसे अलग हुए थे , अपनी कुछ लाचारी से |
    हमेशा की तरह बहुत अच्छा लिखा है |

    सादर

    ReplyDelete
  29. कमबख्त यादें...
    इनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!
    यादों को जंग लगाना क्या बात है ....
    प्रत्यूत्तर में संगीता जी के हाइकु अच्छे लगे !

    ReplyDelete
  30. दीमक देख कर
    तसल्ली भी है,
    कि शायद
    देर सवेर निजात पा ही लूंगी
    इन बासी होती यादों से.....
    aamin ...koshish karne men kya jata hai ....dard bhari....abhiwayakti....khud se narajgi darshaati hui......

    ReplyDelete
  31. आपकी लिखने और सोचने की क्षमता अद्भुत है |अच्छी कविता |

    ReplyDelete
  32. याद न जाए बीते दिनों की ......| बहुत खूब |

    ReplyDelete
  33. यादों में जंग लगती तो क्या होता?
    और ज्यादा तकलीफ होती...
    यादें चमकती रहनी चाहिए...बरतनों की तरह!!!
    सस्नेह

    ReplyDelete
  34. What a beautiful poem for showing the confusion of heart. The paradox is amazing in this and last line.

    "तेरी यादों की रद्दी"

    ReplyDelete
  35. क्या बात कही है, अपने अनोखे अन्दाज़ में!!

    ReplyDelete
  36. यादों की रद्दी , वक्त की दीमक !
    यादें फिर भी बची रहती है , आंसुओं का कीटनाशक दीमक की धुंध हटा कर यादों को बचा रखता है !

    ReplyDelete
  37. स्मृतियाँ सदा साथ ही रहती हैं......

    ReplyDelete
  38. वो उन्हें याद करें ...जिसने भुलाया हो कभी ...
    हमने उनको न भुलाया ...न कभी याद किया ...

    गहरी यादों की भटकन ....

    ReplyDelete
  39. उनकी यादों से कब तक और कहाँ तक मैं बच पाई,
    जहां जहां भी उनकी ही यादें मेरे जेहन मे आईं
    बहुत सुंदर अनु दी

    ReplyDelete
  40. उनकी यादों से कब तक और कहाँ तक मैं बच पाई,
    जहां जहां भी गई उनकी ही यादें मेरे जेहन मे आईं

    ReplyDelete
  41. बहुत सुन्दर कविता है अनु जी |यादें कभी मिटती नहीं कही किसी कौने में छुप कर रह जाती हैं |दीपावली पर अग्रिम शुभकामनाएं |

    ReplyDelete
  42. बातें भूल जाती है, यादें ही तो याद आती है

    बहुत खूब !!


    मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    माँ नहीं है वो मेरी, पर माँ से कम नहीं है !!!

    ReplyDelete
  43. "कमबख्त यादें...इनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!" I loved and loved theese lines.. kya kahun bas lajawaab hai Anu di!! :) :)

    ReplyDelete
  44. कमबख्त यादें...
    इनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!

    बेहतरीन कहें या उन यादों में खो जाए... लाजवाब...

    ReplyDelete
  45. ज्योति पर्व दीपावली की शुभकामनायें |

    ReplyDelete
  46. बेहतरीन रचना.....सबसे अंतिम पंक्ति ने कविता के आनंद को एवरेस्ट जैसे उत्कर्ष पर ला दिया. सुन्दर रचना के लिए मेरा आभार.

    निहार

    ReplyDelete
  47. सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  48. कमबख्त यादें...
    इनमें ज़ंग भी तो नहीं लगती !!..अरे ! क्या बात है..अनु..बहुत बढिया..सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं |

    ReplyDelete
  49. shabdo ke angan me bhavnao ka khel ..behad khubsurti se racha h tekhe sabdo se mithi kavita ko. . . So nice.

    ReplyDelete
  50. सौहाद्र का है पर्व दिवाली ,

    मिलजुल के मनाये दिवाली ,

    कोई घर रहे न रौशनी से खाली .

    हैपी दिवाली हैपी दिवाली .

    शुक्रिया आपका .

    वीरू भाई .

    ReplyDelete
  51. smrition ki sundar abhivyakti .deepawali ki hardik subhkamnaye

    ReplyDelete
  52. kash ki in yaadon par jang lag paati to jeena aasan bhi ,hota mushkil bhi.bahut badhiyaan ,sunder rachna. diwali ki hardik shubhkamna.

    ReplyDelete
  53. दिपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !

    ReplyDelete
  54. अब इकट्ठा कर रही हूँ
    तेरी यादों की रद्दी,
    गराज में पड़े एक
    पुराने सीले
    गत्ते के बक्से में..
    वक्त के साथ पड़ती
    दीमक देख कर
    तसल्ली भी है,
    कि शायद
    देर सवेर निजात पा ही लूंगी
    इन बासी होती यादों से..... निजात ना भी मिले तो सच का गरल बहुत कुछ देगा

    ReplyDelete

नए पुराने मौसम

मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...