इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Saturday, November 3, 2012

आप ही आप रूठी हूँ इन दिनों....

सुस्त रफ़्तार दिन
नीरस पल छिन
बेसुर गीत
बेसुध हवा
पसरा  सन्नाटा
अलसाया जंगल
चिड़चिड़ी चिड़िया
अनमना आसमान
बुझे बुझे तारे
अटपटा  चाँद
रूठे से फूल
ज़र्द पत्ते
सर्द मौसम
बेतरतीब किरणें
उलझे लोग
निरुत्तरित आँखें


मुझे सब मुझ जैसा  दिखता  इन दिनों.....
      शायद आप ही आप रूठी हूँ इन दिनों.......

-अनु 

63 comments:

  1. वाह अनु जी क्या बात है उम्दा रचना गहरी अभिव्यक्ति.
    मुझे सब मुझ जैसा दिखता इन दिनों.....
    शायद आप ही आप रूठी हूँ इन दिनों.......

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  2. ये आप सा तो नहीं लगता ...रूठना आप पर नहीं फबता
    चहचहाती चिड़िया हैं अनु दी ..but well written

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  3. बेतरतीब सी ज़िन्दगी ... मैं रूठी हूँ खुद से
    या रूठने की वजह बिखरी है

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  4. सुस्त रफ़्तार दिन ... लग भी रहा है ... :)
    सादर

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  5. मौसम बदल रहा है तो ऐसा ही लगेगा .. कुछ दिनों बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा ..अपने भावों को जिस तरह आपने शब्दों में बाँधा है वो काबिले-तारीफ है ... अंतिम की ये 2 पंक्तियाँ बेहद पसंद आई।
    मुझे सब मुझ जैसा दिखता इन दिनों.....
    शायद आप ही आप रूठी हूँ इन दिनों.......

    बधाई स्वीकार करें !
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं।धन्यवाद !!
    my recent post-
    घर कहीं गुम हो गया

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  6. "शायद आप ही आप रूठी हूँ इन दिनों......."
    सच में....!

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  7. चँदा मामा दूर के
    पूए पकाएँ गूँडँ के
    अनु को दें थाली में
    चँदा को दें प्याली में

    मूड ठीक हुआ या नहीं...:)
    सस्नेह

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    1. :-)भीतर का बच्चा तो खुश हो गया ऋता जी.....मगर ये ज़रा सी कमबख्त समझदारी जो आ गयी है...वही नहीं मानती....
      :-(

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  8. बैठे उदास, उट्ठे परीशां,खफा चले
    पूछें तो कोई आपसे,क्या आये क्या चले..?"दाग"

    RECENT POST : समय की पुकार है,

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  9. अटपटा चाँद
    रूठे से फूल
    ज़र्द पत्ते
    सर्द मौसम.....
    ..............
    बहुत खूब

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  10. ऐसन त पतझड़ क बखत लागेला :)

    खैर
    आप जो लिख दें लाजबाब हो जाता है !!

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    1. मन के पात कभी भी झड़ने लगते हैं विभा जी....

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  11. abhivyakti ki gahrayeeo ko chooti rachanaअनमना आसमान
    बुझे बुझे तारे
    अटपटा चाँद
    रूठे से फूल
    ज़र्द पत्ते
    सर्द मौसम
    बेतरतीब किरणें
    उलझे लोग
    निरुत्तरित आँखें

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  12. खूब कहा ...गहरी अभिव्यक्ति लिए पंक्तियाँ

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  13. मुझे सब मुझ जैसा दिखता इन दिनों.....
    शायद आप ही आप रूठी हूँ इन दिनों.......

    mera bhi mood kuch aisa hi in dino......

    meri post par aapka intzaar hai

    चार दिन ज़िन्दगी के .......
    बस यूँ ही चलते जाना है !!

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  14. मुझे सब मुझ जैसा दिखता इन दिनों.....
    शायद आप ही आप रूठी हूँ इन दिनों.......

    mera bhi mood kuch aisa hi in dino......

    meri post par aapka intzaar hai

    चार दिन ज़िन्दगी के .......
    बस यूँ ही चलते जाना है !!

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  15. मुझे सब मुझ जैसा दिखता इन दिनों.....
    शायद आप ही आप रूठी हूँ इन दिनों.......

    ऐसा भी होता है ...कभी कभी।

    सादर

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  16. आप ही रूठ जाना क्या कयामत है ,खुद से क्यूँ छिपना ,सुन्दर कविता .

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  17. होता है जीवन में यह भी
    सब कुछ फीका लगता है
    सावन आग लगाता है और
    पतझड़ में जी लगता है
    कैसी है यह विरह की ज्वाला
    ऐसा ही क्यों होता है..
    कोई पास नहीं है मेरे
    जब ये दिल उदास होता है!
    /
    अनु बहन!! मेरी यही तुकबंदी मेरा कमेन्ट मान लें!!!

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  18. वाह ! क्षणिक अवसाद के पलों को खूबसूरत अभिव्यक्ति दी है आपने.

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  19. बहुत बहुत शुक्रिया रविकर जी.

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  20. खुद से रूठे हो तो खुद मान जाओ न ऐसे रूठे न रहो...लेकिन नहीं रूठते तो इनती सुन्दर रचना कैसे होती है न ? शुभकामनायें...

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  21. बहुत सुन्दर रचना।वाह क्या बात है।

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  22. खुद को और अपनी सोच को कुछ वक्त का विराम दो ..........सब ठीक हो जाएगा :)))

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  23. कभी-कभी खुद से भी मन रूठ जाता है..
    मन के भावों की कोमल अभिव्यक्ति...
    सो स्माइल प्लीज :-) :-)

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  24. एक अनमने मन का सीधा सच्चा चित्रण ......बिलकुल ऐसा ही लगता है ...जब मन उचाट हो....:(((

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  25. होता है,होता है..कभी -कभी ऐसा भी होता है..

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  26. कभी कभी ऐसा भी होता है ....

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  27. sach kaha aapne kabhi kabhi aisa hi lagta hai ..........

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  28. कुछ मनवाने के लिए ....पहले रूठना ज़रुरी है ..??:-))
    आपकी मांग जल्द से जल्द पूरी हो !
    स्नेह !

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  29. sach kaha aapne kabhi kabhi aisa hi lagta hai ..........

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  30. कुछ दिन के लिये समझदारी को गोली मारो और अंदर के ख्रुशनुमा बच्चे को ही अपनी चलाने दो

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  31. क्या करती हो ,आईना भी इतने प्यार से दिखाती हो कि अनमनापन खुद ही गायब हो जाता है .....सस्नेह :)

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  32. उदासियों का शब्द चित्रण . सुन्दर

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  33. क्या हुआ इतने गुस्से में आपने कविता रच दिया खैर कविता तो अच्छी है |

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  34. अरे रे !! दो तीन बार इस कविता को पढूं तो खुद भी अनमनी सी हो जाऊं....इसलिए अब फड़कती हुई खुशियों भरी अगली कविता का इंतज़ार है :)

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  35. सावन की ये पुरवाई ,
    गर्म संदेशे क्यूँ लायी ,
    वो दूर कहीं पर बैठा है ,
    क्या फिर से मुझसे रूठा है ?
    सुन्दर रचना

    सादर

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  36. दूर तक पसरी भावनाएँ. बहुत अच्छा लगा.

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  37. इतना अनमना, अटपटा सा मौसम क्यों है भला?? हमारी प्यारी अनु दी रूठी हों, ये हमें अच्छा नहीं लगेगा, हम सब मिलके मनाएंगे आपको, अभी के अभी .. :) :)
    सादर
    मधुरेश

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  38. bilkul sahi bhaw utaren hain kagaj ke pannon par aisa aksar hota hai tabhi to kavita kajanm hota hai anu jee...

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  39. मुझे सब मुझ जैसा दिखता इन दिनों.....
    शायद आप ही आप रूठी हूँ इन दिनों.......

    bahut sundar...:-)

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  40. yeah, it happens with me too...

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  41. मुझे सब मुझ जैसा दिखता इन दिनों.....
    शायद आप ही आप रूठी हूँ इन दिनों.......
    ये भी ज़िन्दगी का ही एक हिस्सा है

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  42. अनु जी. असरपूर्ण रचना. ढलती शाम को अगर शब्दों में बांधे तो कुछ एसी ही रचना बनेगी.

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  43. एक अलग अंदाज के साथ आई है यह प्रस्तुति।

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  44. Rashmi jee ne sahi kaha.... kyon ham pathak ko anmana sa bana rahe ho:)
    chalte hain
    ham bhi agle post ka intzaar karenge...:)

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  45. sundar rachna
    Mini aunty......

    uljhi huyi si kuchhh...... zindgi .. kabhi kabhi aisi hi lagti hai

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  46. अपने आप को मनाना पड़ेगा. अपने से रूठना भी ठीक नहीं. सुंदर असरदार प्रस्तुति.

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  47. जब किसी से कोई गिला रखना
    सामने अपने आइना रखना

    हमारे मूड के हिसाब से दुनिया बदलती रहती है...

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  48. होता है होता है अनु जी कभी कभी सब कुछ पास होते हुए भी मन उचाट सा हो जाता है फिर प्रकृति भी उदास दिखती है बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति बधाई आपको

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  49. bahut sundar dhng se wykat kiya aapne is bhaaw ko ...anu ..

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  50. तुम क्या रूठे मानो सारी कायनात रूठ गई
    हम ही क्या जिंदगी भी हमसे रूठ गई गई .....
    बहुत सुन्दर भाव, अनु जी!

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  51. खुद ही खुद से रूठी हो ...तो ये खुद ही खुद को मना लेगा:) थोडा इत्मीनान रखो.
    सुन्दर लिखा है.

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  52. खुद को मनाना बहुत मुश्किल होता है अनु... :(
    जिसने ये हुनर सीख लिया..उसने जग जीत लिया समझो........

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  53. अनु सब कुछ मन से होता है अगर मन खुश है तो ये सब सार्थक नजर आता है और मन उदास या रूठा है तो पूनम का चाँद भी झुलसन देता है। बहुत सुन्दर चित्रण किया है।

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  54. यह क्या मुझको हुआ मुझे अब स्वांतर्मन है दिखता।
    बनता हूँ मैं स्वयं प्रश्न,और हूँ उत्तर बन जाता ।

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  55. शायद आप ही आप रूठी हूँ इन दिनों.......
    ये भी ज़िन्दगी का ही एक हिस्सा है
    ......खूबसूरत अंदाज के साथ बेहतरीन रचना

    मेरे ब्लॉग पर स्वागत है
    http://rajkumarchuhan.blogspot.इन

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  56. न रूठें नही ये दिन बीत जायेंगे ।
    खूबसूरत प्रस्तुति अलग अंदाज़ ।

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  57. sust ashaar..sust jazbaat...umda...

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